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जानवरों को जलवायु परिवर्तन से बचाने के लिए वैज्ञानिकों ने जीन एडिटिंग का तरीका चुना है। प्रयोग गायों पर किया गया है। आमतौर पर इनके शरीर पर काले चक्कते दिखते हैं लेकिन वैज्ञानिकों ने जीन एडिटिंग तकनीक से इसका रंग ग्रे कर दिया है। यह प्रयोग करने वाले न्यूजीलैंड के रुआकुरा रिसर्च सेंटर के वैज्ञानिकों का दावा है, जलवायु परिवर्तन का असर बढ़ने पर तापमान बढ़ेगा। ऐसे में गायों के शरीर पर यह ग्रे रंग गर्माहट को कम अवशोषित करेगा और उन्हें नुकसान कम पहुंचेगा।
क्या है जीन एडिटिंग
जीन एडिटिंग की मदद डीएनए में बदलाव किया जाता है। आसान भाषा में समझें तो भ्रूण के जीन का डिफेक्टेड, गड़बड़ या गैरजरूरी हिस्सा हटा दिया जाता है ताकि अगली पीढ़ी में इसका गलत असर न दिखे। इस तकनीक की मदद से आनुवंशिक रोगों में सुधार की उम्मीद बढ़ जाती है।
ऐसे तैयार हुई जेनेटिकली मोडिफाइड गाय
वैज्ञानिकों ने लैब में बछड़े के 2 भ्रूण तैयार किए। जीन एडिटिंग के जरिए भ्रूण के जीन का वो हिस्सा हटा दिया जो काले रंग के चकत्ते के लिए जिम्मेदार है। फिर इस भ्रूण को गाय में ट्रांसफर कर दिया। गाय ने दो बछड़ों को जन्म दिया। 4 महीने के बाद दो में से एक बछड़े की मौत हो गई। एक बछड़े के शरीर पर ग्रे रंग के चकत्ते थे।
जलवायु परिवर्तन से कैसे लड़ेंगीं गाय और फायदा क्या होगा
वैज्ञानिकों का दावा है कि काला रंग सूर्य की रोशनी से निकली गर्माहट को अधिक अवशोषित करता है। जब सूर्य की किरणें जानवरों पर पड़ती हैं तो काले चकत्ते वाल हिस्सा इन्हें अधिक अवशोषित करता है और ये हीट स्ट्रेस का कारण बनती हैं। हीट स्ट्रेस का बुरा असर जानवरों में दूध की मात्रा और बछड़ों को पैदा करने की क्षमता पर पड़ता है।
जलवायु परिवर्तन के कारण होने वाला हीट स्ट्रेस कितना खतरनाक
रिसर्च कहती है, जलवायु परिवर्तन के कारण तापमान बढ़ रहा है, इसलिए गर्माहट में इजाफा हो रहा है। गर्मियों के महीने में डेयरी फार्म के जानवर 25 से 65 डिग्री फारेनहाइट तापमान तक गर्मी सहन कर लेते हैं। लेकिन जब तापमान 80 डिग्री फारेनहाइट तक पहुंच जाता है तो हीट स्ट्रेस बढ़ जाता है। नतीजा, ये चारा खाना कम कर देते हैं। इसके कारण दूध का उत्पादन घट जाता है। हीट स्ट्रेस के कारण जानवरों की फर्टिलिटी पर भी बुरा असर पड़ता है। न्यूजीलैंड के वैज्ञानिकों की टीम इन्हीं समस्याओं का समाधान करने की कोशिश में जुटी हैं।
परिस्थितियां कैसी भी हो, मां हमेशा अपने बच्चों की रक्षा करती है। कोरोना काल में भी यह बात साबित हुई है। मां इस महामारी में भी बच्चों के लिए ढाल बन रही है। मां का दूध रक्षा कवच बना हुआ है। मां भले ही कोरोना पॉजिटिव रही हो, लेकिन उसका बच्चे को संक्रमण नहीं लगा। कोरोना काल के दौरान गुजरात में सूरत के दो सरकारी अस्पताल में 241 कोरोना पॉजिटिव गर्भवती महिलाओं की डिलीवरी हुई। इनमें से मात्र 13 के नवजात ही कोरोना पॉजिटिव पैदा हुए।
