Tuesday, August 18, 2020
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फोटो में 90 साल पहले चला आत्मनिर्भर कैम्पेन, पहली फ्लाइट के टेक ऑफ होने और देश में टीवी आने के जश्न की अनदेखी तस्वीर
आज वर्ल्ड फोटोग्राफी डे है। लगभग 194 साल पहले फ्रांस के जोसेफ नाइसफोर और लुइस डॉगेर ने मिलकर फोटोग्राफी की खोज की थी। 19 अगस्त, 1839 को फ्रेंच सरकार ने इसकी औपचारिक घोषणा की और इसे पूरी दुनिया को फ्री गिफ्ट के रूप में उपलब्ध कराया। तब से अब तक फोटोग्राफरों ने दुनिया के हर बड़े बदलाव, हर चौंकाने वाले छोटी-बड़ी घटना को अपने कैमरे में कैद किया है।
फोटोग्राफी डे पर देखें कुछ खास घटनाओं की तस्वीरें जिन्होंने नए भारत के निर्माण में बड़ी भूमिका निभाई, देखिए और शेयर कीजिए।
1930 में सविनय अवज्ञा आंदोलन के दौरान महात्मा गांधी ने विदेशी सामान के बहिष्कार की अपील की थी। इसके बाद देशभर में विदेशी सामान की होली जलाई गई। जगह-जगह प्रदर्शन हुए और लोगों ने स्वदेशी अपनाने का प्रण लिया। इसे भारत का पहला आत्मनिर्भर कैम्पेन भी कहा जा सकता है।
15 अगस्त 1947 को जवाहरलाल नेहरू देश के पहले प्रधानमंत्री बने थे। उन्हें लॉर्ड माउंटबेटन ने शपथ दिलाई थी। उस जमाने में संसद भवन को कांस्टीट्यूशन हाउस कहा जाता था। 14-15 अगस्त की रात में पहले वहीं लॉर्ड माउंटबेटन ने पं. नेहरू को प्रधानमंत्री पद की शपथ दिलाई और उसके बाद नेहरू जी ने अपना ऐतिहासिक भाषण 'ट्रिस्ट विद डेस्टनी' दिया था।
लाल किले की प्राचीर से अंग्रेजों का झंडा उतरता हुआ और भारत का झंडा चढ़ता हुआ। भारत को आजादी 15 अगस्त को मिली। लेकिन, लाल किले पर तिरंगा 16 अगस्त को फहराया गया। ये पहली और आखिरी बार था जब लाल किले पर तिरंगा 15 अगस्त को नहीं, बल्कि 16 अगस्त को फहराया गया।
16 अप्रैल 1853 को पहली यात्री ट्रेन मुंबई से ठाणे के बीच चली। तीसरे पहर 3 बजकर 30 मिनट पर 21 तोप की सलामी के बाद 14 कोच वाली यह ट्रेन रवाना हुई थी। 33 किलोमीटर की पहली यात्रा करने वाली इस ट्रेन में 400 यात्रियों ने भारतीय रेल का पहला सफर तय किया था। इस रेलगाड़ी में लार्ड लोरेंस कंपनी का इंजन लगा था।
साल 1895 को भारत ने पहला स्वदेशी रेल इंजन बनाने में कामयाबी हासिल की। इसे राजपूताना मालवा रेलवे की अजमेर वर्कशॉप में बनाया गया था। 38 टन वजनी इस मीटरगेज इंजन का नाम था एफ-374।
भारतीय रेलवे की पहली इलेक्ट्रिक ट्रेन बॉम्बे वीटी स्टेशन से कूरला के बीच 3 फरवरी, 1925 को चली थी। तब का बॉम्बे वीटी स्टेशन अब मुंबई छत्रपति शिवाजी टर्मिनस के नाम से जाना जाता है। वहीं, तब का कूरला आज कुर्ला हो गया है। जब यह ट्रेन चली तो पटरियों के दोनों ओर हजारों लोगों का हुजूम उमड़ता था और उन्हें हटाने के लिए पुलिस बुलाना पड़ती थी।
1914 में जन्मी सरला ठकराल 21 साल की उम्र में देश की पहली महिला पायलट बनीं। 1936 में सरला ठकराल परंपराओं को तोड़ते हुए एयरक्राफ्ट उड़ाने वाली पहली भारतीय महिला बनी थीं। उन्होंने 'जिप्सी मॉथ' नाम के विमान को अकेले ही उड़ाया। खास बात यह थी कि उस दौर में पहली बार साड़ी पहन कर प्लेन उड़ाने वाली भी वह भारत की पहली महिला बनीं। उस समय वह एक चार साल की बेटी की मां भी थीं।
15 जनवरी, 1962 को पंडित जवाहरलाल नेहरू और होमी जहांगीर भाभा को देश का पहला कम्प्यूटर दिखाते प्रोफेसर एमएस नरसिम्हन। टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च में विकसित किए गए इस कम्प्यूटर को TIFRAC नाम दिया गया था। यह एक फर्स्ट जेनरेशन कम्प्यूटर था। इसे मूल रूप से शोध कार्यों के लिए विकसित किया गया था।
