Sunday, August 2, 2020
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Why can only a sister tie rakhi to brother?
4 side effects of Triphala
फूलों का तारों का सबका कहना है, एक हजारों में मेरी बहना है... मैसेज शेयर करके प्यारी बहना को बताइये कि वो कितनी खास है
2020 का रक्षाबंधन अजीब से जज्बात लिए हुए है। लॉकडाउन मार्च की होली के बाद ये पहला बड़ा त्योहार है। होली तो ठीक-ठाक रंगीन मनी थी, पर रक्षाबंधन, वाकई बंधनों में मन रहा है।
बहनें भी नहीं आ पा रहीं और भाई भी यहां-वहां फंसे हैं। लॉकडाउन और सोशल डिस्टेंसिंग की मजबूरी भाई-बहन के साथ पूरे परिवार में रिश्तों की परीक्षा ले रही है।
लेकिन, हम भारत के लोग बिना त्योहार नहीं रह सकते। तो इस बार फोन और वीडियो कॉल के साथ कुछ बेहतरीन संदेश भेजकर जताएं अपना प्यार और स्नेह।
कुछ ऐसे ही संदेश भाई की ओर से प्यारी बहना के लिए, जिन्हें आप शेयर करके उसे दुलार सकते हैं, सम्मान दे सकते हैं और ये जता सकते हैं कि वो आपकी जिंदगी में कितनी खास है।
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Aldi hacks: Mum shares shopping hack after saving £48 on her weekly food shop
ALDI is a popular discounted supermarket that offers great quality groceries for a fraction of the price compared to other supermarkets. One Mum has shared her shopping hacks on how to get your hands on great bargains in store.
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खुशखबरी! भारत में कोरोना के टीके के दूसरे-तीसरे चरण के ह्यूमन ट्रायल को मिली मंजूरी
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Prince Louis star sign: Dates and symbols of zodiac sign
भाइयों से नई चीजें सीखने और रिश्ता निभाने में बहनें आगे, सिबलिंग रिलेशनशिप इनको उतने सबक सिखाती है जितने इन्हें माता-पिता से मिलते हैं
भाई-बहन के रिश्ते के पीछे भी कोई विज्ञान है? जवाब है, हां। घर में दोनों की मौजूदगी, उनका छोटी-छोटी बातों पर झगड़ना, एक-दूसरे को दिक्कत होने पर हमेशा मदद के लिए खड़े रहना, ऐसी कई बाते हैं जो उनमें कई तरह से समझदारी पैदा करती हैं, जो अकेले रहने वाले बच्चे में आसानी से विकसित नहीं होतीं। भाई-बहन पर दुनियाभर की चुनिंदा यूनिवर्सिटी में हुईं रिसर्च ये साबित करती हैं कि इनका रिश्ता एक-दूसरे को काफी कुछ सिखाता है और ये दोनों परिवार के लिए कितना जरूरी हैं।
आज रक्षाबंधन है, इस मौके पर विज्ञान के नजरिए से समझिए भाई-बहन का रिश्ता को एक-दूसरे को जीवन में क्या कुछ सिखाता है और पेरेंट्स को कितनी मदद मिलती है-
पहली सीख : छोटी-छोटी दिक्कतों को कैसे हल करें, इसका सबक मिलता है
अमेरिकी की पेन स्टेट यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर मार्क फेनबर्ग कहते हैं, सिबलिंग रिलेशनशिप एक भाई-बहन को उतने सबक सिखाती है जितने उसे माता-पिता से मिलते हैं। ये एक-दूसरे की संगत में जीवन के उतार-चढ़ाव को सीखते हैं और कैसे खुद को आगे बढ़ने के लिए तैयार करना है, इसकी समझ भी इस रिश्ते से आती है क्योंकि सबसे लम्बे समय तक यही एक-दूसरे के साथ रहते हैं।
