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Happy Friendship Day 2020! Celebrated on the first Sunday of August, the days holds a special significance because it is a celebration of friendship. A friend is a person who knows each and everything about you. Whether or not your family knows about your whereabouts the rule of friendship says that your friend is the first person to know everything. They are our biggest support system with whom we can discuss anything be it your relationships, your new-found crush, your workplace problems, family discussions, shopping, and whatnot. It won't be wrong to say that friends are your next family and blessing in disguise. Friendship day is the perfect occasion to express our gratitude towards them. In the times when the world is fighting with the coronavirus pandemic, the celebrations will definitely be in a low-key manner however you have a perfect option of sharing your feelings through the medium of social media. Here are some ideas, some friendship quotes, some images and pictures that would help you plan for your day before the big day! May your friendship live long and Happy Friendship Day!जिंदगी में दोस्त और दोस्ती एक तोहफे की तरह होते हैं, जिन्हें हम खुद चुनते हैं। एक सच्चा दोस्त वही होता है, जो मुश्किल से मुश्किल समय में भी अपने दोस्त को अकेले नहीं छोड़ता। आज फ्रेंडशिप डे के मौके पर पढ़िए बचपन की ऐसी चार चुनिंदा कहानियां जो जिंदगी में दोस्त और दोस्ती की अहमियत समझाती हैं।

पहली कहानी: दोस्ती की इबारतें
एक बार दो दोस्त रेगिस्तान पार कर रहे थे। रास्ते में उनका किसी बात का झगड़ा हो गया। पहले दोस्त ने दूसरे को गुस्से में आकर थप्पड़ मार दिया। दूसरे दोस्त को इस बात से दिल पर बहुत ठेस पहुंची और उसने रेत पर एक लकड़ी से लिखा, ‘आज मेरे सबसे अच्छे दोस्त ने छोटा सा झगड़ा होने पर मुझे थप्पड़ मार दिया।’ दोनों ने मंजिल पर पहुंचने के बाद झगड़ा सुलझाने का फैसला किया।
दोनों आपस में बिना बात किए साथ-साथ चलते रहे। आगे उन्हें एक बड़ी झील मिली, उन्होंने झील में नहाकर तरोताजा होने का फैसला किया। झील के दूसरे किनारे पर बहुत ही खतरनाक दलदल था। वह दोस्त जिसने चांटा मारा था, वह उस दलदल में जा फंसा और डूबने लगा। उसके दोस्त ने जब यह देखा तो वह तुरंत ही दूसरी तरफ तैरकर गया और बड़ी मशक्कत के बाद अपने दोस्त को बाहर निकाल लिया।
जिस दोस्त को दलदल से बचाया था, उसने झील के किनारे एक बड़े पत्थर पर लिखा, ‘आज मेरे दोस्त ने मेरी जान बचाई।’ इस पर दूसरे दोस्त ने पूछा- जब मैंने तुम्हें थप्पड़ मारा तो तुमने उसे रेत पर लिखा, लेकिन जब मैंने तुम्हारी जान बचाई तो तुमने पत्थर पर लिखा ऐसा क्यों?