भारत की पहली फ्लाइट के पहले टेक ऑफ की तैयारी में टाटा एयर सर्विसेस के संस्थापक जेआरडी टाटा। 15 अक्टूबर, 1932 को भारत की पहली फ्लाइट ने कराची से मुंबई के लिए टेक ऑफ किया था। यही फ्लाइट उस भारत की एविएशन इंडस्ट्री के नींव का पत्थर थी, जो आज दुनिया के सबसे बड़े एविएशन मार्केट में से एक है। बाद में टाटा एयर का राष्ट्रीयकरण हो गया और इसका नाम एयर इंडिया हो गया।
भारत की पहली स्वदेशी कार टाटा इंडिका ड्राइव करते हुए रतन टाटा। रतन टाटा की सफलता में इस कार का बड़ा योगदान रहा है। इस हैचबैक कार को 30 दिसंबर 1998 में कार को जेनेवा मोटर शो में धूमधाम से लॉन्च किया गया था। हालांकि, भारतीय बाजार में ये कार 1999 में आई। इस कार के लिए टाटा कंपनी ने स्लोगन दिया था - 'द बिग...स्मॉल कार' और 'मोर कार पर कार' ।
भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और मशहूर वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन की यूएसए के प्रिंसटन में 8 नवंबर 1949 में हुई मुलाकात की तस्वीर। यह इन दोनों हस्तियों की एक फ्रेम में एकमात्र उपलब्ध तस्वीर है। दरअसल, आइंस्टीन नेहरूजी के बड़े प्रशंसक थे और चाहते थे कि भारत उनके देश इज़रायल को मान्यता प्रदान करे।
भारत में टेलीविजन की आमद 15 सितंबर, 1959 को राजधानी दिल्ली में हुई । यह सेवा ब्रिटिश ब्रॉडकास्टिंग कॉर्पोरेशन (BBC) ने शुरू की थी। 1975 में भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में टीवी पहुंचाने की योजना बनी। इस योजना के क्रियान्वयन के लिए गुजरात के खेड़ा जिले का पिज गांव चुना गया। साल 1975 की यह फोटो उसी गांव की है।
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Trump Ethics Panel Urges Rejection of Fetal Tissue Research
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194 साल पहले डामर की काली प्लेट पर ली गई थी दुनिया की पहली फोटो, तैयारी में लगे थे पूरे 6 साल और 8 घंटे में खींची गई थी तस्वीर
हर तस्वीर अपने आप में एक इतिहास गढ़ती है। दुनिया की सबसे पहली फोटो का भी अपना 194 साल पुराना इतिहास है। डामर या एसफाल्ट की काली प्लेट पर ली गई इस पहली तस्वीर का किस्सा भी दिलचस्प है। वर्ल्ड फोटोग्राफी डे पर इसी किस्से के बहाने एक नजर डालते हैं तस्वीरों की दुनिया पर और जानते हैं किन लोगों ने हमें फोटो खींचना सिखाया।
क्यों मनाया जाता है यह दिन
साल 1826 में दुनिया की पहली दिखने वाली तस्वीर खींचने का श्रेय जाता है फ्रांस के जुझारू इनवेंटर जोसेफ नाइसफोर और उनके मित्र लुइस डॉगेर को, जिन्होंने अपनी आधी उम्र सिर्फ इसी काम के लिए समर्पित कर दी। इन दोनों की फोटो खींचने की इसी उपलब्धि को दुनिया 'डॉगेरोटाइप' प्रोसेस कहती है और इसे सम्मान देने के लिए वर्ल्ड फोटोग्राफी डे मनाए जाने का सिलसिला शुरू हुआ।
9 जनवरी, 1839 को फ्रेंच एकेडमी ऑफ साइंसेज ने इस प्रक्रिया की घोषणा की और कुछ महीने बाद, 19 अगस्त, 1839 को फ्रांस सरकार ने इस प्रकिया को बिना किसी कॉपीराइट के दुनिया को उपहार के रूप में देने की घोषणा की। तभी से 19 अगस्त को यह दिन मनाया जाता है।
2020 में इस घटना को 194 साल पूरे हो रहे हैं, इसी मौके पर हम आपके लिए लाए हैं पहली तस्वीर के बनने का किस्सा और फोटोग्राफी को समर्पित महान किरदारों की कहानी -
पूर्वी फ्रांस का कस्बा, वसंत का मौसम और साल 1826
- 1765 में जन्में जोसेफ नाइसफोर पूर्वी फ्रांस के सैंट-लूप-डे-वैरेनीज कस्बे में रहते थे। एक धनी वकील के बेटे और नेपोलियन की सेना के अफसर रह चुके नाइसफोर एक वक्त में कॉलेज में साइंस के प्रोफेसर भी रह चुके थे। कला में उनकी रुचि थी और वे उसमें विज्ञान की मदद से फोटोग्राफी मशीन बनाने में जुटे थे।
