Wednesday, October 14, 2020
सावधान! बड़ी बीमारी का संकेत हो सकते हैं महिलाओं के शरीर में दिखने वाले ये लक्ष्ण
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The thing we are getting WRONG about herd immunity
बुजुर्ग दोस्त की याद में 10 साल का मैक्स 200 दिनों से टेंट में सो रहा, कहा; दोस्त ने कहा था असली एडवेंचर सिर्फ प्रकृति के बीच रहकर महसूस किया जा सकता है
यह कहानी दो दोस्तों की है। इनमें एक अब इस दुनिया में नहीं है। और उसी की याद में दूसरा दोस्त पिछले 200 दिनों से टेंट में सो रहा है। इंग्लैंड के शहर ब्रॉनटॉन में रहने वाले 10 साल के मैक्स वूसे की अपने पड़ोस में रहने वाले 74 साल के रिक से गहरी दोस्ती थी। रिक की पत्नी की 2017 में मौत हो गई थी और इस साल फरवरी में रिक की भी कैंसर से मौत हो गई थी। रिक के बीमारी से जूझते आखिरी दिनों में मैक्स उसके साथ रहा। अब रिक की याद में मैक्स टेंट में सोता है।
रिक की इच्छा को पूरा कर रहा मैक्स
मैक्स बताता है कि रिक की इच्छा थी कि वह प्रकृति के बीच रहे। पेड़-पौधों से लगाव रखे। रिक ने कहा था कि नेचर के बीच रहकर तुम खुद को जान सकोगे। जिंदगी में असली एडवेंचर सिर्फ प्रकृति के बीच रहकर महूसस किया जा सकता है। फरवरी में लॉकडाउन के बाद से मैक्स रात में अपने घर के बगीचे में लगे टेंट में ही सो रहा है।
सर्दियों के कारण पिता टेंट की जगह कैंपिंग गियर लगाएंगे
मैक्स के दिन की शुरुआत सुबह-सुबह पंछियों की चहचहाहट से शुरू होती है। वह प्राकृतिक हवा का आनंद ले रहा है। हालांकि उसके टेंट में चींटियों ने एक बिल बना लिया है, जिससे वह थोड़ा परेशान है और अब सर्दियों के कारण उसके पिता टेंट के स्थान पर कैंपिंग गियर लगाने वाले हैं।
यहां देर रात कॉमिक्स पढ़ने पर कोई टोकता नहीं
मैक्स मज़ाक में कहता है कि यहां सोने का एक फायदा यह भी है कि उसे देर रात तक कॉमिक्स पढ़ने पर उसके माता-पिता नहीं टोक पाते। टेंट में सोने के कारण वह अब देर रात तक टीवी भी नहीं देख पाता और गैजेट्स से भी दूर रहता है। मैक्स ने रिक की देखभाल करने वाले नॉर्थ डेवोन हॉस्पिटल के लिए ऑनलाइन 15 लाख रुपए भी जुटाए हैं।
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सिर्फ कोरोना से नहीं, डायरिया, निमोनिया और बैक्टीरिया संक्रमण से दूर रहना है तो भी हाथों को 20 सेकंड तक धोना न भूलें; 4 कारणों से समझें यह क्यों जरूरी
दुनियाभर में 240 करोड़ लोग हाथों को साफ नहीं रख पाते। 20 फीसदी लोग ही दुनियाभर में हाथों की सफाई का ध्यान रखते हैं। एक्सपर्ट कहते हैं, इस साल भले ही कोरोना के डर के कारण लोगों ने हाथों को साफ रखने की आदत डाल ली है लेकिन आगे भी संक्रामक रोगों से बचना है तो इस आदत को बरकरार रखना होगा। विश्व स्वास्थ्य संगठन और सीडीसी कहता है, संक्रमण खत्म करने के लिए हाथों को कम से कम 20 सेकंड तक धोना जरूरी है।
ब्रिटेन में हुई रिसर्च के मुताबिक, कोरोना के संक्रमण का खतरा 90 फीसदी तक घटाना है तो दिन में कम से कम 6 बार हाथ धोएं और मास्क लगाएं। गंदे हाथों से सबसे ज्यादा बीमारियां बच्चों में फैलती है, इनमें निमोनिया और डायरिया सबसे कॉमन है। वर्ल्ड बैंक की रिपोर्ट कहती है- हाथों को साफ न रखने के कारण दुनियाभर के देशों को 19 लाख करोड़ रुपए अतिरिक्त खर्च करने पड़ते हैं।
आज ग्लोबल हैंड वॉशिंग डे है। इस साल की थीम है 'हैंड हाइजीन फॉर ऑल' यानी सभी को हाथों की साफ-सफाई का ध्यान रखना जरूरी है। आज से तय कीजिए दिनभर में कम से कम 6 बार हाथ धोने की आदत डालेंगे सिर्फ कोरोना से बचने के लिए नहीं, जीवनभर बीमारियों से दूर रहने के लिए। जानिए हाथों को कैसे धोएं, कब धोएं और यह कितना जरूरी है ...
