Tuesday, October 27, 2020
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Daily horoscope for October 28: YOUR star sign reading, astrology and zodiac forecast
दर्द वाली जगह पर इंजेक्शन से दी दवा; चक्कर आना, पेट दर्द, उल्टी जैसे साइड इफेक्ट नहीं दिखे
भारतीय वैज्ञानिकों ने गठिया के मरीजों को दवा के साइड इफेक्ट से बचाने का नया तरीका खोजा है। दवा को सीधे दर्द और सूजन वाली जगह इंजेक्ट करने पर मरीजों में उल्टी, सिरदर्द जैसे साइड इफेक्ट नजर नहीं आए। साथ ही इसका असर भी लंबे समय तक रहा।
पंजाब की लवली प्रोफेशनल यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर भूपिंदर कपूर ने इस पर रिसर्च की है। वो कहते हैं कि गठिया में आमतौर पर मरीजों को सल्फापायरीडाइन दवा दी जाती है। इसके कई साइडइफेक्ट होते हैं। दवा इंजेक्ट करने से वो सीधे दर्द वाले हिस्से तक पहुंचती है और यह तरीका सुरक्षित है।
उन्होंने बताया," सल्फापायरीडाइन गठिया की तीसरी सबसे पुरानी दवा है। लंबे समय तक इस दवा को लेने से चक्कर आना, पेट में दर्द, उल्टी होना, जी मिचलाना और स्किन पर चकत्ते पड़ने जैसे साइडइफेक्ट नजर आते हैं। दर्द वाली जगह पर दवा इंजेक्ट करने से यह शरीर में फैले बिना प्रभावित हिस्से को फायदा पहुंचाती है।इस नए तरीके का ट्रायल भी किया जा चुका है।"
असर नजर आया,सूजन कम हुई
रिसर्च के दौरान आर्थराइटिस से जूझ रहे चूहे को जब यह दवा नए तरीके से दी गई तो उसमें सूजन कम हुई। पता चला कि पुराने तरीके से दवा दिए जाने पर मेटाबॉलिज्म पर भी असर पड़ता है। मैटेरियल साइंस एंड इंजीनियरिंग-सी जर्नल में पब्लिश रिसर्च कहती है कि सल्फापायरीडाइन के मॉलीक्यूल शरीर में घुलने में काफी समय लेते हैं। इसलिए वैज्ञानिकों ने इस दवा को इंजेक्शन की फॉर्म में तैयार किया। चूहे पर इसके इस्तेमाल से पता चला कि दवा का असर भी ज्यादा वक्त तक रहा और साइड इफेक्ट भी नजर नहीं आए।
रिसर्च टीम के मुताबिक, टीम ने इसका पेटेंट फाइल किया है। दवा का प्री-क्लीनिकल ट्रायल पूरा हो चुका है। ड्रग कंट्रोलर ऑफ इंडिया से मंजूरी मिलने पर यह दवा लोगों के लिए उपलब्ध कराई जा सकेगी। यह रिसर्च लुधियाना के फॉर्टिस हॉस्पिटल और जेएसएस कॉलेज ऑफ फार्मेसी, तमिलनाडु के साथ मिलकर की गई।
क्या होता है गठिया
हड्डी रोग विशेषज्ञ डॉ. आदित्य पटेल के मुताबिक, गठिया दो तरह का होता है। पहला, ऑस्टियो आर्थराइटिस और दूसरा, रुमेटॉयड आर्थराइटिस। ऑस्टियो आर्थराइटिस बढ़ती उम्र वालों में ज्यादा होता है, जबकि रुमेटॉयड आर्थराइटिस कम उम्र में भी हो जाता है, यह अनुवांशिक होता है। करीब 20% यंगस्टर्स भी इससे परेशान हैं। घंटों एक ही स्थिति में बैठकर काम करना, बढ़ती धूम्रपान की आदत और तनाव इसकी बड़ी वजह हैं।
जोड़ों में अकड़न व सूजन, तेज दर्द, जोड़ों से तेज आवाज आना, उंगलियों या दूसरे हिस्से का मुड़ने लगना जैसे लक्षण दिखने पर अलर्ट हो जाएं। बीमारी की शुरुआत में जोड़ों में अकड़न के साथ दर्द होना शुरू होता है। कुछ समय बाद जोड़ों में तेज दर्द होने लगता है और सूजन आने लगती है।
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November horoscope 2020: What's the horoscope for November?
नवजातों के आंखों की रोशनी लौटाने वाला आईड्रॉप खोजा गया, यह उस बैक्टीरिया को खत्म करेगा जिस पर दवाएं बेअसर हो रहीं
वैज्ञानिकों ने ऐसे आई ड्रॉप की खोज की है जो नवजातों में अंधेपन की समस्या को दूर कर सकता है। इसकी वजह नाइसेरिया गोनोरोहिया नाम का बैक्टीरिया है जिस पर दवाओं का असर नहीं हो रहा। यह बैक्टीरिया संक्रमित मां से नवजात में पहुंचता है और अंधेपन का कारण बनता है।
आई ड्रॉप को तैयार करने वाली ब्रिटेन की किंग्सटन यूनिवर्सिटी का दावा है कि इससे आंखों में बैक्टीरिया के संक्रमण को ठीक किया जा सकता है। यह दवा नवजातों में जलन भी नहीं करती।
मां से बच्चे में फैलता है यह बैक्टीरिया
वैज्ञानिकों का कहना है, नाइसेरिया गोनोरोहिया नाम का बैक्टीरिया सेक्सुअल ट्रांसमिशन के दौरान पिता से मां में पहुंचता है और मां से यह नवजात में आता है। इस बैक्टीरिया पर एंटीबायोटिक दवाएं दिन-प्रतिदिन बेअसर साबित हो रही हैं। इसका असर नवजातों की आंखों पर पड़ रहा है। अगर इसके संक्रमण का इलाज नहीं होता है तो नवजात की रोशनी हमेशा के लिए जा सकती है।
एंटीमाइक्रोबियल एजेंट मोनोकाप्रिन सस्ता विकल्प
वैज्ञानिकों का कहना है, आई ड्रॉप में एंटी माइक्रोबियल एजेंट मोनोकाप्रिन का प्रयोग किया है। लम्बे समय से इसका अध्ययन किया जा रहा था। रिसर्च के मुताबिक, एंटीमाइक्रोबियल एजेंट मोनोकाप्रिन बैक्टीरिया से लड़ने का सस्ता विकल्प है। दुनिया के किसी भी हिस्से में यह उपलब्ध कराया जा सकता है।
नई दवा के खिलाफ प्रतिरोधक क्षमता विकसित करना मुश्किल
रिसर्चर डॉ. लोरी सिंडर के मुताबिक, कई तरह के बैक्टीरिया पर एंटीबायोटिक्स बेअसर साबित हो रहे हैं। इसलिए इन्हें खत्म करने के लिए नए विकल्प का ढूंढा जाना जरूरी है। इसीलिए हमनें मोनोकाप्रिन का प्रयोग किया। बैक्टीरिया के लिए इस दवा के खिलाफ प्रतिरोधक क्षमता विकसित करना मुश्किल होगा।
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