Thursday, August 13, 2020
Hair loss warning: The food you eat every day could be accelerating hair loss
HAIR loss is usually the result of complex processes, some of which are genetic. Hair loss can also be caused by unhealthy eating habits - here's what to avoid.
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अमेरिकी वैज्ञानिकों का दावा - नैनोबॉडीज वाला एंटी कोरोना नेजल स्प्रे वायरस को नाक से आगे बढ़ने नहीं देगा, यह पीपीई से भी ज्यादा असरदार है
अमेरिकी वैज्ञानिकों ने ऐसा इनहेलर बनाया है जो कोरोना को रोकने में पीपीई से भी ज्यादा सुरक्षा देगा। यह दावा कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने अपनी रिसर्च में किया है। इस इनहेलर को ऐरोनैब्स नाम दिया है, जिसे इस्तेमाल करने के लिए नाक में स्प्रे करना होगा।
इस इंहेलर में खास तरह की नैनोबॉडीज हैं जो एंटीबॉडी से तैयार की गईं। ये एंटीबॉडीज लामा और ऊंट जैसे जानवरों में पाई जाती है जो शरीर को तगड़ी इम्युनिटी देती हैं। लेकिन इनहेलर में मौजूद नैनोबॉडीज को लैब में तैयार किया है। ये जेनेटिकली मोडिफाइड हैं जो खासतौर पर कोरोना को ब्लॉक करने के लिए विकसित की गई हैं।
क्या होती हैं नैनोबॉडीज
लैब में प्रयोग के दौरान देखा गया है कि कोरोना को शरीर में संक्रमण फैलाने से रोकने में एंटीबॉडीज काम करती हैं। एंटीबॉडीज की तरह नैनोबॉडीज भी प्रोटीन से बनी होती हैं। यह एंटीबॉडीज का छोटा रूप होती हैं और अधिक संख्या में बनाई जा सकती हैं। नैनोबॉडीज की खोज 1980 में बेल्जियम की लैब में हुई थी।
ऐसे कोरोना को रोकती हैं नैनोबॉडीज
शोधकर्ताओं के मुताबिक, जब कोरोना संक्रमण फैलाने के लिए अपने स्पाइक प्रोटीन से इंसान के ACE2 रिसेप्टर से जुड़ता है तो वहीं पर ये नैनोबॉडीज उसके प्रोटीन को ब्लॉक कर देती है। ऐसा होने पर वायरस ACE2 रिसेप्टर से नहीं जुड़ पाता और संक्रमण नहीं होता। ACE2 रिसेप्टर इंसानी कोशिशकाओं की सतह पा पाया जाता है जिससे कोरोना के संक्रमण का एंट्री पॉइंट है।
सार्स महामारी के समय भी नैनोबॉडीज से न्यूट्रल हुआ था कोरोना
शोधकर्ता पीटर वॉल्टर के मुताबिक, जब तक वैक्सीन नहीं बन जाती है या जिन्हें उपलब्ध नहीं हो पाती तब तक एरोनैब्स वायरस से सुरक्षित रखने का स्थायी विकल्प हो सकता है। सार्स महामारी के समय भी कोरोनावायरस को न्यूट्रल करने के लिए नैनोबॉडीज तैयार की गई थीं। शोधकर्ता डॉ. आशीष मांगलिक के मुताबिक, शोधकर्ताओं ने लैब में 21 ऐसी नैनोबॉडीज बनाईं जो कोरोना के विरुद्ध काम करती हैं।
जल्द शुरू होगा ह्यूमन ट्रायल
शोधकर्ता इस नेजल स्प्रे को लोगों तक पहुंचाने के लिए मैन्युफैक्चरिंग फर्म से करार कर रहे हैं। उम्मीद है जल्द ही इसका ह्यूमन ट्रायल शुरू हो सकेगा। अगर यह 100 फीसदी उम्मीदों पर खरा उतरता है तो इस महामारी को रोकने में बहुत आसान और सुविधाजनक उपाय बन सकता है।
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45 सालों से हार्टबीट सुनकर संगीत बना रहे 78 वर्षीय मिलफोर्ड, अब हार्टबीट से अपना ही इलाज कर रहे; कभी डॉक्टरों ने कहा था 6 माह ही जिंदा रह पाएंगे
