Wednesday, September 16, 2020

'साबूदाना' के ये फायदे आप नहीं जानते होंगे, सेहत को देता है कई बड़े लाभ

सफेद मोतियों की तरह दिखने वाला छोटे आकार का साबूदाना (Sago) व्रत-उपवास में प्रमुख रूप से खाया जाता है. वैसे तो इसका प्रयोग केवल फलाहार के तौर पर किया जाता है, लेकिन इसके गुणों से अभी तक कई लोग अनजान ही है. साबूदाना कई न्यूट्रिशंस से भरपूर एक बैलेंस डायट (Balance Diet) है.

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अपने दुबलेपन से हो गए हैं परेशान, तो इन चीजों से जल्द पाएं समाधान

जहां कुछ लोग अपने मोटापे (Fat) से परेशान रहते हैं तो वहीं कुछ लोग अपने दुबलेपन के कारण परेशान रहते हैं. वह बड़ी कोशिशें करते हैं की थोड़ा वजन बढ़ जाए. लेकिन फिर भी निराश हो जाते हैं.

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DR MICHAEL MOSLEY: Food to improve your mood... and boost your energy!

DR MICHAEL MOSLEY: People often stop me in the street to tell me how good they feel after shedding weight on my Fast 800 programme.

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Dealing with infertility? Here's help

From PCOS and cervix problems in women to poor quality sperm and pituitary gland disorders in men, infertility is a common problem which plaques a large number of couples every year. While it is hard to deal with it; it is even harder to accept the reality. Here are some things you must never do to yourself when you are already struggling with infertility.

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एक्सपर्ट से समझिए- कोरोनाकाल में फेफड़े पंक्चर होने का मतलब क्या है और क्यों रीयूजेबल एन95 मास्क लगाने से बचना चाहिए?

हर 100 में से एक कोरोना सर्वाइवर में फेफड़े पंक्चर होने का मामला सामने आ रहा है। वैज्ञानिक भाषा में निमोथोरेक्स कहते हैं। यह क्या है और ऐसा क्यों हो रहा है, इसका जवाब इंटरनल मेडिसिन एक्सपर्ट डॉ. नरेंद्र सैनी ने दिया। डॉ. नरेंद्र कहते हैं, कोविड से ठीक होने वाले मरीजों में फेफड़े पंक्चर होने के कुछ मामले सामने आए हैं।

कुछ मरीजों में ऐसा पाया गया है कि फेफड़ों के अंदर की लेयर डैमेज होने के कारण हवा फेफड़े के ऊपरी कवर (प्ल्यूरा) में चली जाती है। निमोथोरेक्स के मामले कोरोना के उन मरीजों में पाए गए हैं जो पहले से अस्थमा, टीबी या सांस लेने की तकलीफ से जूझ रहे हैं।

कई बार कोरोना के मरीजों को रेस्‍प‍िरेट्री डिस्‍ट्रेस सिंड्रोम हो जाता है, जिससे सांस लेना मुश्किल हो जाता है। वो जोर-जोर से सांस लेते हैं और अंदरूनी दबाव बढ़ जाता है। दबाव की वजह से फेफड़ों में छेद हो जाता है और हवा प्ल्यूरा के अंदर घुस जाती है। यह एक खतरनाक बीमारी है। समय पर इलाज न मिलने पर सांस रुक भी सकती है।

रीयूजेबल एन95 मास्क लगाने से बचें
इन दिनों एन95 मास्क को भी रीयूजेबल बता कर बेचा जा रहा है। इस पर डॉ. सैनी कहते हैं कि यह गलत है, इसे खरीदने से बचें। एन95 मास्क को दोबारा साफ करने का कोई तरीका अभी तक नहीं है। घर के बने मास्क तो पानी से धुलकर दोबारा इस्‍तेमाल कर सकते हैं, लेकिन एन95 को नहीं।

एक स्टडी की गई, जिसमें इसे एक बार पहनने के बाद पांच दिन बाद इसे वापस पहनने की सलाह दी गई। इसमें कहा गया कि अगर मास्क रख रहे हैं, तो अखबार में लपेट कर रख दें, ताकि उसमें नमी न जाए। ध्‍यान रहे, एन95 को धुल कर इस्‍तेमाल करना सुरक्षित है, इस बात के कोई वैज्ञानिक प्रमाण अब तक नहीं मिले हैं।

