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पूरी दुनिया को आसान तरीके से समझाने के लिए अमेरिका के 100-पीपुल फाउंडेशन ने एक प्रयोग किया। फोटोग्राफर कोरोलिन जोन्स और फिल्ममेकर इजाबेल की मदद से सादुरनी की मदद से एक मॉडल तैयार किया। 7.5 अरब वाली दुनिया की आबादी को 100 लोगों का एक गांव माना। इसके आधार पर बताया दुनिया में कितने लोग कौन सा धर्म मानते हैं, कितने लोग कौन सी भाषा बोलते हैं। कितने लोग ओवरवेट हैं और कितने सामान्य हैं।
जैसे दुनियाभर में 60 एशियन, 16 अफ्रीकन, 14 अमेरिकन और 10 यूरोपियन हैं। धर्म के आधार पर समझें तो 31 ईसाई, 23 मुस्लिम, 15 हिन्दू, 7 बौद्ध और 24 अन्य धर्म से जुड़े हैं। 100-पीपुल फाउंडेशन स्टूडेंट्स के लिए काम करती है जो दुनिया के कठिन विषयों को आसान भाषा में समझाने के लिए जाना जाता है। फाउंडेशन ने जो आंकड़े जारी किए उसे तस्वीरों से समझिए...
शाम को 6 बजे ही वॉयलिन का सुरीला संगीत कोरोना मरीजों में कानों तक पहुंचताऔर उनका तनाव दूर हो जाता है। कुछ समय के लिए ही सही मरीज अपनी बीमारी और स्टाफ थकान को भूलकर राहत महसूस करते हैं। यह नजारा चिली की राजधानी सेंटियागो के एल-पिनो हॉस्पिटल में हफ्ते में दो बार दिखता है। 26 साल की नर्स डमारिस सिल्वा अपनी ड्यूटी खत्म होने के बाद क्रिटिकल केयर यूनिट में वॉयलिन लेकर पहुंचती हैं। तार छेड़ते ही गैलरी में मधुर संगीत गूंजने में लगता है।
मैं लोगों से उम्मीदें बांट रही हूं
डमारिस सिल्वा कहती हैं, कोरोनाकाल में मैं लोगों से स्नेह, विश्वास और उम्मीदें बांट रही हूं। मेरे वॉयलिन से निकला संगीत सिर्फ एक गाना नहीं है यह उससे बढ़कर है क्योंकि जब भी मैं इसे बजाती हूं तो यह आवाज सीधे मेरे दिल से निकलती है।
कई घंटों तक बजाती हैं वॉयलिन
सिल्वा हफ्ते में दो बार कोरोना मरीजों के बीच पहुंचती हैं और घंटों वॉयलिन बजाती हैं। इसके साथ वह मरीजों के लिए लेटिन सॉन्ग भी गाती हैं। वह बताती हैं कि जैसे ही मरीज को गाने सुनाई पड़ते हैं उनके चेहरे पर मुस्कान आ जाती है। वह अंदर से खुशहो जाते हैं। सिल्वा की कलीग नर्स जोज लुइस कहती हैं कि वह मरीजों के लिए जो कुछ भी कर रही हैं, यह बेहद खूबसूरत है।
तालियां बजाते हैं मरीज और स्टाफ
हॉस्पिटल में काम करने वाली एक अन्य नर्स के मुताबिक, जब सिल्वा गैलरी में आती हैं तो मरीज उनका गाना सुनकर तालियां बजाते हैं। इनकी यह पहल मरीजों और स्टाफ दोनों के लिए काफी सुखद है और जोश भरने वाली है। वह सही मायने में इंसानियत का अद्भुत उदाहरण हैं।
नर्सों के पास दोहरी जिम्मेदारी
हॉस्पिटल में नर्स दोहरी जिम्मेदारी निभा रही हैं। ये इलाज के साथ मरीजों के लिए मॉरल सपोर्ट का भी काम कर रही हैं। नर्स मिशेल वॉघान रिचमॉन्ड के सेंट मैरी हॉस्पिटल में काम करती है। मिशेल और उनकी कलीग मरीजों के लिए स्पेशल टैडी वियर बनाती हैं। इसके अलावा उनके परिजनों से ऑडियो मैसेज रिकॉर्ड कर मरीजों को सुनाती हैं ताकि उनका तनाव कम हो।
कोरोना के मामलों में छठवें नम्बर पर चिली
कोरोना वायरस संक्रमण के मामलों से चिली छठे नंबर पर है, जहां संक्रमण के 3 लाख से अधिक मामले पाए गए हैं। यहां 2 लाख 71 हजार लोग कोरोनावायरस से रिकवर हो चुके हैं। रिकवर हो चुके हैं।
यूनिसेफ का कहना है कि इस साल 11 मार्च से 16 दिसम्बर के बीच दुनियाभर में11 करोड़ 60 लाख बच्चे पैदा होंगे।दूसरे देशों के मुकाबले इस साल सबसे ज्यादा 2.1 करोड़ बच्चे भारत में पैदा होंगे। चीन दूसरे पायदान पर होगा। वहींलंदन स्कूल ऑफ एकोनॉमिक्स की एक सर्वे रिपोर्ट के मुताबिक,कोरोना काल मेंजनसंख्या में उछाल के बजाए गिरावट होगी। रिपोर्ट की लेखिका फ्रांसेको लुपी ने अमेरिका, यूरोप और कई एशियाई देशों में जन्म दर में 30 से 50 फीसदी तक कमी का अनुमान लगाया है। लुपी का कहना है कि सोशल डिस्टेंसिंग और तमाम पाबंदियों के बीच बेबी बूम की कोई संभावना नहीं।