- फोटो म्यूजियम में दर्ज जानकारी के मुताबिक, वह 1926 की वसंत के दिन थे जब जोसफ ने पहली तस्वीर खींची थी। अमूमन फोटो खींचते समय क्या कैप्चर करना है, हमें मालूम होता है लेकिन, 1826 में ली गई पहली तस्वीर के साथ ऐसा नहीं था।
- सैंट-लूप-डे-वैरेनीज कस्बे में अपने दो मंजिला घर की पहली मंजिल की खिड़की के पास खड़े होकर जोसेफ ने अचानक ही एक तस्वीर कैप्चर कर ली और इसमें खिड़की के बाहर का एक दृश्य कैप्चर हो गया। बस, यही पल इतिहास में दर्ज हो गया और इसे ही दुनिया की पहली तस्वीर “View from the Window at Le Gras” नाम दिया गया।
पहली तस्वीर लेने में 6 साल की तैयारी लगी थी
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पहली तस्वीर को हकीकत में बनाने में जोसेफ नाइसफोर और उनके मित्र लुइस डॉगेर सन् 1820 से मेहनत कर रहे थे। दोनों ने पहले टिन और कॉपर जैसी मेटल पर फोटो उतारने की कोशिश की। असफल रहने के बाद बिटुमिन-एसफाल्ट यानी डामर का इस्तेमाल किया।
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दोनों अपने ही घर में अलग-अलग केमिकल्स को प्लेट पर फैलाकर सूरज की किरणों की मदद से फोटो लेने की तकनीक डेवलप करने में लगे थे। दरअसल, 18वीं सदी में कैमरा तो बन गया था लेकिन असली समस्या फोटो प्लेट की थी जिस पर फोटो को डेवलप किया जा सके।
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इसका समाधान निकालने के लिए 1820 में दोनों ने मिलकर डॉगेरोटाइप प्रक्रिया ईजाद की। डॉगेरोटाइप शब्द लुईस डॉगेर की सरनेम से बनाया गया है। इसके बाद भी पहली तस्वीर लेने में 6 साल का समय लगा और 1826 में इसकी मदद से पहली तस्वीर कैप्चर की गई।
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इस तस्वीर को कैप्चर करने में ऑब्सक्यूरा नाम के बड़े से कैमरे की मदद ली गई और पूरी प्रक्रिया में करीब 8 घंटे लगे थे। आगे चलकर इस पूरी प्रक्रिया को 'हीलियोग्राफी' नाम दिया गया ।
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डॉगेरोटाइप दुनिया की पहली फोटोग्राफिक प्रक्रिया है जिसका इस्तेमाल 1839 से आम लोगों ने तस्वीरों के लिए किया। इसमें काफी बड़े कैमरों का इस्तेमाल किया जाता था। इसकी मदद से कुछ मिनटों में ही साफ तस्वीर खींची जा सकती थी, लेकिन यह सिर्फ ब्लैक एंड व्हाइट थी।
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करीब 13 साल बाद फ्रांस सरकार ने उनके इस काम को मान्यता दी और 19 अगस्त 1839 को इस अविष्कार की आधिकारिक घोषणा की गई। अफसोस की बात यह थी कि इसके 6 साल पहले ही जोसेफ दुनिया को अलविदा कह गए थे।
ऐसे ली गईं दुनिया की पहली रंगीन तस्वीर
- ब्लैक एंड व्हाइट तस्वीर सामने आने के बाद रंगीन फोटो लेने की जद्दोजहद शुरू हुई। इसे तैयार करने में बाजी मारी स्कॉटलैंड के भौतिकशास्त्री जेम्स क्लर्क मैक्सवेल ने। इलेक्ट्रोमैग्नेटिक फील्ड से परिचय कराने वाले महान विज्ञानी मैक्सवेल 1955 से ही रंगीन तस्वीर को तैयार करने की थ्री-कलर एनालिसिस प्रक्रिया पर काम कर रहे थे।
- मैक्सवेल को इस बात का अंदाजा था कि इंसानी आंख में रंगों की पहचान के लिए विशेष कोशिकाएं कोन्स होती हैं और इस पहचान में रोशनी की बड़ा महत्वपूर्ण भूमिका है। इसी के आधार पर उन्होंने अपने प्रयोग किए।
- इस काम में सिंगल लेंस रिफ्लेक्स कैमरा के आविष्कारक थॉमस सुटन ने भी उनकी मदद की और अलग-अगल रंगों की फोटो प्लेट पर सेंसेटिविटी के हिसाब से फोटो उतारने की एक प्रक्रिया सेट की।
