तैयार हो रही वैक्सीन अगर 80 फीसदी तक असरदार साबित होती है तो ही पहले जैसी स्थिति में लौटना आसान होगा। ऐसा होने पर महामारी को पूरी तरह से खत्म किया जा सकेगा। अमेरिकन जर्नल ऑफ प्रिवेंटिव मेडिसिन में प्रकाशित रिसर्च के मुताबिक, महामारी रोकने के लिए वैक्सीन कितनी असरदार होनी चाहिए, इसे समझने के लिए वैज्ञानिकों ने कम्प्यूटर मॉडल का प्रयोग किया।
60 फीसदी असर वाली वैक्सीन जरूरी
रिसर्चर्स के मुताबिक, अगर 60 फीसदी लोगों को वैक्सीन दी जाती है तो इस आंकड़े को 80 फीसदी तक पहुंचाना होगा तभी महामारी को खत्म करने में 100 फीसदी सफलता मिलेगी। रिसर्च में शामिल अमेरिका के क्यूनी ग्रेजुएट स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ के वैज्ञानिकों का कहना है, वैक्सीन की क्षमता ऐसी होने चाहिए जो कम से कम 60 फीसदी लोगों में असरदार साबित हो।
वैक्सीन के उपलब्ध होने से ज्यादा जरूरी, यह कितनी असरदार है
रिसर्चर्स ब्रूस वॉय ली के मुताबिक, वैक्सीन के ट्रायल में शामिल होने के लिए लोगों से कहा जा रहा है। इसमें जल्द से जल्द शामिल होना जरूरी है ताकि जीवन पहले की तरह नॉर्मल हो सके। वैक्सीन उपलब्ध होने का मतलब यह नहीं है कि इसे लगवाने के बाद वापस नॉर्मल लाइफ जीने लगेंगे जैसे महामारी के पहले जी रहे थे। वैक्सीन के उपलब्ध होने से ज्यादा जरूरी है, यह कितनी असरदार है।
रिसर्चर्स कहते हैं, इस अध्ययन के नतीजे पॉलिसी मेकर्स और वैक्सीन तैयार करने वालों को यह समझने में मदद करेंगे कि उनका लक्ष्य क्या है।
कायम रखना होगा सोशल डिस्टेंसिंग
कम्प्यूटर सिमुलेशन पर बेस्ड स्टडी के मुताबिक, इसका मतलब यह नहीं कि इससे कम इफेक्टिव वैक्सीन बेकार है, बल्कि इसका मतलब है कि किसी न किसी तरह से सोशल डिस्टेंसिंग को कायम रखना होगा। लोग पहले की तरह मेल-जोल नहीं कर सकेंगे।
...तो क्या वैक्सीन पर पूरी तरह निर्भरता ठीक है?
- जब किसी बीमारी के लिए वैक्सीन बनता है तो वह किसी पैथोजन के खिलाफ इम्यून रेस्पॉन्स को डेवलप करता है। एंटीबॉडी के कमजोर होने से वैक्सीन की इफिशियंसी पर भी सवाल उठ रहे हैं। इससे महामारी खत्म करने के तरीकों पर भी चिंताएं बढ़ गई है।
- किंग्स कॉलेज लंदन की स्टडी में 100 कोरोनावायरस पॉजीटिव मरीजों को लिया गया। इनमें वायरस के खिलाफ एंटीबॉडी विकसित हुई थी। वॉलेंटियर ग्रुप में 77 फीसदी पुरुष थे और औसत उम्र 55.2 साल थी। करीब 100 दिनों तक उन्हें ट्रैक किया गया।
- उनके शरीर में सार्स-कोव-2 वायरस को खत्म करने के लिए विकसित एंटीबॉडी की तीव्रता को चेक करने के लक्षणों की शुरुआत से यह काम किया गया। यह देखा गया कि जिस तरह मौसमी फ्लू से निपटने वाली एंटीबॉडी कुछ महीनों में खत्म हो जाती है और वह फिर हो जाता है। इसी तरह का सिस्टम कोरोनावायरस केसेस में देखा गया।
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