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Friday, November 13, 2020

पटाखे जलाना पर्यावरण के लिए बेहतर, बारूद की खुशबू से होता है मच्छरों का सफाया? जानें इस दावे का सच

क्या हो रहा है वायरल : सोशल मीडिया पर एक मैसेज वायरल हो रहा है। इसमें दावा किया जा रहा है कि दिवाली पर पटाखे जलाने से पर्यावरण को फायदा भी होता है।

वायरल मैसेज में दावा है कि बारूद की खुशबू से मच्छरों और कई तरह के कीड़ों का सफाया हो जाता है। इसलिए बड़ी तादात में पटाखे फोड़े जाने चाहिए।

दिवाली पर हर साल की तरह इस साल भी पटाखों से फैलने वाले प्रदूषण को लेकर बहस छिड़ी हुई है। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) ने दिल्ली-एनसीआर में 9 से 30 नवंबर तक पटाखों की बिक्री पर रोक लगा दी है। न सिर्फ दिल्ली, बल्कि देश के जिन-जिन राज्यों में एयर क्वालिटी खराब है, वहां भी पटाखे नहीं बेचे जाएंगे

एक बड़ा तबका मानता है कि लोगों को पटाखे जलाने से रोकना गलत है। ट्विटर पर #हम_तो_पटाखे_फोड़ेंगे टॉप ट्रेंड में चल रहा है। सोशल मीडिया पर प्रदूषण के पीछे पटाखों को जिम्मेदार ठहराए जाने वाले तर्कों के विरोध में कई मैसेज वायरल हो रहे हैं। ऐसे ही एक मैसेज की दैनिक भास्कर ने पड़ताल की।

और सच क्या है ?

  • गूगल पर हमें अलग-अलग कीवर्ड सर्च करने से भी ऐसी कोई रिसर्च रिपोर्ट नहीं मिली। जिससे पुष्टि होती हो कि बारूद की खुशबू से मच्छरों और कीड़ों का सफाया होता है।
  • बारूद से मच्छरों का सफाया होने वाले दावे का सच जानने के लिए हमने जामिया मिल्लिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी में बायोटेक्नोलॉजी के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. कपिल देव से संपर्क किया। उन्होंने सोशल मीडिया पर किए जा रहे इस दावे को भ्रामक बताया।
  • डॉ. कपिल के अनुसार, पटाखों से होने वाले धुएं से मच्छर भागते हैं, ये बात सही है। लेकिन, यह धुआं मच्छरों से ज्यादा इंसानों के लिए हानिकारक है। वहीं बारूद की खुशबू से मच्छरों या अन्य कीड़ों का सफाया होने वाली बात अब तक किसी भी साइंटिफिक स्टडी में सिद्ध नहीं हुई है।
  • 2018 में यूनिवर्सिटी ऑफ मिनेसोटा और नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ फाइनेंस एंड पॉलिसी ने दिल्ली की खराब हवा पर पटाखों के असर पर एक रिसर्च की थी। इसके लिए 2013 से 2016 तक का डेटा लिया गया था।
  • इस रिसर्च के मुताबिक, दिल्ली में हर साल दिवाली के अगले दिन PM 2.5 की मात्रा 40% तक बढ़ती है। दिवाली के दिन शाम 6 बजे से रात 11 बजे के बीच PM2.5 में 100% की बढ़ोतरी हो गई। PM2.5 यानी हवा में मौजूद छोटे-छोटे कण। इन कणों के बढ़ने से ही एयर क्वालिटी खराब होती है।
  • इन सबसे साफ है कि सोशल मीडिया पर किया जा रहा पटाखों से पर्यावरण को होने वाले फायदे से जुड़ा दावा पूरी तरह फेक है।


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Diwali Firecrackers Gunpowder Kills Mosquitoes; Fake News Viral On Social Media


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कोरोना का खतरा घटाने के लिए डायबिटीज के रोगी ब्लड शुगर कंट्रोल में रखें, एक्सरसाइज करें और खाने में प्रोटीन अधिक लें

महामारी में एक बात साबित हो चुकी है कि डायबिटीज के मरीजों में कोरोना का संक्रमण होने का खतरा अधिक है। कोरोना के संक्रमण से जूझने वाले 25 मरीज डायबिटीज से परेशान हैं। देश में डायबिटीज के ज्यादातर रोगी 28 से 60 साल के बीच के हैं। इसलिए कोरोना के मामले बढ़ने का खतरा भी ज्यादा है।

एक और बात सबसे ज्यादा परेशान करने वाली है। कोविड-19 स्वस्थ लोगों में डायबिटीज की वजह भी बन सकता है और जो पहले से डायबिटीज से जूझ रहे हैं उनकी हालत और बिगाड़ सकता है। दुनियाभर के 17 अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञों की टीम के एक पैनल ने दुनियाभर के कई मामलों पर रिसर्च के बाद ये बात कही है। अब तक हुए क्लीनिकल ट्रायल में कोविड-19 और डायबिटीज के बीच ये महत्वपूर्ण कनेक्शन ढूंढ़ा गया है।

आज वर्ल्ड डायबिटीज डे है, इस मौके पर एक्सपर्ट से जानिए कोरोना और डायबिटीज का क्या है कनेक्शन...

4 पॉइंट से समझिए कोविड-19 और डायबिटीज का कनेक्शन

  • स्वस्थ लोगों में ऐसे बढ़ता है खतरा: एसएमएस हॉस्पिटल जयपुर के डायबिटोलॉजिस्ट डॉ. प्रकाश केसवानी का कहना है कि कोविड-19 का वायरस सीधे पेंक्रियाज में मौजूद इंसुलिन बनाने वाली बीटा कोशिकाओं को संक्रमित कर सकता है। बीटा कोशिकाओं के डैमेज होने पर मरीजों में इंसुलिन बनने की कैपेसिटी कम हो जाएगी। ऐसे में जो स्वस्थ हैं उनमें भी नई डायबिटीज का खतरा बढ़ेगा।
  • टाइप-1 डायबिटीज भी हो सकती है: कई बार संक्रमण ज्यादा गंभीर होता है, ऐसी स्थिति में टाइप-1 डायबिटीज या डायबिटिक कीटोएसिडोसिस भी हो सकता है। डायबिटिक कीटोएसिडोसिस उस स्थिति को कहते हैं जब इंसुलिन की बहुत अधिक कमी के कारण शरीर में शुगर का लेवल ज्यादा बढ़ जाता है।
  • स्ट्रेस भी एक फैक्टर है: अगर किसी में डायबिटीज की शुरुआत हुई है और उसे नहीं मालूम है, इस दौरान वायरस का संक्रमण होता है तो स्ट्रेस के कारण भी नई डाइबिटीज विकसित हो सकती है।
  • इसलिए डायबिटिक लोगों को खतरा ज्यादा: डायबिटीज के रोगियों में हर संक्रमण का खतरा ज्यादा होता है। ऐसे रोगियों में इम्यून सिस्टम की कोशिकाओं (लिम्फोसाइट्स, न्यूट्रोफिल्स) की कार्य क्षमता कम हो जाती है। इस वजह से शरीर में एंटीबॉडीज कम बनती हैं। बीमारी से लड़ने की ताकत कम होने के कारण ये बाहरी चीजों (वायरस, बैक्टीरिया) को खत्म नहीं कर पाती नतीजा जान का जोखिम बढ़ता जाता है।

ऐसे मरीजों में ऑक्सीजन का लेवल घटने का खतरा अधिक

मुम्बई के जसलोक हॉस्पिटल के डायबिटीज एक्सपर्ट शैवाल चंडालिया कहते हैं, डायबिटीज के मरीजों में संक्रमण हुआ तो ऑक्सीजन का लेवल घट सकता है और वेंटिलेटर की जरूरत पड़ सकती है। इनमें हार्ट अटैक और स्ट्रोक का खतरा भी अधिक रहता है। कोरोना के कुछ मरीजों को इलाज के दौरान स्टेरॉयड्स दिए जाते हैं जो ब्लड शुगर का लेवल बढ़ा सकते हैं। ऐसे में मरीज को इंसुलिन देकर स्थिति को कंट्रोल किया जाता है। एक और बात का ध्यान रखने की जरूरत है, शरीर में पानी की कमी बिल्कुल न होने दें।