दूसरे दोस्त ने जवाब दिया, जब कोई हमें दुख पहुंचाता है, तो हमें इसे रेत पर लिखना चाहिए ताकि वक्त और माफी की हवाएं उसे मिटा दें। लेकिन जब कोई हमारे साथ अच्छा बर्ताव करे तो हमें उसे पत्थर पर लिखना चाहिए, जिसे हवा या इंसान तो क्या वक्त भी न मिटा ना सके।
सीख- दोस्ती में कभी भी बुरी घटनाओं को दिल से लगाकर नहीं रखना चाहिए, दोस्त की भूल को माफ कर देना ही सच्ची दोस्ती है।

दूसरी कहानी: दोस्ती और पैसा
एक गांव में रमन और राघव नाम के दो दोस्त रहा करते थे। रमन धनी परिवार का था और राघव गरीब। हैसियत में अंतर होने के बावजूद दोनों पक्के दोस्त थे। समय बीता और दोनों बड़े हो गए। रमन ने अपना पारिवारिक व्यवसाय संभाल लिया और राघव ने एक छोटी सी नौकरी तलाश ली। जिम्मेदारियों का बोझ सिर पर आने के बाद दोनों के लिए एक-दूसरे के साथ पहले जैसा समय गुजार पाना संभव नहीं था, लेकिन जब मौका मिलता, तो जरूर मुलाकात करते।
एक दिन रमन को पता चला कि राघव बीमार है और वह उसे देखने उसके घर चला आया। हाल-चाल पूछने के बाद रमन वहां अधिक देर रुका नहीं और अपनी जेब से कुछ पैसे निकाले और उसे राघव के हाथ में थमाकर वापस चला गया। राघव को रमन के इस व्यवहार पर बहुत दुःख हुआ, लेकिन वह कुछ बोला नहीं। ठीक होने के बाद उसने कड़ी मेहनत की और पैसों का इंतजाम कर रमन के पैसे लौटा दिए।
कुछ ही दिन बीते ही थे कि रमन बीमार पड़ गया है। जब राघव को इस बारे में पता चला, तो वह अपना काम छोड़ भागा-भागा रमन के पास गया और तब तक उसके साथ रहा, जब तक वह ठीक नहीं हो गया। राघव का यह व्यवहार रमन को उसकी गलती का अहसास करा गया और वह ग्लानि से भर उठा।
एक दिन वह राघव के घर गया और अपने बर्ताव के लिए माफी मांगते हुए बोला, “दोस्त! जब तुम बीमार पड़े थे, तो मैं तुम्हें पैसे देकर चला आया था। लेकिन जब मैं बीमार पड़ा, तो तुम मेरे साथ रहे। मुझे अपने किये पर बहुत शर्मिंदगी है। मुझे माफ कर दो।”
राघव ने रमन को गले से लगा लिया और बोला, “कोई बात नहीं दोस्त। मैं खुश हूं कि तुम्हें ये अहसास हो गया कि दोस्ती में पैसा मायने नहीं रखता, बल्कि एक-दूसरे के प्रति प्रेम और एक-दूसरे की परवाह मायने रखती है।”
सीख – पैसों से तोलकर दोस्ती को शर्मिंदा न करें। दोस्ती का आधार प्रेम, विश्वास और एक-दूसरे की परवाह है।

तीसरी कहानी: दोस्ती और भरोसा
रात के समय परदेस की यात्रा पर निकले दो दोस्त सोहन और मोहन एक जंगल से गुजर रहे थे। सोहन को भय था कि कहीं किसी जंगली जानवर से उनका सामना न हो जाए। वह मोहन से बोला, “दोस्त! इस जंगल में अवश्य जंगली जानवर होंगे। यदि किसी जानवर ने हम पर हमला कर दिया, तो हम क्या करेंगे?” सोहन बोला, “मित्र डरो नहीं, मैं तुम्हारे साथ हूं। कोई भी ख़तरा आ जाये, मैं तुम्हारा साथ नहीं छोडूंगा। हम दोनों साथ मिलकर हर मुश्किल का सामना कर लेंगे।”
