
HAIR loss is usually the result of complex processes, some of which are genetic. Hair loss can also be caused by unhealthy eating habits - here's what to avoid.
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अमेरिकी वैज्ञानिकों ने ऐसा इनहेलर बनाया है जो कोरोना को रोकने में पीपीई से भी ज्यादा सुरक्षा देगा। यह दावा कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने अपनी रिसर्च में किया है। इस इनहेलर को ऐरोनैब्स नाम दिया है, जिसे इस्तेमाल करने के लिए नाक में स्प्रे करना होगा।
इस इंहेलर में खास तरह की नैनोबॉडीज हैं जो एंटीबॉडी से तैयार की गईं। ये एंटीबॉडीज लामा और ऊंट जैसे जानवरों में पाई जाती है जो शरीर को तगड़ी इम्युनिटी देती हैं। लेकिन इनहेलर में मौजूद नैनोबॉडीज को लैब में तैयार किया है। ये जेनेटिकली मोडिफाइड हैं जो खासतौर पर कोरोना को ब्लॉक करने के लिए विकसित की गई हैं।
क्या होती हैं नैनोबॉडीज
लैब में प्रयोग के दौरान देखा गया है कि कोरोना को शरीर में संक्रमण फैलाने से रोकने में एंटीबॉडीज काम करती हैं। एंटीबॉडीज की तरह नैनोबॉडीज भी प्रोटीन से बनी होती हैं। यह एंटीबॉडीज का छोटा रूप होती हैं और अधिक संख्या में बनाई जा सकती हैं। नैनोबॉडीज की खोज 1980 में बेल्जियम की लैब में हुई थी।
ऐसे कोरोना को रोकती हैं नैनोबॉडीज
शोधकर्ताओं के मुताबिक, जब कोरोना संक्रमण फैलाने के लिए अपने स्पाइक प्रोटीन से इंसान के ACE2 रिसेप्टर से जुड़ता है तो वहीं पर ये नैनोबॉडीज उसके प्रोटीन को ब्लॉक कर देती है। ऐसा होने पर वायरस ACE2 रिसेप्टर से नहीं जुड़ पाता और संक्रमण नहीं होता। ACE2 रिसेप्टर इंसानी कोशिशकाओं की सतह पा पाया जाता है जिससे कोरोना के संक्रमण का एंट्री पॉइंट है।
सार्स महामारी के समय भी नैनोबॉडीज से न्यूट्रल हुआ था कोरोना
शोधकर्ता पीटर वॉल्टर के मुताबिक, जब तक वैक्सीन नहीं बन जाती है या जिन्हें उपलब्ध नहीं हो पाती तब तक एरोनैब्स वायरस से सुरक्षित रखने का स्थायी विकल्प हो सकता है। सार्स महामारी के समय भी कोरोनावायरस को न्यूट्रल करने के लिए नैनोबॉडीज तैयार की गई थीं। शोधकर्ता डॉ. आशीष मांगलिक के मुताबिक, शोधकर्ताओं ने लैब में 21 ऐसी नैनोबॉडीज बनाईं जो कोरोना के विरुद्ध काम करती हैं।
जल्द शुरू होगा ह्यूमन ट्रायल
शोधकर्ता इस नेजल स्प्रे को लोगों तक पहुंचाने के लिए मैन्युफैक्चरिंग फर्म से करार कर रहे हैं। उम्मीद है जल्द ही इसका ह्यूमन ट्रायल शुरू हो सकेगा। अगर यह 100 फीसदी उम्मीदों पर खरा उतरता है तो इस महामारी को रोकने में बहुत आसान और सुविधाजनक उपाय बन सकता है।
