Tuesday, June 30, 2020
Coronavirus Was Moving Through NY in Early February
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Daily horoscope for July 1: YOUR star sign reading, astrology and zodiac forecast
डॉ. बिधान चंद्र रॉय से जुड़े 4 किस्से : जब गांधी ने कहा, तुम 40 करोड़ देशवासियों का फ्री इलाज नहीं करते हो तो बिधान चंद्र बोले, मैं 40 करोड़ लोगों के प्रतिनिधि का इलाज मुफ्त कर रहा हूं
दुनियाभर के मरीजों को बचाने में कोरोनावॉरियर यानी डॉक्टर्स जुटे हैं। संक्रमण के बीच वो मरीजों का इलाज भी कर रहे हैं और खुद को बचाने की जद्दोजहद में भी लगे हैं। आज नेशनल डॉक्टर्स डे है, जो देश के प्रसिद्ध चिकित्सक और पश्चिम बंगाल के दूसरे मुख्यमंत्री डॉ. बिधानचंद्र रॉय के सम्मान में मनाया जाता है। केंद्र सरकार ने देश में डॉक्टर्स डे मनाने की शुरुआत 1 जुलाई 1991 में की। 1 जुलाई उनका जन्मदिवस है। जानिए उनकी लाइफ से जुड़े 5 दिलचस्प किस्से...
किस्सा 1 : जब बापू ने बिधान चंद्र से कहा, तुम मुझसे थर्ड क्लास वकील की तरह बहस कर रहे हो
1905 में जब बंगाल का विभाजन हो रहा था जब बिधान चंद्र रॉय कलकत्ता यूनिवर्सिटी में पढ़ाई कर रहे थे। उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन में हिस्सा लेने की जगह अपनी पढ़ाई को प्राथमिकता दी। पढ़ाई पूरी करने के बाद वह स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़े और धीरे-धीरे बंगाल की राजनीति में पैर जमाए। इस दौरान वह बापू महात्मा गांधी के पर्सनल डॉक्टर रहे।
1933 में ‘आत्मशुद्धि’ उपवास के दौरान गांधी जी ने दवाएं लेने से मना कर दिया था। बिधान चंद्र बापू से मिले और दवाएं लेने की गुजारिश की। गांधी जी उनसे बोले, मैं तुम्हारी दवाएं क्यों लूं? क्या तुमने हमारे देश के 40 करोड़ लोगों का मुफ्त इलाज किया है?
इस बिधान चंद्र ने जवाब दिया, नहीं, गांधी जी, मैं सभी मरीजों का मुफ्त इलाज नहीं कर सकता। लेकिन मैं यहां मोहनदास करमचंद गांधी को ठीक करने नहीं आया हूं, मैं उन्हें ठीक करने आया हूं जो मेरे देश के 40 करोड़ लोगों के प्रतिनिधि हैं।इस पर गांधी जी ने उनसे मजाक करते हुए कहा, तुम मुझसे थर्ड क्लास वकील की तरह बहस कर रहे हो।
दूसरा किस्सा : रॉय इतने बड़े हैं कि नेहरू भी उनके हर मेडिकल ऑर्डर मानते हैं
डॉ. बिधान चंद्र रॉय की तारीफ का सबसे चर्चित किस्सा देश के पहले प्रधाानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू से जुड़ा है। बिधानचंद्र देश के उन डॉक्टर्स में से एक थे जिनकी हर सलाह का पालन पंडित जवाहर लाल पूरी सावधानी के साथ करते हैं। इसका जिक्र पंडित जवाहर लाल ने वॉशिग्टन टाइम्स को 1962 में दिए एक इंटरव्यू में किया था। उन्होंने उस दौर की बात अखबार से साझा की जब वो काफी बीमार थे और इलाज के लिए डॉक्टर्स का एक पैनल बनाया गया था, जिसमें रॉय शामिल थे। इंटरव्यू के बाद अखबार ने लिखा था, रॉय इतने बड़े हैं कि नेहरू भी उनके हर मेडिकल ऑर्डर का पालन करते हैं।
तीसरा किस्सा : सामाजिक भेदभाव का शिकार हुए, अमेरिक रेस्तरां ने रॉय को बाहर निकल जाने को कहा
1947 में बिधानचंद्र खाने के लिए अमेरिका के रेस्तरां पहुंचे तो उन्हें देखकर सर्विस देने से मना कर दिया गया। पूरा घटनाक्रम न्यूयॉर्क टाइम्स में प्रकाशित हुआ। न्यूयॉर्क टाइम्स में प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक, रॉय अपने पांच दोस्तों के साथ रेस्तरां पहुंचे। उनको देखकर रेस्तरां ऑपरेटर ने महिला वेटर से कहा, उनसे कहें, यहां उन्हें सर्विस नहीं जाएगी, वो यहां से खाना लेकर बाहर जा सकते हैं।
