Saturday, July 18, 2020
कोरोना की रफ्तार बेकाबू, एक दिन में रिकॉर्ड 38,902 केस; डरा रहे मौत के आंकड़े
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30 दिन में 1 करोड़ लोगों का कोरोना टेस्ट कर सकेगी मेगालैब, सुपर कम्प्यूटर की मदद से स्टडी की जाएगी मरीजों की हालत
भारत में कोरोना संक्रमितों की संख्या 10 लाख के पार हो गई है। वहीं दुनिया भर में यह आंकड़ा 1.5 करोड़ को छूने वाला है।
भारत उन देशों में शामिल है। जहां पर्याप्त टेस्टिंग न होना एक बड़ी चुनौती है। दुनिया भर में काम कर रहे आईआईटीयंस ने इस चुनौती के समाधान के लिए एक नया टेस्टिंग मॉडल विकसित किया है। इस मॉडल के ट्रायल भी शुरू हो चुके हैं।
आईआईटी एल्युमिनाई काउंसिल ने फरवरी, 2020 में आईआईटी सी-19 टास्क फोर्स की शुरुआत की थी। इस टास्क फोर्स का उद्देश्य दुनिया भर के आईआईटीयंस की तकनीकी और आर्थिक शक्ति का इस्तेमाल कोविड-19 महामारी से निपटने के लिए करना है। इस सी-19 टास्क फोर्स ने ही टेस्टिंग का यह नया मॉडल डेवलप किया है। दो माह पहले सी-19 टास्क फोर्स मुंबई में कोविड-19 की टेस्टिंग बस की भी शुरुआत कर चुकी है।कैसे काम करेगा बल्क में टेस्टिंग करने का यह नया मॉडल, बता रहे हैं काउंसिल के प्रेसिडेंट रवि शर्मा।
एक महीने में 10 मिलियन टेस्टिंग
इस मॉडल से एक महीने के भीतर 10 मिलियन ( 1 करोड़) टेस्टिंग की क्षमता होने का दावा किया जा रहा है। कॉन्टेक्ट लैस टेस्टिंग के लिए रोबोटिक्स का इस्तेमाल भी किया जाएगा। पूरे टेस्टिंग मॉडल को मेगा लैब नाम दिया गया है।
21,000 करोड़ रुपए के फंड से होगा काम
इतने बड़े पैमाने पर टेस्टिंग करने के लिए 21,000 करोड़ रुपए के फंड की जरूरत होगी। काउंसिल ने इतना फंड जुटाने का रोड मैप भी तैयार किया है। तीन माध्यमों से यह फंड जुटाया जाएगा।
- 1 अप्रैल, 2020 का काउंसिल ने PanIIT नाम के सोशल फंड की शुरुआत की थी। PanIIT द्वारा इस मॉडल के लिए 3.000 करोड़ रुपए दिए जाएंगे।
- आईआईटी, मुंबई यूनिवर्सिटी और आईसीटी मुंबई ने मिलकर 3,000 करोड़ रुपए के अतिरिक्त फंड की व्यवस्था की है।
- प्रोजेक्ट पर काम करने वाली कंपनियों को पूंजी उपलब्ध कराने के लिए 15,000 करोड़ रुपए के अलग फंड की व्यवस्था की जाएगी। इसमें अटल इंक्यूबेशन मिशन की भी मदद ली जाएगी।
कहां होगी टेस्टिंग लैब ?
इतने बड़े पैमाने पर कोविड-19 टेस्ट का दावा सुनने पर पहला सवाल यही उठता है कि आखिर इसकी टेस्टिंग लैब होगी कहां? दरअसल इसके लिए किसी एक लैब का इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार नहीं किया गया है। बल्कि टेस्टिंग लैब कार, कैब और काउंसिल की कोविड-19 टेस्टिंग बस में होंगे। इन रिमोट लैब्स के जरिए सैम्पल इकट्ठे किए जाएंगे। आधार कार्ड और पासपोर्ट के जरिए लोगों की पहचान की जाएगी।
चार आईआईटी कैम्पसों में तैनात होंगी बैकएंड टीमें
टेस्टिंग करने के साथ ही डेटा को सुरक्षित रखना और मरीजों के स्वास्थ्य में आने वाले बदलावों का भी तैयार किया जाएगा। इसके लिए चार आईआईटी कैम्पसों में बैकएंड टीमें तैनात रहेंगी। टेस्टिंग टीम को टेक्निकल सपोर्ट देने का काम भी यही टीमें करेंगी।
कोई मरीज न छूटे, इसके लिए मुंबई की इमारतों में सीवेज भी टेस्ट किया जाएगा
टेस्टिंग के लिए आमतौर पर खांसी, गले में खराश और बुखार जैसे लक्षणों के आधार पर ही लोगों को चिन्हित किया जाता है। लेकिन, मेगालैब इसके लिए कई अन्य तरीकों पर भी काम करेगी। इनमें से एक है मुंबई की इमारतों के सीवेज की जांच करना। दरअसल, कई रिसर्च में यह सामने आ चुका है कि इंसान के मल से भी उसके कोरोना संक्रमित होने का पता लगाया जा सकता है।
कब लागू होगा ये मॉडल ?
