Thursday, October 22, 2020
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Experts Tell F.D.A. It Should Gather More Safety Data on Covid-19 Vaccines
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Schoolchildren Seem Unlikely to Fuel Coronavirus Surges, Scientists Say
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F.D.A. Approves Remdesivir as First Drug to Treat Covid-19
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30 सेकंड तक ओरल एंटीसेप्टिक और माउथवॉश से गरारा करते हैं तो मुंह में मौजूद कोरोना को 99% तक न्यूट्रल कर सकते हैं, अमेरिकी रिसर्चर्स का दावा
ओरल एंटीसेप्टिक और माउथवॉश कोरोना को न्यूट्रल कर सकते हैं। वैज्ञानिकों का कहना है, संक्रमण के बाद अगर इनसे मुंह की सफाई होती है तो वायरस को आगे बढ़ने से रोका जा सकता है। लैब में हुए प्रयोग में यह साबित भी हो चुका है। अमेरिकी वैज्ञानिकों के मुताबिक, नाक और मुंह की सफाई करके कोरोना को न्यूट्रल किया जा सकता है, इससे संक्रमित शख्स में वायरस की संख्या घटती है।
ऐसे हुई रिसर्च
रिसर्च करने वाली पेन्सिलवेनिया यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों का कहना है, लैब में ओरल एंटीसेप्टिक, माउथवॉश और बेबी शैंपू का प्रयोग इंसान में मिलने वाले कोरोनावायरस पर किया गया। फिर इन अलग-अलग चीजों का वायरस पर असर देखा गया। हर 30 सेकंड, 1 मिनट और 32 मिनट बाद असर की जांच हुई। कोरोना किस हद तक खत्म हुआ है, इसे समझने के लिए उस साॅल्यूशन में इंसानी कोशिकाएं डालीं। फिर ये देखा कि कितनी कोशिकाएं जिंदा रहीं।
बेबी शैम्पू से 2 मिनट और माउथवॉश से 30 सेकंड में न्यूट्रल हुआ वायरस
जर्नल ऑफ मेडिकल वायरोलॉजी में पब्लिश रिसर्च के मुताबिक, बेबी शैम्पू के 1% सॉल्यूशन से भी दो मिनट में 99.9 तक कोरोनावायरस को निष्क्रिय यानी न्यूट्रल किया जा सकता है। अगर माउथवॉश का प्रयोग करते हैं तो 30 सेकंड तक गरारा करके 99.99% तक कोरोनावायरस को न्यूट्रल कर सकते हैं। कोरोना मरीजों और क्वारैंटाइन में रह रहे लोगों के लिए माउथवॉश और ओरल एंटीसेप्टिक काफी असरदार साबित हो सकता है।
जब तक वैक्सीन नहीं, संक्रमण रोकने का नया तरीका ढूंढना जरूरी
पेन्सिलवेनिया यूनिवर्सिटी के माइक्रोबायोलॉजिस्ट क्रेग मेयर्स का कहना है, जब तक वैक्सीन नहीं है, जब तक कोरोना के संक्रमण को घटाने का नया तरीका खोजने की जरूरत है। हमने वायरस की संख्या घटाने के लिए ओरल एंटीसेप्टिक और माउथवॉश का इस्तेमाल किया है। यह आसानी से उपलबध है और लोग डेली रूटीन में इस्तेमाल कर भी रहे हैं।
हाल ही में हुईं कई रिसर्च बताती हैं कि नाक और ओरल कैविटी कोरोना का एंट्री पॉइंट है, जहां पहुंचकर ये संक्रमण फैलाता है।
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मां कालरात्रि की आराधना से हर तरह का भय होगा नष्ट, समस्या को हल करने की अद्भुत शक्ति मिलेगी
मां कालरात्रि दुर्गा का सातवां स्वरूप है । यह स्वरूप काल का नाश करने वाला है, इसी वजह से इन्हें कालरात्रि कहा जाता है। इनका वर्ण अंधकार की भांति एकदम काला है। बाल बिखरे हुए हैं और इनकी माला बिजली की भांति देदीप्यमान है। इन्हें तमाम आसुरिक शक्तियों का विनाश करने वाला बताया गया है।
वाहन व स्वरूप
इनका वाहन गर्दभ अर्थात् गधा है। माता कालरात्रि के तीन नेत्र और चार हाथ हैं। एक हाथ में खड्ग है तो दूसरे में लौहास्त्र, तीसरे हाथ में अभय-मुद्रा है और चौथे हाथ में वर-मुद्रा है।
महत्त्व
मां कालरात्रि की आराधना के समय भानु चक्र जाग्रत होता है। हर प्रकार का भय नष्ट होता है। जीवन की हर समस्या को पलभर में हल करने की शक्ति प्राप्त होती है।