जमैका के क्वीन्स में रहने वाले 78 साल के मिलफोर्ड ग्रेव्स पेशे से संगीतज्ञ हैं। 1960 के दशक में ड्रमर के रूप में उनकी ख्याति थी। धीरे-धीरे उन्होंने संगीत के साथ-साथ दिल की धड़कनों को भी सुनना शुरू कर दिया। उनकी रिद्म का स्रोत दिल की धड़कनें रहीं। वह कहते कि इससे पर्सनल म्यूजिक तैयार किया जा सकता है। लेकिन अब मिलफोर्ड दिल की धड़कनों को सुनकर म्यूजिक थैरेपी से अपना इलाज कर रहे हैं।
2018 में हुई कार्डियोमायोपैथी
मिलफोर्ड को 2018 में मिलॉइड कार्डियोमायोपैथी नाम की बीमारी हो गई थी। डॉक्टर्स ने कह दिया था कि उनके पास महज छह महीने ही बचे हैं। इस बीच कई बार वह मौत के मुंह से बचकर वापस भी आए। मिलफोर्ड अब हृदयविशेषज्ञों की देखरेख के अलावा म्यूजिक थैरेपी से भी अपना इलाज कर रहे हैं।
स्टेथोस्कोप से सुनते हैं दिल की धड़कन
मिलफोर्ड स्टेथोस्कोप से अपने दिल की धड़कन सुनकर, अल्ट्रासाउंड मशीन के जरिए उसे रिकॉर्ड कर रहे हैं। उस रिद्म को ड्रम पर बजा रहे हैं, गा रहे हैं। इलेक्ट्रॉनिक ट्रांसड्यूसर्स की मदद से वह ड्रमहेड पर अपनी ही दिल की धड़कनों की रिकॉर्डिंग प्ले करते हैं। इन सारी गतिविधियों की वह वीडियो रिकॉर्डिंग भी करा रहे हैं।
हेल्दी रिद्म तैयार करने का दावा
मिलफोर्ड को विश्वास है कि अस्वस्थ दिल की धड़कनों को सुनकर उनकी म्यूजिकली एडजस्ट करके नई और हेल्दी रिद्म तैयार की जा सकती है। बायोफीडबैक के जरिए इसका इस्तेमाल दिल के इलाज में भी किया जा सकता है। मिलफोर्ड कहते हैं कि उन्हें नहीं पता कि उनके पास जीने के लिए कितने दिन बचे हैं, लेकिन अगर रिसर्च सही दिशा में आगे बढ़ी तो, कई लोगों को फायदा मिल सकता है।
न चीन को किसी की परवाह है और न ही रूस को। दोनों ही ने विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) या अंतरराष्ट्रीय आलोचनाओं की परवाह किए बिना अपने वैक्सीन अप्रूव कर दिए हैं। चीन ने कैनसिनो बायोलॉजिक्स के वैक्सीन को लिमिटेड इस्तेमाल के लिए अप्रूव किया है और चीनी मिलिट्री के लिए यह उपलब्ध है। वहीं, रूस ने एक कदम आगे बढ़ते हुए गामालेया रिसर्च इंस्टीट्यूट के वैक्सीन को सबके लिए अप्रूव कर दिया। दोनों वैक्सीन अभी फेज-3 की टेस्टिंग के दौर से गुजर रहे हैं। अब तक पूरी तरह इफेक्टिव और सेफ भी साबित नहीं हुए हैं।
वहीं, कोरोना संक्रमण की बढ़ती दर के साथ दुनिया के टॉप-3 देशों में शामिल भारत में कोरोना वैक्सीन तो बन गए हैं। लेकिन इस्तेमाल के लिए साल के अंत तक उपलब्ध होंगे। भारत में वैक्सीन के लिए देर क्यों लग रही है? और भारत में कब तक मिलने लगेगा इफेक्टिव और सेफ वैक्सीन?
सबसे पहले बात, रूस के वैक्सीन की...
रूस ने इतनी जल्दी कैसे बना लिया वैक्सीन?
रूसी वैक्सीन में सब इतना अच्छा है तो दिक्कत क्या है?
ऐसे तो भारत भी जल्दी ला सकता है वैक्सीन?