कोरोना से जूझने वाले मरीजों को इमरजेंसी केयर की जरूरत

इंद्रप्रस्थ अपोलो हॉस्पिटल के एंड्रोक्राइनोलॉजी की सीनियर कंसल्टेंट डॉ. रिचा चतुर्वेदी ने बताया, अगर टाइप-2 डायबिटीज वालों में कोरोना का संक्रमण होता तो हालत नाजुक होने का खतरा ज्यादा रहता है। संक्रमण के बाद जैसे-जैसे वायरस अपना असर छोड़ता है मरीज में सूजन बढ़ती जाती है।

ऐसे मरीजों में थकान, मांसपेशियों में दर्द, अधिक प्यास लगना, बार-बार पेशाब करना, सांस लेने में तकलीफ होना और सांस लेने में तकलीफ होने जैसे लक्षण नजर आते हैं। इन्हें इमरजेंसी केयर की जरूरत होती है।

इंद्रप्रस्थ अपोलो हॉस्पिटल के रेस्पिरेट्री मेडिसिन एक्सपर्ट डॉ. निखिल मोदी कहते हैं, हॉस्पिटल में आने वाले कोरोना के मरीजों में 20 से 30 फीसदी तक डायबिटीज के रोगी थे। इनकी हालत नाजुक थी। इनके लिए डायबिटीज से जुड़ी दवाएं और इंसुलिन लेना जरूरी था।

महामारी में सबसे जरूरी सलाह है कि शुगर लेवल कंट्रोल में रखें, दवाएं समय पर लें। इसके अलावा सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करें और बिना मास्क बाहर न निकलें।

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Thursday, November 12, 2020

दीया-कैंडल जलाने से पहले सैनेटाइजर का इस्तेमाल न करें, सांस के मरीज इन्हेलर साथ रखें; दिवाली में ये 5 बातें याद रखें

दिवाली मनाने जा रहे हैं तो दो बातें पहले समझ लें। पहली, कई रिसर्च में यह साबित हुआ है कि एयर पॉल्यूशन कोरोना के खतरे को बढ़ाता है। दूसरा, इस समय हवा में पाल्यूशन का लेवल काफी अधिक बढ़ जाता है। जो सीधे तौर पर फेफड़ों पर बुरा असर छोड़ता है। इसलिए दिवाली को सेलिब्रेट करें लेकिन कोविड-19 और एयर पॉल्यूशन के बीच कुछ बातों का ध्यान जरूर रखें। एक्सपर्ट से जानिए क्या करें और क्या न करें...

5 पॉइंट्स : कोविड-19 और वायु प्रदूषण के बीच ऐसे मनाएं सुरक्षित दिवाली

1. दीया या मोमबत्ती जलाने से पहले सैनेटाइज़र का इस्तेमाल न करें
इन्द्रप्रस्थ अपोलो हॉस्पिटलस, नई दिल्ली के सीनियर पल्मोनोलोजिस्ट डॉ. राजेश चावला कहते हैं, दीया या मोमबत्ती जलाने से पहले अल्कोहल युक्त सैनेटाइजर का प्रयोग बिल्कुल न करें। यह आग पकड़ सकता है और दुर्घटना हो सकती है। सैनेटाइजर लगाने के 15 से 20 मिनट बाद ही आग से जुड़े काम करें। बेहतर होगा कि सैनेटाइजर की जगह साबुन और पानी का इस्तेमाल करें।

2. एयर पॉल्यूशन के ये साइडइफेक्ट नजरअंदाज न करें
एयर पॉल्यूशन कई तरह से शरीर पर बुरा असर छोड़ता है। सांस के रोग जैसे सीओपीडी, ब्रॉन्कियल अस्थमा के लक्षण गंभीर होने लगते हैं। थकान, सिरदर्द के अलावा आंख, नाक और गले में जलन हो सकती है। कार्डियोवैस्कुलर सिस्टम पर बुरा असर होता है। ऐसे लक्षण दिखने पर फिजिशियन की सलाह लें।

3. आंखों का विशेष ख्याल रखें

आई एक्सपर्ट डॉ. संदीप बुटन कहते हैं, एयर पॉल्यूशन और पटाखे के धुएं से आंखों से पानी आना, लाल हो जाना और खुजली जैसे लक्षण दिख सकते हैं। धुंधला दिखना या कम दिखने की तकलीफ हो सकती है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि एयर पॉल्यूशन में मौजूद रसायनों का सीधा असर आंसुओं के बनने की क्षमता पर पड़ता है।

बेहतर होगा कि जिन जगहों पर पॉल्यूशन और डस्ट अधिक है वहां जाने से बचें। अगर जाना जरूरी है तो चश्मा लगाएं और वापस लौटने के बाद आंखों को सादे पानी से धोएं। कुछ आई ड्रॉप्स भी पॉल्यूशन का असर घटाते हैं, इसे एक्सपर्ट की सलाह से ले सकते हैं।

4. ये सावधानियां एयर पाल्यूशन के असर को कम करेंगी

  • घर का वेंटिलेशन न बिगड़ने दें। बीच-बीच में घर की खिड़कियां खोल दें, ताकि ताज़ी हवा आती रहे।
  • एहतियात के तौर पर मास्क जरूर पहनें। ये कोरोना के साथ प्रदूषण के असर को भी कुछ हद बचाने का काम करेगा।
  • आंखों में जलन या खुजली होने पर रगड़ें नहीं। पानी से छीटें मारकर आंखों को धोएं।
  • सुबह और शाम को पॉल्यूशन अधिक होता है इसलिए खुले में एक्सरसाइज करने की जगह कमरे ही करें तो बेहतर है।

5. इम्युनिटी बढ़ाने वाली डाइट लें
त्योहार के दौरान बनने वाले पकवानों को एंजॉय करें लेकिन डाइट में विटामिन-सी, मैग्नीशियम और ओमेगा फैटी एसिड्स से युक्त चीजों को शामिल करें। ये रोगों से लड़ने की क्षमता को बढ़ाएंगे। इसके लिए मौसमी, संतरा, ड्राय फ्रूट्स ले सकते हैं।

6. अपने साथ इन्हेलर और दवाएं लें
सांस के रोगी खासतौर पर अपने साथ इन्हेलर और जरूरी दवाएं जरूरी रखें। इसके अलावा ऐसे मरीज़ जो कोविड-19 से ठीक हुए हैं और जिन्हें सांस की समस्याएं हैं वो घर में ही दिवाली सेलिब्रेट करें तो ज्यादा बेहतर है।

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Wednesday, November 11, 2020

पारले की लाल ऐप्पी फिज में बीयर, बच्चों के लिए हानिकारक है ये ड्रिंक? जानें वायरल वीडियो का सच

क्या हो रहा है वायरल : सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल हो रहा है। इसमें दावा किया जा रहा है कि नई लाल रंग की ऐप्पी फिज में बीयर है। और ये बच्चों के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है।

वायरल वीडियो में एक शख्स लोगों से अपील कर रहा है कि लाल ऐप्पी फिज बिल्कुल न पीएं। ये हमारे समाज और स्वास्थ्य दोनों के लिए हानिकारक है।

और सच क्या है?

