Tuesday, September 15, 2020
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हल्के नीले रंग की ओजोन गैस की सुरक्षा छतरी न रहे तो इंसानी जीवन खत्म कर देंगी सूरज की किरणें, लॉकडाउन में इसका सबसे गहरा घाव भर गया
इंसानों को कई जानलेवा बीमारियों से बचाने वाली ओजोन लेयर के लिए लॉकडाउन राहत वाला समय कहा जा सकता है। देश में लॉकडाउन का जो असर हुआ, उसका एक बड़ा फायदा ओजोन लेयर को भी मिला है।
एनसीबीआई जर्नल में प्रकाशित भारतीय वैज्ञानिकों की रिसर्च कहती है, दुनिया के कुछ देशों में 23 जनवरी से लॉकडाउन लगने के बाद प्रदूषण में 35 फीसदी की कमी और नाइट्रोजन ऑक्साइड में 60 फीसदी की गिरावट आई है। इसी दौरान ओजोन लेयर को नुकसान पहुंचाने वाले कार्बन का उत्सर्जन भी 1.5 से 2 फीसदी तक घटा और कार्बन डाई ऑक्साइड का लेवल भी कम हुआ। ये सभी ऐसे फैक्टर हैं, जो ओजोन लेयर को नुकसान पहुंचाते हैं।
इसी साल अप्रैल महीने की शुरुआत में ओजोन लेयर पर बना सबसे बड़ा छेद अपने आप ठीक होने की खबर भी आई। वैज्ञानिकों ने पुष्टि कि आर्कटिक के ऊपर बना दस लाख वर्ग किलोमीटर की परिधि वाला छेद बंद हो गया है।
सूर्य की खतरनाक पराबैंगनी किरणों को रोकने वाली इस लेयर को कोरोनाकाल में कितनी राहत मिली है, इस पर पूरी रिपोर्ट आनी बाकी है। पर्यावरणविद् शम्स परवेज के मुताबिक, लॉकडाउन के दौरान ओजोन लेयर को नुकसान पहुंचाने वाले कार्बन और दूसरी गैसों का उत्सर्जन 50 फीसदी तक घटा, जिसका पॉजिटिव इफेक्ट आने वाले समय में दिख सकता है। इस दौरान एयर ट्रैफिक 80 तक कम हुआ है, जो फिलहाल अच्छे संकेत रहे हैं। आज वर्ल्ड ओजोन डे है, इस मौके पर जानिए यह क्यों जरूरी है और क्या बढ़ते तापमान का असर इस पर पड़ेगा....
खबर से पहले ओजोन लेयर के बारे में ये 5 बातें समझें
1. ओजोन लेयर क्या है?
ओजोन लेयर दो तरह की होती है। एक फायदेमंद है और दूसरी नुकसानदेह।
- फायदे वाली ओजोन लेयर : ओजोन एक ऐसी पर्त है, जो सूर्य की ओर से आने वाली हानिकारक पराबैंगनी किरणों को सोखकर रोकने का काम करती हैं। ओजोन परत पृथ्वी के वातावरण के समताप मंडल के निचले हिस्से में में मौजूद है। सामान्य भाषा में समझें तो यह पराबैंगनी किरणों को छानकर पृथ्वी तक भेजती है। इसकी खोज 1957 में ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के प्रो. गॉर्डन डोब्सन ने की थी।
- नुकसान वाली ओजोन लेयर : यह ओजोन गैस की लेयर हमारे ब्रीदिंग लेवल (सांस लेने के स्तर पर) पर होती है, जो नुकसान पहुंचाती है। यह गाड़ियों और फैक्ट्री से निकलने वाले धुएं में मौजूद नाइट्रोजन ऑक्साइड से बनती है। यह कार्सिनोजेनिक होती है, जो कैंसर का कारण बन सकती है। हवा की जांच करके इसके स्तर को समझा जाता है।
1. ओजोन लेयर में छेद होने का मतलब क्या है?
इस लेयर में छेद होने पर सूर्य की पराबैंगनी किरणें सीधे धरती तक पहुंचेंगी। ये किरणें स्किन कैंसर, मलेरिया, मोतियाबिंद और संक्रमक रोगों का खतरा बढ़ाती हैं। अगर ओजोन लेयर का दायरा 1 फीसदी भी घटता है और 2 फीसदी तक पराबैंगनी किरणें इंसानों तक पहुंचती हैं तो बीमारियों का खतरा काफी हद तक बढ़ सकता है।
3. क्यों इस लेयर को पहुंच रहा नुकसान?
