Wednesday, August 12, 2020
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कोरोना वैक्सीन ट्रैकरः रूस और चीन के वैक्सीन अप्रूव हुए; भारतीय वैक्सीन को क्यों लग रही है देर; हमें कब से मिलने लगेगा वैक्सीन?
न चीन को किसी की परवाह है और न ही रूस को। दोनों ही ने विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) या अंतरराष्ट्रीय आलोचनाओं की परवाह किए बिना अपने वैक्सीन अप्रूव कर दिए हैं। चीन ने कैनसिनो बायोलॉजिक्स के वैक्सीन को लिमिटेड इस्तेमाल के लिए अप्रूव किया है और चीनी मिलिट्री के लिए यह उपलब्ध है। वहीं, रूस ने एक कदम आगे बढ़ते हुए गामालेया रिसर्च इंस्टीट्यूट के वैक्सीन को सबके लिए अप्रूव कर दिया। दोनों वैक्सीन अभी फेज-3 की टेस्टिंग के दौर से गुजर रहे हैं। अब तक पूरी तरह इफेक्टिव और सेफ भी साबित नहीं हुए हैं।
वहीं, कोरोना संक्रमण की बढ़ती दर के साथ दुनिया के टॉप-3 देशों में शामिल भारत में कोरोना वैक्सीन तो बन गए हैं। लेकिन इस्तेमाल के लिए साल के अंत तक उपलब्ध होंगे। भारत में वैक्सीन के लिए देर क्यों लग रही है? और भारत में कब तक मिलने लगेगा इफेक्टिव और सेफ वैक्सीन?
सबसे पहले बात, रूस के वैक्सीन की...
- रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने 11 अगस्त को ऐलान किया कि गामालेया इंस्टीट्यूट ने रक्षा मंत्रालय के साथ मिलकर जो कोरोना वैक्सीन (Gam-Covid-Vac Lyo) बनाई है, उसे रजिस्टर कर लिया गया है।
- रूस ने इस वैक्सीन को जनता के इस्तेमाल के लिए मंजूर की गई दुनिया की पहली वैक्सीन के तौर पर पेश किया है। सितम्बर से इसका उत्पादन शुरू होगा और अक्टूबर से आम लोगों को वैक्सीन लगाने की शुरुआत होगी।
- पुतिन की बेटी ने भी वैक्सीन लगवाया है। रूसी राष्ट्रपति के मुताबिक यह वैक्सीन दो डोज का है। पहला डोज लगाने पर बेटी को बुखार आया था लेकिन अगले दिन वह सामान्य हो गई। दूसरे डोज के समय भी ऐसा ही हुआ।
- वैक्सीन से शरीर में बने एंटीबॉडी दो साल तक कोरोनावायरस से सुरक्षित रखते हैं। गामालेया इंस्टिट्यूट के वैज्ञानिकों की माने तो यह वैक्सीन पूरी तरह से सेफ और इफेक्टिव है। पैरासिटामॉल से बुखार को काबू किया जा सकता है।
- रूस में सबसे पहले चिकित्सा कर्मचारियों, शिक्षकों और अन्य रिस्क ग्रुप के लोगों को वैक्सीन लगाया जाएगा। डिप्टी प्राइम मिनिस्टर तात्याना गोलीकोवा ने कहा कि डॉक्टरों का वैक्सीनेशन इसी महीने शुरू हो जाएगा।
रूस ने इतनी जल्दी कैसे बना लिया वैक्सीन?