दिन में कई बार साबुन से हाथों को धोना क्यों जरूरी, इन 4 फायदों से समझें
1. पेट और सांस की बीमारियों का खतरा घटाने के लिए हाथों की सफाई जरूरी
मुम्बई के जसलोक हॉस्पिटल की क्रिटिकल केयर कंसल्टेंट डॉ. श्रुति टंडन ने बताया- पेट की बीमारियां, सांस से जुड़े रोग और संक्रमण के जरिए फैलने वाली बीमारियों से बचना है तो हाथों को धोना जरूरी है।
अगर हाथ काफी गंदे हैं या आपने किसी ऐसे इंसान को छुआ है, जिसकी इम्युनिटी कम है तो हाथों को 3 मिनट तक धोना चाहिए। यह नियम हॉस्पिटल में फॉलो किया जा रहा है।
अगर आपके पास लिक्विड सोप है तो यह हाथों को धोने का और भी बेहतर विकल्प है। अगर एक ही साबुन कई लोग इस्तेमाल कर रहे हैं तो भी 3 मिनट तक हाथों को धोएं।
2. सैनेटाइजर का अधिक इस्तेमाल से हाथों में दाने, खुजली और ड्रायनेस बढ़ सकती है
स्किन एक्सपर्ट डॉ. यू.एस. अग्रवाल कहते हैं, हाथों को साफ करने के लिए साबुन-पानी ही सबसे बेहतर विकल्प है। अधिक सैनेटाइजर का इस्तेमाल करने से बचें। इसमें मौजूद एथेनॉल, एन-प्रोपेनॉल, आइसोप्रोपिल ड्राई एल्कोहल हाथों की प्राकृतिक नमी को नष्ट करते हैं। केमिकल के कारण रोमछिद्र शुष्क हो जाते हैं। सैनिटाइजर का अधिक इस्तेमाल करने पर स्किन एलर्जी, सिरदर्द और चक्कर आने की समस्या हो सकती है। यह हाथों में दाने, खुजली और खुरदरेपन की वजह भी बन सकता है।
3. सिर्फ कोरोना ही नहीं कई खतरनाक वायरस और बैक्टीरिया से भी बचाव होगा
विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट कहती है, अक्सर हेल्थ केयर वर्कर्स से संक्रमण मरीज तक फैलने का खतरा रहता है। हॉस्पिटल्स में भर्ती में मरीज अक्सर समझ नहीं पाते है कि वो नए संक्रमण से भी जूझ रहे हैं। इसलिए हाथों को साफ रखना जरूरी है। हेल्थ केयर स्टाफ के जरिए कुछ खास वायरस और बैक्टीरिया का संक्रमण फैल सकता है। इसके कुछ उदाहरण हैं- हेपेटाइटिस-ए वायरस, नोरोवायरस, रोटावायरस, एडिनोवायरस, कैंडिला, स्यूडोमोनास और स्टेफायलोकोकस ऑरेयस।
4. दिन में 6 बार हाथों को साबुन से धोते हैं तो कोरोना का खतरा 90% घटता है
ब्रिटेन की यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन की रिसर्च कहती है दिन में कम से कम 6 बार साबुन से हाथ धोते हैं और मास्क लगाते हैं तो कोरोना का खतरा 90% तक खत्म किया जा सकता है। 1663 लोगों पर रिसर्च करने के बाद यह बात साबित भी हुई है। वैज्ञानिकों का कहना है, महामारी के इस दौर में दिन में कम से कम 6 बार और अधिकतम 10 बार हाथ धोना जरूरी।
हाथ कब-कब धोना है ये भी समझें
आमतौर पर घर से निकलने से पहले और अपनी मंजिल पहुंचने के बाद हाथ जरूर धोएं। खाने बनाने, खाने से पहले और खाना बनाने के बाद हाथ धोएं। घर में सफाई के बाद, बच्चे का डायपर बदलने के बाद, शॉपिंग कार्ट छूने के बाद, बाथरूम का इस्तेमाल करने के बाद, खांसने या छींकने के बाद, पालतू जानवर को छूने के बाद और कचरा फेंकने के बाद भी हाथ धोना जरूरी है।
हाथ साफ करते समय 20 तक गिनती गिनें
संक्रमण से बचाव को बचाव का सबसे बेहतर तरीका है कि बार-बार हाथ धोएं, लेकिन ज्यादातर लोग इसका सही तरीका नहीं जानते। इसके लिए अपने हाथ में पानी और साबुन लें। 20 तक उल्टी गिनती शुरू करें और इस दौरान कलाई और नाखूनों को अच्छे से धोएं। हाथ को एयर ड्रायर से मत सुखाएं, यह एक बड़ी गलती है। हाथ सुखाने के लिए टॉवेल का इस्तेमाल करें और नल बंद करने के लिए भी तौलिए का इस्तेमाल करें ताकि दोबारा हाथ में संक्रमण का खतरा न रहे।
कोलोराडो स्कूल ऑफ मेडिसन के प्रोफेसर डॉ. अदित गिंडे के मुताबिक, आपके हाथ ही सांस नली तक सारे कीटाणु को ले जाते हैं, इसलिए इसे जितना साफ रख सकें उतना बेहतर है।