यह बात सुनने के बाद रॉय वहां से उठे और चले गए। घटना के बाद इस सामाजिक भेदभाव का पूरा किस्सा रिपोर्टर से साझा किया और भारत लौट आए।
चौथा किस्सा : आर्थिक तंगी से जूझ रहे सत्यजीत रे को आर्थिक मदद उपलब्ध कराई
जाने माने फिल्मकार सत्यजीत रे को अपनी फिल्म पाथेर पंचाली बनाने के लिए आर्थिक संघर्ष से जूझना पड़ा था। कई दिक्कतों के बाद उनकी मां ने उन्हें अपने परिचितों से मिलवाया। रॉय उनमें से एक थे और तत्कालीन मुख्यमंत्री भी थे। रॉय सत्यजीत रे के इस प्रोजेक्ट से काफी प्रभावित हुए और उन्हें सरकारी आर्थिक मदद देने के लिए राजी हुए। इतना ही नहीं फिल्म पूरी होने के बाद रॉय ने जवाहर लाल नेहरू के लिए इस फिल्म की स्पेशल स्क्रीनिंग भी रखवाई। फिल्म में गरीबी से जूझते देश की कहानी दिखाई गई।
पांचवा किस्सा : डीन से 30 मुलाकातों के बाद उन्हें लंदन में मिला एडमिशन
रॉय हायर स्टडी के लिए 1909 में लंदन के सेंट बार्थोलोमिव्स हॉस्पिटल पहुंचे थे। लेकिन यहां उनके लिए एडमिशन लेना आसान नहीं रहा। सेंट बार्थोलोमिव्स हॉस्पिटल के डीन ने रॉय को एडमिशन न देने के लिए काफी कोशिशें की। उन्होंने करीब डेढ़ महीने तक रॉय को रोके रखा ताकि वे वापस लौट जाएं। रॉय ने भी एडमिशन के अपनी कोशिशें जारी रखीं। डीन से एडमिशन के लिए 30 बार मुलाकात की। अंतत: डीन का दिल पिघला और एडमिशन देने के लिए राजी हुए।
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हर दिन मरीजों को बचाने का हौंसला जुटाती हैं, लेकिन घर आकर अपनों का दर्द नहीं बांट पातीं
आज भारत में डॉक्टर्स डे मनाया जा रहा है। स्वतंत्रता सेनानी और बंगाल के सीएम रहे भारत रत्न डॉ. बिधानचंद्र रॉय की याद में मनाया जाने वाला यह दिन इस बार विशेष भी है। आज का दिन दिन-रात जुटे उन डॉक्टर्स को सलाम करने का है जिनके लिए कोरोनावायरस को हराना ही एकमात्र लक्ष्य है।
दुनिया के हर देश में पहुंचे कोरोना से लड़ने के लिए इन फ्रंटलाइन डॉक्टर्स की हजारों कहानियां है। त्याग, समर्पण और संघर्ष की इन कहानियों में ही जिंदगी की उम्मीदे जगमगा रही हैं क्योंकि इस 2020 के डॉक्टर्स डे पर ऐसा लगता है कि हमारा हर दिन डॉक्टर्स की मेहरबानी पर है।
आज इस दिन के मौके परफोटो में देखते हैं फिलीपींस के दो डॉक्टर की कहानी जो बताती है कि हालात कितने मुश्किल हैं और डॉक्टर कितनी हिम्मत के साथ डटे हैं। (सभी फोटो रायटर्सएजेंसी के सौजन्य से)
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अब फेफड़े ही नहीं शरीर के हर अंग पर नजर रखने की जरूरत, ब्रेन से लिवर तक कोरोना पहुंचा; रेमेडेसिवीर, डेक्सामेथासोन ड्रग लाइफ सेवर साबित हुईँ
महामारी के छह महीने बीत चुके हैं लेकिन न तो वैक्सीन तैयार हो पाई है न ही मामले थमते नजर आ रहे हैं। दुनियाभर में कोरोना का आंकड़ा एक करोड़ पार कर चुका है। इन छह महीनों में डॉक्टर्स और अस्पतालों ने कोरोना पीड़ितों के इलाज के दौरान कई नई बातें सीखी और समझी हैं। कोविड-19 के मामले सर्दी, सूखी खांसी और सांस की तकलीफ के साथ शुरू हुए थे लेकिन अब इसके लक्षणों में भी बढ़ोतरी हुई है। ब्रेन स्ट्रोक, पेट में तकलीफ, शरीर में खून के थक्के समेत कई नए लक्षण नजर आ चुके हैं। आज नेशनल डॉक्टर्स डे है। इस मौके परजानिए कोरोना के जरिए विशेषज्ञों को मिली ऐसी पांच सीख जो इलाज में काम आईं...