इसी तरह बातें करते हुए वे आगे बढ़ते जा रहे थे कि अचानक एक भालू उनके सामने आ गया। दोनों दोस्त डर गए। भालू उनकी ओर बढ़ने लगा। सोहन डर के मारे तुरंत एक पेड़ पर चढ़ गया। उसने सोचा कि मोहन भी पेड़ पर चढ़ जायेगा। लेकिन मोहन को पेड़ पर चढ़ना नहीं आता था। वह असहाय सा नीचे ही खड़ा रहा।
भालू उसके नजदीक आने लगा और मोहन डर के मारे पसीने-पसीने होने लगा। लेकिन डरते हुए भी एक उपाय उसके दिमाग में आ गया। वह जमीन पर गिर पड़ा और अपनी सांस रोककर एक मृत व्यक्ति की तरह लेटा रहा। भालू नजदीक आया और मोहन के चारों ओर घूमकर उसे सूंघने लगा। पेड़ पर चढ़ा सोहन यह सब देख रहा था। उसने देखा कि भालू मोहन के कान में कुछ फुसफुसा रहा है। कान में फुसफुसाने के बाद भालू चला गया।
भालू के जाते ही सोहन पेड़ से उतर गया और मोहन भी तब तक उठ खड़ा हुआ। सोहन ने मोहन से पूछा, “दोस्त! जब तुम जमीन पर पड़े थे, तो मैंने देखा कि भालू तुम्हारे कान में कुछ फुसफुसा रहा है। क्या वो कुछ कह रहा था?” “हाँ, भालू ने मुझसे कहा कि कभी भी ऐसे दोस्त पर विश्वास मत करना, तो तुम्हें विपत्ति में अकेला छोड़कर भाग जाए।”
सीख – जो दोस्त संकट में छोड़कर भाग जाए, वह भरोसे के काबिल नहीं।

चौथी कहानी: दो सैनिक दोस्त
दो बचपन के दोस्तों का सपना बड़े होकर सेना में भर्ती होकर देश की सेवा करना था। दोनों ने अपना यह सपना पूरा किया और सेना में भर्ती हो गए। बहुत जल्द उन्हें देश सेवा का अवसर भी प्राप्त हो गया। जंग छिड़ी और उन्हें जंग में भेज दिया गया, वहां जाकर दोनों ने बहादुरी से दुश्मनों का सामना किया।
जंग के दौरान एक दोस्त बुरी तरह घायल हो गया। जब दूसरे दोस्त को यह बात पता चली, तो वह अपने घायल दोस्त को बचाने भागा। तब उसके कैप्टन ने उसे रोकते हुए कहा, “अब वहां जाने का कोई मतलब नहीं। तुम जब तक वहाँ पहुंचोगे, तुम्हारा दोस्त मर चुका होगा।”
लेकिन वह नहीं माना और अपने घायल दोस्त को लेने चला गया। जब वह वापस आया, तो उसके कंधे पर उसका दोस्त था, लेकिन वह मर चुका था। यह देख कैप्टन बोला, “मैंने तुमसे कहा था कि वहां जाने का कोई मतलब नहीं। तुम अपने दोस्त को सही-सलामत नहीं ला पाए। तुम्हारा जाना बेकार रहा।”
सैनिक ने उत्तर दिया, “नहीं सर, मेरा वहां उसे लेने जाना बेकार नहीं रहा। जब मैं उसके पास पहुँचा, तो मेरी आंखों में देख मुस्कुराते हुए उसने कहा था – दोस्त मुझे यकीन था, तुम जरूर आओगे। ये उसके अंतिम शब्द थे। मैं उसे बचा तो नहीं पाया, लेकिन उसका मुझ पर और मेरी दोस्ती पर जो यकीन था, उसे बचा लिया।”
सीख – सच्चे दोस्त अंतिम समय तक अपने दोस्त का साथ नहीं छोड़ते।