जाहिर है इस मॉडल को लागू करने के लिए भारत सरकार से अनुमति मिलने की जरूरत है। काउंसिल ने मई में ही सरकार को इस मॉडल को लागू करने का प्रस्ताव भेजा है। सरकार की अनुमति के बाद फाइनल मॉडल तैयार होगा।
आईआईटीज ने कहा - काउंसिल की एक्टिविटीज में हमारी कोई भूमिका नहीं
आईआईटी एल्युमिनाई काउंसिल द्वारा मेगालैब प्लान की घोषणा के बाद देश भर की आईआईटीज ने एक ज्वॉइंट स्टेटमेंट जारी किया। जिसमें कहा गया कि काउंसिल के प्रोजेक्ट्स और इनिशियेट्वस में आईआईटी की कोई भूमिका नहीं है। साथ ही ये भी कहा कि काउंसिल को बिना आईआईटी की अनुमति के उनके लोगो इस्तेमाल करने की स्वतंत्रता नहीं है।
इसपर काउंसिल के प्रेसिडेंट रवि शर्मा कहते हैं - यह जाहिर सी बात है कि आईआईटी एल्युमिनाई काउंसिल की सभी एक्टिविटीज में आईआईटी की सीधे तौर पर कोई भूमिका नहीं होती है। काउंसिल एक अलग बॉडी है और आईआईटी एक अलग बॉडी है। आईआईटी के बयान को गलत अर्थों में पेश करके मामले को तूल देना सही नहीं है।
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Daily horoscope for July 19: YOUR star sign reading, astrology and zodiac forecast
7 दिन तक रेगिस्तान में 100 किलोमीटर का सफर तय करके अपने मालिक के वापस पहुंचा ऊंट, 9 महीने इसे बेच दिया गया था
जानवर अपने मालिक से कितना प्यार करते हैं इसका एक उदाहरण चीन के इनर मंगोलिया में दिखा। कहानी एक बुजुर्ग ऊंट की है, जिसे 9 महीने पहले बेचा गया था। लेकिन ऊंट का मन अपने नए मालिक के यहां नहीं लगा। 9 महीने बाद उसने वापसी की और 7 दिन तक सड़क और रेगिस्तान के रास्ते 100 किलोमीटर की कठिन यात्रा तय करके अपने पुराने मालिक के पास पहुंच। जब ऊंट वहां पहुंचा तो उसके शरीर पर घाव के निशान थे, वह बेहद थका हुआ था।
एक चरवाहे ने उसे मालिक तक पहुंचाया
अपनी घर वापसी के दौरान ऊंट ने रेगिस्तान में 100 किलोमीटर का सफर तय किया। इस दौरान एक चरवाहे की उस पर नजर पड़ी जो उसे पहले से पहचानता था। वह ऊंट को लेकर उसके पुराने मालिक के पास पहुंचा।
मालिक की आंखों में आंसू थे
स्थानीय अखबार बयां नूर के मुताबिक, यह मामला बयांन्नूर शहर का है। करीब 9 महीने के बाद जब ऊंट लौटा तो उसके मालिक की आंखों में आंसू थे। पशुपालन करने वाले किसान दम्पति का कहना है, ऊंट काफी बुजुर्ग था इसलिए इसे अक्टूबर में बेचा गया था। लेकिन यह हम लोगों से बेहद प्यार करता है इसलिए लौट आया।
मालिक ने अपने ही ऊंट को वापस खरीदा
रिपोर्ट के मुताबिक, ऊंट पेड़-झाड़ियों के बीच, हाईवे और रेगिस्तान से होते हुए मालिक के पास पहुंचा, इसलिए उसकी पीठ पर काफी खरोंच और घाव थे। मालिक टीमर को ऊंट की संघर्षभरी यात्रा पता चलने के बाद उसने खरीदार का वापस ढूंढा और इसे वापस खरीदा। टीमर ने पिछले खरीदार को इसके बदले दूसरी मादा ऊंट दी।
ऊंट को परिवार का सदस्य घोषित किया