  • दावे की पुष्टि के लिए हमने सबसे पहले हमने नई लाल एप्पी फिज से जुड़ी मीडिया रिपोर्ट्स सर्च करनी शुरू कीं।
  • पिछले महीने ही पारले एग्रो ने अपनी मॉल्ट फ्लेवर्ड एप्पी फिज लॉन्च की है। इससे जुड़ी किसी भी मीडिया रिपोर्ट में हमें ये उल्लेख नहीं मिला, कि नई एप्पी फिज में बीयर है।
  • पारले एग्रो की ऑफिशियल वेबसाइट पर नई ऐप्पी फिज जुड़ी जानकारी है। जानकारी से पता चलता है कि ये पूरी तरह एक नॉन अल्कोहोलिक ड्रिंक है। साफ है कि ऐप्पी फिज में बीयर होने का दावा झूठा है।


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Monday, November 9, 2020

कोरोनाकाल में बच्चे का कोई टीका टालें नहीं वरना खतरा दोगुना बढ़ सकता है, टीका लगवाएं तो ये 10 बातें ध्यान रखें

विश्व स्वास्थ्य संगठन कहता है, वैक्सीन के जरिए हर साल 20 से 30 लाख मौतें टाली जा सकती हैं। दुनियाभर में 1.87 करोड़ बच्चों को बेसिक वैक्सीन नहीं मिल पा रही है। इस साल वैक्सीन और भी ज्यादा चर्चा में है क्योंकि कोरोना को खत्म करने के लिए अभी भी देश में वैक्सीन ट्रायल फेज में है।

मुम्बई के जसलोक हॉस्पिटल मेंं इमरजेंसी मेडिकल सर्विसेज के हेेड डॉ. सुनील जैन कहते हैं, वैक्सीनेशन प्रोग्राम चलने के बावजूद बहुत से लोग टीका नहीं लगवाते हैं। उन्हें भ्रम रहता है कि वैक्सीन लगवाने पर इसके साइडइफेक्ट दिखेंगे, जबकि सभी में ऐसे मामले सामने नहीं आते। कोरोनाकाल में भी दूसरी बीमारियों से बचने के लिए वैक्सीन को टालें नहीं। खुद को भी और बच्चों को भी इन्हें समय पर लगवाएं ताकि कोरोनाकाल में दूसरी बीमारियों का खतरा टाला जा सके।

आज वर्ल्ड इम्यूनाइजेशन डे है। इस दिन का लक्ष्य लोगों में वैक्सीन से जुड़ी भ्रांतियां खत्म करना और उन्हें टीका लगवाने के लिए प्रेरित करना है। इस मौके पर डॉ. सुनील जैन बता रहे हैं, वैक्सीन के साइड इफेक्ट को कैसे समझें और इसे लगवाना कितना जरूरी है..

वैक्सीन लगने पर कौन से साइड इफेक्ट दिख सकते हैं?
डॉ. सुनील ने बताया, जिस तरह बीमारियों का इलाज करने पर कुछ साइड इफेक्ट दिख सकते हैं उसी तरह वैक्सीन के साथ भी ऐसा हो सकता है। लेकिन ऐसा बमुश्किल ही होता है। साइड इफेक्ट होने पर जिस हिस्से में वैक्सीन लगी है वहां दिक्कत हो सकती है। कुछ मामलों बुखार भी होता है।

कोई भी वैक्सीन लोगों तक तभी पहुंचती है जब साइंटिस्ट, डॉक्टर्स की जांच में सुरक्षित और असरदार साबित होती है। वैक्सीन से बीमारी का खतरा कतई नहीं होता। अगर वैक्सीन नहीं लगती है तो संक्रमित मरीज से स्वस्थ इंसान में बीमारी फैलने का खतरा बना रहता है।

10 बातें : वैक्सीन क्यों जरूरी है और किन बातों का ध्यान रखना चाहिए
1. बच्चों में इम्युनिटी कम होती है, इसलिए मीजेंल्स, मम्प्स और काली खांसी भी बड़ा खतरा है। वैक्सीन रोगों से लड़ने वाले इम्यून सिस्टम के काम करने की क्षमता को बढ़ाती है। इसलिए इसे बिल्कुल न टालें।
2. बच्चों को वैक्सीन समय पर लगना जरूरी है ताकि पोलियो, बहरेपन, ब्रेन डैमेज और मौत का खतरा कम किया जा सके। साथ ही इनकी वजह से दूसरे अंगों पर पड़ने वाले असर को रोका जा सके।
3. पिछले कुछ सालों में वैक्सीनेशन प्रोग्राम के कारण ऐसी बीमारियों के मामलों में कमी आई है लेकिन किसी भी महामारी को तभी रोका जा सकता है जब पेरेंट्स अपने बच्चों को शुरुआती उम्र से टीका लगवाएं।
4. वैक्सीन लगवाएं तो एक्सपायरी डेट जरूर देख लें या एक्सपर्ट से इस बारे में एक बार बात जरूर करें ताकि कॉम्प्लीकेशंस का खतरा कम किया जा सके।
5. बच्चा अगर लम्बी बीमारी से जूझ रहा है तो टीका लगवाने से पहले डॉक्टर को इसके बारे में जरूर बताएं। टीका लगने के बाद अगर बुखार और सर्दी की शिकायत होती है तो डॉक्टर से तुरंत सलाह लें।
6. कई बार वैक्सीन मिस होने पर लोगों में कंफ्यूजन रहता है कि अगले टीके लगवाएं या नहीं। लेकिन डॉक्टरी सलाह से टीके पूरे लगवाएं टालें नहीं।
7. हर देश अपनी जनसंख्या और वहां मौजूद बीमारी के हिसाब से बच्चों के लिए वैक्सीन प्लान बनाता है, जो टीके भारत में लगाए जाते हैं ज़रूरी नहीं कि वो दूसरे देशों में भी दिए जाते हों।
8. समय पर टीका लगाना ज़रूरी है लेकिन फिलहाल कोरोना वायरस का भी डर है, इसलिए ऐसी जगह पर टीका लगवा सकते हैं जो सुरक्षित हो और जहां पर कोविड-19 की गाइडलाइन का पालन किया जा रहा हो।
9. बच्चे को टीका लगवाने जाएं तो घर के बुजुर्ग को साथ लेकर न जाएं। ऐसा इसलिए क्योंकि बुजुर्ग इंसान कोरोना के रिस्क जोन में हैं।
10. टीका लगवाने से पहले डॉक्टर से समय ले लें ताकि हॉस्पिटल या क्लीनिक में ज्यादातर देर रुकना न पड़े। खुद मास्क पहनें और बच्चे को मास्क की जगह शील्ड पहनाएं।

नई हेल्थ इमरजेंसी का सामना करना पड़ सकता है
यूनिसेफ की हालिया रिपोर्ट कहती है, कोविड-19 के कारण पूरे दक्षिण एशिया में करीब 40.5 लाख बच्चों को रेग्युलर लगने वाला टीका नहीं लग पाया है। कोरोना से पहले भी ऐसी स्थितियां थीं लेकिन अब और चिंताजनक हो गई हैं। रिपोर्ट के मुताबिक, अगर बच्चों को समय से टीका या वैक्सीन नहीं दिया गया तो दक्षिण एशिया में हेल्थ इमरजेंसी का सामना करना पड़ सकता है।



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Sunday, November 8, 2020

हरियाली के बीच 30 मिनट की वॉक, 5 मिनट की दौड़ और योग से घटेगा डिप्रेशन, जानिए 5 ऐसे ही योगासन

‘योअर नेक्स्ट बिग थिंग: 10 स्माल स्टेप टू गेट मूविंग एंड गेट हैप्पी’ किताब के लेखक डॉ. बेन मिकैलिस के मुताबिक, शरीर और मस्तिष्क दोनों एक ही हैं। जब इंसान खुद की देखभाल करता है तो वह शरीर के पूरे सिस्टम को सुधारने के लिए काम कर रहा होता है। वैज्ञानिक के अनुसार, रोजाना ये तीन एक्टिविटी किसी भी इंसान में डिप्रेशन के लक्षणों को कम करती हैं।

तीन साइंटिफिक फैक्ट्स बताते हैं दौड़ना, योग और प्रकृति के करीब रहना डिप्रेशन से बाहर लाने में मददगार हैं...