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मैक्सवेल ने 17 मई 1861 में दुनिया की पहली रंगीन तस्वीर रॉयल सोसायटी में दुनिया के बड़े इनवेंटर के सामने पेश की। यह तस्वीर स्कॉटलैंड में मशहूर टार्टन रिबन की थी और इसमें लाल, नीला और पीला रंग नजर आ रहा था जिसे इन तीनों रंगों के फिल्टर की मदद से प्लेट पर उतारा गया था।
-
फोटो लेने की यह प्रक्रिया ब्लैक एंड व्हाइट फोटो की हीलियोग्राफी प्रोसेस से प्रेरित थी। इसमें कलर फिल्टर की मदद से एक बार में एक रंग की तस्वीर ली जाती थी और फिर सभी रंगों की तस्वीरों को सुपरइंपोज करके एक पूरी तस्वीर बनाई जाती थी। ये बड़ी पेचीदा और लंबी प्रक्रिया थी, जो आगे चलकर लेंस और कैमरा रील के आविष्कार का कारण बनी।
फोटोग्राफी की दुनिया के 3 सबसे बड़े इनवेंटर्स
1. जोसेफ नाइसफोर
- जोसेफ के पिता बड़े वकील और भाई शोधकर्ता थे जो बाद में इंग्लैंड चले गए। कॉलेज में पढ़ाई और बाद में बतौर प्रोफेसर काम करने के दौरान उनके अंदर प्रयोग करने में रुचि जागी।
- फ्रेंच आर्मी में नेपोलियन के नेतृत्व में जोसेफ ने बतौर स्टाफ ऑफिसर इटली और सार्डिनिया के द्वीपों पर सेवाएं दीं। लेकिन, इस दौरान वे बीमार रहने लगे और उन्हें सेना से इस्तीफा देना पड़ा।
- 1795 में इस्तीफा देने के बाद अपने भाई क्लॉड के साथ विज्ञान में दोबारा प्रयोग करने शुरू किए और कई सालों तक फोटोग्राफी प्लेट डेवलपमेंट की प्रक्रिया पर काम किया।
- 5 जुलाई 1833 को स्ट्रोक के कारण इनकी मौत हुई। जहां पर इन्होंने पहली फोटो उतारने का प्रयोग किया था, वहीं से कुछ दूरी पर इन्हें दफनाया गया।
- मौत के बाद इनके बेटे इसिडोरे ने लुइस के साथ मिलकर काम किया और सरकार की ओर इनके पिता की याद में पेंशन मिलना शुरू हुई।
2. लुइस डॉगेर: इन्हीं के नाम पर है फोटोग्राफी की पहली प्रोसेस 'डॉगेरोटाइप '
- लुइस एक आर्किटेक्ट और थिएटर डिजाइनर होने के साथ दुनिया के पहले पैनोरमा पेंटर भी कहे जाते हैं।
- जोसेफ नाइसफोर के साथ इनकी दोस्ती 1819 में हुई, दोनों ने 14 साल मिलकर काम किया।
- लुइस की लगातार मेहनत का नतीजा था कि दोस्त जोसेफ की याद में सरकार ने पेंशन जारी की।
- लुइस ने अपने प्रयोग को आगे बढ़ाने प्राइवेट इंवेस्टर्स के साथ मिलकर फंडिंग की कोशिश की लेकिन नाकामयाब रहे।
- लुइस ने फैसला किया कि अपनी उपलब्धि को लेकर वह जनता के बीच जाएंगे। अंतत: फ्रांसीसी सरकार ने इनकी उपलब्धि को सम्मान के तौर पर दर्ज किया गया।
जेम्स क्लर्क मैक्सवेल: पहला रंगीन फोटो इन्हीं की देन
- भौतिकशास्त्री जेम्स क्लार्क मैक्सवेल का जन्म स्कॉटलैंड के एडनबर्ग में हुआ था। 1865 में इलेक्ट्रोमैग्नेटिक थ्योरी मैक्सवेल ने ही दी थी।
- बेहद कम उम्र में मैक्सवेल को लम्बी-लम्बी कविताएं पढ़ने का शौक था। एक बार जिस कविता को पढ़ लेते थे, उन्हें याद हो जाती थी।
- इसी खूबी को देखकर इनकी मां ने मैक्सवेल की पढ़ाई पर विशेष ध्यान देना शुरू किया।
- मैक्सवेल को पढ़ाई के लिए एडनबर्ग एकेडमी भेजा। वहां पर मात्र 13 साल की उम्र में एक ही साल में उन्होंने गणित, अंग्रेजी और पोएट्री तीनों में मेडल हासिल किया।
- मात्र 14 साल की उम्र में जर्नल के लिए अपना साइंटिफिक पेपर लिखा, इसमें उन्होंने मैथमेटिकल कर्व के बारे में नई जानकारियां खोजीं।
अब मिलिए 'फादर ऑफ वाइल्डलाइफ फोटाेग्राफी' जॉर्ज शिरस III से
- अमेरिका के पेनसिल्वेनिया में जन्में जॉर्ज शिरस पेशे से वकील और नेता के साथ मशहूर शिकारी हुआ करते थे। इसी दौरान उन्हें जानवरों की तस्वीरें खींचने का शौक हुआ।
- जंगलों में घूमते-घूमते जॉर्ज पूरी तरह से वाइल्डलाइफ फोटोग्राफी में रम गए। आगे चलकर वह वन्यजीवों के रक्षक बन गए और पूरा जीवन जंगल और जानवरों को समर्पित कर दिया।