- गामालेया इंस्टिट्यूट ने जून में यह वैक्सीन तैयार कर ली थी। फेज-1 ट्रायल भी शुरू कर दिए थे। रूसी वैक्सीन में ह्यूमन एडेनोवायरस Ad5 और Ad26 का इस्तेमाल किया है। दोनों को कोरोनावायरस जीन से इंजीनियर किया है।
- कोरोनावायरस का प्रकोप बढ़ने लगा था तब व्लादिमीर पुतिन प्रशासन ने ड्रग रेगुलेटर से कहकर ट्रायल्स की अवधि घटाई थी। ब्रिटेन और अमेरिका में भी ड्रग रेगुलेटर ने ट्रायल्स के कड़े नियमों में नरमी बरती है।
- रूसी वैज्ञानिकों ने मर्स और सार्स का वैक्सीन बनाया था। उसमें ही आंशिक फेरबदल किया गया है। वैक्सीन को जल्दी बनाने में लाभ हुआ। दुनियाभर में बन रहे वैक्सीन एक वेक्टर पर निर्भर है जबकि यह दो वेक्टर से बना है।
- रूस की इस जल्दबाजी के पीछे क्रेमलिन भी है। वह चाहता था कि दुनियाभर में रूस की छवि ग्लोबल पॉवर की बने। सरकारी टीवी स्टेशनों और मीडिया ने भी अन्य देशों को वैज्ञानिकों की तारीफ की और विरोध को बेवजह बताया।
रूसी वैक्सीन में सब इतना अच्छा है तो दिक्कत क्या है?
- रूसी वैक्सीन के सेफ और इफेक्टिव होने पर शक किया जा रहा है। इसकी वजह है इस वैक्सीन के ट्रायल्स से जुड़ा कोई भी डेटा सामने न होना। इससे यह स्पष्ट नहीं है कि कोई जांच हुई भी या नहीं।
- गामालेया इंस्टिट्यूट के प्रमुख एलेक्जेंडर गिंट्सबर्ग ने कहा कि वैक्सीनेशन शुरू होगा और इस दौरान फेज-3 ट्रायल्स भी चलते रहेंगे। यूएई और फिलीपींस में भी फेज-3 ट्रायल्स शुरू करने की तैयारी है।
- आम तौर पर फेज-3 का टेस्ट हजारों लोगों पर होता है। वैक्सीन लगाने के बाद कई महीने निगरानी होती है। डेटा कलेक्शन होता है और उसके बाद नतीजों के विश्लेषण के आधार पर वैक्सीन को मंजूरी दी जाती है।
- अब तक सिर्फ 10% क्लिनिकल ट्रायल्स सफल हुए हैं। जिस स्पीड से रूस ने दौड़ लगाई है, उससे वैज्ञानिक यह भी कह रहे हैं कि मॉस्को ने वैक्सीन से सेफ्टी को लेकर अपनी छवि दांव पर लगाई है।
- एसोसिएशन ऑफ क्लिनिकल ट्रायल्स ऑर्गेनाइजेशन ने रूसी हेल्थ मिनिस्ट्री को ट्रायल्स से पहले वैक्सीन रजिस्ट्रेशन टालने का अनुरोध किया था। कहा था कि टेस्ट से पहले ड्रग को मंजूरी देने से जोखिम बहुत बढ़ जाएगा।
- ट्युएबिंगेन यूनिवर्सिटी हॉस्पिटल में क्योरवेक के वैक्सीन का क्लिनिकल ट्रायल कर रहे डॉ. पीटर क्रेमसनर का कहना है कि बिना जांच के वैक्सीन जारी करना खतरनाक हो सकता है। यह लोगों को खतरे में डाल रहा है।
- लंदन में क्वीन मैरी यूनिवर्सिटी में इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी लॉ प्रोफेसर डंकन मैथ्यूज ने कहा- वैक्सीन स्वागत योग्य है, लेकिन सेफ्टी प्रायरिटी होनी चाहिए। अमेरिकी व यूरोपीय दवा नियामकों ने ट्रायल्स के लिए समय घटाया है, पर सख्त मानक तय किए हैं। देखना होगा कि रूसी मानक किस तरह तय हुए हैं।
ऐसे तो भारत भी जल्दी ला सकता है वैक्सीन?