1. योग : यह गुस्सा, बेचैनी और डिप्रेशन दूर करता है

एविडेंस बेस्ड कॉम्प्लीमेंट्री एंड अल्टर्नेटिव मेडिसिन जर्नल में पब्लिश रिसर्च कहती है, योग क्लास में भाग लेने वाले सभी प्रतिभागियों के डिप्रेशन, गुस्सा और बेचैनी के लक्षणों में कमी पाई गई।

2. प्रकृति के बीच वॉक : स्ट्रेस हार्मोन कम होता है

एन्वार्यनमेंटल हेल्थ एंड प्रिवेंटिव मेडिसिन जर्नल में पब्लिश रिसर्च के मुताबिक, जापानी शोधकर्ताओं ने कुछ प्रतिभागियों को जंगल में और कुछ को शहरी क्षेत्र में भेजा। शोधकर्ताओं ने पाया कि 20 मिनट तक जंगल में भ्रमण करने वाले प्रतिभागियों में स्ट्रेस हार्मोन का लेवल काफी कम था।

3. दौड़ : 5 मिनट की दौड़ से उम्र भी बढ़ती है

वर्ष 2014 में हेल्थ मैगजीन में पब्लिश रिसर्च के मुताबिक, रोजाना केवल 5 मिनट दौड़ने वाला इंसान भी लंबे समय तक जीता है। मिकैलिस के मुताबिक, मूड अच्छा करने वाले न्यूरोट्रांसमीटर्स सेरोटोनिन और नोरेपिनेफ्रिन दोनों ही इससे एक्टिव होते हैं। दौड़ने के दोहराव से मस्तिष्क पर ध्यान लगाने जैसा असर होता है।

जयपुर के फिटनेस एक्सपर्ट विनोद सिंह बता रहे हैं डिप्रेशन, स्ट्रेस और एंग्जाइटी को दूर करने वाले 5 आसनों के बारे में...

अधोमुख श्वानासन (डाउनवर्ड फेसिंग डॉग पोज)

ऐसे करें

  • पेट के बल लेटें और सांस खींचते हुए पैरों और हाथों के बल शरीर को उठाएं और टेबल जैसा आकार बनाएं।
  • सांस को बाहर निकालते हुए धीरे-धीरे कूल्हों (हिप्स) को ऊपर की तरफ उठाएं। अपनी कोहनियों और घुटनों को सख्त बनाए रखें। ध्यान रखें कि शरीर उल्टे 'वी' के आकार में आ जाए।
  • कंधे और हाथ एक सीध में रखें और पैर कूल्हे की सीध में रहेंगे। टखने बाहर की तरफ रहेंगे।
  • अब हाथों को नीचे जमीन की तरफ दबाएं और गर्दन को लंबा खींचने की कोशिश करें। आपके कान आपके हाथों के भीतरी हिस्से को छूते रहें।
  • इसी स्थिति में कुछ सेकेंड्स तक रुकें और उसके बाद घुटने जमीन पर टिका दें और मेज जैसी स्थिति में​ फिर से वापस आ जाएं।

सेतुबंधासन (ब्रिज पोज)

ऐसे करें

  • योग मैट पर पीठ के बल लेट जाएं और सांसों की गति सामान्य रखते हुए हाथों को बगल में रख लें।
  • अब धीरे-धीरे अपने पैरों को घुटनों से मोड़कर कूल्हों के पास ले आएं। कूल्हों को जितना हो सके फर्श से ऊपर की तरफ उठाएं। हाथ जमीन पर ही रहने दें।
  • कुछ देर के लिए सांस को रोककर रखें। इसके बाद सांस छोड़ते हुए वापस जमीन पर आएं। पैरों को सीधा करें और विश्राम करें।
  • 10-15 सेकेंड तक ​आराम करने के बाद फिर से शुरू करें।

शवासन (कॉर्प्स पोज)

ऐसे करें

  • पीठ के बल लेटकर अपनी आंखें बंद कर लें। दोनों पैरों को अलग-अलग करें और शरीर को रिलैक्स छोड़ दें। हाथ शरीर से थोड़ी दूर रखें और हथेलियों को आसमान की ओर खुला छोड़ दें।
  • धीरे-धीरे शरीर के हर हिस्से की तरफ ध्यान देना शुरू करें। शुरुआत पैरों के अंगूठे से करें। ऐसा करते हुए सांस लेने की गति एकदम धीमी कर दें।
  • धीरे-धीरे आप गहरे मेडिटेशन में जाने लगेंगे। आलस या उबासी आने पर सांस लेने की गति तेज कर दें। शवासन करते हुए कभी भी सोना नहीं चाहिए।
  • सांस लेने की गति धीमी​ लेकिन गहरी रखें। आपका फोकस सिर्फ खुद और अपने शरीर पर ही रहेगा। 10-12 मिनट के बाद, आपका शरीर पूरी तरह से रिलैक्स हो जाएगा।

चक्रासन

ऐसे करें

  • पीठ के बल लेट जाएं और अपने दोनों हाथों और पैरों को सीधा रखें। अब पैरों को घुटने के यहां से मोड़ लें।
  • अब अपने हाथों को पीछे की ओर अपने सिर के पास ले जाकर जमीन से टिका लें।
  • सांस को अंदर की ओर लें और अपने पैरों पर वजन को डालते हुए कूल्हों को ऊपर उठाएं।
  • दोनों हाथों पर वजन को डालते हुए अपने कधों को ऊपर उठाएं और धीरे धीरे अपने हाथों को कोहनी के यहां से सीधे करते जाएं।
  • ध्यान रखें की दोनों पैरों के बीच की दूरी और दोनों हाथों की बीच की दूरी समान होनी चाहिए।
  • इसके बाद अपने दोनों हाथों को अपने दोनों पैरों के पास लाने की कोशिश करें और जितने पास ला सकते है लाएं।

उत्तानासन

ऐसे करें

  • सीधे खड़े हो जाएं और दोनों हाथ कूल्हों पर रख लें। सांस को भीतर खींचते हुए कमर को मोड़ते हुए आगे की तरफ झुकें।
  • धीरे-धीरे कूल्हों को ऊपर की ओर उठाएं और दबाव ऊपरी जांघों पर आने लगेगा। अपने हाथों से टखने को पीछे की ओर से पकड़ें।
  • आपके पैर एक-दूसरे के समानांतर रहेंगे। आपका सीना पैर के ऊपर छूता रहेगा। जांघों को भीतर की तरफ दबाएं और शरीर को एड़ी के बल स्थिर बनाए रखें।
  • सिर को नीचे की तरफ झुकाएं और टांगों के बीच से झांककर देखते रहें। इसी स्थिति में 15-30 सेकंड तक स्थिर बने रहें। जब आप इस स्थिति को छोड़ना चाहें तो पेट और नीचे के अंगों को सिकोड़ें।
  • सांस को भीतर की ओर खींचें और हाथों को कूल्हों पर रखें। धीरे-धीरे ऊपर की तरफ उठें और सामान्य होकर खड़े हो जाएं।


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30-minute walk amidst greenery, 5-minute run and yoga will reduce depression, know 5 similar yogasanas


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Friday, November 6, 2020

जबड़ों का रंग और आवाज का बदलना भी कैंसर का लक्षण, जानिए 5 सबसे ज्यादा होने वाले कैंसर और उनके लक्षण

देश में 2018 में कैंसर के 10.16 लाख नए मामले सामने आए। विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट कहती है, हर 10 में से एक भारतीय को कैंसर होने का खतरा है। हर 15 में एक भारतीय की मौत कैंसर से हो सकती है। ये आंकड़े बताते हैं कि कैंसर कितनी तेजी से अपना दायरा बढ़ा रहा है।

एक्सपर्ट कहते हैं, कैंसर से बचना है तो इसके लक्षणों को नजरअंदाज न करें, शरीर में किसी तरह का बदलाव दिखने पर डॉक्टरी सलाह जरूर लें। आज नेशनल कैंसर अवेयरनेस डे है। इस मौके पर मुम्बई के जसलोक हॉस्पिटल के मेडिकल ऑन्कोलॉजी की कंसल्टेंट डॉ. अंजना सैनानी से जानिए कैंसर के कौन से लक्षण दिखने पर अलर्ट हो जाएं और कौन सी आदतें कैंसर का खतरा बढ़ाती हैं...