नवजात में लक्षण नहीं मिले
प्रोटोकाल के अनुसार अन्य नवजातों का टेस्ट हुआ। लेकिन कोरोना के कोई भी लक्षण उनमें नहीं मिले और न ही अब तक इन बच्चों को कोई समस्या हुई है। वहीं 228 बच्चे कोरोना निगेटिव मिले। इस दौरान कोरोना पॉजिटिव मां का इलाज होता रहा। बच्चे दूध पीते रहे, लेकिन किसी भी बच्चे को कोई समस्या नहीं हुई। कुछ दिन के बाद उन्हें डिस्चार्ज कर दिया गया।
7 हजार डिलीवरी हुई, सभी बच्चे सुरक्षित
कोरोना काल में सिविल और स्मीमेर अस्पताल में 7 हजार डिलीवरी हो चुकी हैं। ज्यादातर बच्चे निगेटिव हैं। अब तक जितने भी संक्रमित हुए, उनमें से किसी की भी मौत नहीं हुई। स्मीमेर अस्पताल के गायनी विभाग के एचओडी डॉ. अश्विन वाछानी ने बताया कि मां भले भी कोरोना पॉजिटिव हो, पर उसके दूध में इतनी ताकत है कि बच्चे को मामूली समस्या भी नहीं होती। इस बात की पुष्टि कोरोना काल के आंकड़े भी कर रहे हैं।
रिसर्च में भी पुष्टि हुई, मां का दूध सेफ है
डिलीवरी के बाद कोरोना पीड़ित मां से उसके नवजात बच्चे को कोरोना का संक्रमण हो रहा है या नहीं, इसे समझने के लिए हाल ही में एक रिसर्च हुई। 120 नवजातों में पर हुई रिसर्च में सामने आया कि अगर जरूरी सावधानी बरती जाए तो संक्रमित मां से जन्मे बच्चे को कोविड-19 नहीं हो सकता। जन्म के दो हफ्ते बाद तक ब्रेस्टफीडिंग कराने और स्किन-टू-स्किन कॉन्टेक्ट करने पर भी संक्रमण नहीं फैलता।
ब्रेस्टफीडिंग सेफ है
महामारी की शुरुआत में विशेषज्ञों ने मां और नवजात बच्चे को अलग-अलग रखने की बात कही थी। लेकिन हाल ही में विश्व स्वास्थ्य संगठन और अमेरिकन एकेडमी ऑफ पीडियाट्रिक्स ने कहा, अगर सावधानी बरती जाती है तो मां नवजात को ब्रेस्टफीडिंग करा सकती है, यह सेफ है। लैंसेट जर्नल में प्रकाशित शोध के मुताबिक, अच्छी सेहत के लिए मां और नवजात को एक-दूसरे का शारीरिक स्पर्श बेहद जरूरी है।
ऐसे हुई रिसर्च
न्यूयॉर्क के तीन अस्पतालों में 120 नवजातों पर 22 मार्च से 17 मई के बीच रिसर्च हुई। जन्म के 24 घंटे के अंदर इनका कोविड-19 टेस्ट हुआ। 79 नवजातों की 5 से 7 दिन में दोबारा कोविड-19 जांच हुई। इसमें 72 नवजातों का दो हफ्ते बाद एक बार फिर कोरोना टेस्ट हुआ। किसी भी नवजात की रिपोर्ट पॉजिटिव नहीं आई और न ही कोई लक्षण दिखा।
इन बातों का ध्यान रखने की जरूरत
शोधकर्ताओं के मुताबिक, नवजात को उठाते वक्त और ब्रेस्टफीडिंग कराते समय कुछ सावधानी बरतने की जरूरत है। जैसे- मां को सर्जिकल मास्क पहनना चाहिए, ब्रेस्टफीडिंग कराने से पहले स्तन को वॉश करना जरूरी और हाथों को साबुन से धोएं।
