
YOUR daily horoscope this Monday mainly involves a Sextile, a Trine and a Square - here is how these will all affect your horoscope today.
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ज्यादातर लोग साग-भाजी को एक ही तरह से बनाते हैं इसलिए परिवार के सभी लोगों को पसंद नहीं आती। इसे कई दिलचस्प तरीके से खानपान में शामिल किया जा सकता है। ये इसलिए भी जरूरी है क्योंकि इनमें ऐसे पोषक तत्व होते हैं जो बीमारियों से बचाने के साथ पहले से मौजूद बीमारी को धीरे-धीरे खत्म करने की कोशिश करते हैं। शरीर में कई जरूरी पोषक तत्वों की पूर्ति करते हैं।
अमूमन लोग सरसों, मेथी, पालक और मूली की भाजी को ही खाते हैं लेकिन कई ऐसे दूसरे साग भी हैं जिनमें औषधीय गुण है। औषधीय पौधों के विशेषज्ञ आशीष कुमार बता रहे हैं ऐसे साग जो कई तरह से आपको स्वस्थ रखते हैं....
1. अरबी के पत्ते : विटामिन-ए और कैल्शियम के लिए इसे खाएं
अरबी या धुइयां के पत्ते विटामिन-ए, बी, सी, कैल्शियम, पोटेशियम और एंटी-ऑक्सीडेंट से भरपूर होते हैं। इनके पत्तों को खाने में कई प्रकार से उपयोग किया जा सकता है। कहीं इसकी हरी सब्जी बनती है तो कहीं बेसन लगाकर भाप में पकाया जाता है। इसके पकौड़े भी बनते हैं। बाजारों में आसानी से मिल जाने के बावजूद लोग अरबी के पत्ते कम खाते हैं।
2. चौलाई का साग : आंखों को स्वस्थ रखने के साथ बालों की सफेदी रोकता है
चौलाई में कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, कैल्शियम और विटामिन-ए, खनिज और आवरन प्रचुर मात्रा में पाए जाते है। इसकी जड़ और पत्तों का औषधि रूप में उपयोग किया जाता है। आंखों को दुरुस्त रखने, रक्त बढ़ाने, खून साफ़ करने, बालों को असमय सफेद होने से बचाने, मांसपेशियों के निर्माण और शरीर में ऊर्जा बनाए रखने में चौलाई मदद करती है। चौलाई के साग से पकौड़े, लहू, सूप, मिस्सी रोटी, चटपटी चौलाई आदि स्वादिष्ठ व्यंजन बना सकते हैं। ये 12 महीने बाजार में मिलती है।
3. बथुए का साग : आयरन की कमी दूर करेगा, इसे कई तरह से बना सकते हैं
बथुए में विटामिन-ए, आयरन, कैल्शियम, फॉस्फोरस और पोटैशियम काफी मात्रा में पाए जाते हैं। कई औषधीय गुणों से भरपूर इस साग को खाने से गैस, पेट दर्द और कब्ज की समस्या दूर होती है। गांव में हर घर में खाया जाने वाला आम साग है, लेकिन शहर की थाली में बथुआ आम साग नहीं रह गया। आवश्यक खनिजों और एंटीऑक्सीडेंट्स से भरपूर बथुए को सर्दियों में आहार में शामिल कर सकते हैं। बथुए का रायता, पराठा, पूरी, बेसन चीला और उड़द दाल के साथ साग बना सकते हैं।
4. पुनर्नवा का साग : यह दमा, मूत्ररोग, सूजन और हृदय रोगों से बचाता है