दोस्ती का भी एक साइंस है जो कहता है लंबी उम्र चाहिए है तो दोस्तों की संख्या बढ़ाइए। अमेरिका की ब्रिघम यंग यूनिवर्सिटी की रिसर्च कहती है दोस्त न होना बढ़ते मोटापे से भी ज्यादा खतरनाक है जान को जोखिम बढ़ाता है। सबसे अच्छा दोस्त वही है जो आपके कभी अकेला नहीं छोड़ता, अपनों के दूरी बनाने के बाद भी नहीं। आज फ्रेंडशिप डे है, जानिए दोस्ती के ऐसे 4 मशहूर किस्से जो सही मायनों में दोस्ती शब्द के मायने समझाते हैं और सिखाते हैं कि दुनिया भले ही साथ छोड़ दे, सच्चा दोस्त कभी साथ नहीं छोड़ता।

सचिन तेंदुलकर-विनोद कांबली : खत्म नहीं होती थी रन बनाने और वड़ा पाव खाने की भूख
भारतीय क्रिकेट की सबसे चर्चित दोस्ती है सचिन और विनोद कांबली की। इन्हें मुम्बई क्रिकेट के ‘जय-वीरू’ के नाम से भी जाना है। दोस्ती की शुरुआत तब हुई जब सचिन की उम्र 9 और विनोद कांबली की 10 साल थी। जगह थी मुंबई का शारदा श्रम स्कूल। यहां पढ़ाई, मजाक, मस्ती और सजा भी दोनों को साथ मिलती थी। क्रिकेट भी साथ ही खेलते थे। गहरी दोस्ती का ही नतीजा था कि 1988 में दोनों ने वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाए। दोनों ने मिलकर स्कूल क्रिकेट में 664 रन बनाए, जिसे गिनीज बुक ऑफ रिकॉर्ड में शामिल किया गया। इस घटना के बाद दोनों लाइमलाइट में आए और कुछ साल बाद भारतीय टीम में शामिल हुए।

विनोद कांबली के मुताबिक, कैंटीन में दोनों का फेवरेट फूड वड़ापाव था। कौन कितने वड़ा पाव खा सकता है इसकी भी शर्त लगती थी। सचिन के 100 रन बनाने पर विनोद उन्हें 10 वड़ा पाव खिलाते थे। यही सचिन भी विनोद के लिए करते थे। स्कूल में भाषण देने की बारी आने पर चालाकी से विनोद सचिन को पीछे छोड़ देते थे। ऐसा ही एक वाकया है जब सचिन को स्पीच देनी थी। सचिन का भाषण बमुश्किल एक से दो मिनट का था। लेकिन कांबली ने अंग्रेजी के टीचर से भाषण लिखवाया और उसे मंच पर पढ़कर सचिन को हैरानी में डाल दिया।
दोस्ती का कारवां आगे बढ़ा और मुंबई के वानखेड़े स्टेडियम पहुंचा। जी तोड़ मेहनत रंग लाई और दोनों क्रिकेट जगत में सितारे की तरह चमके। लेकिन इस बीच पहली बार दोनों का प्यार भरा झगड़ा भी हुआ। वजह थी किसमें कितनी ताकत है। जगह थी स्टेडियम की विट्ठल स्टैंड की चौथी कतार। हाथापाई शुरू हुई लेकिन सचिन को खुश देखने के लिए कांबली जानबूझकर जमीन पर गिर गए।

कांबली ने एक इंटरव्यू बताया, मुझे हराने में सचिन को बहुत मजा आता था चाहें क्रिकेट का मैदान हो या स्कूल में ताकत दिखाने की आदत। सचिन उनसे उम्र में छोटे थे वह उन्हें निराश नहीं करना चाहते थे। कांबली के मुताबिक, सचिन को हमेशा से ही पंजा लड़ाकर ताकत दिखाने का शौक रहा है। दोनों ने 14-15 साल की उम्र में 1987 वर्ल्ड कप में बतौर बॉल ब्वॉय क्रिकेट से जुड़े। मैच इंग्लैंड और भारत के बीच था। यह वो दिन था जब दोनों ने मिलकर सपना देखा कि अगला वर्ल्ड कप हम साथ मिलकर ही खेलेंगे और ऐसा ही हुआ। 1992 में वर्ल्ड कप खेला। अब तक के सफर में दोनों के बीच कई बार दोस्टी टूटने की खबरें भी आईं लेकिन दोनों हमेशा इस पर शांत रहे और कभी एक-दूसरे का विरोध नहीं किया।