- जॉर्ज ने ही सबसे पहले 1889 के में कैमरा ट्रैप और फ्लैश फोटोग्राफी का इस्तेमाल वन्य जीवों के फोटो खींचने के लिये किया था।
- अमेरिका की मिशिगन झील और उसके आसपास उनके खींचे गए ब्लैंक एंड व्हाइट फोटो आज दुनिया की धरोहर है।
- नेशनल जियोग्राफिक ने जॉर्ज शिरस को “The Father of Wildlife Photography” नाम दिया है। उनका 2400 ग्लास नेगेटिव का पूरा कलेक्शन नेशनल जियोग्राफिक के पास सुरक्षित है।
- नेशनल जियोग्राफिक ने जॉर्ज के सम्मान में एक किताब “In the Heart of the Dark Night” प्रकाशित की है।
आखिर में, कहानी उस पहली सेल्फी की जिसके आज सभी दीवाने हैं
- दुनिया की पहली सेल्फी लेने का श्रेय अमेरिका के युवा व्यापारी और फोटोग्राफी के दीवाने रॉबर्ट कॉर्नेलियस को जाता है। रॉबर्ट के पिता का सिल्वर प्लेट बनाने का कारोबार था जिसका फोटो डेवलप करने में इस्तेमाल हुआ।
- जिस साल फ्रांस सरकार ने फोटोग्राफी की प्रक्रिया दुनिया को तोहफे में दी, उसी साल यह कारनामा हुआ। वह 1839 का एक दिन था, फिलाडेल्फिया शहर के सेंटर में स्थित चेस्टनट स्ट्रीट पर युवा रॉबर्ट कॉर्नेलियस एक कैमरे के लेंस के सामने खड़े थे।
- उस समय तस्वीर लेने में कई मिनट का वक्त लगता थो तो उन्होंने अचानक ही कैमरा सेट किया और लेंस की कैप निकाली और क्लिक बटन दबाकर उसके सामने दौड़कर फ्रेम में खड़े हो गए।
- बस, यही थी दुनिया की पहली सेल्फी जो दौड़कर ली गई थी और आगे चलकर इसे ‘फर्स्ट लाइट पिक्चर’ का सम्मान भी मिला।
- जॉर्ज के देखादेखी उस समय कई लोग ये प्रयोग करने लगे थे, हालांकि उस समय सेल्फी शब्द चलन में नहीं था। कहा जाता है कि सेल्फी शब्द सिर्फ 18 साल पुराना है और इसे पहली बार 2002 में ऑस्ट्रेलिया में एक लड़के ने सेल्फ पोट्रेट फोटो के लिए इस्तेमाल किया था।
फोटोग्राफी डे पर देखिए दुर्लभ और कमाल की तस्वीरें
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बिना पेडल वाली साइकिल से लेकर हवाई जहाज तक, देखें दुनिया के उन आविष्कारों की पहली तस्वीर, जिनसे हमारी जिंदगी आसान बनी
आज से ठीक 194 साल पहले फ्रांस में दुनिया की पहली तस्वीर खींची गई थी। तब से अब तक फोटोग्राफी के जरिए हर बड़ी घटना की तस्वीर को इतिहास में संजोकर रखा गया है। फोटोग्राफरों ने हर उस अविष्कार को भी कैमरे में कैद किया गया है। जिनसे हमारी जिंदगी पहले की तुलना में काफी हद तक आसान हुई है। इन तमाम सुविधाओं के पीछे वैज्ञानिकों की कड़ी मेहनत और क्रिएटिविटी है। तस्वीरों के जरिए देखा जा सकता है कि किस तरह हम तांगे से कार तक आए। हवाई जहाज के बनने का सफर कैसा था। और दुनिया का पहला रेफ्रिजिरेटर कैसा दिखता था।
पेश हैं उन चीजों की ऐतिहासिक तस्वीरें, जिनसे हमारी जिंदगी आसान बनी, देखिए और शेयर कीजिए -
साल 1885 में कार्ल बेन्ज ने फ्यूल से चलने वाली दुनिया की पहली कार बनाई। तस्वीर उसी कार की है। हालांकि, इस कार के लिए अलग से कोई मॉडल नहीं बनाया गया था। घोड़े से चलने वाले तांगे के मॉडल के आधार पर ही कार तैयार की गई थी, इसमें तीन ही पहिए थे। इससे पहले 1769 में फ्रांस के निकोलस जोसेफ ने दुनिया की पहली गाड़ी बनाई थी। जो एक मिलिट्री ट्रेक्टर था।
जर्मनी के कार्ल वॉन ड्रैस ने 1818 में दुनिया की पहली दो पहिया साइकिल बनाई थी, जिसमें पैडल नहीं थे। इसे ड्रैसिनी नाम दिया गया था। ड्रैसिनी के अलावा इसे हॉबी हॉर्स भी कहा जाता था। साल 1963 में हॉबी हॉर्स में चेन और पैडल जोड़ दिए गए। और नया नाम रखा गया बोनशेकर। 1963 की इस फोटो में दो शख्स दिख रहे हैं। एक हॉबी हॉर्स चला रहा है और दूसरा बोनशेकर।