दूसरी सीख : भाई के मुकाबले बहन ज्यादा गंभीरता से रिश्ता निभाती है
भाई-बहन एक-दूसरे का अकेलापन कितना दूर कर पाते हैं इसे जानने के लिए तुर्की में एक रिसर्च हुई। रिसर्च के मुताबिक, बहनें अपने भाइयों के लिए ज्यादा केयरिंग होती हैं। वह इस रिश्ते को अधिक गंभीरता से निभाती हैं। वहीं, भाई अपनी बहनों पर कई बार गुस्सा दिखाते हैं या नाराज हो जाते हैं, ऐसा बहनों की तरफ से बहुत कम होता है। जब कुछ नई चीज सीखने की बारी आती है तो बहनें अपने भाइयों से काफी कुछ सीखती हैं, जबकि भाइयों में बहन से कुछ सीखने का गुण रिसर्च के दौरान कम ही देखा गया।
तीसरी सीख : भाई-बहन एक-दूसरे को समाज में जगह बनाना सिखाते हैं
नॉर्थवेस्टर्न यूनिवर्सिटी की प्रोफेसर और सायकोलॉजिस्ट लौरी क्रेमर के मुताबिक, भाई-बहन के सम्बंधों से बढ़ने वाली समझ को सिबलिंग इफेक्ट कहते है। यह सिबलिंग इफेक्ट दोनों पर कई तरह से असर डालता है। जैसे- ये एक-दूसरे की दिमागी क्षमता को बढ़ाते हैं। इनमें गंभीरता बढ़ने के साथ ये एक-दूसरे को समाज में अपनी जगह बनाना सिखाते हैं। पेरेंट्स इनसे क्या चाहते हैं, घर में सिबलिंग अधिक होने पर ये एक-दूसरे को समझा पाते हैं।
चौथी सीख : एक दूसरे के साथ से डिप्रेशन, शर्म और हड़बड़ी का स्वभाव नहीं विकसित होता
अमेरिका की पार्क यूनिवर्सिटी ने भाई-बहन के रिश्तों को समझने के लिए सिबलिंग प्रोग्राम शुरू किया और पेन्सेल्वेनिया राज्य के 12 स्कूलों को शामिल किया गया। इस प्रोग्राम का लक्ष्य था कि भाई-बहन की जोड़ी मिलकर कैसे निर्णय लेते हैं और जिम्मेदारी किस तरह निभाते हैं। रिसर्च में सामने आया कि कम उम्र से एक-दूसरे का साथ मिलने में इनमें समझदारी जल्दी विकसित होती है। इनमें डिप्रेशन, शर्म और अधिक हड़बड़ी जैसा स्वभाव नहीं विकसित होता।
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कोरोनावायरसः 12 अगस्त से पहले अप्रूव हो सकती है रूसी वैक्सीन; वह सबकुछ जो आपके लिए जानना जरूरी है
दुनियाभर में ग्रेट डिप्रेशन से भी बड़ी मंदी का कारण बन रहे कोरोनावायरस का हल सिर्फ वैक्सीन के पास है। जिसे खोजने की प्रक्रिया फास्ट ट्रैक पर है। पिछले हफ्ते तक लग रहा था कि ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी और एस्ट्राजेनेका की वैक्सीन सबसे पहले मार्केट में आएगी। लेकिन रूस ने घोषणा की है कि उसकी वैक्सीन 10 से 12 अगस्त के बीच रजिस्टर हो जाएगी यानी उसे अप्रूवल मिल जाएगा।
यह सुनते ही भारत, ब्राजील, सऊदी अरब समेत 20 देशों ने रूसी वैक्सीन में रुचि दिखाई है। वहीं, अमेरिकी और यूरोपीय वैज्ञानिकों की आंखों में संदेह भी दिखने लगे। क्या है रूस का वैक्सीन और यह किस तरह सेफ और इफेक्टिव साबित होगी? आइये जानते हैं इसके बारे में सबकुछः
क्या है यह वैक्सीन और इतनी जल्दी कैसे बन गई?