इस घटना के बाद किसान दम्पति ने ऊंट को मंगोलिया के परम्परागत स्कार्फ 'हाडा' से सजाया। ये स्कार्फ उसी की गर्दन में बांधा जाता है जिसे परिवार का सदस्य माना जाता है। किसान दम्पति का कहना है कि वे अब इसे कभी नहीं बेचना चाहेंगे क्योंकि यह घर के सदस्य जैसा है।
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वैक्सीन का सबसे पहला डोज पटना एम्स में दिया गया, देश में 12 अस्पतालों में 375 लोगों पर ट्रायल की प्रक्रिया शुरू
देश की पहली कोरोना वैक्सीन का ह्यूमन ट्रायल शुरू हो गया है। पहले दौर के ट्रायल में 375 लोगों को इसमें शामिल किया गया है। भारत बायोटेक की वैक्सीन के ह्यूमन ट्रायल की प्रक्रिया 15 जुलाई को शुरू हो गई। देश के 12 बड़े हॉस्पिटल्स में ट्रायल कराया जा रहा है। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, ट्रायल में शामिल कुछ लोगों को वैक्सीन दी जाएगी और कुछ लोगों को सामान्य इलाज दिया जाएगा, इसकी तुलना के आधार पर पता चलेगा वैक्सीन कितनी प्रभावी है। जानिए देश में ट्रायल का हाल
यहां शुरू हुआ पहले चरण का ट्रायल
वैक्सीन के ट्रायल के लिए आईसीएमआर ने देश 12 हॉस्पिटल्स का चयन किया है। इनमें एम्स-दिल्ली, एम्स पटना, किंग जॉर्ज हॉस्पिटल-विशाखापटनम, पीजीआई-रोहतक, जीवन रेखा हॉस्पिटल-बेलगम, गिलुरकर मल्टीस्पेशिएलिटी हॉस्पिटल-नागपुर, राना हॉस्पिटल-गोरखपुर, एसआरएम हॉस्पिटल-चेन्नई, निजाम इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज-हैदराबाद, कलिंगा हॉस्पिटल-भुवनेश्वर, प्रखर हॉस्पिटल-कानपुर और गोवा का एक हॉस्पिटल भी शामिल है।
एम्स पटना : देश में वैक्सीन का पहला डोज एम्स में दिया गया, अगला डोज 14 दिन बाद
ह्यूमन ट्रायल की सबसे पहली शुरुआत पटना एम्स से हुई। देश में सबसे पहले वैक्सीन का डोज यहां के एक युवक को दिया गया। एम्स के एमएस डॉ. सीएम सिंह का कहना है कि वैक्सीन की देखरेख के लिए टीम बनाई गई है। टीम में 30 साल के युवक पर वैक्सीन का ट्रायल किया है। उसे हाफ एमएल का डोज देने के बाद 4 घंटे तक ऑब्जर्वेशन में रखा गया। 7 दिन बाद असर जानने के लिए दोबारा बुलाया गया है। उसे अगला डोज 14 दिन बाद दिया जाएगा। यहां वैक्सीन का ट्रायल कुल 50 लोगों पर होगा। बाकी लोगों को मेडिकल टेस्ट के बाद ट्रायल में शामिल किया जाएगा।
पीजीआई रोहतक : तीन वॉलंटियर्स को 3 माइक्रोग्राम की डोज दी गई, 7 दिन तक होगी मॉनिटरिंग
यहां शुक्रवार से ट्रायल की शुरुआत हुई। ट्रायल में 3 वॉलंटियर शामिल किए गए। ये सॉफ्टेवयर इंजीनियर, शॉप कीपर और सोशल वर्कर हैं। इनके बाएं हाथ में वैक्सीन की 3 माइक्रोग्राम की डोज दी गई। डोज देने के बाद फार्माकोलॉजी विभाग की प्रोफेसर व प्रिंसिपल इन्वेस्टीगेटर डॉ. सविता वर्मा, को-इन्वेस्टीगेटर स्टेट नोडल अधिकारी डॉ. ध्रुव चौधरी व कम्युनिटी विभाग के प्रोफेसर डॉ. रमेश वर्मा की मौजूदगी में तीन घंटे तक मॉनीटरिंग की गई।