19 जनवरी, 1968 को लंदन के वेस्टमिनिस्टर बैंक के एटीएम से कैश निकालती लड़की की ये तस्वीर ऐतिहासिक है। क्योंकि यह एटीएम से कैश निकालते हुए दुनिया की पहली तस्वीर है। न्यूयॉर्क का केमिकल बैंक भी दुनिया की पहली एटीएम मशीन इंस्टॉल करने का दावा करता है। दरअसल, लंदन के बैंक के एटीएम में मैगनेटिक कोडिंग सिस्टम नहीं था। जबकि 1969 को केमिकल बैंक के एटीएम में था।
यह फोटो 27 सितंबर, 1825 की है । जब दुनिया का पहला रेल इंजन उत्तरी इंगलैंड के स्टॉकहोम और डारलिंगटन रेलवे की पटरी पर दौड़ा था। खास बात यह है कि इस इंजन को चलाने वाला शख्स वही था जिसने इसे बनाया। नाम था जॉर्ज स्टीफेनसन। दुनिया के इस पहले इंजन ने 450 यात्रियों वाली रेलगाड़ी को 15 किलोमीटर प्रतिघंटे की रफ्तार से चलाया था।
बल्ब की रेप्लिका के साथ बल्ब के आविष्कारक थॉमस अल्वा एडिसन। उन्होंने यह अविष्कार 14 अक्टूबर, 1878 को कर लिया था। इसके बाद भी एडिसन और उनके साथी शोधकर्ताओं की टीम ने बेहतर परिणाम के लिए बल्बों के 3,000 से ज्यादा डिजाइनों का परीक्षण किया। 4 नवंबर, 1879 में एडिसन ने ज्यादा बेहतर बेहतर डिजाइन वाले कार्बन फिलामेंट के साथ एक इलेक्ट्रिक लैंप के लिए पेटेंट दायर किया।
यह फोटो है राइट ब्रदर्स के सपनों के टेक ऑफ की। 14 दिसंबर, 1903 को पहली बार विमान को लॉन्च ट्रैक के जरिए उड़ाया गया। हालांकि, कुछ ही क्षणों में विमान वापस धरती पर आ गिरा था। इसके बाद विल्बर राइट और ओरविल राइट ने विमान उड़ाने की लगातार प्रैक्टिस की। और नवंबर 1904 आते-आते उनके प्रयास सफल होते दिखने लगे।
7 अगस्त, 1944। तस्वीर दुनिया के पहले कम्प्यूटर की लॉन्चिंग की है। जिसका नाम था हार्वर्ड मार्क - 1। हार्वर्ड यूनिवर्सिटी की इस सफलता के पीछे चार लोग थे। यही चार लोग इस तस्वीर में दिख रहे हैं। (बाएं से दाएं) फ्रैंक ई हैमिलटन, क्लेयर डी लेक, हॉवर्ड एच आइकेन और बेंजामिन एम डर्फी। हालांकि, जब हावर्ड आइकेन ने इस मशीन को लेकर प्रेस कॉन्फ्रेंस की। तो इसके निर्माण का क्रेडिट सिर्फ खुद को दिया। ये विवाद 20 साल तक चला। (फोटो गेटी इमेजेस)
ये फोटो 1973 में एसोसिएट प्रेस के फोटोग्राफर एरिस रिसबर्ग ने खींची। तस्वीर में मोटोरोला के इंजीनियर मार्टिन कॉपर कॉम्पिटिटर कंपनी बैल लैब में फोन करके बता रहे हैं कि उन्होंने पहला मोबाइल बना लिया है। 9 इंच लंबे और ढाई पाउंड वजनी इस फोन को 10 घंटे चार्ज करने के बाद 35 मिनट बात की जा सकती थी। 1973 से पहले रेडियो फोन या वायरलेस फोन उपलब्ध थे। लेकिन, आम आदमी तक इनकी पहुंच नहीं थी।
ऐसा था घरेलू उपयोग के लिए बना दुनिया का पहला रेफ्रीजिरेटर। इसे अमेरिकी इंजीनियर फ्रेड डब्ल्यू वोल्फ जूनियर ने साल 1913 में बनाया था। यह फोटो CIBSE नाम के हेरिटेज ग्रुप ने सहेज कर रखी है। हालांकि, इसे कब और किस फोटोग्राफर ने खींचा, इसका उल्लेख नहीं मिलता ।
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चांद पर इंसान के पहले कदम का ऐतिहासिक पल और आइसबर्ग से टकराकर डूबते टाइटेनिक से लोगों को बचाने का खौफनाक लम्हा
आज वर्ल्ड फोटोग्राफी डे है। दुनिया में तस्वीरों के सम्मान का एक खास दिन। तस्वीरें दुनिया की धरोहर हैं और इतिहास भी। इन्हीं से पता चलता है कि हम कितने पड़ावों से होकर, किस मुकाम तक पहुंचे हैं। इस मौके पर देखिए ऐसी 10 दुर्लभ तस्वीरें जो दुनिया की तरक्की और बदलाव को दर्शाती हैं। इन तस्वीरों की एक अनकही जो जुबान होती है जिसमें ये हमसे बातें करती हुईं कहती हैं कि, अपने लक्ष्य के लिए लड़ना जरूरी है और जब इसे हासिल करते हैं तो ही इतिहास आपको सुनहरे अक्षरों में दर्ज करता है।
आज कुछ ऐसी ही दुर्लभ तस्वीरें और उनकी कहानी हम आपके लिए लाए हैं, देखिए और शेयर कीजिए...