- इस वैक्सीन का नाम है Gam-Covid-Vac Lyo और इसे मॉस्को स्थित रूसी स्वास्थ्य मंत्रालय से जुड़ी एक संस्था गेमालेया रिसर्च इंस्टीट्यूट ने बनाया है।
- रूसी इंस्टीट्यूट ने जून में दावा किया था कि वैक्सीन तैयार कर ली है। फेज-1 ट्रायल शुरू कर दिए गए हैं। यह भी खबरें आ गईं कि रूस की दिग्गज हस्तियों को यह वैक्सीन लगाई जा रही है।
- रूसी वैक्सीन में ह्यूमन एडेनोवायरस वेक्टर का इस्तेमाल किया गया है। उन्हें कमजोर किया गया है ताकि वे शरीर में विकसित न हो सके और शरीर को सुरक्षित रख सके।
- इन ह्यूमन एडेनोवायरस को Ad5 और Ad26 नाम दिया गया है और दोनों का ही इसमें कॉम्बिनेशन है। दोनों को कोरोनावायरस जीन से इंजीनियर किया है।
- इस समय दुनियाभर में विकसित किए जा रही ज्यादातर वैक्सीन एक वेक्टर पर निर्भर है जबकि यह दो वेक्टर पर निर्भर है। मरीजों को दूसरा बूस्टर शॉट भी लगाना होगा।
- रूसी वैज्ञानिकों का दावा है कि उन्होंने अन्य रोगों से लड़ने के लिए बनाए गए वैक्सीन को ही उन्होंने मॉडिफाई किया है और इससे यह जल्दी बन गया।
- वैसे, अन्य देशों और अन्य कंपनियों ने भी इसी अप्रोच को अपनाया है। मॉडर्ना ने मर्स नामक एक संबंधित वायरस के वैक्सीन में ही थोड़ा बदलाव किया है।
- इससे डेवलपमेंट प्रक्रिया तेज हो गई है, लेकिन यूएस और यूरोपीय रेगुलेटर इस वैक्सीन की सेफ्टी और इफेक्टिवनेस पर बारीकी से नजर रखे हैं।
रूस की ओर से किस तरह के दावे किए जा रहे हैं?
- रूस की डिप्टी प्राइम मिनिस्टर तात्याना गोलिकोवा ने कहा कि यह वैक्सीन अगस्त में रजिस्टर हो जाएगी। सितंबर में इसका मास-प्रोडक्शन भी शुरू हो जाएगा।
- इससे पहले, 15 जुलाई को रूसी वैज्ञानिकों ने कहा था कि यह वैक्सीन एडिनोवायरस-बेस्ड है। इसके शुरुआती चरण के ट्रायल्स हो चुके हैं। अब तक के नतीजे सफल रहे हैं।
- जुलाई के आखिरी हफ्ते में रूसी स्वास्थ्य मंत्री ने कहा कि गेमालेया ने वैक्सीन के क्लिनिकल ट्रायल्स खत्म कर लिए हैं। रजिस्ट्रेशन के लिए पेपरवर्क कर रहे हैं।
- सीएनएन की एक रिपोर्ट में रूसी अधिकारियों के हवाले से दावा किया गया है कि भारत, ब्राजील, सऊदी अरब समेत 20 से ज्यादा देशों ने इस वैक्सीन में रुचि दिखाई है।
- अधिकारियों ने सीएनएन से यह भी कहा कि 12 अगस्त डेडलाइन है। रेगुलेटर पब्लिक यूज के लिए मंजूरी दे देगा। उसके बाद स्वास्थ्य कर्मचारियों पर इसका इस्तेमाल होगा।
- रूसी स्वास्थ्य मंत्री ने शनिवार को कहा कि अक्टूबर में मास वैक्सीनेशन कैम्पेन शुरू किया जाएगा। डॉक्टरों और टीचर्स से इसकी शुरुआत होगी।
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रूसी वैक्सीन से बाकी दुनिया को दिक्कत क्या है?