संजय दत्त - राजकुमार हीरानी: दोस्ती दुनिया के सामने जाहिर नहीं की, लेकिन हमेशा निभाई
दोस्त की बिगड़ी छवि को सुधारने और उसे सही पटरी पर लाने का काम एक दोस्त ही कर सकता है, फिल्ममेकर राजकुमार हीरानी और अभिनेता संजय की दोस्ती भी इसी पटरी पर आगे बढ़ती है। फिल्म संजू बनाने के बाद राजकुमार हीरानी पर संजय की बिगड़ी छवि को बदलने के आरोप लगे। यूं तो संजय और राजकुमार हीरानी ने कभी खुलकर एक-दूसरे से दोस्ती को नहीं स्वीकारा लेकिन फिल्म संजू में छवि बदलने के आरोप लगे तो आखिरकार हीरानी ने स्वीकारा कि उन्होंने फिल्म में कई ऐसे सीन डाले जो संजय के प्रति लोगों के दिन में सहनभूति पैदा करते हैं।
राजकुमार और संजय की पहली मुलाकात 2003 में हुई। हीरानी फिल्म मुन्नाभाई एमबीबीएस के लिए जिम्मी शेरगिल के रोल में संजय दत्त को लेना चाहते थे और मुन्नाभाई के लिए शाहरुखा पहली पसंद थे। लेकिन बात नहीं बन पाई और अंत में संजय ने मुन्नाभाई का किरदार निभाया। दोनों की दोस्ती आगे बढ़ी और संजय की पत्नी मान्यता के कहने पर हीरानी ने संजू की बायोपिक की तैयारी शुरू की।
राजकुमार के मुताबिक, जब फिल्म का एक हिस्सा बनकर तैयार हुआ उसे उन पहले लोगों को दिखाया गया जो संजय दत्त से नफरत करते थे। उन लोगों का जवाब था, हम इस इंसान से नफरत करते हैं और ऐसी फिल्म नहीं देखना चाहते। इसके बाद फिल्म में कुछ बदलाव किए गए जिसमें कुछ ऐसे सीन भी डाले गए जो संजय दत्त की छवि को सुधारने का काम करते हैं।

आनंद महिंद्रा और उदय कोटक : दोस्त ही नहीं मेंटर और गाइड भी
बिजनेसमैन उदय कोटक आनंद महिंद्रा को सिर्फ दोस्त ही नहीं मेंटर और गाइड भी मानते हैं। दोस्ती की शुरुआत उस समय हुई जब उदय कोटक की शादी हो रही थी, तो मेहमानों में आनंद महिंद्रा भी थे। आनंद विदेश से पढ़कर तभी लौटे थे और महिंद्रा एंड महिंद्रा समूह की कंपनी महिंद्रा स्टील का कारोबार देख रहे थे। यह स्टील कंपनी कोटक की क्लाइंट थी। बातों-बातों में कोटक के व्यापार में निवेश की बात निकल आई और 30 लाख रुपए के शुरुआती इक्विटी कैपिटल के साथ नई कंपनी की शुरुआत करने की बात तय हुई। आनंद के पिता भी उदय की कंपनी के चेयरमेन बनने कोराजी हो गए। जब आनंद की एंट्री बोर्ड मेंबर्स में हुई, तो उन्होंने कंपनी को नाम दिया-कोटक महिंद्रा। इस तरह कोटक महिंद्रा फाइनेंस की शुरुआत हुई।