- ऐसे कॉस्मेटिक प्रोडक्ट और स्प्रे का इस्तेमाल हो रहा जिसमें क्लोरोफ्लोरो कार्बन पाए जाते हैं। ये ओजोन लेयर को नुकसान पहुंचाते हैं।
- स्मोक टेस्ट के मानकों पर न खरे उतरने वाले वाहनों से निकलता धुआं। इसमें कार्बन अधिक पाया जाता जो क्षरण का कारण बनता है।
- फसल कटाई के बाद बचे हुए हिस्सों को जलाने से निकलने वाला कार्बन स्थिति को और बिगाड़ रहा है।
- इसके अलावा प्लास्टिक व रबड़ के टायर और कचरे को जलाने से भी इस लेयर को नुकसान पहुंच रहा है।
- अधिक नमी वाला कोयला जलाने पर सबसे बुरा असर पड़ रहा है।
4. ओजोन को नुकसान पहुंचाने वाले कण बनते कैसे हैं?
- वातावरण में नाइट्रोजन ऑक्साइड और हाइड्रोकार्बन जब सूर्य की किरणों के साथ रिएक्शन करते हैं तो ओजोन प्रदूषक कणों का निर्माण होता है।
- वाहनों और फैक्ट्रियों से निकलने वाली कार्बन-मोनो-ऑक्साइड व दूसरी गैसों की रासायनिक क्रिया भी ओजोन प्रदूषक कणों की मात्रा को बढ़ाती हैं।
- वैज्ञानिकों के मुताबिक, 8 घंटे के औसत में ओजोन प्रदूषक की मात्रा 100 माइक्रोग्राम प्रति घनमीटर से अधिक नहीं होनी चाहिए।
5. कैसे शुरू हुई वर्ल्ड ओजोन डे की शुरुआत
ओजोन परत में हो रहे क्षरण को रोकने के लिए संयुक्त राष्ट्र ने पहल की। कनाडा के मॉन्ट्रियल में 16 सितंबर, 1987 को कई देशों के बीच एक समझौता हुआ, जिसे मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल कहा जाता है। इसकी शुरुआत 1 जनवरी, 1989 को हुई। इस प्रोटोकॉल का लक्ष्य वर्ष 2050 तक ओजोन परत को नुकसान पहुंचाने वाले रसायनों को कंट्रोल करना था। प्रोटोकॉल के मुताबिक, यह भी तय किया गया कि ओजोन परत को नष्ट करने वाले क्लोरोफ्लोरो कार्बन जैसी गैसों के उत्पादन और उपयोग को सीमित किया जाएगा। इसमें भारत भी शामिल था। इस साल वर्ल्ड ओजोन डे की थीम है 'ओजोन फॉर लाइफ' यानी धरती पर जीवन के लिए इसका होना जरूरी है।
इंसानों को नुकसान पहुंचाने वाली ओजोन गैस घटी या बढ़ी?
6 महीने के लॉकडाउन में 50 फीसदी से अधिक प्रदूषण का स्तर घटा है, लेकिन ओजोन गैस का स्तर सिर्फ 20 फीसदी तक ही कम हुआ है। इसका स्तर इतना ही क्यों हुआ इसके जवाब में शम्स परवेज कहते हैं, लॉकडाउन के दौरान जगहों को सैनेटाइज करने में लिए सोडियम हायपो-क्लोराइड का इस्तेमाल हुआ। इससे ब्रीदिंग लेवल पर बनने वाली ओजोन गैस का स्तर उतना नहीं गिरा, जितना गिरना चाहिए था।
दुनिया का तापमान बढ़ रहा है, इसका ओजोन लेयर पर क्या असर पड़ेगा
दुनिया में बढ़ता तापमान और इस लेयर के बीच कोई संबंध नहीं है। वायुमंडल का तापमान तब बढ़ता है, जब प्रदूषण के कारण पर्यावरण में मौजूद कण सूरज की गर्मी को अवशोषित करते हैं। इनमें सबसे ज्यादा कार्बन होते हैं। साउथ एशियाई देशों में प्रदूषण अधिक होने के कारण तापमान और भी बढ़ रहा है।
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एक्स-रे से भी कोरोना का पता लगा सकते हैं, जब नाक और गले से लिए नमूने निगेटिव आए तो वायरस फेफड़ों में मौजूद हो सकता है
केंद्र सरकार ने कोरोना के लक्षण वाले मरीजों का RT-PCR टेस्ट कराना अनिवार्य कर दिया है। हालांकि कई लोग रैपिड एंटीजन टेस्ट को लेकर भी सवाल उठा रहे हैं। कई बार कोरोना टेस्ट में एक बार पॉजिटिव आता है और एक बार नेगेटिव आता है, इसे कैसे समझें? चेस्ट एक्स-रे से कोरोना की जांच कब कराएं? ऐसे ही तमाम सवालों के जवाब दिए जीबी पंत हॉस्पिटल, नई दिल्ली के डॉ. संजय पांडेय ने।