- ब्रिटेन समेत यूरोपीय देशों व अमेरिका के कुछ एक्सपर्ट्स को रूस के फास्ट-ट्रैक अप्रोच से दिक्कत है। वे इसकी सेफ्टी और इफेक्टिवनेस पर सवाल उठा रहे हैं।
- संक्रामक रोगों के अमेरिकी विशेषज्ञ डॉ. एंथोनी फॉसी ने आशंका जताई कि रूस और चीन के वैक्सीन इफेक्टिव और सेफ नहीं है। इसकी व्यापक जांच होनी चाहिए।
- अमेरिकी एक्सपर्ट ने यह भी कहा कि यूएस इस साल के अंत तक वैक्सीन बना लेगा और उसे किसी अन्य देश पर निर्भर नहीं होना पड़ेगा।
- वैसे, रूस ने वैक्सीन टेस्टिंग को लेकर कोई साइंटिफिक डेटा पेश नहीं किया है, ताकि वैक्सीन की इफेक्टिवनेस और सेफ्टी का पता लगाया जा सके।
- आलोचकों का कहना है कि वैज्ञानिकों पर क्रेमलिन (रूसी रक्षा मंत्रालय) का दबाव है। वह रूस को ग्लोबल साइंटिफिक फोर्स के तौर पर पेश करना चाहते हैं।
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आलोचनाओं पर रूस का क्या कहना है?
- रूसी डेवलपर्स का प्लान था कि तीन अगस्त तक फेज-2 पूरा हो जाएगा। फेज-3 टेस्टिंग और मेडिकल वर्कर्स का वैक्सीनेशन साथ-साथ चलेगा।
- रूसी सैनिकों को ह्यूमन ट्रायल्स के लिए वॉलेंटियर बनाया गया है। प्रोजेक्ट डायरेक्टर एलेक्जेंडर गिन्सबर्ग ने कहा कि उन्होंने खुद पर भी वैक्सीन को आजमाया है।
- रूसी अधिकारियों का यह भी दावा है कि वैक्सीन बनाने के लिए फास्ट-ट्रैक प्रक्रिया की इजाजत ली गई है। वैश्विक महामारी के जल्द से जल्द हल के लिए ऐसा किया गया।
- रूसी अधिकारियों का यह भी कहना है कि अगस्त के शुरुआती हफ्तों में ह्यूमन ट्रायल्स के डेटा को पीयर रिव्यू और पब्लिकेशन के लिए उपलब्ध कराया जाएगा।
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इसे स्पूतनिक मूमेंट कहा जा रहा है, क्यों?
- दरअसल, 1957 में दुनिया का पहला सैटेलाइट तत्कालीन सोवियत संघ ने लॉन्च किया था और अमेरिका के मुकाबले अपनी वैज्ञानिक दक्षता साबित की थी।
- इस सैटेलाइट को ही स्पूतनिक नाम दिया गया था। रूस के सोवरिन फंड के प्रमुख किरिल दिमित्रेव का कहना है कि वैक्सीन की खोज भी स्पूतनिक मूमेंट है।
- उन्होंने सीएनएन से कहा, स्पूतनिक सुनकर ही अमेरिकी चकित रह गए थे। वैक्सीन के केस में भी ऐसा ही होगा। रूस वैक्सीन बनाने वाला पहला देश होगा।
- रूस ने इबोला और मर्स वैक्सीन में श्रेष्ठता साबित की। अब दुनिया की सबसे बड़ी समस्या से निपटने के लिए पहला सेफ और इफेक्टिव वैक्सीन लाई जा रही है।
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रूस पर लगे हैकिंग के आरोपों में क्या सच्चाई है?
- पिछले महीने ब्रिटेन, अमेरिका और कनाडा की सिक्योरिटी एजेंसियों ने दावा किया था कि रूसी हैकिंग ग्रुप ने कोरोनावायरस वैक्सीन बना रहे संगठनों को निशाना बनाया है।
- यूके के नेशनल साइबर सिक्योरिटी सेंटर ने कहा था कि अटैक एपीटी29 ग्रुप ने किया, जिसे द ड्यूक्स या कॉजी बियर भी कहते हैं। यह रूसी खुफिया सेवाओं का हिस्सा था।
- दावा किया गया था कि वैक्सीन से जुड़ी जानकारी चुराने के लिए रूसी ग्रुप्स इस तरह के हथकंडे अपना रहे हैं।
- रूस के ब्रिटेन में राजदूत आंद्रेई केलिन ने इन आरोपों को खारिज किया था। बीबीसी से उन्होंने कहा था कि इन आरोपों में कोई आधार ही नहीं है।
अन्य वैक्सीन की क्या स्थिति है?