भारत की अग्नि मिसाइलें। वे अस्त्र जिनसे हमारे सभी दुश्मन खौफ खाते हैं। वे अस्त्र जिनके जरिए हमें परमाणु हथियारों को दुश्मन की सरजमीं तक पहुंचाने की क्षमता हासिल हुई। यों तो इन मिसाइलों को डिफेंस रिसर्च एंड डवलपमेंट ऑर्गेनाइजेशन (डीआरडीओ) ने विकसित किया है, मगर इनमें वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. टेसी थॉमस की सबसे बड़ी भूमिका है। वह अग्नि-3 मिसाइल प्रोजेक्ट की एसोसिएट डायरेक्टर रहीं तो अग्नि-4 और अग्नि-5 प्रोजेक्ट्स की डायरेक्टर। यानी अग्नि-4 और अग्नि-5 मिसाइल प्रोजेक्ट्स की अगुवाई पूरी तरह टेसी थॉमस ने की। भारत के किसी मिसाइल प्रोजेक्ट को लीड करने वाली वह पहली महिला हैं। उन्होंने लंबी दूरी की मिसाइलों के लिए गाइडेंस स्कीम का डिजाइन बनाया है। यही डिजाइन सभी अग्नि मिसाइलों में इस्तेमाल किया जाता है। यही वजह है कि डॉ. टेसी थामस को भारत की मिसाइल वूमेन और अग्निपुत्री भी कहा गया। अग्नि -3 की मारक दूरी 3 हजार किलोमीटर है, तो अग्नि-4 की 3.5 से 4 हजार किलोमीटर। वहीं, अग्नि-5 मिसाइल 5 हजार किलोमीटर दूर तक दुश्मन पर तबाही बरपा सकती है।
डॉ. कलाम ने मिसाइल कार्यक्रम से जोड़ा
डॉ. टेसी 1988 में डीआरडीओ में शामिल हुईं। डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम ने उनको नई पीढ़ी की बैलेस्टिक मिसाइल अग्नि कार्यक्रम से जोड़ा था। अग्नि-5 मिसाइल का 9 अप्रैल, 2012 को सफलतापूर्वक परीक्षण किया गया। इसके बाद उन्हें डीआरडीओ के एयरोनॉटिकल सिस्टम्स की डायरेक्टर जनरल बनाया गया। मिसाइल तकनीक में भारत को आत्मनिर्भर बनाने के लिए डॉ. टेसी को लाल बहादुर शास्त्री नेशनल अवार्ड दिया गया।
डॉ. टेसी को तो बॉलीवुड एक्टर से ज्यादा मशहूर होना चाहिए
उन्होंने कलीकट यूनिवर्सिटी से इलेक्ट्रिकल में बीटेक किया है। इसके बाद पूणे यूनिवर्सिटी से एमई (गाइडेड मिसाइल) किया। वह ऑपरेशंस मैनेजमेंट में एमबीए और मिसाइल गाइडेंस में पीएचडी कर चुकी हैं। उन्हें पांच यूनिवर्सिटीज से डॉक्टर ऑफ साइंस की उपाधि मिल चुकी है। बिजनेस टाईकून आनंद महिंद्रा ने एक बार कहा था कि टेसी को किसी बॉलीवुड एक्टर से ज्यादा मशहूर होना चाहिए।
आठवीं क्लास में थीं, जब पिता को हो गया था पैरालिसिस
टेसी का जन्म केरल के अलापुझा (एलेप्पी) में 1963 में हुआ था। मदर टेरेसा के नाम पर उनका नाम टेसी रखा गया। उनके पिता एक छोटे व्यवसायी थे। उनकी चार बहनें और एक भाई हैं। टेसी 8 क्लास में थीं तो उनके पिता को पैरालिसिस हो गया। मां टीचर तो थीं, लेकिन तब वह जॉब नहीं करती थीं। टेसी का कहना है कि इस घटना के बाद मां ने सोचा कि जीवन चलाने के लिए सभी को पढ़-लिखकर कुछ करना जरूरी है। यही बात सभी भाई बहनों के दिल में घर कर गई। मुसीबत के बावजूद सभी ने मेहनत से पढ़ाई की और आज सभी अच्छे पदों पर हैं। डॉ. टेसी के पति सरोज कुमार भारतीय नौसेना में कमांडर हैं। उनका एक बेटा है, जिसका नाम तेजस है।
घर के करीब था रॉकेट लॉन्चिंग स्टेशन, इसलिए पनपा जुनून
टेसी का मिसाइलों की अद्भुत दुनिया से परिचय बचपन में ही हो गया था। दरअसल, थुंबा रॉकेट लॉन्चिंग स्टेशन के पास ही उनका घर था। यहां से उड़ान भरते रॉकेट देखकर उनके मन में रिसर्च के लिए जुनून पैदा हुआ, जो समय के साथ और बढ़ गया। उन्हें कम उम्र से ही मैथ्स और साइंस बेहद पसंद थे। 11 और 12 वीं क्लास में उन्होंने मैथ्स में 100 में से 100 मार्क्स हासिल किए है।
नाकामी भी मिली, मगर कड़ी मेहनत से उसे कामयाबी में बदला
अग्नि-5 की गड़गड़ाहट का सफर आसान नहीं था। हर कदम पर असफलताओं ने भी टेसी का स्वागत किया, लेकिन उन्होंने इन्हें सुधार का मौका माना और आगे बढ़ती रहीं। जुलाई 2006 में एक मिसाइल परीक्षण नाकाम रहा, लेकिन फौलादी इरादों वाली टेसी ने इसे एक और चुनौती के रूप में लिया। उन्होंने रोज 12 से 16 घंटे काम किया। इस दौरान काम के दौरान कई बार उनका बेटा तेजस बीमार पड़ा, लेकिन वह अपना काम तय शेड्यूल से करती रहीं। अप्रत्याशित रूप से सिर्फ दस महीनों के भीतर उन्होंने मिसाइल सिस्टम की कमियों को दूर कर दिया। इस बार परीक्षण कामयाब रहा।
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