क्या है रिचार्जेबल मास्क

बाजार में इन दिनों नए तरह के मास्क आ रहे हैं। सर्जिकल, डिस्पोजल, एन95 के बाद अब रिचार्जेबल मास्क चर्चा में है। यह मास्क कैसे काम करता है, इस पर डॉ. नरेंद्र का कहना है, यह मास्क दो तरीकों से कीटाणुओं को रोकता है। पहला, इसके पोर्स बहुत छोटे होते हैं। इसे मैकेनिकल फिल्ट्रेशन कहते हैं। दूसरा, इसके अंदर इलेक्ट्रोस्टेटिक चार्ज होते हैं, जो कीटाणुओं को अपनी ओर आकर्षित करते हैं और बाहर ही रोक देते हैं।

ऐसे रिचार्जेबल मास्क इन दिनों चर्चा में हैं लेकिन ये अभी भारतीय बाजार में नहीं आए हैं।

इनमें इलेक्ट्रोस्टैटिक चार्ज धीरे-धीरे खत्म होने लगता है। ऐसे मास्क जिनमें इस चार्ज को वापस प्रवाहित किया जा सके, वो रिचार्जेबल मास्क होते हैं। ये अभी लैब में बने हैं, बाजार में नहीं आएं हैं।



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Punctured Lungs in Coronavirus COVID Patients; All You Need To Know In Simple Words


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20 साल पहले जिस डायरी को मोदी आग में जला रहे थे, उसी के पन्नों से बनी है 'लेटर्स टू मदर' किताब; पढ़ें उसी के बनने की कहानी, साथ में और भी किस्से...

पीएम नरेंद्र मोदी आज 70 साल के हो गए हैं। उनकी जिंदगी का गुजरात और उससे पहले का वक्त अनकहा है। इसी अनकहे दौर को मोदी ने अपनी डायरी के पन्नों में दर्ज किया है, लेकिन करीब 20 साल पहले वे उसे आग के हवाले कर रहे थे। इसी दौरान उन्हीं के हमनाम एक दोस्त ने उन पन्नों को मोदी से छीनकर बचाया और गुजराती में 'साक्षीभाव' नाम की किताब का रूप दे दिया।

अब उसी किताब को लेखिका भावना सोमैया नेअंग्रेजी में 'लेटर्स टू मदर' के नाम से अनुवाद किया है। पीएम मोदी के जन्मदिवस के मौके पर भास्कर के पाठकों के लिए इस किताब से जुड़ी रोचक खुद भावना सोमैया की जुबानी...

' यह 1986 का दिन था। इस समय राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के एक कार्यकर्ता यानी नरेंद्र मोदी ने ग्रामीण इलाके में शिविर का आयोजन किया था। अंधेरी रात में नरेंद्र मोदी नाइट लैंप की रोशनी में अपनी डायरी लिखने बैठे। इस डायरी में वे अपनी भावनाएं व्यक्त करते थे। अलग-अलग मुद्दों पर चलने वाली उनकी कलम से निकलते शब्द दार्शनिक होने के बावजूद भावनाओं से ओतप्रोत होते थे। उनका यह क्रम वर्षों तक अनवरत जारी रहा। कहें तो दशकों तक चलता रहा।

इस बात को कई साल बीत गए और फिर एक वाकया साल 2000 में घटा, जब नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री के पद पर थे। न जाने क्यूं एक दिन वे बगीचे में बैठे-बैठे अपनी डायरी के पन्ने फाड़-फाड़कर आग के हवाले कर रहे थे। तभी उनके एक खास दोस्त मिलने आ पहुंचें। अपनी ही डायरी के पन्नों को स्वाहा कर रहे मोदी को देखकर दोस्त को झटका लगा। उसने तुरंत ही मोदी के हाथों से वह डायरी खींच ली। उसने इसके लिए मोदी को टोका भी कि अपनी ही रचना की कदर क्यों नहीं कर रहे। दोस्त ने सोचा कि मोदी बची डायरी को और नुकसान न पहुंचाएं, इसके लिए वह बाकी डायरी को अपने साथ ले गए।

इस प्रसंग को भी 14 सालों का समय बीत गया। अब 2014 का समय था और जगह थी मुंबई का भाईदास ऑडिटोरियम। अवसर था गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की किताब 'साक्षीभाव' के विमोचन का। खचाखच भरे भाईदास ऑडिटोरियम में एक गजब की ऊर्जा और उत्कंठा हवा में तैर रही थी। बाहर सड़क पर ट्रैफिक जाम लगा था और जितने लोग अंदर थे, उससे कहीं ज्यादा लोग ऑ़डिटोरियम के बाहर भी जमा थे। कार्यक्रम शुरू हुआ और एक के बाद एक वक्ताओं के भाषणों का दौर शुरू हुआ।