- विश्व स्वास्थ्य संगठन के वैक्सीन ट्रैकर के मुताबिक इस समय दुनियाभर में 165 से अधिक वैक्सीन विकसित की जा रही हैं।
- चीनी मीडिया ने घोषणा की थी कि कैनसिनो बायोलॉजिक्स ने जो वैक्सीन बनाई है, उसे चीनी सेना ने इस्तेमाल की इजाजत दे दी है। यह पहली अप्रूव्ड वैक्सीन बन गई।
- दो अन्य चीनी कंपनियां सिनोवेक और सिनोफार्म ने ब्राजील और यूएई में अपने वैक्सीन के फेज-3 ट्रायल जुलाई में शुरू कर दिए हैं। इनके नतीजे भी सितंबर तक आ जाएंगे।
- रूस में ही नोवोसिबिस्क (साइबेरिया) में वेक्टर स्टेट लैबोरेटरी ने भी एक वैक्सीन बनाई है, जो अक्टूबर तक प्रोडक्शन में आने की उम्मीद की जा रही है।
- ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी और एस्ट्राजेनेका के वैक्सीन के ट्रायल्स के नतीजे अच्छे रहे हैं, लेकिन डब्ल्यूएचओ का कहना है कि अभी इसे भी लंबा रास्ता तय करना है।
- इसी तरह अमेरिकी सरकार समर्थित मॉडर्ना के वैक्सीन के फेज-3 ट्रायल्स पिछले हफ्ते ही शुरू हुए हैं। यह वैक्सीन इस साल के अंत तक बाजार में आने की उम्मीद है।
भारतीय वैक्सीन की क्या स्थिति है?
- भारत में दो वैक्सीन बहुत तेजी से आगे बढ़ रहे हैं। भारत बायोटेक ने आईसीएमआर के साथ मिलकर कोवैक्सिन विकसित की है।
- जिसके ह्यूमन ट्रायल्स पिछले महीने शुरू हुए हैं। फेज-1 और फेज-2 ट्रायल्स साथ हो रहे हैं। इससे इस साल के अंत तक यह वैक्सीन मार्केट में आने की उम्मीद है।
- अहमदाबाद की फार्मा कंपनी जायडस कैडिला ने भी ZyCoV-D नाम से वैक्सीन बनाई है। यह स्वदेशी वैक्सीन अगले साल की शुरुआत में लॉन्च हो जाएगी।
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जायडस कैडीला के वैक्सीन को रेग्युलेटर्स की ओर से फेज-1 और फेज-2 के ह्यूमन ट्रायल्स की अनुमति मिल गई है। इसके लिए प्रक्रिया भी तेज हो गई है।
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देश में 40 फीसदी नवजातों को जन्म के पहले घंटे के अंदर नहीं मिल रहा मां का दूध, संक्रमण के बीच ब्रेस्टफीडिंग न रोकें और इन बातों का रखें ध्यान
विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक दुनिया में हर पांच में से तीन नवजातों को जन्म के पहले घंटे में मां का पहला पीला दूध नहीं मिल पा रहा है। भारत में यह आंकड़ा 40 फीसदी है। दुनिया में हर साल 8 लाख मौतें सिर्फ ब्रेस्टफीडिंग न होने के कारण हो रही हैं। इनमें सबसे ज्यादा 6 महीने से कम के बच्चे शामिल हैं। ऐसे मामलों में कमी लाने के लिए डब्ल्यूएचओ और यूनिसेफ हर साल 120 देशों के साथ 1-7 अगस्त तक स्तनपान सप्ताह मनाता है। स्तनपान में लापरवाही और अधूरी जानकारी मां और बच्चे की जान जोखिम में डाल सकती है। कोरोनाकाल में संक्रमित मां को ब्रेस्टफीडिंग कराना चाहिए या नहीं, ऐसे तमाम सवालों का जवाब जानने के लिए, पढ़िए रिपोर्ट-
क्या कोरोना संक्रमित महिला बच्चे को ब्रेस्टफीड करा सकती है?