यह तस्वीर उस ऐतिहासिक पल की है जब चांद पर पहली बार इंसान पहुंचा। चांद पर पहली बार पहुंचने वाले यह शख्स नील आर्मस्ट्रॉन्ग हैं। यह फोटो जुलाई 1969 को ली गई थी। उस समय वहां एक ही कैमरा था। इसलिए नील के साथ अपोलो मिशन पर साथ गए एल्ड्रिन ने यह तस्वीर ली थी। नील के चंद्रमा पर कदम रखने के लगभग 20 मिनट के बाद, एल्ड्रिन उतरे। चांद पर कदम रखने वाले वह दूसरे इंसान बने। इसके बाद दोनों ने साथ मिलकर चंद्रमा की सतह पर भ्रमण किया। उन्होंने जमीन पर अमेरिकी झंडा लगाया और तस्वीरें लीं।
फोटो में स्ट्रेचर पर दिख रहा अवशेष अंतरिक्ष यात्री व्लादिमीर कोमारोव का है, जो 1967 में अंतरिक्ष से धरती पर गिरे थे। वेबसाइट हिस्ट्री डॉट कॉम के मुताबिक, व्लादिमीर 23 हजार फीट ऊंचाई पर सोयूज-1 विमान से पहुंचे थे। वहां से उन्हें एक पैराशूट से वापस धरती पर लौटना था। पैराशूट आमतौर पर खुलने में 15 सेकंड लेता लेकिन यह इस तरह उलझ गया था कि खुल नहीं पाया। इस दौरान इनके पास दूसरा कोई पैराशूट नहीं था। नतीजा धरती पर गिरते ही मौत हुई।
यह तस्वीर 13 जून 1936 को ली गई थी। फोटो एक ताकतवर जहाज होर्स्ट वेसेल की लॉन्चिंग के दौरान ली गई थी। फोटो में सलामी न देने वाले इंसान का नाम है ऑगस्ट लैंडमेसर। ऑगस्ट ने 1931 में हिटलर की पार्टी नाजी की सदस्यता ली थी। यह फोटो जिस दौर की है उस समय ऑगस्ट पानी के जहाज बनाने वाली कंपनी में कर्मचारी थे। 1935 में यहूदी लड़की इरमा एकलर से सगाई के बाद इन्हें पार्टी ने निकाल दिया। ऑगस्ट हिटलर की तानाशाही से ऊब रहे थे। आखिरकार 1937 में उसने परेशान होकर जर्मनी छोड़ने का फैसला किया लेकिन पकड़े गए। सालभर चले ट्रायल के बाद सबूतों के अभाव में सिर्फ चेतावनी देकर छोड़ दिया गया।
यह फोटो दुनिया के पहले परमाणु बम की है, जिसका नाम गैजेट था। अमेरिका ने इसे न्यू मेक्सिको में तैयार किया गया था। इस मिशन का नाम था ट्रिनिटी। भौतिक विज्ञानी जे. रॉबर्ट आइजनहॉवर की लीडरशिप में अमेरिका ने 16 जुलाई 1945 को न्यू मेक्सिको के रेगिस्तान में अपना पहला परमाणु परीक्षण किया था। यह फोटो टेस्टिंग से पहले की है। इसका वजन 21 किलो था जो 21 हजार टीएनटी विस्फोटक के बराबर था। इसका विस्फोट होने पर 38 हजार फुट ऊंचाई पर धुएं का गुबार उठा था। इसे लॉन्च करने के लिए 100 ऊंचा स्टील का टावर बनाया गया था।
यह तस्वीर डोरोथी काउंटस नाम की महिला की है। यह पहली अश्वेत लड़की है जिसे गोरों के स्कूल में एडमिशन मिला। एडमिशन जितना चुनौतीभरा था उससे भी ज्यादा मुश्किल था, वहां खुद को बनाए रखना। 1957 में शेर्लेट हैरी हार्डिंग हाई स्कूल में एडमिशन लेने के बाद डोरोथी को स्टूडेंट्स काफी चिढ़ाया। ताने कसे, मजाक बनाया लेकिन हार नहीं मानीं और आगे चल कर अमेरिकी नागरिक अधिकारों का सशक्त चेहरा बनीं। अमेरिका में आज भी अश्वेत और श्वेत लोगों के बीच अधिकारों की लड़ाई जारी है, हालांकि पहले के मुकाबले स्थिति बेहतर हुई है।
