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कोरोना के कारण जैकब सेरेनो अपने परिवार के 7 लोगों को खो चुके हैं। मात्र 23 साल की उम्र के जैकब ने साल का सबसे बुरा दौर देखा। वह ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी की वैक्सीन के ह्यूमन में ट्रायल शामिल हुए हैं। जैकब पहले ऐसे अमेरिकी हैं जिन्हें वैक्सीन के फाइनल स्टेज की टेस्टिंग में पहली डोज दी गई है। तीसरे और अंतिम चरण के ट्रायल में इनके अलावा 31 दूसरे वॉलंटियर्स भी शामिल हैं। ट्रायल फ्लोरिडा में शुरू हुआ है।
कोरोना को रोकने के लिए ट्रायल का हिस्सा बना
जैकब कहते हैं, मैंने काफी कुछ खोया है। मैं लोगों का जीवन छीनने वाले कोरोना को रोकने में मदद करना चाहता हूं। इसलिए ट्रायल का हिस्सा बना। सिर्फ अमेरिका में ही 1,83,000 से अधिक लोगों की मौत इस वायरस के कारण हुई। मैं नहीं चाहता ये हमेशा हमारे बीच में रहे। मुझे मालूम है वैक्सीन के ट्रायल में रिस्क था। मैं खतरे के एक पायदान और करीब था लेकिन अब मुझे डर नहीं है कि क्या होगा।
फ्लोरिडा में चल रहा ट्रायल
अमेरिका में ट्रायल फ्लोरिडा के हेडलैंड्स जेम रिसर्च इंस्टीट्यूट में चल रहा है। यहां जैकब के साथ जिन दूसरे वॉलंटियर्स को वैक्सीन की डोज दी गई उन्हें ट्रैक किया जा रहा है। अगले कुछ हफ्तों तक उनमें वायरस पर दिखने वाले इम्यून रेस्पॉन्स को जांचा जाएगा।
ट्रायल प्रोग्राम की देखरेख करने वाले डॉ. लैरी बुश के मुताबिक, पिछले ट्रायल में वैक्सीन असरदार साबित हुई है। वॉलंटियर्स में इम्यून रेस्पॉन्स काफी बेहतर रहा है। पहले और दूसरे चरण के ह्यूमन ट्रायल में वॉलंटियर्स में न्यूट्रिलाइजिंग एंटीबॉडीज बनीं। संक्रमित कोशिकाओं पर टी-सेल का रेस्पॉन्स अच्छा देखा गया। ऐसा होना इलाज के लिए बेहतर स्थिति है।
50 हजार लोगों पर होगा तीसरे चरण का ट्रायल
अमेरिका में ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी और फार्मा कम्पनी एस्ट्राजेनेका मिलकर वैक्सीन (AZD1222) का ट्रायल कर रहे हैं। तीसरे चरण का ह्यूमन ट्रायल दुनियाभर के 50 हजार लोगों पर किया जाना है। इसमें 30 हजार अमेरिकी शामिल हैं। ट्रायल की शुरुआत हो चुकी है। इस वैक्सीन का ट्रायल ब्रिटेन, ब्राजील, साउथ अफ्रीका में भी हो चुका है।
भारत में यह वैक्सीन कोविशील्ड के नाम से लॉन्च होगी
ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी की टीम की हेड प्रोफेसर सारा गिलबर्ट कहती हैं, वैक्सीन के तीसरे ह्यूमन ट्रायल का शुरुआती डाटा जल्द ही रेग्युलेटर के सामने पेश किया जाएगा। वैक्सीन की मदद से इम्यून सिस्टम इतना ट्रेन्ड हो जाएगा कि यह वायरस को पहचान पाएगा और उस पर अटैक कर सकेगा।
इस वैक्सीन का ट्रायल भारत में भी चल रहा है। देश में इसे तैयार करने वाले सीरम इंस्टीट्यूट के मुताबिक, यह वैक्सीन साल के अंत तक उपलब्ध हो सकती है। भारत में यह 'कोविशील्ड' के नाम से उपलब्ध होगी।