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) कहता है- हां, वह ऐसा कर सकती है लेकिन कुछ बातों का ध्यान रखना जरूरी है, जैसे ब्रेस्टफीड कराते समय मास्क पहनें, बच्चे को छूने से पहले और बाद में हाथ जरूर धोएं। अगर कोरोना से संक्रमित हैं और बच्चे को ब्रेस्टफीड कराने की स्थिति में नहीं है तो एक्सप्रेसिंग मिल्क या डोनर ह्यूमन मिल्क का इस्तेमाल कर सकती हैं।
क्यों नवजात तक नहीं पहुंच रहा मां का दूध और यह कितना जरूरी है
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने नवजात और मां के दूध के बीच बढ़ती दूरी के कई कारण गिनाए हैं। डब्ल्यूएचओ और यूनिसेफ की संयुक्त रिपोर्ट के मुताबिक, ज्यादातर मामले निचले और मध्यम आमदनी वाले देशों में सामने आ रहे हैं। दूसरी सबसे बड़ी वजह भारत समेत कई देशों में फार्मा कंपनियों का ब्रेस्टमिल्क सब्सटीट्यूट का आक्रामक प्रचार करना भी है।
- स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ मीता चतुर्वेदी के मुताबिक, नवजात के जन्म के तुरंत बाद निकलने वाला मां का पहला पीता दूध कोलोस्ट्रम कहलाता है। इसमें प्रोटीन, फैट, कार्बोहाइड्रेट और कैल्शियम अधिक मात्रा में पाया जाता है। यह नवजात की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाकर संक्रमण से बचाता है।
- स्तनपान मां में ब्रेस्ट-ओवेरियन कैंसर, टाइप-2 डायबिटीज और हृदय रोगों का खतरा घटाता है। ब्रेस्ट कैंसर से होने वाली 20 हजारे मौंतें सिर्फ बच्चे को स्तनपान कराकर ही रोकी जा सकती हैं।
- ज्यादा ब्रेस्ट फीडिंग कराने से मां की कैलोरी अधिक बर्न होती है, जो डिलीवरी के बाद बढ़ा हुआ वजन कम करने में मदद करता है। इस दौरान मांओं के शरीर से ऑक्सीटोसिन निकलता है, जिससे उनका तनाव भी कम होता है।
- डब्ल्यूएचओ के मुताबिक, बच्चे जन्म के पहले घंटे से लेकर 6 माह की उम्र तक स्तनपान कराना चाहिए। 6 महीने के बाद बच्चे के खानपान में दाल का पानी और केला जैसी चीजें शामिल करनी चाहिए। उसे दो साल तक दूध पिलाया जा सकता है।
- स्त्री रोग विशेषज्ञ के मुताबिक, मां को एक स्तन से 10-15 मिनट तक दूध पिलाना चाहिए। शुरुआत के तीन-चार दिन तक बच्चे को कई बार स्तनपान कराना चाहिए क्योंकि इस दौरान दूध अधिक बनता है और यह उसके लिए बेहद जरूरी है।
- ब्रेस्टफीडिंग के दौरान साफ-सफाई का अधिक ध्यान रखें। शांत और आराम की अवस्था में भी बच्चे को बेस्टफीडिंग कराना बेहतर माना जाता है।
- बच्चा जब तक दूध पीता है, मां को खानपान में कई बदलाव करना चाहिए। डाइट में जूस, दूध, लस्सी, नारियल पानी, दाल, फलियां, सूखे मेवे, हरी पत्तेदार सब्जियां, दही, पनीर और टमाटर शामिल करना चाहिए।
कब न कराएं ब्रेस्टफीडिंग
अगर मां एचआईवी पॉजिटिव, टीबी की मरीज या कैंसर के इलाज में कीमोथैरेपी ले रही है तो ब्रेस्टफीडिंग नहीं करानी चाहिए। अगर नवजात में गैलेक्टोसीमिया नाम की बीमारी पाई गई है तो मां को दूध नहीं पिलाना चाहिए। यह एक दुर्लभ बीमारी है जिसमें बच्चा दूध में मौजूद शुगर को पचा नहीं पाता। इसके अलावा अगर माइग्रेन, पार्किंसन या आर्थराइटिस जैसे रोगों की दवा पहले से ले रही हैं तो डॉक्टर को जरूर बताएं।
