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दुनियाभर में मास्क और सोशल डिस्टेंसिंग की धज्जियां उड़ाने वाले देशों के लिए एक मिसाल है इटली का नोर्टोसे। इस कस्बे में सिर्फ दो लोग रहते हैं। फिर भी दोनों सख्ती से सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हैं और मास्क लगाना कभी नहीं भूलते। दोनों ही रिटायर्ड हैं।
जियोवेनी केरिली (82) और जियामपीरो नोबिली (74) हर समय मास्क लगाकर रखते हैं। मुलाकात होने पर कम से कम एक मीटर की दूरी बनाकर रखते हैं। इनका कोई पड़ोसी नहीं है, बमुश्किल ही ये दोनों नगर के बाहर जाते हैं। नोर्टोसे कस्बा नेरिना वैली से करीब 900 मीटर की ऊंचाई पर है। यहां पर पहुंचना भी आसान नहीं है।
केरिली और नोबिली मानते हैं कि वो दोनों ही वायरस से सुरक्षित नहीं हैं, क्योंकि इटली में 37 हजार लोगों की मौत हो चुकी है। केरिली कहते हैं, मुझे वायरस से होने वाली मौत से डर लगता है। अगर मैं संक्रमित हुआ तो मेरी देखभाल कौन करेगा। बेशक मैं बूढ़ा हो गया हूं, लेकिन अपनी भेड़, शराब, मधुमक्खी के छत्तों और ऑर्चर्ड के पेड़ों की देखभाल में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहता।
मास्क ना लगाने पर 1.21 लाख रुपए तक का फाइन
इटली में आप घर में हैं या बाहर, मास्क और एक मीटर की सोशल डिस्टेंसिंग जरूरी है। मास्क न लगाने पर यहां 48 हजार से लेकर 1.21 लाख रुपए तक फाइन लगाया जाता है। नोबिली कहते हैं, महामारी के इस दौर में लागू हुए नियमों नहीं मानते हैं तो यह देश को शर्मिंदा करने जैसा है। सेहत के लिहाज से भी इन नियमों को मानना जरूरी है।
नोबिली कहते हैं, यहां सवाल अच्छे या बुरे का नहीं, बल्कि खुद को बचाने का है। मैं घर में किसी मेहमान के साथ बैठता हूं तो 2 मीटर की दूरी बनाकर रखता हूं।
केरिली का बचपन इसी गांव में बीता है। नौकरी की तलाश में वह रोम गए थे, लेकिन रिटायरमेंट के बाद गांव लौटे। नोबिली केरिली के बहनोई के भाई हैं। नोबिली उम्र के इस पड़ाव पर भी जूलरी बनाने का काम करते हैं। वह कहते हैं कि आसपास के जंगल और प्रकृति की खूबसूरती उन्हें इंस्पायर करती है।
90 के दशक में भूकंप आए इसलिए लोग नगर को छोड़ रोम चले गए
वह कहते हैं- 90 के दशक में यहां लगातार भूकंप आ रहे थे और काफी कुछ तबाह हो गया। धीरे-धीरे यहां के ज्यादातर लोग काम की तलाश में रोम और दूसरे शहर चले गए। अक्सर कैरिली अपने कुत्ते और 5 भेड़ों के साथ वॉक पर निकलते हैं जहां उनकी मुलाकात नोबिली से होती है।
शहर से जोड़ने वाली सिर्फ एक ही सड़क, वहां भी सन्नाटा
नोर्टोसे को शहर से जोड़ने वाली एक ही सड़क है, जहां से कोई गुजरता तक नहीं है। रोड पर वही लोग नजर आते हैं, जो नोर्टोसे आना चाहते हैं। वो भी गर्मियों की छुट्टियों में दिखते हैं, जब लोग अपने पैतृक गांव कुछ समय बिताने पहुंचते हैं।
यहां कोई भी होटल, रेस्तरां और मार्केट नहीं
केरिली कहते हैं, यहां होटल, रेस्तरां और मिनी-मार्केट तक नहीं है। जरूरी सामान की खरीदारी के लिए शहर जाना पड़ता है। हम यहां पर सिम्पल लाइफस्टाइल फॉलो करते हैं। जहां शांति है, ताजी ऑक्सीजन है, साफ झरने का पानी है। जब भी मुझे शहर जाना पड़ता है तो मैं बीमार महसूस करता हूं, मुझे शहर के शोर से नफरत है।
यहां की लाइफस्टाइल बेहद खूबसूरत है, लेकिन यहां न तो डॉक्टर हैं और न ही कोई फार्मेसी।
जल्द ही शरीर में कोरोना की संख्या बढ़ने से रोका जा सकेगा। अमेरिकी वैज्ञानिकों ने वायरस के रेप्लिकेशन को रोकने का नया तरीका विकसित किया है। रिसर्च करने वाली यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्सास हेल्थ साइंस के वैज्ञानिकों का कहना है, कोरोना जिस प्रोटीन की मदद से संक्रमण के बाद शरीर में अपनी संख्या को बढ़ाता है, उसी प्रोटीन को ब्लॉक किया जाएगा। इस तरह वायरस रेप्लिकेशन रोका जा सकेगा।
मरीज का हालत नाजुक बनाता है कोरोना का PLpro एंजाइम
रिसर्चर्स का कहना है कि SARS-CoV-2-PLpro एंजाइम की मदद से अपनी संख्या को बढ़ाता है। हमनें दो मॉलिक्यूल विकसित किए हैं। ये उसी एंजाइम को ब्लॉक करते हैं। जर्नल साइंस में पब्लिश रिसर्च के मुताबिक, कोरोना का PLpro एंजाइम संक्रमण की गंभीरता को बढ़ाता है।
इसलिए मरीज की हालत नाजुक हो जाती है
यूनिवर्सिटी के एसोसिएट प्रो. शाउन के. ऑल्सेन ने कहा, कोरोना का एंजाइम दो तरह से इंसान के लिए दिक्कत बढ़ाता है। पहला, यह एंजाइम उस प्रोटीन को रिलीज करता है जो कोरोना को अपनी संख्या बढ़ाने में मदद करता है। दूसरा, यह इंफेक्शन होने पर इम्यून सिस्टम को अलर्ट करने वाले साइटोकाइन और केमोकाइंस को रोकता है। इसलिए मरीज की हालत नाजुक होती जाती है।
कोरोना का स्ट्रेन बदलने पर भी फर्क यह तरीका असरदार
प्रो. शाउन कहते हैं, हमनें जो मॉलिक्यूल तैयार किए हैं उसका भविष्य में भी बेहतर इस्तेमाल किया जा सकता है। अगर भविष्य में कोरोना का दूसरा स्ट्रेन सामने आता है तो मॉलिक्यूल में बदलाव के बाद उसका प्रयोग नए स्ट्रेन पर किया जा सकेगा।