पहली सीख : कोविड के मरीजों में खून के थक्के जमने पर थिनिंग एजेंट देने से घटे
कोरोना से जूझ रहे मरीजों में खून के थक्के जमने के मामले बेहद आम हो रहे हैं। जो ब्रेन स्ट्रोक की वजह बन सकते हैं। इसका असर दिमाग से लेकर पैर के अंगूठों तक हो रहा है। अमेरिका की ब्रॉउन यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं का कहना है कि पिछले दो महीने से कोरोना संक्रमितों में त्वचा फटने, स्ट्रोक और रक्तधमनियों के डैमेज होने के मामले भी दिख रहे हैं।
खून को पतला करने वालों की दवाओं (थिनिंग एजेंट) से कोरोना पीड़ितों की हालत को 50 फीसदी तक सुधारा जा सकता है। अमेरिकी शोधकर्ताओं के मुताबिक, वेंटिलेटर पर मौजूद मरीजों को अगर ऐसी दवाएं दी जाएं तो उनके बचने की दर 130 फीसदी तक बढ़ जाती है। दवा से गाढ़े खून को पतला करने के इलाज को एंटी-कोएगुलेंट ट्रीटमेंट कहते हैं। शोध करने वाली न्यूयॉर्क के माउंट सिनाई हेल्थ सिस्टम की टीम का कहना है कि यह नई जानकारी कोरोना के मरीजों को बचाने में मदद करेगी।
दूसरी सीख : फेफड़े के अलावा वायरस हार्ट, ब्रेन, किडनी और लिवर पर अटैक कर सकता है
कोरोना वायरस अब सिर्फ फेफड़े ही नहीं हार्ट, ब्रेन, किडनी और लिवर पर भी अटैक कर सकता है। अमेरिकी शोधकर्ताओं ने ब्रेन थैरेपी को कोरोना के गंभीर मरीजों के लिए मददगार बताया है। केस वेस्टर्न रिजर्व यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं के मुताबिक, मस्तिष्क के कुछ जरूरी हिस्से ऐसे होते हैं जो सांसों और रक्तसंचार को कंट्रोल करते हैं।
अगर ऐसे हिस्सों को टार्गेट करने वाली थैरेपी का इस्तेमाल कोरोना मरीजों पर किया जाए तो उन्हें वेंटिलेटर से दूर किया जा सकता है। अब मरीजों में कोरोना शरीर के दूसरे अंगों को कितना नुकसान पहुंचा रहा है, डॉक्टर्स इसे भी मॉनिटर कर रहे हैं।
तीसरी सीख : एंटीवायरल रेमेडेसिवीर, स्टीरॉयड डेक्सामेथासोन और प्लाज्मा से बेहतर नतीजे मिल रहे
रिसर्च में अब तक एंटीवायरल रेमेडेसिवीर, स्टीरॉयड डेक्सामेथासोन ही दो ऐसी दवाएं हैं जिनका असर कोरोना के मरीजों पर बेहतर असर दिखा है। कई देशों में इसका इस्तेमाल मरीजों पर करने की अनुमति भी मिल चुकी है।
अमेरिकी फार्मा कंपनी गिलीड साइंसेज के पास रेमडेसिवीर का पेटेंट हैं। ग्लेन फार्मा और हेटरो लैब्स के बाद अब सिप्ला ने कोरोना मरीजों के लिए रेमडेसिवीर की जेनरिक मेडिसिन पेश की है। इसका नाम सिप्रिमी रखा गया है। हाल ही में भारत में सेंट्रल ड्रग्स स्टैंडर्ड कंट्रोल ऑर्गनाइजेशन ने हेटरो लैब्स को रेमेडेसिवीर के जेनरिक वर्जन के मैन्युफैक्चर और सप्लाई की अनुमति दी थी। हेटरो यह दवा भारत में कोविफॉर नाम से बेचेगी जो गेम चेंजर साबित हो सकती है।
कोरोना के मरीजों में कौन सी दवा सटीक काम कर रही है, इस सर गंगाराम हॉस्पिटल की विशेषज्ञ डॉ. माला श्रीवास्तव का कहना है कि कुछ मरीजों में एंटीवायरल, स्टीरॉयड दवाएं बेहतर काम कर रही हैं कुछ में प्लाज्मा थैरेपी। कोरोना के मरीजों के लिए कौन सी एक दवा बेहतर है, यह कहना मुश्किल है।
चौथी सीख : जितनी ज्यादा टेस्टिंग करेंगे उतनी तेजी से हॉस्पिटल में मरीजों का दबाव घटेगा
विशेषज्ञों का कहना मरीजों की संख्या बढ़ने की बड़ी वजह यह नहीं है कि वायरस का संक्रमण तेजी से बढ़ रहा है बल्कि जांच में तेजी आने से मरीज सामने आ रहे हैं। अधिक से अधिक जांच बेहद जरूरी है। मरीज जितनी जल्दी सामने आएंगे मामले कम होंगे और हॉस्पिटल में बढ़ रहे मरीजों की संख्या घटेगी। उन पर इलाज करने का दबाव कम होगा।
