from LifeStyle - Latest Lifestyle News, Hot Trends, Celebrity Styles & Events https://ift.tt/371vUWX
https://ift.tt/3nQIOgo
देश में पिछले 4 महीने में 18 हजार टन से अधिक कोविड बायोमेडिकल वेस्ट निकला है। सबसे ज्यादा 3,587 टन वेस्ट महाराष्ट्र में मिला है। ये आंकड़े सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड ने जारी किए हैं। बोर्ड के मुताबिक, सिर्फ सितंबर में देशभर में 5500 टन कोविड वेस्ट निकला है। जून, जुलाई और अगस्त के मुकाबले सबसे ज्यादा कचरा सितंबर में निकला है।
बायोमेडिकल वेस्ट में क्या मिला
सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड की रिपोर्ट के मुताबिक, पूरे देश से 18,006 टन कचरे को इकट्ठा करके 198 बायोमेडिकल ट्रीटमेंट प्लांट की मदद से डिस्पोज किया गया है।
रिपोर्ट के मुताबिक, बायोमेडिकल वेस्ट में पीपीई किट, मास्क, शू कवर, ग्लव्स, ह्यूमन टिश्यू, ब्लड से संक्रमित चीजें, ड्रेसिंग, कॉटन स्वाब, संक्रमित खून से सनी बेड शीट, ब्लड बैग, नीडल्स और सीरिंज मिली हैं।
महाराष्ट्र में सबसे ज्यादा वेस्ट अगस्त में निकला
रिपोर्ट के मुताबिक, महाराष्ट्र में अब तक कोरोनावायरस के 15 लाख मामले सामने आ चुके हैं। यहां से चार महीने में 3,587 टन कोविड वेस्ट निकला है। यहां जून में 524 टन, जुलाई में 1,180 टन, अगस्त में 1,359 टन और सितम्बर में 524 टन कोविड वेस्ट निकला है।
देश की राजधानी दिल्ली में जून में यह आंकड़ा 333 टन, जुलाई में 389, अगस्त में 296 और सितंबर में 382 टन रहा।
इस चीजों को कोविड वेस्ट माना जाएगा
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की गाइडलाइन में साफ है कि कोरोना पेशेंट द्वारा उपयोग की गई हर चीज कोविड वेस्ट नहीं है। ग्लव्स, मास्क, सीरिंज, फेंकी दवाइयों को ही कोविड वेस्ट माना जाएगा। इसके अलावा ड्रेन बैग, यूरिन बैग, बॉडी फ्लुइड, ब्लड सोक्ड टिश्यूज या कॉटन को भी इसमें शामिल किया जाएगा। मेडिसिन के बॉक्स, रैपर, फलों के छिलके, जूस बॉटल को म्युनिसिपल वेस्ट के साथ रखें।
WHO का अनुमान हर महीने मेडिकल स्टाफ को 9 करोड़ मास्क की जरूरत
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) का अनुमान है कि दुनियाभर में हर महीने कोरोना से बचने के लिए मेडिकल स्टाफ को करीब 8 करोड़ ग्लव्स, 16 लाख मेडिकल गॉगल्स के साथ 9 करोड़ मेडिकल मास्क की जरूरत पड़ रही है। ये आंकड़ा सिर्फ मेडिकल स्टाफ का है और आम लोग जिन थ्री लेयर और N95 मास्क का इस्तेमाल कर रहे हैं, उनकी संख्या तो अरबों में पहुंच चुकी है।
अब बात सड़कों पर पड़े मास्क और ग्लव्स की
पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड की रिपोर्ट से इतर सड़कों पर मास्क, पीपीई और इस्तेमाल किया हुआ ग्लव्स की तस्वीरें सामने आईं। मवेशियों की सुरक्षा के लिए काम करने वाले संगठन पीपुल फॉर कैटल ऑफ इंडिया के फाउंडर जी. अरुण प्रसन्ना का कहना है कि सड़कों पर कोविड वेस्ट फेंका जा रहा है। गाय, बंदर, बकरी और दूसरे जानवर इसे खा सकते हैं। अगर इनमें से किसी को कोरोनावायरस हुआ तो स्लॉटर हाउस ही जानवरों के जीवन का अंतिम पड़ाव साबित होगा और इंसानों के लिए भी वायरस का नया खतरा पैदा हो जाएगा। ऐसा नजारा मुंबई और कोलकाता में भी देखा गया है।
समुद्र तक पहुंचा कोविड वेस्ट
तीन महीने पहले सी-डाइवर्स ने फ्रांस के समुद्र तट के पास से डिस्पोजेबल ग्लव्स, मास्क और वाइप्स निकाले हैं। इसे डिस्पोज करने के लिए एनासिस आइलैंड वेस्ट वाटर ट्रीटमेंट प्लांट में लाया गया। प्लांट के सुपरवाइजर डेव हॉफमैन का कहना है कि हमें इसका पता तब चला जब कुछ मास्क ऊपर तैर रहे थे।
तट पर भी मास्क का ढेर
फोटो में गैरी स्ट्रोक्स दिखाई दे रहे हैं। गैरी ओशियंस-एशिया कंजर्वेशन ग्रुप के सदस्य हैं, जो पर्यावरण प्रदूषण के खिलाफ मुहिम चलाता है। हांगकांग के सोको आइलैंड पर कुछ महीने पहले काफी संख्या में मास्क मिले हैं। गैरी कहते हैं कि हमने इससे पहले इस आइलैंड पर इतने मास्क नहीं देखे। हमें ये मास्क तब मिले, जब लोगों ने 6-8 हफ्ते पहले ही इसका इस्तेमाल करना शुरू किया था। ऐसे नजारे दुनिया के कई हिस्सों में दिख चुके हैं।
इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस ने ऐसा बैंडेज विकसित किया है जो स्किन कैंसर को खत्म कर सकता है। बैंडेज को मैग्नेटिक नैनोफायबर्स से तैयार किया गया है जो गर्माहट देकर स्किन कैंसर वाली कोशिकाओं को खत्म कर सकता है। फिलहाल स्किन कैंसर का इलाज सर्जरी, रेडिएशन और कीमोथैरेपी से किया जा रहा है।
स्किन कैंसर के कुछ मामलों में इलाज हायपरथर्मिया थैरेपी से भी किया जाता है। इसमें हीट की मदद से कैंसर वाले टिश्यू को खत्म करने की कोशिश की जाती है। वैज्ञानिकों ने इसी थैरेपी का एक विकल्प उपलब्ध कराने के लिए बैंडेज विकसित किया है। जो कैंसर कोशिकाओं को टार्गेट करके उसे खत्म करेगा।
ऐसे बना बैंडेज
इंस्टीट्यूट के मुताबिक, इस बैंडेज में आयरन के ऑक्सीडाइज नैनोपार्टिकल्स और बायोडिग्रेडेबल पॉलिमर हैं, जिसे सर्जिकल टेप पर लगाया गया है। जब इस टेप को मैग्नेटिक फील्ड मिलती है तो इसमें मौजूद मैटेरियल मिलकर गर्माहट देते हैं और कैंसर कोशिकाओं को खत्म करने का काम करते हैं।
कैसे हुआ प्रयोग
रिसर्चर कौशिक सुनीत के मुताबिक, बैंडेज से निकलने वाली गर्माहट किस हद तक स्किन कैंसर का इलाज कर पाएगी, इसे पता लगाने के लिए वैज्ञानिकों ने दो प्रयोग किए। पहला प्रयोग सीधे इंसानों की कैंसर कोशिकाओं पर किया गया। दूसरा प्रयोग चूहे पर किया गया। चूहे में कृत्रिम कैंसर कोशिकाओं को डाला गया।