- ला तो सकता है। लेकिन लाएगा नहीं। आईसीएमआर के साथ मिलकर स्वदेशी वैक्सीन कोवैक्सीन बना रहे भारत बायोटेक इंटरनेशनल के चेयरमैन कृष्णा ऐल्ला ने कहा कि कंपनी टेस्ट को लेकर जल्दबाजी में नहीं है।
- ऐल्ला का कहना है कि उन पर वैक्सीन जल्दी बनाकर देने के लिए बहुत दबाव है। लेकिन सेफ्टी और क्वालिटी सबसे ऊपर है। कंपनी गलत वैक्सीन जारी कर ज्यादा लोगों को मौत के घाट नहीं उतारना देना चाहती।
- कंपनी बेस्ट क्वालिटी की वैक्सीन बनाना चाहती है। उसे पूरा भरोसा है कि कोवैक्सीन एक इनएक्टिवेटेड वैक्सीन है और ऐसे वैक्सीन का रिकॉर्ड अच्छा है और यह SARS-CoV-2 (कोरोनावायरस) के खिलाफ इफेक्टिव होगा।
- ऐल्ला का कहना है कि हम पर अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों और कम्युनिटी की नजर है। हम रिसर्च में कोई कमियां नहीं छोड़ना चाहते और हम बेस्ट क्वालिटी की वैक्सीन बनाने पर फोकस है।
- ऐल्ला ने कहा- भारतीय इंडस्ट्री यूरोप या अमेरिकी कंपनियों से कम नहीं है। टेक्नोलॉजी और क्लिनिकल रिसर्च के मामले में तो चीन से बहुत आगे है। भारत बायोटेक ने कुछ साल पहले 1 डॉलर में रोटावायरस वैक्सीन निकाला था जबकि जीएसके ने कीमत रखी थी 85 डॉलर।
- वहीं, दुनिया की सबसे बड़ी वैक्सीन बनाने वाली कंपनी सीरम इंस्टिट्यूट ने भी ऑक्सफोर्ड-एस्ट्राजेनेका के वैक्सीन कैंडीडेट के बड़े पैमाने पर उत्पादन की तैयारी शुरू कर दी है। इसका बड़े पैमाने पर प्रोडक्शन सितंबर से शुरू होने की उम्मीद है।
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इस वैक्सीन का पूरा क्लीनिक ट्रायल हुआ ही नहीं; 42 दिन में मात्र 38 लोगों को टीका लगा और इनमें 144 तरह के साइडइफेक्ट भी दिखे
दुनियाभर में रूसी वैक्सीन स्पूतनिक-वी पर सवाल उठ रहे हैं। 11 अगस्त को दुनिया की पहली कोरोना वैक्सीन के रजिस्ट्रेशन के दौरान पेश किए दस्तावेजों से कई खुलासे हुए हैं। दस्तावेजों के मुताबिक, वैक्सीन कितनी सुरक्षित है, इसे जानने के लिए पूरी क्लीनिकल स्टडी हुई ही नहीं है।
डेली मेल की खबर के मुताबिक, ट्रायल के नाम पर 42 दिन में मात्र 38 वॉलंटियर्स को वैक्सीन की डोज दी गई। ट्रायल के तीसरे चरण पर भी कोई जानकारी सामने नहीं आई है।
रूसी सरकार का दावा था कि वैक्सीन के कोई साइड इफेक्ट नहीं दिखे जबकि दस्तावेज बताते हैं कि 38 वॉलंटियर्स में 144 तरह के साइड इफेक्ट देखे गए हैं। ट्रायल के 42 वें दिन भी 38 में से 31 वॉलंटियर्स इन साइडइफेक्ट से जूझते दिखे। वॉलंटियर्स को डोज लेने के बाद कई तरह दिक्कतें हुईं। पिछले कई दिनों से WHO भी इस वैक्सीन पर सवाल उठा रहा है।
WHO का कहना है कि रूस ने वैक्सीन बनाने के लिए तय दिशानिर्देशों का पालन नहीं किया, ऐसे में इस वैक्सीन की सफलता पर भरोसा करना मुश्किल है।
जानिए, रूसी सरकार के दावे और दस्तावेजों से निकली सच्चाई....