महिंद्रा के जुड़ने से कंपनी की विश्वसनीयता और बढ़ गई। हालांकि 2009 में आनंद महिंद्रा ने अपने आप को इस कंपनी से अलग कर लिया, पर आज भी महिंद्रा का नाम इस कंपनी से जुड़ा है।2017 में कोटक-महिंद्रा बैंक की एक स्कीम की लॉन्चिंग पर कोटक महिंद्रा ग्रुप के एग्जीक्यूटिव वाइस चेयरपर्सन और मैनेजिंग डायरेक्टर उदय कोटक ने यह बात साझा की थी। इसको लेकर आनंद ने ट्वीट किया जिसमें लिखा था, ‘साल 1985 में युवा उदय कोटक मेरे ऑफिस में आए थे, वह बहुत स्मार्ट थे और मैंने पूछा हूं कि क्या मैं उसकी कंपनी ने निवेश कर सकता हूं, यह मेरा सबसे बेहतरीन निर्णय था। इसका जवाब देते हुए उदय कोटक ने लिखा, ‘धन्यवाद आनंद, इस पूरी यात्रा में आप मेरे दोस्त, मेंटर और मार्गदर्शक रहे हैं।’

किरण मजूमदार शॉ : जब बात पति और दोस्त की जिंदगी की आई तो दोनों फर्ज निभाए
दोस्ती का एक बेहतरीन किस्सा बायोकॉन की मैनेजिंग डायरेक्टर किरन मजूमदार शॉ से भी जुड़ा है। जीवन में एक समय ऐसा भी आया था जब पति और दोस्त दोनों कैंसर से जूझ रहे थे लेकिन उन्होंने बिजनेस, परिवार और दाेस्ती के बीच तीनों ही जिम्मेदारियां बखूबी निभाईं भीं दूसरों की मदद का रास्ता भी साफ किया।किरन की सबसे करीबी दोस्त नीलिमा रोशेन को 2002 में कैंसर डिटेक्ट हुआ था।
आर्थिक रूप से सम्पन्न परिवार से होने के बाद भी ज्यादातर दवाएं बाहर से आने कारण नीलिमा को पैसों की बेहद जरूरत थी। ऐसे में किरन उनके साथ खड़ी रहीं और आर्थिक मदद की। किरन दोस्त की बीमारी के तनाव से बाहर निकल पाती इससे पहले उन्हें एक और खबर ने परेशान कर दिया। 2007 में पता चला कि पति जॉन शॉ भी कैंसर से जूझ रहे हैं। दोनों ही घटनाओं ने किरन को इस हद तक परेशान किया कि भविष्य में दूसरे के साथ ऐसा न हो इसका हल सोचने पर मजबूर कर दिया।
किरन ने नारायण हृदयालय के देवी शेट्टी के साथ मिलकर बेंगलुरू में 2007 में मजूमदार-शॉ कैंसर हॉस्पिटल की शुरुआत की जो बेहद कम खर्च में कैंसर का इलाज उपलब्ध कराता है। कई महीने के चले इलाज के साथ पति की कैंसर मुक्त होने की खबर मिली। किरन के मुताबिक, जब डॉक्टर के मुंह से यह खबर सुनी जॉन अब पूरी तरह स्वस्थ हैं, इस खुशी मैं शब्दों में नहीं बता सकती। दोस्त के इलाज के दौरान किरन ने उनके साथ काफी समय बिताया, उसके साथ टूर पर भी गईं ताकि वह अच्छा महसूस करे।
किरन हर वीकेंड पर हैदराबाद दोस्त से मिलने आती थीं उन्हें सरप्राइज पार्टी देती थीं। व्ययस्तता के बावजूद उनके साथ समय बिताती थीं लेकिन एक दिन ऐसा भी आया जब नीलिमा ने अंतिम सांस ली और यह दोस्ती अंतिम समय तक कायम रही।
