Friday, November 13, 2020
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पटाखे जलाना पर्यावरण के लिए बेहतर, बारूद की खुशबू से होता है मच्छरों का सफाया? जानें इस दावे का सच
क्या हो रहा है वायरल : सोशल मीडिया पर एक मैसेज वायरल हो रहा है। इसमें दावा किया जा रहा है कि दिवाली पर पटाखे जलाने से पर्यावरण को फायदा भी होता है।
वायरल मैसेज में दावा है कि बारूद की खुशबू से मच्छरों और कई तरह के कीड़ों का सफाया हो जाता है। इसलिए बड़ी तादात में पटाखे फोड़े जाने चाहिए।
दिवाली पर हर साल की तरह इस साल भी पटाखों से फैलने वाले प्रदूषण को लेकर बहस छिड़ी हुई है। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) ने दिल्ली-एनसीआर में 9 से 30 नवंबर तक पटाखों की बिक्री पर रोक लगा दी है। न सिर्फ दिल्ली, बल्कि देश के जिन-जिन राज्यों में एयर क्वालिटी खराब है, वहां भी पटाखे नहीं बेचे जाएंगे
एक बड़ा तबका मानता है कि लोगों को पटाखे जलाने से रोकना गलत है। ट्विटर पर #हम_तो_पटाखे_फोड़ेंगे टॉप ट्रेंड में चल रहा है। सोशल मीडिया पर प्रदूषण के पीछे पटाखों को जिम्मेदार ठहराए जाने वाले तर्कों के विरोध में कई मैसेज वायरल हो रहे हैं। ऐसे ही एक मैसेज की दैनिक भास्कर ने पड़ताल की।
और सच क्या है ?
- गूगल पर हमें अलग-अलग कीवर्ड सर्च करने से भी ऐसी कोई रिसर्च रिपोर्ट नहीं मिली। जिससे पुष्टि होती हो कि बारूद की खुशबू से मच्छरों और कीड़ों का सफाया होता है।
- बारूद से मच्छरों का सफाया होने वाले दावे का सच जानने के लिए हमने जामिया मिल्लिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी में बायोटेक्नोलॉजी के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. कपिल देव से संपर्क किया। उन्होंने सोशल मीडिया पर किए जा रहे इस दावे को भ्रामक बताया।
- डॉ. कपिल के अनुसार, पटाखों से होने वाले धुएं से मच्छर भागते हैं, ये बात सही है। लेकिन, यह धुआं मच्छरों से ज्यादा इंसानों के लिए हानिकारक है। वहीं बारूद की खुशबू से मच्छरों या अन्य कीड़ों का सफाया होने वाली बात अब तक किसी भी साइंटिफिक स्टडी में सिद्ध नहीं हुई है।
- 2018 में यूनिवर्सिटी ऑफ मिनेसोटा और नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ फाइनेंस एंड पॉलिसी ने दिल्ली की खराब हवा पर पटाखों के असर पर एक रिसर्च की थी। इसके लिए 2013 से 2016 तक का डेटा लिया गया था।
- इस रिसर्च के मुताबिक, दिल्ली में हर साल दिवाली के अगले दिन PM 2.5 की मात्रा 40% तक बढ़ती है। दिवाली के दिन शाम 6 बजे से रात 11 बजे के बीच PM2.5 में 100% की बढ़ोतरी हो गई। PM2.5 यानी हवा में मौजूद छोटे-छोटे कण। इन कणों के बढ़ने से ही एयर क्वालिटी खराब होती है।
- इन सबसे साफ है कि सोशल मीडिया पर किया जा रहा पटाखों से पर्यावरण को होने वाले फायदे से जुड़ा दावा पूरी तरह फेक है।
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Daily horoscope for November 14: YOUR star sign reading, astrology and zodiac forecast
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कोरोना का खतरा घटाने के लिए डायबिटीज के रोगी ब्लड शुगर कंट्रोल में रखें, एक्सरसाइज करें और खाने में प्रोटीन अधिक लें
महामारी में एक बात साबित हो चुकी है कि डायबिटीज के मरीजों में कोरोना का संक्रमण होने का खतरा अधिक है। कोरोना के संक्रमण से जूझने वाले 25 मरीज डायबिटीज से परेशान हैं। देश में डायबिटीज के ज्यादातर रोगी 28 से 60 साल के बीच के हैं। इसलिए कोरोना के मामले बढ़ने का खतरा भी ज्यादा है।
एक और बात सबसे ज्यादा परेशान करने वाली है। कोविड-19 स्वस्थ लोगों में डायबिटीज की वजह भी बन सकता है और जो पहले से डायबिटीज से जूझ रहे हैं उनकी हालत और बिगाड़ सकता है। दुनियाभर के 17 अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञों की टीम के एक पैनल ने दुनियाभर के कई मामलों पर रिसर्च के बाद ये बात कही है। अब तक हुए क्लीनिकल ट्रायल में कोविड-19 और डायबिटीज के बीच ये महत्वपूर्ण कनेक्शन ढूंढ़ा गया है।
आज वर्ल्ड डायबिटीज डे है, इस मौके पर एक्सपर्ट से जानिए कोरोना और डायबिटीज का क्या है कनेक्शन...