ब्रेस्टफीडिंग से जुड़े 5 भ्रम और सच
#1) भ्रम: स्तन का आकार छोटा होने पर पर्याप्त दूध नहीं बनता है।
सच: ब्रेस्टफीडिंग में इसका आकार मायने नहीं रखता, अगर मां स्वस्थ है तो बच्चों को पिलाने के लिए पर्याप्त दूध बनता है।
#2) भ्रम: ब्रेस्ट फीडिंग सिर्फ बच्चे के लिए फायदेमंद है मां के लिए नहीं।
सच: ऐसा नहीं है। अगर महिला शिशु को रेग्युलर ब्रेस्टफीड कराती है तो उसमें ब्रेस्ट और ओवेरियन कैंसर का खतरा कम हो जाता है। साथ ही ऑस्टियोपोरोसिस की आशंका भी कम होती है।
#3) भ्रम: रेग्युलर ब्रेस्टफीडिंग कराने से इसका साइज बिगड़ जाता है।
सच: ऐसा बिल्कुल भी नहीं है। ब्रेस्टफीडिंग के दौरान मां में प्रोलैक्टिन हार्मोन रिलीज होता है जो मां को रिलैक्स और एकाग्र करने में मदद करता है। कई स्टडीज में पाया गया है कि स्तनपान से मां को टाइप-2 डायबिटीज, रुमेटाइड आर्थराइटिस और हृदय रोगों से बचाव होता है।
#4) भ्रम: मां की तबियत खराब होने पर बच्चे को ब्रेस्टफीड नहीं कराना चाहिए।
सच: मां की तबियत खराब होने पर भी बच्चे की ब्रेस्टफीडिंग बंद नहीं करनी चाहिए। इससे बच्चे की सेहत पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। अगर पहले से कोई दवा ले रही हैं तो डॉक्टर को जरूर जानकारी दें।
#5) भ्रम: पाउडर वाला मिल्क ब्रेस्ट मिल्क से बेहतर होता है।
सच: ये बिल्कुल गलत है। मां का दूध शिशु के लिए कंप्लीट फूड होता है। यह विटामिंस, प्रोटीन और फैट का सही मिश्रण होता है और बच्चे में आसानी से पच भी जाता है।
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Millions of over-50s may have to 'stay at home' amid second wave fears
छत पर ड्रम में उगाए 40 से ज्यादा किस्म के आम, ग्राफ्टिंग तकनीक से आम की नई किस्म ईजाद की; दावा किया कि यह सबसे मीठी प्रजाति
बालटी में फूल-पौधे लगाने, छत पर सब्जियां उगाने की बातें बहुत सुनी होंगी, लेकिन कभी सुना है किसी ने छत पर आम के पेड़ लगाकर खूब आम पैदा किए हों, वह भी 40 किस्म के आम। एर्णाकुलम के रहने वाले 63 वर्षीय जोसेफ फ्रांसिस ने यह कर दिखाया है। वैसे तो ये एयर कंडीशनर के टेक्निशियन हैं, लेकिन इनके बुजुर्ग पिता किसान रहे हैं। यही कारण है कि इन्होंने 1800 वर्ग फीट की छत पर विभिन्न किस्म के आमों का बगीचा खड़ा कर दिया। कुछ किस्म के आम तो वर्ष में दो-दो बार फल दे रहे हैं।
250 तरह के गुलाब लगाए
इनके ननिहाल में देश के कोने-कोने से लाए गए गुलाब उगाए जाते थे। इनके कलेक्शन में ‘कट रोज’ किस्म सिर्फ इनके घर थी। नए घर में शिफ्ट होने के बाद जोसेफ ने 250 तरह के गुलाब और मशरूम लगाए। इन्होंने पॉलिथीन में आम के बड़े पौधे कहीं देखे। फिर सोचा बड़े पौधे पॉलिथीन में जीवित रह सकते हैं तो क्यों न ड्रम में इसके पेड़ लगाए जाएं? जोसेफ ने पीवीसी ड्रम खरीदे, उन्हें काटा और स्टैंड पर जमा दिया। बॉटम में चीरा लगाया ताकि अतिरिक्त पानी निकल सके। इनमें लगाए पौधे अब 5 से 9 फीट के पेड़ बन गए हैं।