दोस्तों का साथ कितना कुछ बदलता है, इस पर अब विज्ञान की मुहर भी लग गई है। लम्बी उम्र चाहिए तो दोस्त बनाएं, डिप्रेशन से दूर रहना चाहते हैं तो भी दोस्तों की संगत जरूरी है। इतना ही नहीं, वर्क प्लेस पर काम करने की क्षमता को बढ़ाना चाहते हैं तो एक कलीग आप में जोश भरने का काम कर सकता है। ये सभी बातें रिसर्च में साबित हो चुकी हैं। आज फ्रेंडशिप डे है, इस मौके पर रिसर्च की जुबानी समझते हैं क्या कहता है, दोस्ती का विज्ञान।
दोस्तों पर हुई 5 रिसर्च से 5 असरदार बातें पता चलती हैं
पहली बात: दोस्तों का सर्कल बढ़ने पर डिप्रेशन से रिकवरी दोगुना तेजी से होती है
डिप्रेशन से दूर रहना चाहते हैं और लम्बी उम्र बढ़ाना चाहते हैं तो दोस्तों की संख्या को बढ़ाएं। प्रोसीडिंग्स ऑफ रॉयल सोसायटी जर्नल में प्रकाशित शोध दोस्ती के बारे में नई बात सामने रखता है। इसे समझने के लिए रिसर्च की गई। शोधकर्ताओं ने रिसर्च में ऐसे दो हजार स्टूडेंट्स को शामिल किया जिनमें डिप्रेशन के लक्षण दिखे।
रिसर्च में सामने आया कि जिन स्टूडेंट्स के पास दोस्तों की संख्या बढ़ी थी उनमें डिप्रेशन के लक्षण घटे। इनमें दोगुना तेजी से रिकवरी की सम्भावना देखी गई।
अमेरिका में हुई एक और रिसर्च बताती है कि अकेलापन डिप्रेशन बढ़ाने के साथ सेहत को भी प्रभावित करता है। एन्नल्स ऑफ बिहेवियरल मेडिकल जर्नल में प्रकाशित रिसर्च के मुताबिक कि दोस्तों का सर्कल आपकी उम्र भी बढ़ाता है और आपको खुश भी रखता है।
दूसरी बात: वर्क प्लेस पर दोस्तों का साथ आपको खुशहाल और मेहनती बनाता है
ब्रिटेन में हुई एक रिसर्च के मुताबिक, दोस्तों का साथ निजी जिंदगी में ही नहीं, वर्क प्लेस पर भी आपको खुश रखता है। रिसर्च के मुताबिक, 66 फीसदी लोगों का कहना वर्क प्लेस पर मौजूद दोस्तों के कारण ऑफिस में काम करने का उत्साह बढ़ जाता है।
57 फीसदी का कहना है कि वर्क प्लेस होने वाली दोस्ती आपको खुशहाल बनाने के साथ काम करने की क्षमता को भी बढ़ाती है। 2020 में हुई यह बताती है कि 77 फीसदी लोगों का अपने कलीग्स के साथ पॉजिटिव रिलेशनशिप रहता है।
तीसरी बात: एक इंसान केवल पांच दोस्तों से ही नजदीकी रिश्ते बना पाता है
ब्रिटिश एंथ्रोपोलॉजिस्ट और शोधकर्ता रॉबिन डनबार की रिसर्च कहती है कि एक इंसान 150 से अधिक दोस्तों से दोस्ती नहीं निभा सकता। इनमें से इंसान के दिल के करीब कुछ ही दोस्त होते हैं। सबसे अच्छे दोस्त कितने होते हैं, इस पर शोधकर्ता रॉबिन का कहना है एक इंसान भले ही 150 दोस्तों का सर्कल मेंटेन कर सकता है लेकिन मात्र 5 दोस्त ही ऐसे होते हैं जिनसे वह अपनी हर बात शेयर कर सकता है।
चौथी बात:. दोस्त कितने भी हों, मात्र 50 फीसदी ही आपको अपना सच्चा दोस्त मानते हैं
आपके दोस्त वाकई में आपको कितना अपना दोस्त मानते हैं, इस पर अमेरिका के मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी ने 2016 में रिसर्च की। रिसर्च में सामने आया कि आपके पास जितने भी दोस्त हैं उनमें से सिर्फ 50 फीसदी ही आपको अपना सच्चा दोस्त मानते हैं। यह रिसर्च 23 से 38 उम्र के लोगों पर की गई थी।