कोई साइड इफेक्ट न दिखने पर तीनों वॉलंटियर्स को फिलहाल घर भेज दिया गया है। क्लीनिकल ट्रायल कमेटी के सदस्य सात दिन तक तीनों का लगातार फॉलोअप करेंगे। हाथ में जहां पर वैक्सीन को लगाया गया है वहां पर दर्द, सूजन व सुन्न होने के लक्षण तो नहीं है। सिर दर्द, चक्कर आना, उल्टी आने सहित अन्य कई बिंदुओं पर सात दिन तक मॉनिटरिंग की जाएगी। शुक्रवार को 10 और वॉलंटियर्स की स्क्रीनिंग की प्रक्रिया पूरी हो गई।
निम्स हैदराबाद : दो लोगों का चयन हुआ, 20 अन्य वॉलंटियर्स ने ट्रायल के लिए हामी भरी
हैदराबाद के निजाम इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस के मुताबिक, 2 वॉलंटियर्स को ट्रायल के लिए फाइनल किया गया है। उनके सैम्पल वेरिफिकेशन के लिए दिल्ली भेजे गए हैं। अप्रवूल मिलते ही ट्रायल शुरू कर दिया जाएगा। दो वॉलंटियर्स में एक को वैक्सीन और दूसरे को सामान्य ट्रीटमेंट दिया जाएगा। 24 घंटे लगातार इनकी निगरानी होगी। ट्रायल शुरू होने के 10 दिन के अंदर वैक्सीन का सेफ्टी लेवल चेक किया जाएगा।
तीन महीने सिर्फ ट्रायल में लगेंगे
देश में शुरू हुए वैक्सीन के पहले ह्यूमन ट्रायल में करीब एक महीना लगेगा। ट्रायल के बाद सामने आए आंकड़ों को ड्रग कंट्रोलर ऑफ इंडिया के पास भेजा जाएगा। इसके बाद अगले चरण के ट्रायल की मंजूरी मिलेगी। सीधे तौर पर समझें तो वैक्सीन के पहले और दूसरे चरण के ट्रायल में करीब 3 महीने लगेंगे।
वॉलंटियर्स को एंटीबॉडी टेस्ट से गुजरना होगा
पहले चरण के इस चरण में वैक्सीन की डोज कम रखी जाएगी तो और जांचा जाएगा कि इससे वॉलंटियर्स को किसी तरह कोई खतरा तो नहीं है। इसके साइड-इफेक्ट क्या हैं। इस चरण को 'सेफ्टी एंड स्क्रीनिंग' नाम दिया गया है। आईसीएमआर के एक वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक, ट्रायल के लिए एक नया प्रोटोकॉल जोड़ा गया है। अब आईसीएमआर इसमें शामिल होने वाले वॉलंटियर्स का एंटीबॉडी टेस्ट भी होगा। यह इस बात को जानने में मदद करेगा कि ट्रायल में शामिल होने वाले वॉलंटियर्स को भविष्य में कोरोना का संक्रमण होगा या नहीं।
देश में कौन-कौन बना रहा वैक्सीन
देश की 7 फार्मा कम्पनी वैक्सीन पर काम कर रही हैं। इनमें भारत बायोटेक ऐसी पहली कम्पनी है जिसे ड्रग कंट्रोलर की ओर से इंसानों पहले और दूसरे चरण के वैक्सीन ट्रायल का अप्रवूल मिला है। भारत बायोटेक के अलावा दूसरी भारतीय कम्पनी जायडस कैडिला को ट्रायल के लिए अप्रूवल मिल चुका है। कम्पनी का कहना है कि हमने वैक्सीन का ह्यूमन ट्रायल शुरू कर दिया है। वॉलिंटियर्स को पहले चरण के लिए वैक्सीन के डोज दिए जा रहे हैं।
फार्मा कम्पनी जायडस कैडिला ने वैक्सीन ZyCoV-D को अहमदाबाद के वैक्सीन टेक्नोलॉजी सेंटर विकसित किया है। कम्पनी के मुताबिक, हमारा लक्ष्य 1 हजार से अधिक लोगों को क्लीनिकल ट्रायल करने का है।
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