4 पॉइंट से समझिए कोविड-19 और डायबिटीज का कनेक्शन
- स्वस्थ लोगों में ऐसे बढ़ता है खतरा: एसएमएस हॉस्पिटल जयपुर के डायबिटोलॉजिस्ट डॉ. प्रकाश केसवानी का कहना है कि कोविड-19 का वायरस सीधे पेंक्रियाज में मौजूद इंसुलिन बनाने वाली बीटा कोशिकाओं को संक्रमित कर सकता है। बीटा कोशिकाओं के डैमेज होने पर मरीजों में इंसुलिन बनने की कैपेसिटी कम हो जाएगी। ऐसे में जो स्वस्थ हैं उनमें भी नई डायबिटीज का खतरा बढ़ेगा।
- टाइप-1 डायबिटीज भी हो सकती है: कई बार संक्रमण ज्यादा गंभीर होता है, ऐसी स्थिति में टाइप-1 डायबिटीज या डायबिटिक कीटोएसिडोसिस भी हो सकता है। डायबिटिक कीटोएसिडोसिस उस स्थिति को कहते हैं जब इंसुलिन की बहुत अधिक कमी के कारण शरीर में शुगर का लेवल ज्यादा बढ़ जाता है।
- स्ट्रेस भी एक फैक्टर है: अगर किसी में डायबिटीज की शुरुआत हुई है और उसे नहीं मालूम है, इस दौरान वायरस का संक्रमण होता है तो स्ट्रेस के कारण भी नई डाइबिटीज विकसित हो सकती है।
- इसलिए डायबिटिक लोगों को खतरा ज्यादा: डायबिटीज के रोगियों में हर संक्रमण का खतरा ज्यादा होता है। ऐसे रोगियों में इम्यून सिस्टम की कोशिकाओं (लिम्फोसाइट्स, न्यूट्रोफिल्स) की कार्य क्षमता कम हो जाती है। इस वजह से शरीर में एंटीबॉडीज कम बनती हैं। बीमारी से लड़ने की ताकत कम होने के कारण ये बाहरी चीजों (वायरस, बैक्टीरिया) को खत्म नहीं कर पाती नतीजा जान का जोखिम बढ़ता जाता है।
ऐसे मरीजों में ऑक्सीजन का लेवल घटने का खतरा अधिक
मुम्बई के जसलोक हॉस्पिटल के डायबिटीज एक्सपर्ट शैवाल चंडालिया कहते हैं, डायबिटीज के मरीजों में संक्रमण हुआ तो ऑक्सीजन का लेवल घट सकता है और वेंटिलेटर की जरूरत पड़ सकती है। इनमें हार्ट अटैक और स्ट्रोक का खतरा भी अधिक रहता है। कोरोना के कुछ मरीजों को इलाज के दौरान स्टेरॉयड्स दिए जाते हैं जो ब्लड शुगर का लेवल बढ़ा सकते हैं। ऐसे में मरीज को इंसुलिन देकर स्थिति को कंट्रोल किया जाता है। एक और बात का ध्यान रखने की जरूरत है, शरीर में पानी की कमी बिल्कुल न होने दें।
कोरोना से जूझने वाले मरीजों को इमरजेंसी केयर की जरूरत
इंद्रप्रस्थ अपोलो हॉस्पिटल के एंड्रोक्राइनोलॉजी की सीनियर कंसल्टेंट डॉ. रिचा चतुर्वेदी ने बताया, अगर टाइप-2 डायबिटीज वालों में कोरोना का संक्रमण होता तो हालत नाजुक होने का खतरा ज्यादा रहता है। संक्रमण के बाद जैसे-जैसे वायरस अपना असर छोड़ता है मरीज में सूजन बढ़ती जाती है।
ऐसे मरीजों में थकान, मांसपेशियों में दर्द, अधिक प्यास लगना, बार-बार पेशाब करना, सांस लेने में तकलीफ होना और सांस लेने में तकलीफ होने जैसे लक्षण नजर आते हैं। इन्हें इमरजेंसी केयर की जरूरत होती है।
इंद्रप्रस्थ अपोलो हॉस्पिटल के रेस्पिरेट्री मेडिसिन एक्सपर्ट डॉ. निखिल मोदी कहते हैं, हॉस्पिटल में आने वाले कोरोना के मरीजों में 20 से 30 फीसदी तक डायबिटीज के रोगी थे। इनकी हालत नाजुक थी। इनके लिए डायबिटीज से जुड़ी दवाएं और इंसुलिन लेना जरूरी था।
महामारी में सबसे जरूरी सलाह है कि शुगर लेवल कंट्रोल में रखें, दवाएं समय पर लें। इसके अलावा सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करें और बिना मास्क बाहर न निकलें।
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