इस बहुवर्षीय औषधीय पौधे की चार प्रजातियां पाई जाती हैं जिनमें सफेद और लाल मुख्य हैं। इसमें मूंग या चने की दाल मिलाकर सब्जी बनाई जाती है, जो शरीर की सूजन, मूत्ररोगों (विशेषकर मूत्राल्पता), हृदय रोगों, दमा, शरीर दर्द, मंदाग्नि, उल्टी, पीलिया, रक्ताल्पता, यकृत व प्लीज़ के विकारों आदि में फायदेमंद है। इसके सेवन का चलन अब कम होता जा रहा है।
5. कुल्फा का साग : यह रोगों से लड़ने की क्षमता बढ़ाता है
कुल्फा या लुनी साग में एंटीबायोटिक, एंटीऑक्सीडेंट, एंटीवायरल, सूजन रोधी व एंटीफंगल गुण पाए जाते हैं। इसमें मुख्य रूप से विटामिन-ए, विटामिन-बी. विटामिन-सी, प्रोटीन, ओमेगा-3 फैटी एसिड, कैल्शियम, आयरन, फायबर, पोटेशियम, रिबोफ्लेविन पाए जाते हैं। कुल्फा साग से हमारे शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता मजबूत होती है। इसे नमकीन (खारी), कढ़ी, दाल में डालकर एवं अन्य सब्जियों के साथ मिलाकर भी खाया जा सकता है। हरी सब्जियों में सबसे ज्यादा ओमेगा-3 फैटी एसिड इसी सब्जी में पाया जाता है।
6. पोय साग : विटामिन-ए,सी और कैल्शियम का भंडार
पोय विटामिन-ए, विटामिन-सी, फोलेट, थायमीन, रिबोफ्लेविन, कैल्शियम, आयरन, कॉपर, जिंक, मैग्नीज और मैग्नीशियम का भी काफी अच्छा स्रोत है, जो कईरोगों से बचाने में मदद करते हैं। ये वेलनुमा हरे पत्तेदार औषधीय गुणों वाली बारहमासी साग भाजी है। अंग्रेजी में इसे मालाबार स्पिनच कहते हैं।
इसकी दो प्रजातियां हैं, एक की पत्तियां और डंठल दोनों हरे रंग के होते हैं और दूसरे के डंठल व पत्तियों की धारियां बैंगनी और पत्तियां गहरे हरे रंग की होती हैं। इसका उपयोग कई व्यंजन बनाने में होता है। पोय का साग और पकौड़ी प्रचलित व्यंजन हैं। इसके अलावा इसका सांभर और रायता भी बनाया जाता है।
7. कलमीशाक : पीलिया, नेत्र रोग और कब्ज में राहत देने वाला है
नाड़ी, करेमुआ, बेल बाला नाम से भी जाने जाने वाला कलमी शाक अर्ध-जलीय प्रकृति का द्विवर्षीय पौधा है। जून से सितंबर तक ये भाजी बाजारों में मिल जाती है। इसको आयुर्वेद में कई आम बीमारियों के इलाज के लिए औषधि के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। इसमें पाए जाने वाले कैरोटीन में मुख्य रूप से बीटा कैरोटीन, जैन्थोफिल और अल्प मात्रा में टेराजेन्थिन होता है।
इसकी भाजी कुष्ठ रोग, पीलिया, नेत्ररोग और कब्ज के निदान में उपयोगी है। यह दांतों-हड्डियों को मजबूत करती है। शरीर में रक्त की मात्रा बढाती है और रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में सहायक होती है। इसके हरे और मुलायम तनों को भाजी व सलाद के रूप में खाया जाता है।
इन दिनों भारत की राष्ट्रीय तितली का चुनाव किया जा रहा है। इसके लिए लोगों से ऑनलाइन वोटिंग कराई जा रही है। इससे पहले राष्ट्रीय पश, राष्ट्रीय पक्षी और राष्ट्रीय पुष्प भी घोषित किए गए थे, लेकिन देश में ऐसा पहली बार हो रहा है जब किसी राष्ट्रीय प्रतीक के चुनाव के लिए आम लोगों को भी शामिल किया जा रहा है।
कैसे होगा तितली का चयन?