नामी-गिरामी किस्म के आम
इनके बगीचे में अल्फांसो, चंद्राकरन, नीलम, मालगोवा, केसर जैसी लोकप्रिय किस्मों समेत 40 से ज्यादा प्रजाति के आम हैं। इन्होंने ग्राफ्टिंग तकनीक से आम की एक नई किस्म ईजाद की है, जिसे पत्नी के नाम पर ‘पेट्रीसिया’ नाम दिया है। दावा है यह किस्म सबसे ज्यादा मीठी है।
सभी फल मुफ्त बांट देते हैं
आम के इस बगीचे की देखभाल करना सबसे चुनौतीपूर्ण काम है। समय-समय पर खाद-पानी, छंटाई, फलों की सुरक्षा बहुत जरूरी है। जोसेफ का कहना है उनका मकसद लाभ कमाना नहीं रहा। वे अपने सभी फल दोस्तों, रिश्तेदारों और आगंतुकों में मुफ्त बांट देते हैं। छुट्टी के दिन अनेक लोग इनके घर आम का बगीचा देखने आते हैं और मुफ्त में फल भी ले जाते हैं।
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सामान्य व्यक्ति इस्तेमाल मास्क को 3 दिन पेपर बैग में रखें कचरे के साथ निकाल दें लेकिन कोरोना के मरीज हैं तो पहले गाइडलाइन को समझें
कोरोना से बचाव के लिए सरकार ने सभी को मास्क पहनना जरूरी कर दिया है। लोग ग्लव्स का भी इस्तेमाल कर रहे हैं। सामान्य व्यक्ति के इन मास्क और ग्लव्स को उपयोग करने के बाद 72 घंटे यानी तीन दिन तक पैपर बैग में रखना है। इसके बाद इसे काटकर कचरा कलेक्शन के लिए आने वाली गाड़ी को सूखे कचरे के साथ दे सकते हैं। यह मास्क और ग्लव्स न तो कोविड वेस्ट माना जाएगा और न बायो मेडिकल वेस्ट।
अगर कोविड-19 के मरीज हैं तो...
अगर आप कोरोना पॉजिटिव या संदिग्ध हैं तो ये कोविड वेस्ट कहा जाएगा। इसे अलग कवर्ड बिन में रखें। यह कोविड वेस्ट या तो बायो मेडिकल वेस्ट की गाड़ी लेकर जाएगी या नगर निगम के कचरा कलेक्शन की गाड़ी में इसे ब्लैक बॉक्स में रखा जाएगा। ब्लैक बॉक्स का यह कचरा ट्रांसफर स्टेशन पर अलग से कलेक्ट हो रहा है और वहां से यह इंसिनरेटर को जाता है।
अब केवल इन्हीं कचरे को माना जाएगा कोविड वेस्ट
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) की गाइडलाइन में साफ है कि कोरोना पेशेंट द्वारा उपयोग की गई हर वस्तु कोविड वेस्ट नहीं है। ग्लव्स, मास्क, सिरिंज, फेंकी दवाइयों को ही कोविड वेस्ट माना जाएगा। ड्रैन बैग, यूरिन बैग, बॉडी फ्लयूड, ब्लड सोक्ड टिश्यूज, या कॉटन को भी इसमें शामिल किया जाएगा। मेडिसिन के बॉक्स, रैपर, फलों के छिलके, जूस बॉटल आदि को म्युनिसिपल वेस्ट के साथ रखें।
गाइडलाइन...पेशेंट द्वारा उपयोग की गई हर वस्तु कोविड वेस्ट नहीं
कोविड वेस्ट ले जाता व्यक्ति
नई गाइडलाइन के हिसाब से बना रहे हैं व्यवस्था
सीपीसीबी की नई गाइडलाइन के हिसाब से व्यवस्था बना रहे हैं। कर्मचारियों को ट्रेनिंग देने के साथ ही आम लोगों को भी इसकी जानकारी दी जाएगी। - वीएस चौधरी कोलसानी, कमिश्नर, नगर निगम
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