हाल ही में आईसीएमआर ने भी अपनी जांच करने की रणनीति का दायरा बढ़ाया है। एसिम्प्टोमैटिक, सिम्प्टोमैटिक की जांच के अलावा इनसे मिलने वालों का भी आरटी-पीसीआर टेस्ट करने की गाइडलाइन जारी की है।
पांचवी सीख : दुनियाभर में कोरोना से जुड़ी हर नई जानकारी डॉक्टर्स तक पहुंचना जरूरी
विशेषज्ञों के मुताबिक, कोरोना के मरीजों में दिख रहे नए लक्षण, रिसर्च और वैक्सीन से जुड़े हर अपडेट की जानकारी दुनियाभर के विशेषज्ञों तक पहुंचना जरूरी है। जैसे खाने का स्वाद न मिलना और खुश्बू को न पहचान पाना जैसे लक्षण अमेरिका और ब्रिटेन के कोरोना पीड़ितों में देखे गए, बाद में ये हर देशों के मरीजों में दिखे। ऐसे मामले आम होने के बाद इसके लक्षण अमेरिकी स्वास्थ्य संस्था सीडीसी ने अपनी गाइडलाइन में शामिल किया। देश में भी इसे कोरोना का लक्षण माना गया। ऐसे मामलों की जानकारी विशेषज्ञों को कोरोना के मामले समझने में मददगार साबित होती है।
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Mask Fights: America Is Fighting Over Coronavirus Safety
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The Pandemic May Spare Us From Another Plague: Bedbugs
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चीनी वैज्ञानिकों ने सुअर में फ्लू के वायरस का वो स्ट्रेन खोजा जो इंसानों में पहुंचकर महामारी ला सकता है
चीनी वैज्ञानिकों ने फ्लू के वायरस का वो स्ट्रेन खोजा है जो महामारी ला सकता है। शोधकर्ताओं का कहना है कि फ्लू वायरस का एक ऐसास्ट्रेन हाल ही में सुअर में पाया गया है, जो इंसानों को संक्रमित कर सकता है। यह अपना रूप बदल (म्यूटेट) कर एक इंसान से दूसरे इंसान में पहुंचकर वैश्विक महामारी ला सकता है।
सुअरों पर नजर रखने की जरूरत
वायरस का नाम G4 EA H1N1 है। इस पर रिसर्च करने वाले शोधकर्ताओं का कहना है कि यह इमरजेंसी जैसी समस्या नहीं है लेकिन इसमें ऐसे कई लक्षण दिखे है जो बताते हैं कि यह इंसानों को संक्रमित कर सकता है, इसलिए इस पर लगातार नजर बनाए रखने की जरूरत है। प्रोसीडिंग्स ऑफ द नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेस के मुताबिक, यह नया स्ट्रेन है इसलिए हो सकता है लोगों में इससे लड़ने की क्षमता कम हो या हो ही न। इसलिए इससे बचने के लिए सुअरों पर नजर रखना जरूरी है।
यह फैला तो रोकना मुश्किल होगा
कोरोना वायरस से पहले दुनिया में अंतिम बार फ्लू महामारी वर्ष 2009 में आई थी और उस समय इसे स्वाइन फ्लू कहा गया था। मेक्सिको से शुरू हुआ स्वाइन फ्लू उतना घातक नहीं था जितना कि अनुमान लगाया गया था। इस बार कोरोना वायरस के कारण 1 करोड़ से ज्यादा लोग संक्रमित हैं। ऐसी स्थिति में अगर नया वायरस फैलता है तो इसे रोकना बहुत मुश्किल होगा।
इसमें इंसानोंमें पहुंचकर अपनी संख्या बढ़ाने की पर्याप्त क्षमता
वैक्सीन के जरिए फ्लू के वायरस A/H1N1pdm09 को लोगों से दूर रखा गया लेकिन चीन में जो इसका नया स्ट्रेन देखा गया है वो 2009 में महामारी फैलाने वाले स्वाइन फ्लू से मिलता-जुलता है। शोधकर्ता किन-चो चैंग के मुताबिक, नया स्ट्रेन G4 EA H1N1 इंसान की सांस नली में पहुुंचकर अपनी कोशिकाओं की संख्या को बढ़ा सकता है। इसके अंदर ऐसा करने की पर्याप्त क्षमता है।
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