1. ब्रेस्ट कैंसर : बच्चे को ब्रेस्टफीडिंग न कराने पर भी इसका खतरा

ये ध्यान रखें

  • ब्रेस्ट कैंसर के 75 फीसदी मामले महिलाओं में हार्मोन पर निर्भर करते हैं। ऐसी महिलाएं जो बच्चे को ब्रेस्टफीड नहीं कराती हैं, मोटापे से परेशान हैं और एक्सरसाइज नहीं करतीं उनमें इसका खतरा अधिक रहता है।
  • इस कैंसर का खतरा घटाने के लिए स्मोकिंग, अल्कोहल, हार्मोन थैरेपी और डीडीटी जैसे रसायन से भी खुद को बचाने की जरूरत है।

ऐसे खुद को बचाएं
20 साल की उम्र से अपने ब्रेस्ट की जांच करें। इसमें गांठ, आकार में बदलाव और लिक्विड निकलने जैसा लक्षण दिखे तो अलर्ट हो जाएं। 40 साल की उम्र के बाद साल में एक बार मेमोग्राफी जरूर कराएं। रोजाना 30 मिनट की एक्सरसाइज करें और खानपान में फल-सब्जियों की मात्रा बढ़ाएं।

2. ओरल कैंसर : जबड़ों का रंग बदलना भी कैंसर का लक्षण

ये ध्यान रखें

  • तम्बाकू से जुड़े हर उत्पाद जैसे बीडी, खैनी और स्मोकिंग से दूर रहें। एक से अधिक पार्टनर के साथ सम्बंध बनाने के दौरान ह्यूमन पैपिलोमा वायरस के संक्रमण से बचने के लिए कॉन्डम का इस्तेमाल करें।
  • मुंह में जबड़ों की लाइनिंग में दर्द होना या इसका रंग बदलने पर डॉक्टरी सलाह लें। मुंह में किसी तरह के लम्प होने पर नजरअंदाज न करें।

ऐसे खुद को बचाएं
लक्षण नजर आने पर डेंटिस्ट, ईएनटी और ओरल सर्जन से जांच कराएं। सीटी स्कैन के अलावा गर्दन और सिर की एमआरआई करके भी इसका पता लगाया जा सकता है।

3. सर्विकल कैंसर : अधिक ब्लीडिंग होने पर इसे नजरअंदाज न करें

ये ध्यान रखें

  • सर्विकल कैंसर की वजह ह्यूमन पैपिलोमा वायरस है। एक्सपर्ट कहते हैं, एक से अधिक पार्टनर के साथ सम्बंध बनाने पर इस वायरस के संक्रमण का खतरा रहता है।
  • वेजाइना से किसी तरह की ब्लीडिंग होने, अधिक लिक्विड डिस्चार्ज होने, गंध आने और सेक्स के दौरान दर्द होने पर अलर्ट हो जाएं।

ऐसे खुद को बचाएं
लक्षण दिखने पर पैप स्मियर, सर्विकल बायोप्सी, पेट का अल्ट्रासाउंड कराकर इसकी जांच करा सकती है।

4. लंग्स कैंसर : आवाज का बदलना भी कैंसर का इशारा

ये ध्यान रखें

  • लम्बे समय तक खांसी, बलगम आना या इसमें से खून आने पर अलर्ट हो जाएं। सांस लेने में तकलीफ, सीने में दर्द और आवाज का बदलना भी कैंसर का इशारा है।
  • इस कैंसर से बचने के लिए तम्बाकू से दूरी बनाएं। किसी तरह का लक्षण दिखने पर डॉक्टरी सलाह जरूर लें।

ऐसे खुद को बचाएं
लक्षण दिखने पर चेस्ट एक्सरे, एचआरसीटी स्कैन, लंग बायोप्सी या ब्रॉन्कोस्कोपी जांच कराएं।

5. कोलोरेक्टल कैंसर : मल का रंग बदलता है तो डॉक्टरी सलाह लें

  • इसे कोलोन कैंसर भी कहते हैं। ऐसे लोग जिनकी उम्र अधिक है, परिवार में किसी सदस्य को कोलोरेक्टल कैंसर हुआ है तो उनमें इस कैंसर का खतरा रहता है।
  • खाने में फायबर कम लेना, लम्बे समय तक एक ही जगह बैठकर काम करना, डायबिटीज, स्मोकिंग और अल्कोहल कोलोन कैंसर का खतरा बढ़ाते हैं।
  • लम्बे समय तक कब्ज, डायरिया रहता है या मल का रंग बदलता है तो डॉक्टरी सलाह लें।

ये ध्यान रखें
लक्षण दिखने पर कोलोनोस्कोपी, बायोप्सी, सीटी स्कैन या एमआरआई से पता लगा सकते हैं यह कैंसर है या नहीं।



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national cancer awareness day 2020 know 5 top cancer and its symptoms


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Thursday, November 5, 2020

कोरोना महामारी के बीच प्रेग्नेंट महिलाओं और बच्चों में इन्फ्लुएंजा के संक्रमण का खतरा अधिक, WHO की ये 3 चेतावनी याद रखें

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने बच्चों और गर्भवती महिलाओं के लिए चेतावनी जारी की है। WHO की टेक्निकल हेड मारिया वेन के मुताबिक, अब तक यह स्पष्ट नहीं हो पाया है कि आने वाले सर्दियों के मौसम में इन्फ्लुएंजा का क्या असर होगा। ऐसी स्थिति में महामारी के बीच इसकी मॉनिटरिंग और टेस्टिंग बेहद जरूरी है।

WHO की 3 चेतावनी : हाई रिस्क वाले इन्फ्लुएंजा की वैक्सीन लगवाएं

  • WHO की प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान मारिया वेन ने कहा, ऐसे लोग जो इन्फ्लुएंजा यानी फ्लू के हाई रिस्क जोन में हैं उन्हें वैक्सीन लगवाने की जरूरत है क्योंकि कोरोना की महामारी का दायरा घट नहीं रहा है।
  • क्लीनिकल मैनेजमेंट हेड जेनेट डियाज के मुताबिक, कोरोना और इन्फ्लुएंजा के लक्षण कॉमन हैं, इनमें बहुत कम अंतर है। ऐसे में अगर कॉमन लक्षण दिखते हैं तो इलाज लेने से पहले जांच जरूर कराएं।
  • सर्दियों में महामारी के बीच इन्फ्लुएंजा के वायरस का असर कितना होगा, यह कहना मुश्किल है इसलिए लक्षणों को नजरअंदाज न करें।

अब इन्फ्लुएंजा यानी फ्लू को समझ लें



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Risk of influenza for kids, pregnant women high during COVID-19 pandemic says WHO


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गंदगी में रहने वाले भारतीयों की कोरोना से मौतें कम हुईं, इनमें पहले से संक्रमण के कारण इम्युनिटी अधिक रही

ऐसे राज्य जहां साफ-सफाई का स्तर खराब है और पानी भी क्वालिटी भी बेहतर नहीं है, वहां कोरोना से होने वाली मौतों का खतरा कम है। वहीं, ऐसे राज्य जो काफी विकसित हैं, जहां साफ-सफाई का खास ख्याल रखा जाता है वहां मौत का रिस्क ज्यादा। यह चौंकाने वाला दावा सेंटर फॉर साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च के वैज्ञानिकों ने रिसर्च में किया है।

इसलिए गंदगी के बावजूद मौत का खतरा कम
वैज्ञानिकों के मुताबिक, लो-मिडिल इनकम वाले देशों में पैरासाइट और बैक्टीरिया से फैलने वाली बीमारियों के मामले ज्यादा होते हैं। इसलिए यहां के लोगों का इम्यून सिस्टम भविष्य में ऐसे रोगों से लड़ने के लिए तैयार हो जाता है। वैज्ञानिक भाषा में इसे इम्यून हायपोथिसिस कहते हैं। यह इम्यून सिस्टम के लिए एक तरह की ट्रेनिंग है। पहले ही संक्रमण के जूझने के कारण ऐसे देशों में कोरोना से मौत के मामले कम दिख सकते हैं।