- पहला दावा : रशिया के रक्षा मंत्रालय के मुताबिक, वैक्सीन ट्रायल के जो परिणाम सामने आए हैं उनमें बेहतर इम्युनिटी विकसित होने के प्रमाण मिले हैं। किसी वॉलंटियर्स में निगेटिव साइड इफेक्ट नहीं देखने को मिले।
- सच्चाई: दस्तावेजों के मुताबिक, जिन वालंटियर्स को वैक्सीन दी गई उनमें बुखार, शरीर में दर्द, शरीर का तापमान बढ़ना, जहां इंजेक्शन लगा वहां खुजली होना और सूजन जैसे साइडइफेक्ट दिखे। इसके अलावा शरीर में ऊर्जा महसूस न होना, भूख न लगना, सिरदर्द, डायरिया, गले में सूजन, नाक का बहना जैसे साइड इफेक्ट कॉमन थे।
- जब वैक्सीन की पहली डोज पुतिन की बेटी को दी गई तो शरीर का तापमान पहले एक डिग्री बढ़ा फिर कम हुआ। लेकिन राष्ट्रपति पुतिन ने दावा किया कि, मेरी बेटी के शरीर में एंटीबॉडीज बढ़ी हैं।
- दूसरा दावा : रूस के रक्षा मंत्रालय ने कहा, हम वैक्सीन तैयार करने में दूसरों से कई महीने आगे चल रहे हैं। इसी महीने में बड़े स्तर पर तीन और ट्रायल किए जाएंगे। फिर रजिस्ट्रेशन के बाद राष्ट्रपति पुतिन ने कहा कि वैक्सीन से जुड़े सभी जरूरी ट्रायल पूरे हो गए हैं।
- सच्चाई: रूस ने अब तक वैक्सीन के जितने भी ट्रायल किए हैं उससे जुड़ा साइंटिफिक डाटा पेश नहीं किया। तीसरे चरण का ट्रायल किया है या नहीं, इस पर भी संशय है। WHO ने रूस द्वारा बनाई गई कोरोना की वैक्सीन को लेकर कई तरह की शंकाएं जताई हैं।
- संगठन के प्रवक्ता क्रिस्टियन लिंडमियर ने प्रेस ब्रीफिंग के दौरान कहा कि अगर किसी वैक्सीन का तीसरे चरण का ट्रायल किए बगैर ही उसके उत्पादन के लिए लाइसेंस जारी कर दिया जाता है, तो इसे खतरनाक मानना ही पड़ेगा। दस्तावेज भी कहते हैं, जो भी ट्रायल हुए हैं वो मात्र 42 दिन के अंदर पूरे हो गए हैं।
- तीसरा दावा : रक्षा मंत्रालय ने कई बार बयान दिया है कि वैक्सीन सुरक्षित है।
- सच्चाई : दुनियाभर में जो भी वैक्सीन के ट्रायल चल रहे हैं शोधकर्ता इससे जुड़ा डाटा और अहम जानकारियां साझा कर रहे हैं। WHO को भी हर जानकारी दी जा रही है। लेकिन रूसी वैक्सीन में मामले में ऐसा नहीं है। ट्रायल से जुड़ी जानकारी सिर्फ बयानों में ही सामने आई है।
- इसे साइंटिफिक जर्नल या WHO से साझा नहीं किया गया। इस पर WHO ने कहा है, रूस ने वैक्सीन बनाने के लिए तय दिशानिर्देशों का पालन नहीं किया है, ऐसे में इस वैक्सीन की सफलता और सुरक्षा पर भरोसा करना मुश्किल है। वैक्सीन उत्पादन के लिए कई गाइडलाइन्स बनाई गई हैं, जो टीमें भी ये काम कर रहीं हैं उन्हें इसका पालन करना ही होगा।
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने अपनी वेबसाइट पर क्लीनिकल ट्रायल से गुजर रहीं 25 वैक्सीन सूचीबद्ध की हैं, जबकि 139 वैक्सीन अभी प्री-क्लीनिकल स्टेज में हैं।
- चौथा दावा : रूसी सरकार और वैक्सीन तैयार करने वाले अलग-अलग बयान दे रहे। सरकार कह रही ट्रायल में अब तक कोई साइडइफेक्ट नहीं दिखा। वैक्सीन तैयार करने वाले गामालेया नेशनल रिसर्च सेंटर ने कहा, बुखार आ सकता है। लेकिन इसे पैरासिटामॉल की टेबलेट देकर ठीक किया जा सकता है।