12 साल का हुआ ग्लोबल हैंड वॉशिंग डे
ग्लोबल हैंड वॉशिंग डे की नींव अगस्त 2008 में स्वीडन के स्टॉकहोम में वर्ल्ड वाटर वीक के दौरान पड़ी। पहली बार यह दिन 15 अक्टूबर 2008 को सेलिब्रेट किया गया। संयुक्त राष्ट्र महासभा ने इस दिन की शुरुआत की। इस पहल की शुरुआत के कारण 2008 को इंटरनेशनल ईयर ऑफ सैनिटाइजेशन भी घोषित किया गया।
इस दिन को मनाने जाने का मकसद हाथों के जरिए फैलने वाले बैक्टीरिया, वायरस और दूसरे जर्म्स को रोकना है। पहली बार यह दिन स्कूली बच्चों के बीच सेलिब्रेट किया गया था।
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दुर्लभ ब्रह्मकमल से लहलहाया हिमालय, ब्रह्माजी ने भगवान शिव को खुश करने के लिए इस फूल की रचना की थी, देखिए मन को सुकून पहुंचाने वाली खूबसूरत तस्वीरें
उत्तराखंड के रूपकुंड का आखिरी बेसकैंप बघुवाशा ब्रह्मकमल के फूलों से लकदक है। करीब 14500 फीट की ऊंचाई पर स्थित इस हिमालयी क्षेत्र में सबसे अधिक दुर्लभ ब्रह्मकमल और नीलकमल खिलते हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि इस बार यहां लंबे समय तक बारिश होने से ब्रह्मकमल अक्टूबर में भी खिले हुए हैं। तस्वीर के बैकग्राउंड में बर्फ से ढंकी नंदाघूंघटी और त्रिशूल पर्वत हैं।
धार्मिक मान्यताओं का हिस्सा है ब्रह्मकमल
ब्रह्मकमल यानी 'ब्रह्मा का कमल'। मान्यता है कि भगवान शिव को खुश करने के लिए ब्रह्माजी ने ब्रह्मकमल की रचना की थी। उत्तराखंड में मान्यता है कि शिव मां नंदा देवी के साथ यात्रा कर रहे थे, तब नंदा देवी ने अपना वाहन बाघ यहीं छोड़ा था। इसलिए इस जगह को बघुवाशा भी कहा जाता है।
इस पुष्प की मादक सुगंध का उल्लेख महाभारत में भी मिलता है जिसने द्रौपदी को इसे पाने के लिए व्याकुल कर दिया था। कहते हैं कि जब भगवान विष्णु हिमालय क्षेत्र में आए तो उन्होंने भोलेनाथ को 1000 ब्रह्मकमल चढ़ाए, जिनमें से एक पुष्प कम हो गया था। तब विष्णु भगवान ने पुष्प के रुप में अपनी एक आंख भोलेनाथ को समर्पित कर दी थी। तभी से भोलेनाथ का एक नाम कमलेश्वर और विष्णु भगवान का नाम कमल नयन पड़ा।
क्यों खास है ब्रह्मकमल
ब्रह्मकमल एस्टेरेसी फैमिली का पौधा है। सूर्यमुखी, गेंदा, डहेलिया, कुसुम और भृंगराज इसी फैमिली के फूल हैं। दुनियाभर में ब्रह्मकमल की कुल 210 प्रजातियां पाई जाती हैं। जिनमें भारत में 61 प्रजातियां मौजूद हैं। उत्तराखंड में ब्रह्म कमल,फैन कमल, कस्तूरबा कमल प्रजाति के फूल बैगनी रंग के होते हैं।
यह मां नन्दा का प्रिय पुष्प है। इसे नन्दाष्टमी के समय में तोड़ा जाता है और इसके तोड़ने के भी सख्त नियम होते हैं जिनका पालन किया जाना अनिवार्य होता है।
दिन में नहीं सूर्यास्त के बाद खिलता है
ब्रह्मकमल दूसरे फूलों की तरह सुबह नहीं खिलता है। यह ऐसा फूल है जिसे खिलने के लिए सूर्य के अस्त होने का इंतजार करना पड़ता है। इसका खिलना देररात शुरू होता है दस से ग्यारह बजे तक यह पूरी तरह से खिल जाता है। भारत मेंं यह हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, सिक्किम, अरूणाचल प्रदेश और कश्मीर में पाया जाता है। भारत के अलावा ब्रह्मकमल नेपाल, भूटान, म्यांमार और पाकिस्तान में भी पाया जाता है।
27 किमी की यात्रा में 20 किमी खड़ी चढ़ाई
हर 12 साल में नंदा देवी राजजात यात्रा इस मार्ग से निकलती है। अब यह यात्रा 2024 में होनी है। रूपखंड से बघुवाशा पहुंचने में तीन दिन लगते हैं। 27 किमी की यात्रा में 20 किमी की खड़ी चढ़ाई है। ऑक्सीजन की कमी महसूस होती है। सालभर तापमान 0 डिग्री, सर्दियों में माइनस 20 डिग्री तक चला जाता है। यहां कस्तूरी मृग, भालू, हिम तेंदुए भी मिलते हैं।
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