यह फोटो लायका नाम के डॉगी की है जो अंतरिक्ष में पहुंचने वाला पहला जानवर है। 3 नवंबर, 1947 को इसे स्पूतनिक-2 स्पेसक्राफ्ट में एक विशेष कुर्सी से बांधकर अंतरिक्ष में भेजा गया था। इसमें बैठकर लायका ने धरती के चक्कर भी लगाए थे। यह एक वैज्ञानिक परीक्षण था, जिसका लक्ष्य यह जानना था कि अंतरिक्ष में किसी इंसान को भेजना कितना सुरक्षित है। दुखद बात यह है कि लायका कभी धरती पर वापस नहीं आ सकी। स्पेसक्राफ्ट का तापमान सामान्य से ज्यादा हो जाने के कारण लाइका की मौत हो गई थी।
यह फोटो अप्रैल 1912 की है, जिसमें कार्पोथिया नाम के जहाज में टाइटेनिक सर्वाइवर को चढ़ाया जा रहा है। 1912 में दुनिया का सबसे बड़ा स्टीम इंजन वाला टाइटेनिक जहाज छुपे आइसबर्ग से टकराया था। इस त्रासदी के बाद लोगों को बचाने कार्पेथिया वहां पहुंचा था। बचे यात्रियों को नावों से लाकर इस जहाज में चढ़ाया जा रहा था। इस घटना में 1517 लोगों की मौत हुई थी, इसे इतिहास की सबसे बड़ी समुद्री दुर्घटना कहा गया। टाइटेनिक इंग्लैंड के साउथ हैम्पटन से 10 अप्रैल 1912 को 2,223 यात्रियों के साथ न्यूयॉर्क शहर के लिए रवाना हुआ था।
साधारण सा दिखने वाला यह नजारा दुनियाभर में चर्चा का विषय बना था। यह फोटो तब ली गई जब 1905 में नॉर्वे में पहली बार केले पहुंचे थे। नॉर्वे यूरोप का दूसरा ऐसा देश था जिसने केले आयात किए। यहां 3 हजार किलो केले की खेप पहुंची थी। यहां के लोगों के लिए यह कीमती फल जैसा था। यूरोप में केले पुर्तगाली व्यापारी समुद्र के रास्ते से उत्तरी अफ्रीका से लाकर बेचते थे। 15वीं शताब्दी में इसे 'बानेमा' कहा जाता था। 17वीं शताब्दी में इसका नाम 'बनाना' पड़ा। धीरे-धीरे यह यहां के लोगों का पसंदीदा फल बन गया।
यह फोटो 1909 में ली गई थी। रेगिस्तान में एक 12 एकड़ प्लॉट के बंटवारे के लिए लॉटरी आयोजित की गई। इसमें 100 लोगों ने हिस्सा। बाद में यही जगह इजरायल की राजधानी तेल अवीव बनी। 1909 में जाफ़ा के उत्तर में तेल अवीव रेत के टीलों की एक छोटी बस्ती के रूप में जाना जाता था। बाद में यह काफी विकसित हुआ। धीरे-धीरे यह अपने आस-पास के शहरों के मुकाबले, काफी साफ और आधुनिक बनता चला गया। इसी खूबी के कारण इसके ऐतिहासिक भविष्य की शुरुआत हुई।
अभिनेत्री और गायिका मर्लिन मुनरो का स्कर्ट वाला यह पोज काफी फेमस हुआ था। 15 सितंबर 1954 को एक सब-वे में शूट किया गया मर्लिन मुनरो का यह पोज आज भी आइकोनिक तस्वीरों में गिना जाता है। इस पोज को लेने के लिए मर्लिन को लोहे की जाली पर खड़ा रहने को कहा गया और नीचे से बड़े पंखों से हवा फेंकी गई। 20वीं सदी की यह अभिनेत्री अपनी सुंदरता और बिंदासपन के लिए भी जानी जाती थी। अनाथ आश्रम में पली-बढ़ी मर्लिन कभी बेहद शर्मीली इंसान थीं लेकिन आज उन्हें दुनिया की सबसे प्रभावशाली शख्सियत में गिना जाता है।
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