दोनों ही प्रयोग में पाया गया कि बैंडेज से निकलने वाली हीट ने कैंसर कोशिकाओं को खत्म किया। साथ ही स्वस्थ कोशिकाओं पर किसी तरह का नकारात्मक असर नहीं दिखा। न ही इनमें सूजन दिखी और न ही इनकी मोटाई बढ़ी।
दो तरह का होता है स्किन कैंसर
स्किन कैंसर की बड़ी वजह है सूरज से निकलने वाली अल्ट्रावॉयलेट किरणें। यह सबसे कॉमन कैंसर है। यह दो तरह का होता है। पहला मेलानोमा और दूसरा नॉन-मेलानोमा। इनमें सबसे खतरनाक है मेलानोमा। यह मौत का खतरा बढ़ाता है।
रिसर्च टीम ने ऐसी चिड़िया खोजी है, जो आधी नर और आधी मादा है। इसका नाम रोज-ब्रेस्टेड ग्रूजबीक्स है। इसके एक हिस्से में नर चिड़ियों जैसे काले और बड़े पंख हैं, वहीं दूसरे मादा वाले हिस्से में ब्राउन और यलो पंख हैं। इसके चेस्ट पर कोई स्पॉट नहीं हैं। यह मादा चिड़िया का लक्षण है।
इसे खोजने वाले पेन्सिलवेनिया के पाउडरमिल नेचुरल रिजर्व के रिसर्चर्स का कहना है, जब चिड़िया नर और मादा दोनों होती है तो इसे गाएंड्रोमॉरफिज्म कहते हैं।
कब होता है ऐसी चिड़िया का जन्म
रिसर्चर्स के मुताबिक, ऐसी चिड़िया का जन्म तब होता है, जब नर के दो स्पर्म मादा के ऐसे अंडे से मिलते हैं, जिसमें दो न्यूक्लियस होते हैं। ऐसी स्थिति में भ्रूण में नर और मादा दोनों का क्रोमोजोम आ जाता है। ऐसा चिड़ियों में कम ही होता है। 64 साल पहले अमेरिका के पाउडरमिल एविएशन रिसर्च सेंटर में ऐसा मामला सामने आया था।
रिसर्च टीम में शामिल एनी लिंडसे कहती हैं, यह मेरे जीवन का बेहद अद्भुत अनुभव रहा है। चिड़ियों की जनसंख्या की गणना करने के दौरान ये हमें मिली।
यह चिड़िया मादा की तरह अंडे भी दे सकती है
यह चिड़िया उत्तरी अमेरिका में पाई जाती है। अगर यह माइग्रेट करती है तो मैक्सिको और दक्षिणी अमेरिका में भी पहुंच सकती है। यह कार्डिनल फैमिली से है।
वैज्ञानिकों के मुताबिक, आमतौर पर चिड़ियों में दाहिने हिस्से वाली ओवरी ही एक्टिव होती है। इस चिड़िया में भी दाहिना हिस्सा ही मादा वाला है। इसलिए यह अंडे भी दे सकती है और प्रजनन भी कर सकती है।
प्रजनन के लिए सबसे जरूरी बात
एनी लिंडसे कहती हैं, भविष्य में नर की तरह काम करेगी या मादा की तरह, यह इसकी आवाज पर निर्भर करेगा। अगर यह नर चिड़िया की तरह गुनगुनाएगी तभी मादा आकर्षित होंगी। या यह भी हो सकता है, यह खुद नर चिड़ियों की तरफ आकर्षित हो। ऐसे मामले बेहद दुर्लभ होते हैं, जो कई तरह की नई जानकारियां देते हैं।
एनी कहती हैं, यह चिड़िया हमें 24 सितंबर की शाम को मिली थी। यह आगे चलकर नर की तरह बिहेव करेगा या मादा की तरह यह इसके पंखों और आवाज पर निर्भर करेगा। मुझे लगता है इसके पंख नर की तरह अभी और विकसित होने की संभावना है। इसके रंग और ज्यादा वाइब्रेंट होंगे। नर और मादा के बीच की लाइन और ज्यादा गहरी होगी।