आयरन और कैल्शियम की तरह भारतीयों में प्रोटीन की भी कमी है। 73% शहरी आबादी में प्रोटीन का स्तर मानक से काफी कम है। खानपान में इसे क्यों शामिल करना चाहिए, 93% लोगों को यह भी पता नहीं है। सबसे चौंकाने वाली बात है कि भारतीय प्रोटीन को महत्व ही नहीं देते। उनका मानना है कि यह सिर्फ जिम जाने वालों के लिए जरूरी है। इंडियन मार्केट रिसर्च ब्यूरो के एक सर्वे में यह बात सामने आई है।
देश के 7 शहरों में हुआ सर्वे
रिपोर्ट के मुताबिक, देश के 7 शहरों में हुए सर्वे में भारतीयों का मानना है कि डाइट में प्रोटीन का इस्तेमाल वजन घटाने के लिए किया जाता है। 2018 में हुई इनबॉडी-आईपीएसओएस की रिसर्च के मुताबिक, 71% भारतीयों की मांसपेशियां कमजोर हैं। मानक के मुकाबले शरीर में 68% तक प्रोटीन की कमी है। नेशनल सैंपल सर्वे (2011-12) के मुताबिक, ग्रामीण इलाके में 56.5 ग्राम और शहरी इलाके के भारतीय 55.7 ग्राम प्रोटीन लेते हैं।
रोजाना कितना प्रोटीन जरूरी
स्वास्थ्य और पोषण के क्षेत्र में काम कर रहे डॉ. नंदन जोशी कहते हैं- शारीरिक रूप से सक्रिय न रहना और मानक से कम प्रोटीन शरीर में पहुंचने से युवाओं की मांसपेशियों को कमजोर हो रही हैं। 30 साल की उम्र में मांसपेशियां क्षतिग्रस्त होना शुरू होती हैं। हर 10 साल में 3-5% तक मांसपेशियां डैमेज होती हैं। रोजाना एक्सरसाइज और प्रोटीन इसे रिपेयर करने का काम करते हैं और एक्टिव रखते हैं। किसी भी इंसान को अपने वजन के मुताबिक प्रोटीन लेना चाहिए। जैसे आपका वजन 60 किलो है तो रोजाना 60 ग्राम प्रोटीन डाइट में लेना चाहिए।
प्रोटीन की कमी कैसे पूरी करें
डाइटीशियन और क्लीनिकल न्यूट्रिशनिस्ट डॉ. नीतिशा शर्मा बताती हैं कि मांसाहारी हैं तो डाइट में मीट, चिकन, अंडे ले सकते हैं। शाकाहारियों के लिए दूध, फलियों की सब्जियां, मूंगफली, नट्स और दालें बेहतर विकल्प हैं। एक ही जगह पर दिनभर का ज्यादातर समय बिताना, शरीर सक्रिय न रखना और प्रोटीन का घटता स्तर मांसपेशियों को कमजोर कर रहा है। बचपन से लेकर बुढ़ापे तक, प्रोटीन जीवन के हर पड़ाव के लिए जरूरी है।
सबसे ज्यादा प्रोटीन की कमी लखनऊ वालों में
इंडियन मार्केट रिसर्च ब्यूरो के एक अन्य सर्वे में देश के प्रमुख शहरों में प्रोटीन का स्तर जांचा गया। सर्वे में पाया गया 90% लखनऊ के लोगों में प्रोटीन की कमी है। दूसरे पायदान पर दो शहर, अहमदाबाद और चेन्नई हैं, यहां की 84% आबादी प्रोटीन की कमी से जूझ रही है। तीसरे स्थान पर विजयवाड़ा (72%) और चौथे पर मुंबई (70%) है। वहीं, दिल्ली में यह आंकड़ा 60 फीसदी है। इस सर्वे में 1800 लोग शामिल किए और उनके खानपान का विश्लेषण किया गया।
खाने से 50 फीसदी ही प्रोटीन मिल रहा
इंडियन डाइटिक एसोसिएशन के मुताबिक, भारतीयों को खानपान से जरूरत का मात्र 50 फीसदी की प्रोटीन मिल पा रहा है। प्रोटीन बच्चों के विकास के अलावा उनके सोचने-समझने की क्षमता को बेहतर बनाता है। यह मांसपेशियों के लिए जितना जरूरी है, उतना ही शरीर की रोगों से लड़ने की क्षमता बढ़ाने के लिए भी अहम है। इसके अलावा स्किन और बालों को खूबसूरत और हेल्दी बनाने के लिए शरीर में पर्याप्त प्रोटीन का होना जरूरी है।