जमैका के क्वीन्स में रहने वाले 78 साल के मिलफोर्ड ग्रेव्स पेशे से संगीतज्ञ हैं। 1960 के दशक में ड्रमर के रूप में उनकी ख्याति थी। धीरे-धीरे उन्होंने संगीत के साथ-साथ दिल की धड़कनों को भी सुनना शुरू कर दिया। उनकी रिद्म का स्रोत दिल की धड़कनें रहीं। वह कहते कि इससे पर्सनल म्यूजिक तैयार किया जा सकता है। लेकिन अब मिलफोर्ड दिल की धड़कनों को सुनकर म्यूजिक थैरेपी से अपना इलाज कर रहे हैं।
2018 में हुई कार्डियोमायोपैथी
मिलफोर्ड को 2018 में मिलॉइड कार्डियोमायोपैथी नाम की बीमारी हो गई थी। डॉक्टर्स ने कह दिया था कि उनके पास महज छह महीने ही बचे हैं। इस बीच कई बार वह मौत के मुंह से बचकर वापस भी आए। मिलफोर्ड अब हृदयविशेषज्ञों की देखरेख के अलावा म्यूजिक थैरेपी से भी अपना इलाज कर रहे हैं।
स्टेथोस्कोप से सुनते हैं दिल की धड़कन
मिलफोर्ड स्टेथोस्कोप से अपने दिल की धड़कन सुनकर, अल्ट्रासाउंड मशीन के जरिए उसे रिकॉर्ड कर रहे हैं। उस रिद्म को ड्रम पर बजा रहे हैं, गा रहे हैं। इलेक्ट्रॉनिक ट्रांसड्यूसर्स की मदद से वह ड्रमहेड पर अपनी ही दिल की धड़कनों की रिकॉर्डिंग प्ले करते हैं। इन सारी गतिविधियों की वह वीडियो रिकॉर्डिंग भी करा रहे हैं।
हेल्दी रिद्म तैयार करने का दावा
मिलफोर्ड को विश्वास है कि अस्वस्थ दिल की धड़कनों को सुनकर उनकी म्यूजिकली एडजस्ट करके नई और हेल्दी रिद्म तैयार की जा सकती है। बायोफीडबैक के जरिए इसका इस्तेमाल दिल के इलाज में भी किया जा सकता है। मिलफोर्ड कहते हैं कि उन्हें नहीं पता कि उनके पास जीने के लिए कितने दिन बचे हैं, लेकिन अगर रिसर्च सही दिशा में आगे बढ़ी तो, कई लोगों को फायदा मिल सकता है।
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Wednesday, August 12, 2020
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कोरोना वैक्सीन ट्रैकरः रूस और चीन के वैक्सीन अप्रूव हुए; भारतीय वैक्सीन को क्यों लग रही है देर; हमें कब से मिलने लगेगा वैक्सीन?
न चीन को किसी की परवाह है और न ही रूस को। दोनों ही ने विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) या अंतरराष्ट्रीय आलोचनाओं की परवाह किए बिना अपने वैक्सीन अप्रूव कर दिए हैं। चीन ने कैनसिनो बायोलॉजिक्स के वैक्सीन को लिमिटेड इस्तेमाल के लिए अप्रूव किया है और चीनी मिलिट्री के लिए यह उपलब्ध है। वहीं, रूस ने एक कदम आगे बढ़ते हुए गामालेया रिसर्च इंस्टीट्यूट के वैक्सीन को सबके लिए अप्रूव कर दिया। दोनों वैक्सीन अभी फेज-3 की टेस्टिंग के दौर से गुजर रहे हैं। अब तक पूरी तरह इफेक्टिव और सेफ भी साबित नहीं हुए हैं।
वहीं, कोरोना संक्रमण की बढ़ती दर के साथ दुनिया के टॉप-3 देशों में शामिल भारत में कोरोना वैक्सीन तो बन गए हैं। लेकिन इस्तेमाल के लिए साल के अंत तक उपलब्ध होंगे। भारत में वैक्सीन के लिए देर क्यों लग रही है? और भारत में कब तक मिलने लगेगा इफेक्टिव और सेफ वैक्सीन?