भारत की स्थिति को ऐसे समझें

  • बिहार, झारखंड, केरल और असम में मृत्यु दर कम

वैज्ञानिकों का कहना है, इसे केस फैटेलिटी रेशियो (CFR) से समझा जा सकता है। CFR का मतलब है महामारी के कारण होने वाली मौत का अनुपात। जैसे सामाजिक और आर्थिक स्थिति के मामले से पीछे रहने वाले बिहार में कोरोना के कारण औसत मृत्यु दर 0.5 फीसदी है। यह देश में औसत मृत्यु दर 1.5% का मात्र तीसरा हिस्सा है।

सिर्फ बिहार ही नहीं केरल (0.4%), असम (0.4%), तेलंगाना (0.5%), झारखंड (0.9%) और छत्तीसगढ़ (0.9%) जैसे राज्यों में कम मौते हुईं।

  • महाराष्ट्र, गुजरात जैसे विकसित राज्यों में मृत्यु दर अधिक

रिसर्च कहती है, महाराष्ट्र, गुजरात और पंजाब जैसे विकसित राज्यों में मृत्यु दर 2 फीसदी या इससे अधिक रही है। वैज्ञानिकों का कहना है, यह रिसर्च पानी की क्वालिटी, साफ-सफाई का स्तर और प्रति 10 लाख कोरोना पीड़ितों की मौत के आंकड़े के आधार पर की गई है।

संक्रमण भविष्य के लिए इम्यून सिस्टम स्ट्रॉन्ग बनाते हैं
इससे पहले संक्रमण के कारण इम्यून सिस्टम पर पड़ने वाले असर को समझने के लिए कई स्टडी की गई हैं। ये रिसर्च बताती हैं कि इंसानों में पैरासिटिक और बैक्टीरियल इंफेक्शन भविष्य के लिए इम्यून सिस्टम को मजबूत बनाता है।

रिसर्च में शामिल महामारी विशेषज्ञ प्रवीण कुमार कहते हैं, लोगों में इम्यून ट्रेनिंग के कारण लो-सेनिटेशन वाले क्षेत्रों में कोरोना से कम मौतें हुई हैं। अभी भी इम्यून ट्रेनिंग को पूरी तरह से नहीं समझा जा सका है क्योंकि यह बेहद बड़ा विषय है।

सेंटर फॉर साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल के अलावा इस रिसर्च में नेशनल सेंटर फॉर सेल साइंस पुणे और चेन्नई मैथमेटिकल इंस्टीट्यूट भी शामिल रहा है।



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मात्र 6 दिन में आयुर्वेदिक दवा 'फीफाट्रोल' से कोरोना का मरीज संक्रमणमुक्त हुआ; पढ़ें पूरी केस स्टडी

आयुर्वेद की दवा फीफाट्रोल से मात्र 6 दिन में कोरोना के मरीज की रिपोर्ट निगेटिव आई है। ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ आयुर्वेद (AIIA ) दिल्ली के डॉक्टरों ने आयुर्वेदिक दवा फीफाट्रोल का प्रयोग कोरोना के मरीजों पर किया। डॉक्टरों का दावा है, मरीज एक हफ्ते में संक्रमणमुक्त हो गया। मरीज को प्राकृतिक दवाओं और आयुर्वेदिक थैरेपी से ठीक किया गया।

मरीज की केस स्टडी से समझें पूरा मामला
ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ आयुर्वेद के जर्नल में पब्लिश रिपोर्ट कहती है, दिल्ली में रहने वाले 30 साल के एक हेल्थ वर्कर में कोरोना का संक्रमण हुआ। उसे क्वारैंटाइन रहने की सलाह दी गई। मरीज में कोरोना के ज्यादातर लक्षण सामान्य थे।

ट्रीटमेंट के दौरान उसे फीफाट्रोल की टेबलेट्स, शम्समणि वटी, आयुष क्वाथ और लक्ष्मीविलास रस दिया गया। खानपान में बदलाव किया गया। इसके साथ ही उसे सत्ववाज्य चिकित्सा दी गई। यह आयुर्वेद में दी जाने एक सायकोथैरेपी है।

यह ट्रीटमेंट बुखार, सांस लेने में दिक्कत, थकान, भूख न लगना, गंध का पता न चल पाना जैसे लक्षणों के लिए तैयार किया गया था। इलाज शुरु होने के बाद छठे दिन मरीज की रिपोर्ट निगेटिव आई। 16वें दिन भी आरटी-पीसीआर टेस्ट हुआ, जो निगेटिव रहा।

फीफाट्रोल काम कैसे करती है
आयुर्वेद की कई जानी-मानी दवाओं और हर्ब्स को मिलकर फीफाट्रोल तैयार की गई है। यह मरीज की इम्युनिटी बढ़ाने का काम करती है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह दवा इम्यून सिस्टम को स्ट्रॉन्ग बनाकर संक्रमण के असर को कम करती है। इससे रिकवरी भी तेज होती है।

यह दवा एंटीबायोटिक है लेकिन फ्लू और दर्द में भी दी जाती है। नेशनल डेवलपमेंट रिसर्च कार्पोरेशन के मुताबिक, फीफाट्रोल नाक से जुड़ी दिक्कतों, गले में सूजन, शरीर और सिर में दर्द से भी राहत देती है। सांस की नली से जुड़े संक्रमण का इलाज करने में इसका प्रयोग किया जा सकता है। इसमें कई तरह के माइक्रो-न्यूट्रिएंट्स और एंटीऑक्सीडेंट्स हैं।

कौन तैयार करता है यह दवा
फीफाट्रोल को आयुर्वेदिक दवाएं बनाने वाली भारतीय कम्पनी ऐमिल फार्मा तैयार करती है। इसमें इम्युनिटी बढ़ाने वाली हर्ब्स जैसे गुडुची, संजीवनी घनवटी, दारुहरिद्रा, चिरायता, कुटकी, तुलसी, गोदांति भस्म और मृत्युंजय रस का प्रयोग किया गया है। यह वायरस और बैक्टीरिया दोनों के संक्रमण से लड़ती है।



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Coronavirus Ayurvedic Medicine | Delhi Coronavirus News Update; Dengue, Immunity-Boosting Ayurvedic Drug Fifatrol Research On COVID Patient


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Tuesday, November 3, 2020

सर्दियों में शरीर को गर्म रखने और इम्युनिटी बढ़ाने के लिए मोटा अनाज, लहसुन-अदरक और गुड़ लें, एक्सपर्ट से समझें इसके फायदे

सर्दियों की शुरुआत हो चुकी है। मौसम में ठंडक घुल रही है। ये समय है खानपान में बदलाव लाने का। एक्सपर्ट कहते हैं, सर्दी के मौसम में ऐसी चीजें खानपान में शामिल करें जो शरीर को गर्म बनाए रखें और रोगों से लड़ने की क्षमता भी बढ़ाएं।

आज हम आपको सर्दी के मौसम में खान-पान से जुड़ी ऐसी चीजें बता रहे जो सस्ती हैं और आसानी से उपलब्ध हैं। ये हेल्दी होने के साथ गर्म तासीर वाली भी हैं। डाइटीशियन और आयुर्वेद एक्सपर्ट डॉ. किरन गुप्ता से जानिए, कैसा होना चाहिए, सर्दियों में खानपान...