इसी बीच नरेंद्र मोदी के नाम की घोषणा हुई और पूरा हॉल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा, क्योंकि अब लोगों के लिए इस किताब के पीछे की कैफियत जानने का मौका था। इस दौरान मोदी ने बताया कि यह पुस्तक दो व्यक्तियों के सतत प्रोत्साहन का ही परिणाम है। इसमें पहले व्यक्ति का नाम नरेंद्रभाई पंचासरा था, जिन्होंने मोदी के हाथ से वह डायरी छीन ली थी, जिसे मोदी जला रहे थे। वहीं, दूसरे व्यक्ति थे गुजरात के जाने-माने कवि और प्रकाशक सुरेश दलाल, जो लगातार मोदी को यह किताब लिखने के लिए प्रोत्साहित कर रहे थे। उस शाम का एक-एक पल मुझे आज भी याद है। क्योंकि, मैं भी उस ऑडिटोरियम में मौजूद थी। और, यह बात तो मैंने सपने में भी नहीं सोची थी कि इसका अंग्रेजी अनुवाद करने का मौका मुझे ही मिलने वाला है।

चार साल बाद 2018 की एक सुबह मैं घर पर थी। श्रीकृष्ण पर लिखी एक पुस्तक के मेरे अनुवाद को लेकर मेरे एक लेखक दोस्त का फोन आया था। उन्होंने पूछा कि मैं अब किसी किताब का अनुवाद क्यों नहीं कर रही हूं। इसके बाद उन्होंने मुझसे कहा कि तुम्हें नरेंद्र मोदी की किताबों का अंग्रेजी अनुवाद करना चाहिए। मैं जानती थी कि यह काम बहुत कठिन है। इसलिए मैंने मना कर दिया, लेकिन जब तक मैंने अनुवाद के लिए हां नहीं कह दिया, मेरे उस दोस्त ने सांस नहीं ली। आखिरकार मैंने उससे कहा कि मैं कोशिश करूंगी।

सच बताऊं तो उससे पीछा छुड़ाने के लिए ही मैंने हां कह दिया था। लेकिन, फिर मैं अपने स्टडी रूम में गई और शेल्फ से नरेंद्र मोदी की किताब 'साक्षीभाव' निकालकर पढ़ने लगी। धीरे-धीरे मैं इस किताब के लेखन में डूबती चली गई, क्योंकि यह दृष्टिकोण शैली में लिखी हुई थी। नरेंद्र मोदी ने इस किताब में कई ऐसे गूढ़ शब्दों का प्रयोग किया था, जिसके लिए मुझे कई बार डिक्शनरी खंगालनी पड़ी। मोदी की भाषा शैली एकदम गहन और चुंबकीय है और इसीलिए किताब पूरी पढ़ने के बाद मैंने उसका अंग्रेजी अनुवाद करने का मन बना लिया था। क्योंकि, उनके द्वारा व्यक्त की गई भावनाओं की पारदर्शिता और खासतौर पर खुद को व्यक्त करने की जरूरत मुझे छू गई थी।

मैं फुलटाइम लेखक नहीं हूं... मुझे मेरा समय नौकरी और किताबों के बीच पहुंचने के लिए भी रखना पड़ता है। अभी तक मैंने अपनी सारी किताबें इसी तरह समय निकाल-निकालकर ही लिखीं। इस पुस्तक के लिए मैंने टाइम टेबल तय किया और रोज की पांच कविताओं का अनुवाद करना शुरू किया। पुस्तक का पहला ड्राफ्ट तैयार हो गया। हालांकि, मेहनत का सही काम तो किताब की ड्राफ्टिंग के बाद ही आना था। क्योंकि, तब आप दो भाषाओं और उसमें व्यक्त होने वाली भा‌वनाओं को यथावत तरीके से अनुवादित करने के यज्ञ में जुटे होते हो।