भारत में कुल 1500 प्रकार की तितलियां पाई जाती हैं। देश के तितली विशेषज्ञों के समूह ने पिछले कुछ वर्षों में जंगलों, बागों आदि स्थानों पर तितली सर्वे शुरू किया था। लॉकडाउन के दौरान राष्ट्री पक्षी और पुष्प की तरह राष्ट्रीय तितली चुनने का विचार आया। देश भर से आंकड़े एकत्रित करने के बाद तितली विशेषज्ञों की टीम ने आंतरिक मतदान द्वारा सात तितलियों की अंतिम सूची तैयार की। इसमें यह ध्यान रखा गया है कि ये प्रजाति न तो दुर्लभ हों और न ही साधारण।
इनमें से चुन लीजिए अपनी मनपसंद तितली
1. कृष्णा पीकॉक
यह आकार में बड़ी तितली है, जो उत्तर-पूर्वी हिस्सों और हिमालय में पाई जाती है। इसके पंख 130 एमएम तक होते हैं। अगले पंख काले रंग के होते हैं। जिसमें पीले रंग की लम्बी धारी होती है। नीचे के पंख में नीले लाल बैंड मिलते हैं।
2. कॉमन जेज़बेल
66-83 एमएम आकार की इस तितली के पंखों की ऊपरी सतह सफेद और निचली सतह पीली होती है। इन पर काली मोटी धारियां और किनारों पर नारंगी छोटे-छोटे धब्बे इसे सुंदर बनाते हैं।
3. ऑरेंज ओकलीफ
पंख के शीर्ष पर नारींग पट्आ और गहरा नीला रंग होता है। आधार पर दो सफेद बिंदु होते हैं। पंख खुलते ही रंगीन छटा बिखेरती है। वेस्टर्न घाट और उत्तर-पूर्व के जंगलों में पाई जाती है।
4. फाइव बार स्वॉर्ड टेल
पंखों का आकार 75 से 90 एमएम तक होता है। पीछे के पंखों पर एक लम्बी सीधी काली तलवार जैसी पूंछ इसकी पहचान है। पंखों के काले सफेद पट्टों पर हरे पीले रंग का मेल इसे सुंदर बनाता है।
5. कॉमन नवाब
यह तेजी से उड़ सकती है। पेड़ों के ऊपरी हिस्सों में पाई जाती है, इसलिए कम ही दिखाई देती है। ऊपरी पंख काले होते हैं। नीचे के चॉकलेटी रंग के पंखों के बीच हल्की रही-पीली टोपी जैसी रचना के कारण इसे नवाब कहा जाता है।
6.यलो गोर्गन
यह मध्यम आकार की बहुत सुंदर तितली है। इसके कोण बनाते अनूठे पंख की इसकी खासियत है। इसके पंखों की अंदरवाली सतर पर गहरा पीला रंग होता है। यह पूर्व हिमालय और उत्तर पूर्व भारत के जंगलों में पाई जाती है।
7. नॉर्दन जंगल क्वीन
चॉकलेट ब्राउन रंग की तितली होती है। हल्की नीली धारियां इसे सुंदर बनाती हैं। पंखों पर चॉकलेटी गोल घेरे इसकी सुंदरता में चार चांद लगाते हैं। यह फ्लोरोसेंट कलर में भी दिखाई देती हैं। यह अरुणाचल प्रदेश में पाई जाती है।
यहां अपनी फेवरेट तितली के लिए करें ऑनलाइन वोटिंग
आम लोग 8 अक्टूबर तक ऑनलाइन मतदान करके सात में से अपनी पसंदीदा एक तितली का चयन कर सकते हैं। इसके लिए लिंक tiny.cc/nationalbutterflypoll पर जाना होगा। वहां उन्हें एक गूगल फॉर्म मिलेगा। उसके जरिए किसी एक तितली को वोट दे सकते हैं। अधिकतम वोट प्राप्त करने वाली तितलियों की सूची केंद्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्रालय में पेश की जाएगी जिसमें से राष्ट्रीय तितली का चयन विशेषज्ञों की एक समिति करेगी। उम्मीद है कि नए साल की शुरुआत में हमारे पास अपनी एक राष्ट्रीय तितली होगी।
तितली को इतनी अहमियत क्यों?
तितलियां और कीटों की विविधता व उनकी संख्या किसी भी क्षेत्र के पारिस्थितिकी तंत्र के स्वास्थ्य को समझने का बेहतरीन तरीका है। अगर तितली और टों की विविधता व उनकी संख्या कम है तो यह इस बात का संकेत होता है कि उस क्षेत्र विशेष का स्वास्थ्य अच्छा नहीं है। इसका मतलब यह भी है कि इंसानों के लिए भी वह क्षेत्र धीरे-धीरे रहने लायक नहीं रहेगा। तितली को अहमियत इसलिए दी गई है क्योंकि रंगबिरंगे फूलों के आसपास भोजन तलाशने की आदत के कारण इनकी जैव विविधता का आंकलन दूसरे कीटों की तुलना में आसान हो जाता है।
संकट में क्यों हैं तितलियां?