- सच्चाई : दस्तावेज कहते हैं कि साइडइफेक्ट केवल बुखार तक ही सीमित नहीं है। रशियन न्यूज एजेंसी फोटांका का दावा है कि वॉलंटियर्स के शरीर में दिखने वाले साइडइफेक्ट की लिस्ट लम्बी है। इस पर अब गामालेया रिसर्च सेंटर का कहना है कि इतने कम लोगों पर हुई रिसर्च के आधार पर यह पुख्ता तौर पर कहना मुश्किल है कि कौन सा साइड इफेक्ट पुख्ता तौर पर दिखेगा।
- दस्तावेजों के मुताबिक, 38 वॉलंटियर्स में 144 तरह के साइडइफेक्ट देखे गए हैं। ट्रायल के 42 वें दिन भी 38 में से 31 वॉलंटियर्स इन साइडइफेक्ट से जूझ रहे हैं। इसमें 27 तरह के साइडइफेक्ट ऐसे भी हैं जिनकी वजह वैक्सीन बनाने वाले इंस्टीट्यूट को भी समझ नहीं आ रही है।
- पांचवा दावा : पुतिन ने कहा, वैक्सीन का डोज लेने के बाद बेटी में काफी मात्रा में एंटीबॉडीज बनीं।
- सच्चाई : दस्तावेजों से यह जानकारी सामने आई है कि डोज देने के बाद वॉलंटियर्स ने एंटीबॉडीज औसत स्तर से भी कम बनीं।
WHO ही नहीं, दुनियाभर के विशेषज्ञ सवाल उठा रहे
यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन के प्रोफेसर फ्रेंकॉयज बैलक्स कहते है, रशिया का ऐसा करना शर्मानाक है। यह बेहद घटिया निर्णय है। ट्रायल की गाइडलाइन का नजरअंदाज करके वैक्सीन को बड़े स्तर पर लोगों को देना गलत है। इंसान की सेहत पर इसके गलत प्रभाव पड़ेगी।
जर्मनी के स्वास्थ्य मंत्री जेंस स्पान के मुताबिक, रशियन वैक्सीन की पर्याप्त जांच नहीं की गई है। इसे लोगों को देना खतरनाक साबित हो सकता है। वैक्सीन सबसे पहले बने इससे ज्यादा जरूरी है यह सुरक्षित हो।
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राष्ट्रपति पुतिन की बेटी को वैक्सीन देने के बाद शरीर का तापमान गिरा, दूसरी डोज के बाद टेम्प्रेचर फिर बढ़ा; काफी मात्रा में एंटीबॉडीज बनीं
आधिकारिक तौर पर कोरोना की वैक्सीन रजिस्टर करने वाला रूस दुनिया का पहला देश बन गया है। वैक्सीन का पहला डोज राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की बेटी को दिया गया। उन्हें दो डोज दिए गए। डोज देने के बाद शरीर के तापमान में बदलाव रिकॉर्ड किया गया। पुतिन के मुताबिक, पहली डोज देने पर उसके शरीर का तापमान 38 डिग्री था। वैक्सीन की दूसरी डोज दी गई तो तापमान 1 डिग्री गिरकर 37 डिग्री हो गया। लेकिन कुछ समय बाद दोबारा तापमान बढ़ा, जो धीरे-धीरे सामान्य हो गया।
दो बेटी में किसे लगा यह नहीं बताया
पुतिन की दो बेटियां हैं, मारिया और कैटरीना। वैक्सीन दोनों में से किसको लगी है पुतिन ने यह साफ नहीं किया है लेकिन उनका कहना है कि टीका लगने के बाद वह अच्छा महसूस कर रही है। उसमें काफी संख्या में एंटीबॉडीज बनी हैं। वैक्सीन कई तरह की जांच से गुजर चुकी है और यह सुरक्षित साबित हुई है।
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