चेस्ट एक्स-रे कब कराएं
कई जगह कोरोना के लिए चेस्ट एक्स-रे भी किया जा रहा है, ऐसे में एक्स-रे कितना कारगर है। इस पर उन्होंने कहा, RT-PCR जांच में नाक और गले से स्वॉब लेकर जांच करते हैं। लेकिन अगर वायरस गले से अंदर फेफड़े में पहुंच गया है और निमोनिया हो गया है तो एक्स-रे से हमें यह पता चल जाता है कि फेफड़ों में वायरस का असर कम है या ज्यादा है। दरअसल वायरस फेफड़े में पहुंचने पर काफी तेजी से बढ़ने लगता है और अपना असर छोड़ता है।
पॉजिटिव और नेगेटिव आने की क्या वजह हैं
डॉ. संजय ने बताया, अगर लक्षण होने के बावजूद रैपिड एंटीजन टेस्ट में निगेटिव आ जाए तो डॉक्टर RT-PCR करते हैं। तब कई बार पॉजिटिव आ जाता है। दरअसल, कई बार लोग सामान्य सर्दी-जुकाम से पीड़ित होते हैं तो भी उनका टेस्ट निगेटिव ही आता है। इसलिए परेशान होने की जरूरत नहीं है। रैपिड एंटीजन टेस्ट को गोल्ड स्टैंडर्ड नहीं मानते हैं, इसलिए RT-PCR टेस्ट करते हैं। लोगों को यही सलाह है कि कोरोना का टेस्ट सरकारी अस्पताल जाकर ही कराएं।
सर्दी में कितना परेशान करेगा कोरोना
अक्टूबर में ठंडी दस्तक देने लगती है, मौसम बदलने के साथ ही लोगों में वायरस के प्रकोप को लेकर काफी चिंता होने लगती है। कोरोना पर सर्दी के मौसम के प्रभाव पर डॉ. संजय ने कहा कि कोरोना का मौसम पर क्या प्रभाव पड़ेगा, अभी कुछ कहना मुश्किल है। पहले लगता था गर्मी में संक्रमण कम होगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। सर्दी आने वाली लेकिन पैनिक नहीं होना है, क्योंकि अभी सर्दी के लिए 2-3 महीने का वक्त है, उम्मीद है तब तक वैक्सीन आ जाए। वायरस की क्या स्थिति होगी, अभी कुछ भी कहा नहीं जा सकता है।
मास्क लगाकर 70 प्रतिशत हो सकते हैं सुरक्षित
- डॉ. संजय के मुताबिक, मास्क लगाकर खुद 70 प्रतिशत तक सुरक्षित रख सकते हैं। अगर कहीं भीड़ है तो वहां से जल्दी निकल जाएं।
- ध्यान रखें, भीड़ अगर बंद जगह में है, तो ज्यादा खतरा है, कहीं खुले में है, तो आशंका कम है। इसके अलावा हाथ धोते रहें।
- पानी नहीं है तो समय-समय पर सैनेटाइज़र का प्रयोग करें। किसी से भी बात करते वक्त दूरी रखें और मास्क जरूर लगाए रहें।
- अगर किसी को कोई लक्षण नजर आ रहा है या किसी संक्रमित के संपर्क में आए हैं तो जरूरी नहीं है कि वो घातक हो।
- सबसे जरूरी है कि अस्पताल जाएं और टेस्ट कराएं। अगर संक्रमण है तो होम आइसोलेशन की भी व्यवस्था है।
- अगर टेस्ट नहीं कराएंगे तो ये नासमझी है, इससे खुद के साथ परिवार की जान को भी खतरा हो सकता है।
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Aldi: Supermarket launches click and collect service for customers to shop with ease
ALDI is the well-known discount supermarket chain that offers everyday groceries at a fraction of the price found at supermarket giants. However many find it stressful when it comes to packing bags at Aldi as the store is renowned for scanning items quickly so customers will be happy. But shoppers may be glad to learn Aldi is launching a click and collect service.
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