लंदन स्कूल ऑफ एकोनॉमिक्स के मुताबिक, 60 फीसदी युवाओं ने फैमिली प्लानिंग टाली
यूरोप में इटली, जर्मनी, फ्रांस, स्पेन और ब्रिटेन में 18 से 34 साल की उम्र के 50 से 60 फीसदी युवाओं ने परिवार आगे बढाने की योजना को एक साल के लिए टाल दिया है।
सर्वे में फ्रांस और जर्मनी में 50 फीसदी युवा दंपतियों ने कहा कि वे परिवार आगे बढ़ाने के बारे में फिलहाल सोचेंगे भी नहीं। सिर्फ 23 फीसदी ने इससे अंतर न पड़ने की बात कही। इटली में 38 फीसदी और स्पेन में 50 फीसदी से ज्यादा युवाओं ने कहा कि उनकी आर्थिक और मानसिक स्थिति अभी ऐसी नहीं है कि वे बच्चे का ख्याल रख पाएंगे।
2 पाइंट्स : मां और नवजात से जुड़ी
मां के लिए चुनौती : दवा, उपकरण और हेल्थ वर्करों की कमी से जूझना होगा
यूनिसेफ की एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर हेनरिटा फोर ने कहा कि नई मांओं और नवजातों को जिंदगी की कठोर सच्चाई का सामना करना पड़ेगा। क्योंकि, कोविड-19 की रोकथाम के लिए दुनियाभर में कर्फ्यू और लॉकडाउन जैसे हालात हैं। ऐसे में जरूरी दवाओं और उपकरणों का अभाव, एएनएम और हेल्थ वर्कर्स की कमी से गर्भवती महिलाओं को जूझना पड़ेगा। संक्रमण के डर की वजह से गर्भवती महिलाएं खुद भी हेल्थ सेंटर्स पर जाने से कतराएं
नवजात के लिए चुनौती : शिशु मृत्यु दर में इजाफ हो सकता है
यूनिसेफ की ग्लोबल रिपोर्ट में कहा गया है कि कोविड-19 को रोकने के लिए किए गए लॉकडाउन जैसे उपायों की वजह से जीवनरक्षक स्वास्थ्य सेवाओं पर असर पड़ सकता है। इससे नवजात और मां दोनों की जिंदगी खतरे में पड़ सकती है। विकासशील देशों में यह खतरा ज्यादा है क्योंकि, इन देशों में कोरोना महामारी आने से पहले ही शिशु मृत्यु दर ज्यादा है। ऐसे में कोविड-19 की वजह से इसमें इजाफा हो सकता है।
औसत गर्भावस्था की अवधि के आधार पर आकलन
यूनिसेफ की समीक्षा का आधार संयुक्त राष्ट्र की वर्ल्ड पॉपुलेशन डिवीजन 2019 की रिपोर्ट है। एक औसत गर्भावस्था आमतौर पर पूरे 9महीने या 40 सप्ताह तक रहती है। ऐसे में बच्चों के पैदा होने का आकलन करने के लिए संस्था ने इसे ही पैमाना बनाया।
हर साल 28 लाख गर्भवती महिलाओं और नवजातों की मौत होती है
यूनिसेफ ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि कोविड-19 महामारी से पहले भी हर साल दुनियाभर में करीब 28 लाख गर्भवती महिलाओं और नवजातों की मौत होती आई है। हर सेकंड 11 मौतें। ऐसे में संस्था ने हेल्थ वर्कर्स की ट्रेनिंग और दवाइयों के उचित इंतजाम पर जोर देने के लिए कहा है ताकि गर्भावस्था के दौरान महिलाओं और उसके बाद नवजातों की जान बचाई जा सके।
इस साल की थीम महिलाओं-लड़कियों के अधिकार और स्वास्थ्य पर फोकस
इस साल वर्ल्ड पॉप्युलेशन की थीम महिलाओं-लड़कियों के अधिकार और स्वास्थ्य पर फोकस है।ब्रुकिंग्स इंस्टीट्यूशन की रिपोर्ट के अनुसार, लड़कियों की शिक्षा और जन्म दर के बीच गहरा संबंध है, क्योंकि शिक्षा लड़कियों को परिवार नियोजन की समझ देती है। साथ ही शिक्षा उन्हें बाल विवाह व कच्ची उम्र में मां बनने से भी बचाती है।ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी की वर्ल्ड पॉपुलेशन एंड ह्यूमन केपिटल इन ट्वेंटी फर्स्ट सेंचूरी स्टडी के अनुसार, हर लड़की और लड़के को 10वीं तक नियमित शिक्षा मिले तो 2050 में दुनिया की आबादी 150 करोड़ कम के स्तर पर होगी। यूएन के अनुसार 2050 में दुनिया की आबादी 980 करोड़ होगी।
दुनिया का उदाहरण
देश का उदाहरण