जैव विविधता में कमी तितलियां प्राकृतिक तौर पर या जंगलों में पनपने वाले पौधों पर ही निर्भर रहती हैं। सजावटी व हाइब्रिड पौधे तितलियों के लिए बेकार सिद्ध होते हैं। जंगलों की कटाई और फिर बगीचों व मैदानों में भी साफ सफाई के बहाने हमने जंगली बेलों, पौधों और घास को भी खत्म कर दिया। इससे जैव विविधता कम होती गई और तितलियां भी सिमटती गईं।
कीटनाशकों का ज्यादा इस्तेमाल कीटनाशकों का अनियंत्रित इस्तेमाल भी तितलियों की प्रजातियों को मिटाने के लिए जिम्मेदार होता है। अमेरिका के फ्लोरिडा में मच्छरों से उत्पन्न रोगों की रोकथाम के लिए कीटनाशकों के अत्यधिक उपयोग के कारण वहां तितलियों की दो प्रजातियां तो विलुप्ति की कगार पर आ गईं।
चीन में इन दिनों एक और बीमारी ब्रूसीलोसिस का कहर है। यहां के गांसु प्रांत की राजधानी लान्चो में 3 हजार से अधिक मरीज संक्रमित हो चुके हैं। लान्चो के स्वास्थ्य आयोग के मुताबिक, यह बीमारी संक्रमित पशुओं के सम्पर्क में आने से होती हैं। इसे माल्टा फीवर के नाम से भी जाना जाता है। 1980 के दशक में चीन में ब्रुसेलोसिस एक सामान्य बीमारी थी, हालांकि बाद में इसमें गिरावट आई थी।
अमेरिका के सेंटर्स फॉर डिसीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन (CDC) के मुताबिक, यह बीमारी एक से दूसरे इंसान में नहीं फैलती लेकिन संक्रमित भोजन खाने से ब्रुसेलोसिस फैल सकता है।
ब्रुसेलोसिस क्या है, कैसे फैलता है और कैसे अलर्ट रहें, इन सवाल-जवाब से समझिए....
1. क्या है ब्रुसेलोसिस?
यह एक बैक्टीरिया से होने वाली बीमारी है। इसका बैक्टीरिया पशुओं, सुअर, बकरी और कुत्तों को संक्रमित करता है। इन संक्रमित पशुओं के सम्पर्क में आने पर इंसान भी बीमार हो जाते हैं। इनका मांस खाने या इनका संक्रमित किया हुआ पानी पीने पर इंसान में संक्रमण फैलता है। यह बैक्टीरिया संक्रमित क्षेत्र की हवा में भी मौजूद होता है, इस दौरान सांस लेने पर भी इंसान संक्रमित हो सकता है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन कहता है, इस बीमारी का सबसे ज्यादा खतरा जब रहता है जब इंसान बिना उबाला हुआ जानवर का दूध या इनके दूध की बनी चीज खाता है।
2. कौन से लक्षण दिखने पर अलर्ट हो जाएं?
बुखार, पसीना आना, सिरदर्द, मांसपेशियों में दर्द, बेचैनी और भूख न लगना जैसे लक्षण दिखने पर अलर्ट हो जाएं। कुछ लक्षण लम्बे समय तक दिख सकते हैं। इसके अलावा बार-बार बुखार, अर्थराइटिस जैसे लक्षण, अंडाणुओं और लिवर में सूजन भी दिख सकता है। मरीजों में अधिक थकान बनी रहती है।
3. चीन में यह बीमारी कब और कैसे फैली
लेंझॉउ शहर के स्वास्थ्य आयोग की वेबसाइट की मुताबिक, पिछले साल 28 नवम्बर यहां के वेटरनरी रिसर्च इंस्टीट्यूट में एक घटना के बाद यह बैक्टीरिया फैला। यहां इस बीमारी की वैक्सीन तैयार करने के लिए 24 जुलाई से 10 अगस्त 2010 काम चल रहा था। इंस्टीट्यूट में एक्सायरी डेट का डिसइंफेक्टेंट इस्तेमाल हुआ जिससे बैक्टीरिया पूरी तरह खत्म नहीं हुआ। यहां से एयरोसॉल के रूप में बैक्टीरिया फैला और लोग संक्रमित हुआ।
4. कैसे बचाव करें?
इसका मामले अगर देश में आता है तो पशुओं से दूरी बनाए। जरूरी सावधानी के साथ ही उनके पास जाएं। मांस खाने से बचें। बाहर का खाना न ही खाएं तो बेहतर है। आसपास पशुओं का तबेला है तो घर को सैनेटाइज करना बेहतर विकल्प है। पानी उबालकर ही पिएं।