सबसे पहले बात, रूस के वैक्सीन की...
- रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने 11 अगस्त को ऐलान किया कि गामालेया इंस्टीट्यूट ने रक्षा मंत्रालय के साथ मिलकर जो कोरोना वैक्सीन (Gam-Covid-Vac Lyo) बनाई है, उसे रजिस्टर कर लिया गया है।
- रूस ने इस वैक्सीन को जनता के इस्तेमाल के लिए मंजूर की गई दुनिया की पहली वैक्सीन के तौर पर पेश किया है। सितम्बर से इसका उत्पादन शुरू होगा और अक्टूबर से आम लोगों को वैक्सीन लगाने की शुरुआत होगी।
- पुतिन की बेटी ने भी वैक्सीन लगवाया है। रूसी राष्ट्रपति के मुताबिक यह वैक्सीन दो डोज का है। पहला डोज लगाने पर बेटी को बुखार आया था लेकिन अगले दिन वह सामान्य हो गई। दूसरे डोज के समय भी ऐसा ही हुआ।
- वैक्सीन से शरीर में बने एंटीबॉडी दो साल तक कोरोनावायरस से सुरक्षित रखते हैं। गामालेया इंस्टिट्यूट के वैज्ञानिकों की माने तो यह वैक्सीन पूरी तरह से सेफ और इफेक्टिव है। पैरासिटामॉल से बुखार को काबू किया जा सकता है।
- रूस में सबसे पहले चिकित्सा कर्मचारियों, शिक्षकों और अन्य रिस्क ग्रुप के लोगों को वैक्सीन लगाया जाएगा। डिप्टी प्राइम मिनिस्टर तात्याना गोलीकोवा ने कहा कि डॉक्टरों का वैक्सीनेशन इसी महीने शुरू हो जाएगा।
रूस ने इतनी जल्दी कैसे बना लिया वैक्सीन?
- गामालेया इंस्टिट्यूट ने जून में यह वैक्सीन तैयार कर ली थी। फेज-1 ट्रायल भी शुरू कर दिए थे। रूसी वैक्सीन में ह्यूमन एडेनोवायरस Ad5 और Ad26 का इस्तेमाल किया है। दोनों को कोरोनावायरस जीन से इंजीनियर किया है।
- कोरोनावायरस का प्रकोप बढ़ने लगा था तब व्लादिमीर पुतिन प्रशासन ने ड्रग रेगुलेटर से कहकर ट्रायल्स की अवधि घटाई थी। ब्रिटेन और अमेरिका में भी ड्रग रेगुलेटर ने ट्रायल्स के कड़े नियमों में नरमी बरती है।
- रूसी वैज्ञानिकों ने मर्स और सार्स का वैक्सीन बनाया था। उसमें ही आंशिक फेरबदल किया गया है। वैक्सीन को जल्दी बनाने में लाभ हुआ। दुनियाभर में बन रहे वैक्सीन एक वेक्टर पर निर्भर है जबकि यह दो वेक्टर से बना है।
- रूस की इस जल्दबाजी के पीछे क्रेमलिन भी है। वह चाहता था कि दुनियाभर में रूस की छवि ग्लोबल पॉवर की बने। सरकारी टीवी स्टेशनों और मीडिया ने भी अन्य देशों को वैज्ञानिकों की तारीफ की और विरोध को बेवजह बताया।
रूसी वैक्सीन में सब इतना अच्छा है तो दिक्कत क्या है?