कई ड्राफ्ट्स, रीराइटिंग, शब्दों के अर्थ बार-बार देखना, उसका संदर्भ चेक करना ये सभी काम ड्राफ्टिंग के बाद ही होते हैं। आखिरकार किताब की मेन्युस्क्रिप्ट तैयार हुई। प्रसिद्ध हस्तियों की पुस्तकें तैयार करने वक्त सभी औपचारिकताओं, प्रोटोकॉल और अन्य कई बातों से दो-चार होना पड़ता है। आखिरकार 'हार्पर कॉलिंस' के रूप में प्रकाशक का नाम तय हुआ और अब मैं किताब पब्लिश कराने के लिए तैयार थी। इसके लिए मैंने खुद एक बार नरेंद्र मोदी से मुंबई के राजभवन में मुलाकात भी की थी।

अब 2020 में इस पुस्तक 'लेटर्स टू मदर' के सुपर प्रेजेंटेशन का पूरा श्रेय हमारे प्रकाशक 'हार्पर कॉलिंस' को जाता है। क्योंकि, यह किताब अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचे, यह आइडिया एडिटर उदयन मित्रा का ही था। उनका मानना था कि यह पुस्तक भारत के प्रधानमंत्री और गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री की नहीं, बल्कि एक कॉमनमैन की है। जिसने अपने दिल की धड़कनों में छिपा रखी अपनी भावनाओं को सबके सामने रखने की हिम्मत दिखाई है। इसीलिए यह पुस्तक देश के सभी लोगों तक पहुंचनी चाहिए।

'लेटर्स टू मदर' किताब एक इमेज के पीछे रहे व्यक्ति के डर और उत्तेजना को दर्शाती है। पुस्तक की प्रस्तावना में पीएम नरेंद्र मोदी लिखते हैं कि इसे पब्लिश कराने के पीछे का उद्देश्य कोई साहित्यिक कृति लाने का नहीं है। बल्कि, इस किताब में उनके अवलोकन और भावनाओं को बिना किसी फिल्टर के पेश किया गया है। उनकी यह प्रामाणिकता ही मुझे सबसे ज्यादा छू गई।

एक विचार यह भी आ सकता है कि इस किताब से लोगों को क्या मिलेगा? तो इसका उत्तर है कि पहले तो आप रोजाना अपने विचारों को कागज पर व्यक्त करिए। दूसरा व्यक्ति को अपनी रचनाओं की कद्र करनी चाहिए। भावनाओं के आवेश में आकर उन्हें मिटाना नहीं चाहिए। क्योंकि, जब आप अपनी भावनाएं कागज पर उतारते हैं तो दुनिया देखने का आपका दृष्टिकोण भी अलग होता है। और तीसरा यह कि व्यक्ति कुछ छिपाए बिना एकदम प्रामाणिकता से व्यक्त होता है। सबसे बड़ी यही है कि यह काम भी आपकी अदम्य हिम्मत का परिचय करवाता है।

अभी तक पूरी दुनिया एक महामारी से लड़ रही है तब 'लेटर्स टू मदर' एक आशा और दृढ़ता का संचार करती है कि हम हर संकट को पार कर विजय हासिल कर सकते हैं।



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Narendra Modi; PM Narendra Modi 70th Birthday Special Story | Here's Updates From Bhawana Somaaya Book Letters to Mother


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Daily horoscope for September 17: YOUR star sign reading, astrology and zodiac forecast



YOUR daily horoscope this Thursday finds the arrival of an eagerly-anticipated Virgo New Supermoon - here is how this will transform your horoscope today.

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Workers likely to experience career burnout at the age of 32, study finds



WORKERS are most likely to experience career burnout at the age of just 32 - by taking too much on and working longer hours.

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Do Masks Impede Children’s Development?

Scientists who have studied the ways children process and use the information hidden by masks say that children will find ways to communicate, and that parents and teachers can help.

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Prostate cancer symptoms: What’s waking you up in the night? Sign of the deadly disease



PROSTATE cancer develops at the base of the bladder, surrounding the first part of the urethra - the tube that carries urine and semen. Do you find it difficult to sleep throughout the night? Here's a sign linked to the deadly disease.

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Kate Middleton's body language suggests a 'hands-off' approach to parenting



KATE MIDDLETON and Prince William, both 38, have three children together. A body language expert gave an insight on the parenting techniques that Kate appears to use.

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Can you catch the flu from a flu jab?



FLU jabs will become available for people over the coming months, as influenza rears its head alongside a potential second wave of COVID-19. Those who take them may find they experience residual symptoms, but can you catch the flu from the jab?

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Coronavirus symptoms: The full list of COVID-19 signs you need to watch out for



CORONAVIRUS is seemingly on its second crest as the infection rate increases. How can you tell if you've caught the virus? Here's a full list of symptoms to be aware of.

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