पांच चीजें जो सर्दियों में जरूर लेनी चाहिए

मोटा अनाज : ये वजन कंट्रोल करने के साथ शरीर गर्म भी रखता है
सर्दी के मौसम में मक्का, ज्वार, बाजरा और रागी का भरपूर सेवन किया जाना चाहिए। इन्हें दलिया, रोटी या डोसे के रूप में लिया जा सकता है। इससे गेहूं के उपयोग में अपने आप कमी आएगी जो न केवल हमारे वज़न को नियंत्रित करने में मदद करेगा, बल्कि मोटे अनाजों की गर्म तासीर की वजह से शरीर में गर्मी भी रहेगी। हां, इनके साथ घी बहुत ज्यादा न हो जाए, इसका विशेष ध्यान रखना जरूरी है।

कच्चा लहसुन, हल्दी और अदरक : ये रोगों से लड़ने की क्षमता बढ़ाते हैं
सर्दी के मौसम में इन तीनों चीजों का सेवन जरूर करना चाहिए। अदरक के अलावा हरी लहसुन और हरी हल्दी (कच्ची हल्दी) भी इस मौसम में उपलब्ध होती है। इन तीनों में कई तरह के औषधीय गुण होने के अलावा इनकी तासीर भी गर्म होती है। ये मेटाबॉलिज्म भी बढ़ाते हैं जिससे वजन कंट्रोल में रहता है। कच्चे लहसुन को चटनी और कच्ची हल्दी को अचार के रूप में खाया जा सकता है।

तिल, मूंगफली और गुड़ : ये स्किन को चमकदार बनाते हैं
इन तीनों को एक साथ या अलग-अलग भी खाया जा सकता है। ये न केवल तासीर में गर्म है, बल्कि आयरन के भी अच्छे सोर्स हैं जो ठंड में हमारे लिए जरूरी है। सर्दियों की एक बड़ी समस्या त्वचा का रूखा-सूखा होना है। तिल और मूंगफली के नियमित सेवन से त्वचा चमकदार और मुलायम बनी रहती है। इन दिनों चाय या गाजर के हलवे जैसी चीजों में भी शक्कर की जगह गुड़ का इस्तेमाल किया जाना चाहिए।

हरी पत्तेदार सब्जियां : ये कफ से बचाती हैं
इस मौसम में मैथी, पालक, सरसों, बथुआ आदि हरी सब्जियां बहुतायत में मिलती हैं। इनमें विटामिन ए, ई, के, फॉलिक एसिड, आयरन, पोटैशियम और कैल्शियम जैसे पोषक तत्व बहुतायत मात्रा में होते हैं। हर दो मील्स में से कम से कम एक में यानी लंच या डिनर में इन्हें किसी न किसी रूप में अवश्य लेना चाहिए। ये वजन को नियंत्रित रखने के साथ-साथ कफ नाशक भी होती हैं जो सर्दी के मौसम की एक अन्य बड़ी समस्या है।

ग्रीन सलाद : ये पाचन सुधारते हैं और वजन नहीं बढ़ने देते
ठंड के मौसम में गाजर, मूली, टमाटर, खीरा, चुकंदर, हरा प्याज आदि भी प्रचुर मात्रा में उपलब्ध होता है। इन्हें लंच और डिनर दोनों समय के मील्स में जरूर शामिल करना चाहिए। ग्रीन सलाद से शरीर को न केवल कई तरह के विटामिन्स और मिनरल्स मिलेंगे, बल्कि इससे पाचन भी सुधरता है और मेटाबॉलिज्म भी बढ़ता है। मेटाबॉलिज्म में बढ़ोतरी हमारे वजन को नियंत्रित करने में मदद करेगी।



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Winter Season Foods | Green Salad, Sesame, Peanuts and Jaggery To Take In Winter; Winter Food In India to Keep You Warm


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Monday, November 2, 2020

मोजे उतराने के बाद नहीं आएगी बदबू, वैज्ञानिकों ने बनाया केमिकल, जो बैक्टीरिया और गंध खत्म करेगा

थाइलैंड के वैज्ञानिकों ने मोजे उतारने के बाद आने वाली गंध दूर करने के लिए नया प्रयोग किया है। वैज्ञानिकों ने मोजे में जिंक ऑक्साइड नैनो पार्टिकल्स का इस्तेमाल किया, जो बदबू को दूर करने के साथ पैरों में मौजूद बैक्टीरिया भी मारता है। रिसर्च करने वाली थाइलैंड की महिडोल यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने दावा किया है कि ट्रायल सफल रहा है।

जिंक ऑक्साइड के नैनो पार्टिकल्स ऐसे गंध दूर करेगा
वैज्ञानिकों के मुताबिक, पैरों से गंध आने की स्थिति ब्रोमोडोसिस कहते हैं और पैरों में संक्रमण को पिटेड किरेटोलिसिस कहते हैं। जिंक ऑक्साइड के नैनो पार्टिकल्स इन दोनों से निजात दिलाते हैं। जिंक ऑक्साइड में एंटीबैक्टीरियल खूबी होती है। इसके अलावा यह इंसान की स्किन को किसी तरह से नुकसान नहीं पहुंचाता। इसका इस्तेमाल कपड़ों और मोजे पर एक लेयर बढ़ाने में किया जा सकता है।

सफल रहा मोजे का ट्रायल
रिसर्चर डॉ. पुन्यावी ऑन्गस्री कहते हैं, मोजे पर इस रसायन की लेयर चढ़ाई गई। इन मोजों का इस्तेमाल रिसर्च में शामिल लोगों पर किया गया है। 2018 में हुई रिसर्च में पाया गया था कि नेवी के कैडेट्स के पैरों में संक्रमण के मामले काफी सामने आते हैं। ऐसे मामले घटाने के लिए रिसर्च शुरू की गई थी ताकि पैरों से बैक्टीरिया और वायरस का संक्रमण कम हो।

रिसर्च में शामिल हुए नेवी के 148 कैडेट्स को केमिकल की लेयर वाले मोजे पहनाए गए। ये ऐसे कैडेट्स थे, जो पैरों से गंध आने और संक्रमण से जूझ रहे थे और 2018 में हुई रिसर्च में भी शामिल हुए थे। इन्हें 14 दिन तक फील्ड ट्रेनिंग दी गई। बाद में इनकी तुलना सामान्य मोजे पहनने वालों से की गई। कैडेट्स ने भी माना उनके पैरों से गंध काफी हद तक कम हुई। स्किन एक्सपर्ट ने पैरों से संक्रमण की जांच की, जो सफल रही।

नेवी के 148 कैडेट्स पर रिसर्च हुई। फोटो- महिडोल यूनिवर्सिटी

अब कपड़ों से जर्म्स को दूर करने की तैयारी
डॉ. ऑन्गस्री कहते हैं, यह तरीका सेना के जवानों के लिए काफी राहत देने वाला साबित होगा। अब हम इस रिसर्च को टेक्सटाइल इंडस्ट्री के लिए कर रहे हैं, ताकि कपड़ों के जरिए इंसानों को होने वाले बैक्टीरियल और फंगल इंफेक्शन को रोका जा सके।



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coating for socks that kills bacteria and neutralises unpleasant odours, Alert Update; Read Thailand Siriraj Hospital Mahidol University Report


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कोरोना को बेअसर और ड्रॉप्लेट्स को ब्लॉक करने वाला एंटीवायरल मास्क, दावा; 82% तक ड्रॉप्लेट्स सैनेटाइज करता है

अमेरिकी वैज्ञानिकों ने ऐसा मास्क तैयार किया है जिस पर एंटी-वायरल लेयर है। वैज्ञानिकों का दावा है कि यह मास्क कोरोनावायरस को बेअसर कर सकता है और संक्रमण का खतरा घटाता है। एंटीवायरल लेयर वाला मास्क तैयार करने वाली अमेरिका की नॉर्थ-वेस्टर्न यूनिवर्सिटी का कहना है, लैब में सांस लेने, छोड़ने, खांसी और छींकने के दौरान यह पाया गया कि नॉन-वोवेन फैब्रिक सबसे बेहतर कपड़ा है।

ऐसे तैयार किया एंटीवायरल लेयर वाला मास्क
वैज्ञानिकों ने मास्क को तैयार करने के लिए नॉन-वोवेन फैब्रिक का इस्तेमाल किया। इस पर ऐसे केमिकल की लेयर चढ़ाई गई है जो सांस बाहर छोड़ते समय ड्रॉप्लेट्स को सैनेटाइज करता है। ऐसा होने पर संक्रमित रेस्पिरेट्री ड्रॉपलेट्स बाहर हवा में नहीं फैलते। मास्क पर लेयर चढ़ाने के लिए फॉस्फोरिक एसिड और कॉपर साल्ट का प्रयोग किया गया है।

इसलिए मास्क में इस्तेमाल केमिकल असरदार

वैज्ञानिकों के मुताबिक, इन रसायनों को एंटी-वायरल कहा जाता है। ये नॉन-वोलाटाइल होने के कारण उड़ते (वाष्पीकरण) नहीं हैं। रिसर्चर जियाजिंग हुआंग कहते हैं, वायरस बेहद बारीक और नाजुक है। कहीं से भी इस पर बुरा असर पड़ता है तो यह अपनी संक्रमित करने की क्षमता को खो सकता है