रिसर्च में शामिल 94 फीसदी दोस्तों ने एक-दूसरे के प्रति अपनी फीलिंग शेयर की लेकिन परिणाम के तौर पर सामने आया कि मात्र 53 फीसदी दोस्तों की बातें ही सच्ची थी।
पांचवी बात: उम्र बढ़ने पर परिवार से ज्यादा काम आते हैं दोस्त
जब बात बढ़ती उम्र में साथ निभाने की आती है तो परिवार से ज्यादा दोस्त सबसे विश्वसनीय विकल्प साबित होते हैं। अमेरिकी की मिशिगन स्टेट यूनिवर्सिटी की रिसर्च कहती है कि जब हमारी उम्र बढ़ रही होती है तो दोस्त ही कई तरह से मददगार साबित होते हैं। शोधकर्ता विलियन चोपिक ने इसे समझने के लिए दुनियाभर के 100 देशों के 271,053 लोगों पर सर्वे किया।
सर्वे कहता है कि जिनके दोस्त अधिक होते हैं वे ज्यादा खुश और स्वस्थ रहते हैं।
शोधकर्ताओं ने इसका दूसरा पहलू भी बताया। उनका कहना है इंसान उम्रदराज है और दोस्ती में खटास आ गई है तो यही दोस्ती तनाव की वजह बन सकती है। इंसान को ब्लड प्रेशर की समस्या, हार्ट डिसीज और डायबिटीज से जूझना पड़ सकता है।
ब्रिटेन की दो महिलाओं ने मिलकर 263 दिन, 8 घंटे और 7 मिनट में 29 हजार किलोमीटर की यात्रा करके गिनीज रिकॉर्ड बनाया है। ये यात्रा साइकिल से पूरी है। अपनी यात्रा के दौरान इन्होंने 25 देशों को पार किया है। कैट डिक्सॉन और रेज मार्सडेन ने अपना सफर इंग्लैंड के ऑक्सफोर्डशायर से 29 जून 2019 को शुरू किया था। जो 18 मार्च 2020 को लंदन में खत्म हुआ।
एक दिन में 125 से 160 किमी का सफर तय किया
कैट डिक्सन (54) और रेज मार्सडेन (55) ने एक दिन में 125 से 160 किलोमीटर का सफर तय किया। दोनों महिलाओं ने अपनी इस पहल से चैरिटी के लिए 37 लाख रुपए जुटाए हैं। गिनीज रिकॉर्ड के मुताबिक, यह नया रिकॉर्ड है जो हमारे गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड डे का हिस्सा भी है। यह खास दिवस 18 नवम्बर को मनाया जाएगा। इस दिन की थीम है 'डिस्कवर योर वर्ल्ड'।
281 दिन में इस यात्रा को पूरी करने वाले लॉयड और लुईस का रिकॉर्ड तोड़ा
कैट और रेज ने ऐसी ही यात्रा को 281 दिन में पूरी करने वाले रिकॉर्ड होल्डर को पीछे छोड़ दिया है। दोनों महिलाओं ने पुरुष और महिला दोनों की कैटेगरी में सबको पीछे छोड़ दिया है। इससे पहले ये रिकॉर्ड ब्रिटेन के ही लॉयड एडवर्ड कोलियर और लुइस पॉल ने बनाया था।

इन 25 देशों से होकर गुजरीं कैट और रेज
दोनों महिलाओं ने अपना सफर इंग्लैंड के ऑक्सफोर्डशायर से शुरू किया था। अपने सफर के दौरन वे फ्रांस, मोनेको, इकटली, स्लोवेनिया, क्रोएशिया, बॉस्निया, ग्रीस, तुर्की, जॉर्जिया, म्यामार, थाइलैंड, भारत, सिंगापुर, ऑस्टेलिया, न्यूजीलैंड, अमेरिका, मेक्सिको, मोरक्को और स्पेन समेत 25 देशों से गुजरीं।