- रूसी वैक्सीन के सेफ और इफेक्टिव होने पर शक किया जा रहा है। इसकी वजह है इस वैक्सीन के ट्रायल्स से जुड़ा कोई भी डेटा सामने न होना। इससे यह स्पष्ट नहीं है कि कोई जांच हुई भी या नहीं।
- गामालेया इंस्टिट्यूट के प्रमुख एलेक्जेंडर गिंट्सबर्ग ने कहा कि वैक्सीनेशन शुरू होगा और इस दौरान फेज-3 ट्रायल्स भी चलते रहेंगे। यूएई और फिलीपींस में भी फेज-3 ट्रायल्स शुरू करने की तैयारी है।
- आम तौर पर फेज-3 का टेस्ट हजारों लोगों पर होता है। वैक्सीन लगाने के बाद कई महीने निगरानी होती है। डेटा कलेक्शन होता है और उसके बाद नतीजों के विश्लेषण के आधार पर वैक्सीन को मंजूरी दी जाती है।
- अब तक सिर्फ 10% क्लिनिकल ट्रायल्स सफल हुए हैं। जिस स्पीड से रूस ने दौड़ लगाई है, उससे वैज्ञानिक यह भी कह रहे हैं कि मॉस्को ने वैक्सीन से सेफ्टी को लेकर अपनी छवि दांव पर लगाई है।
- एसोसिएशन ऑफ क्लिनिकल ट्रायल्स ऑर्गेनाइजेशन ने रूसी हेल्थ मिनिस्ट्री को ट्रायल्स से पहले वैक्सीन रजिस्ट्रेशन टालने का अनुरोध किया था। कहा था कि टेस्ट से पहले ड्रग को मंजूरी देने से जोखिम बहुत बढ़ जाएगा।
- ट्युएबिंगेन यूनिवर्सिटी हॉस्पिटल में क्योरवेक के वैक्सीन का क्लिनिकल ट्रायल कर रहे डॉ. पीटर क्रेमसनर का कहना है कि बिना जांच के वैक्सीन जारी करना खतरनाक हो सकता है। यह लोगों को खतरे में डाल रहा है।
- लंदन में क्वीन मैरी यूनिवर्सिटी में इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी लॉ प्रोफेसर डंकन मैथ्यूज ने कहा- वैक्सीन स्वागत योग्य है, लेकिन सेफ्टी प्रायरिटी होनी चाहिए। अमेरिकी व यूरोपीय दवा नियामकों ने ट्रायल्स के लिए समय घटाया है, पर सख्त मानक तय किए हैं। देखना होगा कि रूसी मानक किस तरह तय हुए हैं।
ऐसे तो भारत भी जल्दी ला सकता है वैक्सीन?
- ला तो सकता है। लेकिन लाएगा नहीं। आईसीएमआर के साथ मिलकर स्वदेशी वैक्सीन कोवैक्सीन बना रहे भारत बायोटेक इंटरनेशनल के चेयरमैन कृष्णा ऐल्ला ने कहा कि कंपनी टेस्ट को लेकर जल्दबाजी में नहीं है।
- ऐल्ला का कहना है कि उन पर वैक्सीन जल्दी बनाकर देने के लिए बहुत दबाव है। लेकिन सेफ्टी और क्वालिटी सबसे ऊपर है। कंपनी गलत वैक्सीन जारी कर ज्यादा लोगों को मौत के घाट नहीं उतारना देना चाहती।
- कंपनी बेस्ट क्वालिटी की वैक्सीन बनाना चाहती है। उसे पूरा भरोसा है कि कोवैक्सीन एक इनएक्टिवेटेड वैक्सीन है और ऐसे वैक्सीन का रिकॉर्ड अच्छा है और यह SARS-CoV-2 (कोरोनावायरस) के खिलाफ इफेक्टिव होगा।
- ऐल्ला का कहना है कि हम पर अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों और कम्युनिटी की नजर है। हम रिसर्च में कोई कमियां नहीं छोड़ना चाहते और हम बेस्ट क्वालिटी की वैक्सीन बनाने पर फोकस है।
- ऐल्ला ने कहा- भारतीय इंडस्ट्री यूरोप या अमेरिकी कंपनियों से कम नहीं है। टेक्नोलॉजी और क्लिनिकल रिसर्च के मामले में तो चीन से बहुत आगे है। भारत बायोटेक ने कुछ साल पहले 1 डॉलर में रोटावायरस वैक्सीन निकाला था जबकि जीएसके ने कीमत रखी थी 85 डॉलर।
- वहीं, दुनिया की सबसे बड़ी वैक्सीन बनाने वाली कंपनी सीरम इंस्टिट्यूट ने भी ऑक्सफोर्ड-एस्ट्राजेनेका के वैक्सीन कैंडीडेट के बड़े पैमाने पर उत्पादन की तैयारी शुरू कर दी है। इसका बड़े पैमाने पर प्रोडक्शन सितंबर से शुरू होने की उम्मीद है।
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