मास्क के लिए फैब्रिक का चुनाव वायरस के नेचर के मुताबिक किया गया है।

मास्क रेस्पिरेट्री ड्रॉप्लेट्स को 82% तक सैनेटाइज करता है

मैटर जर्नल में पब्लिश हुई रिसर्च कहती है, एंटी-वायरल लेयर मास्क रेस्पिरेट्री ड्रॉप्लेट्स को 82 फीसदी तक सैनेटाइज करते हैं। नॉन-वोवेन फैब्रिक से बने मास्क से सांस लेने में तकलीफ नहीं होती। रिसर्चर जियाजिंग हुआंग कहते हैं, महामारी से लड़ने और खुद को सुरक्षित रखने के लिए मास्क सबसे जरूरी हिस्सा है।

हुआंग कहते हैं, रिसर्च के दौरान मैंने पाया कि मास्क केवल लगाने वाले को सुरक्षित नहीं रखता बल्कि दूसरों को ड्रॉप्लेट्स से होने वाले संक्रमण से भी बचाने का काम करता है। नया एंटी-वायरल लेयर मास्क मुंह से बाहर निकलने वाले ड्रॉप्लेट्स को ब्लॉक करता है। अगर ये ड्रॉप्लेट्स मास्क से निकलकर बाहर जाते हैं तो सतह पर जाकर टिक जाते हैं या दूसरे को संक्रमित करने का काम करते है।

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कोरोना नियमों का पालन इनसे सीखें:इटली के नोर्टोसे कस्बे में बस दो लोग रहते हैं, ये दूर से ही मिलते हैं और मास्क लगाना नहीं भूलते

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सोने का मास्क:11 करोड़ का दुनिया का सबसे महंगा मास्क, 18 कैरेट सोने से बने मास्क में 3600 हीरे जड़े और वायरस से बचाने के लिए एन-99 फिल्टर लगाया



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Coronavirus Antiviral Layer Mask; Here's Updates From US Northwestern University Researcher


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Saturday, October 31, 2020

हार्ट डिसीज, कैंसर और मोटापे से बचना है तो वीगन डाइट लें लेकिन इसे 3 महीने से ज्यादा लेते हैं तो ये बातें ध्यान रखें

वजन घटाना चाहते हैं और हार्ट को हेल्दी रखना चाहते हैं तो वीगन डाइट को अपना सकते हैं। फल, सब्जी और अनाज से मिलने वाले न्यूट्रिएंट्स पेट को दुरस्त रखने के साथ कैंसर का खतरा घटाते हैं। लेकिन कई महीनों तक इस डाइट के सहारे रहना खतरनाक है। क्लीनिकल न्यूट्रिशनिस्ट डॉ. सुरभि पारीक कहती हैं, जब भी इस डाइट की शुरुआत करें तो इसके साथ कुछ और सप्लिमेंट्स लें वरना कुछ पोषक तत्वों की कमी हो सकती है।

आज वर्ल्ड वीगन डे के मौके पर जानिए वीगन डाइट को अपनाने से पहले किन बातों का ध्यान रखना जरूरी है...

वीगन डाइट कैंसर का खतरा घटाती है, रिसर्च में साबित हुआ
अमेरिका में हुई एक स्टडी बताती है वीगन डाइट वजन घटाने में कारगर है। इसमें फैट बेहद कम मात्रा में होने के कारण ब्लड प्रेशर कंट्रोल में रहता है और हृदय रोगों का खतरा घटता है। फल और सब्जियों के जरिए शरीर में एंटीऑक्सीडेंट्स काफी मात्रा में पाए जाते हैं जो ब्लड शुगर भी कंट्रोल में रखते हैं और इम्युनिटी को बढ़ाते हैं।

मेयो क्लीनिक की एक रिपोर्ट के मुताबिक, वीगन डाइट में नॉन-वेज नहीं शामिल होता, इसलिए ये कोलोन और ब्रेस्ट कैंसर से भी बचाते हैं। इसमें फायबर होने के कारण पेट से जुड़ी दिक्कतें जैसे कब्ज नहीं होता।

वीगन डाइट लें तो इन 6 बातों का ध्यान रखें

  • क्लीनिकल न्यूट्रिशनिस्ट डॉ. सुरभि पारीक बताती हैं कि वीगन डाइट 3 महीने से अधिक समय तक न लें। लगातार प्लांट बेस्ड डाइट लेने से शरीर में आयरन, कैल्शियम, विटामिन-डी और बी-12 की कमी हो जाती है।
  • कई बार लोग दूध के ऑप्शन के तौर पर सोया मिल्क, सोया पनीर लेते हैं। डाइट में सोया की मात्रा अधिक होने पर हार्मोनल इम्बैलेंस होने का खतरा रहता है। नतीजा, हेयरफॉल और स्किन स्पॉट्स के रूप में दिख सकता है। इसलिए वीगन डाइट लेते समय एक्सपर्ट से सलाह जरूर लें।
  • अगर लम्बे समय के लिए यह डाइट लेते हैं तो एक्सपर्ट कुछ सप्लिमेंट्स प्रिस्क्राइब करते हैं जो कैल्शियम, विटामिन-डी, बी-12 और आयरन की कमी पूरी करते हैं। सिर्फ प्लांट बेस्ड डाइट लेते हैं कई जरूरी पोषक तत्वों की कमी हो सकती है।
  • विटामिन-डी की कमी को पूरा करने के लिए सुबह 9 बजे से पहले कुछ समय धूप में बैठें। इससे विटामिन-डी की कमी पूरी होगी और हडि्डयां भी मजबूत होंगी।
  • विटामिन बी-12 की कमी होने पर थकान और कमजोरी महसूस होती है इसलिए डाइट में सोया ड्रिंक्स, अनाज जरूर लें। सिर्फ सब्जियों और फलों पर डिपेंड न रहें।
  • डॉ. सुरभि के मुताबिक, हरी सब्जियां लेने के बावजूद लोगों में आयरन की कमी हो सकती है क्योंकि ये लो-हीम फूड हैं। इनसे उतना आयरन नहीं मिल पाता जितना चाहिए। इसके लिए मटर, टोफू और ड्रायफ्रूट्स जरूर लें।

वीगन डाइट किसे नहीं लेनी चाहिए

ऐसे लोग जो पहले से अंडरवेट हैं। आयरन और कैल्शियम की कमी से जूझ रहे हैं, उन्हें वीगन डाइट लेने से बचना चाहिए। जैसे- एनीमिक महिलाएं। ऐसे लोग जिन्हें नट्स, सोया और ग्लूटेन से एलर्जी है उन्हें भी वीगन डाइट नहीं लेनी चाहिए।

वेजिटेरियन और वीगन डाइट के फर्क को भी समझ लें
वीगन और वेजिटेरियन डाइट में एक सबसे बड़ा अंतर है। वेगन डाइट में ज्यादातर ऐसे फूड शामिल हैं जो पेड़े-पौधों से सीधे तौर पर मिलते हैं। वीगन डाइट में एक बात का खासतौर पर ध्यान दिया जाता है कि जो भी फूड ले रहे हैं वो केमिकल से तैयार न हुए हों। यानी ऑर्गेनिक फार्मिंग से तैयार होने वाले फूड होने चाहिए।

कैसे शुरू हुआ वर्ल्ड वीगन डे
जानवरों के अधिकारों की वकालत करने वाले ब्रिटेन के डोनाल्ड वॉटसन ने 1 नवम्बर 1944 को 5 लोगों की एक मीटिंग बुलाई। इस बैठक में नॉन-डेयरी प्रोडक्ट पर चर्चा हुई। यहीं से पड़ी वर्ल्ड वीगन डे की नींव। इस दिन का लक्ष्य जानवर और पर्यावरण को बचाने के साथ लोगों को वेजिटेरियन फूड खाने के लिए जागरूक करना है।



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