LIDL is a discount grocery store who are known for their affordable grocery items. Its rival Aldi is also a discount supermarket who provides a range of grocery items at a lesser price than supermarket giants. But what supermarket is the cheapest? A recent which? analysis has revealed what the cheapest supermarket was in the month of June.
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पूरी दुनिया में इस COVID19 से मरने वाले पहले से ही किसी न किसी बीमारी से संक्रमित पाए गए हैं. उनकी मौत में कोरोना तत्कालिक कारण हो सकता है लेकिन एकमात्र वजह नहीं.
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The idea comes from a recent study, published in the journal Proceedings of the National Academy of Sciences, which looked at the habits of the Hadza tribe who live in Tanzania, East Africa.
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JULIE COOK: The pain radiating from my abdomen was worse than childbirth. It began on Christmas Eve. I was at home with our children while my husband - a musician - was at work.
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कोरोनाकाल में वायरस के संक्रमण से बचना है तो चॉकलेट खाएं। यह दावा जापानी शोधकर्ताओं ने अपनी रिसर्च में किया है। साइंस ऑफ फूड एंड एग्रीकल्चरजर्नल में प्रकाशित रिसर्च कहती है, यह प्राकृतिक तौर पर शरीर की इम्युनिटी बढ़ाती है। चॉकलेट खाने का असर इंफ्लुएंजा वायरस पर देखा गया। शोध में सामने आया कि जो लोग चॉकलेट खाते है उनके वैक्सीनेशन के बाद इम्यून रिस्पॉन्स और तेज होता है।
शोधकर्ताओं के मुताबिक,शरीर में कोको पहुंचने पर एंटी माइक्रोबियल एक्टिविटी बढ़ती है जो इंफ्लुएंजा वायरस के असर को कम करती है। इसे सीमित मात्रा में खाना फायदेमंद है क्योंकि यह खुश रखने के साथ शरीर की रोगों से लड़ने की क्षमता भी बढ़ाती है।
आज इंटरनेशनल चॉकलेट डे है। इस मौके पर जानिए क्यों आपको चॉकलेट खाना चाहिए...
सेहत : बढ़ती उम्र का प्रभाव घटाती और वजन कंट्रोल करती है
एक अध्ययन के अनुसार दो सप्ताह तक रोजाना डार्क चॉकलेट खाने से तनाव कम होता है। चॉकलेट खाने से तनाव बढ़ाने वाले हार्मोन नियंत्रित होते हैं। इसे ऑक्सीडेटिव तनाव घटाने के लिए बहुत शक्तिशाली माना गया है। इसकी वजह से सूजन, चिंता और इंसुलिन प्रतिरोध जैसी दिक्कतें उत्पन्न होती जाती हैं।
साल 2010 में हुए एक शोध से पता चला है कि यह ब्लड-प्रेशर को कम करती है। यूरोपीय सोसायटी ऑफ कार्डियोलॉजी के शोध में पाया गया है किचॉकलेट खाते हैं तोदिल से जुड़ी कई तरह की बीमारियों से बचा जा सकता है।
ऑस्ट्रेलियाई शोधकर्ताओं द्वारा 2015 में किए गए अध्ययन के अनुसार यह मानसिक स्वास्थ्य के लिए भी बहुत फायदेमंद है। कैलिफोर्निया के सैन डिएगो विश्वविद्यालय के शोधमें पाया गया है कि जो वयस्क नियमित रूप से चॉकलेट खाते हैं, उनका बॉडी मास इंडेक्स चॉकलेट न खाने वालों की तुलना में कम रहता है।
वैज्ञानिकों के अनुसार, चॉकलेट में मौजूद कोको फ्लैवनॉल बढ़ती उम्र के असर को जल्दी नहीं दिखने देता। वहीं, एक अमेरिकी अध्ययन के अनुसार रोजाना हॉट चॉकलेट के दो कप पीने से वृद्ध लोगों का मानसिक स्वास्थ्य अच्छा रहता है और उनकी सोचने की क्षमता भी तेज होती है।
शुरुआत: यूरोप में मिली थी मिठास, शाही ड्रिंक में थी शामिल
अपने शुरुआती दौर में चॉकलेट का टेस्ट तीखा हुआ करता था। कोकोके बीजों को फर्मेंट करके रोस्ट किया जाता था और इसके बाद इसे पीसा जाता था। इसके बाद इसमें पानी, वनीला, शहद, मिर्च और दूसरे मसाले डालकर इसे झागयुक्त पेय बनाया जाता था।
उस समय ये शाही पेय हुआ करता था। लेकिन चॉकलेट को मिठास यूरोप पहुंचकर मिली। यूरोप में सबसे पहले स्पेन में चॉकलेट पहुंची थी। स्पेन का खोजी हर्नेन्डो कोर्टेस एजटेक के राजा मान्तेजुमा के दरबार में पहुंचा था जहां उसने पहली बार चॉकलेट को पेश किया।
सफर : 4 हजार साल का पुराना है इतिहास
चॉकलेट का इतिहास लगभग 4000 साल पुराना है। कुछ लोगों का तो यहां तक कहना है कि चॉकलेट बनाने वाला कोको पेड़ अमेरिका के जंगलों में सबसे पहले पाया गया था। हालांकि, अब अफ्रीका में दुनिया के 70% कोको की पूर्ति अकेले की जाती है।
कहा जाता है चॉकलेट की शुरुआत मैक्सिको और मध्य अमेरिका के लोगों ने की था। 1528 में स्पेन ने मैक्सिको को अपने कब्जे में लिया पर जब राजा वापस स्पेन गया तो वो अपने साथ कोको के बीज और सामग्री ले गया। जल्द ही ये वहां के लोगों को पसंद आ गया और अमीर लोगों का पसंदीदा पेय बन गया।
यह है कोको का पेड़, जिसके बीजों को सुखाकर पीसा जाता है, इससे तैयार होने वाले पाउडर से चॉकलेट तैयार की जाती है। देश में चॉकलेट की सबसे ज्यादा खेती आंध्र प्रदेश में की जाती है।
व्यापार : 5 साल में 58% बढ़ा चॉकलेट का ऑनलाइन कारोबार
एक शोध में यह पाया गया कि पुरुषों की तुलना में भारतीय महिलाएं 25 फीसदी ज्यादा चॉकलेट ऑनलाइन मंगाती हैं। भारत में चॉकलेट का कारोबार हाल के वर्षों में तेजी से बढ़ा है। माना जा रहा है कि जिस गति से इसका कारोबार बढ़ रहा है। उस लिहाज से भारत में वर्ष 2023 तक यह 5.01 बिलियन यूएस डॉलर यानी 500 करोड़ रुपए से अधिक हो जाएगा। वर्ष 2017 में चॉकलेट का कंजम्प्शन 19.3 करोड़ किलो का रहा। वहीं चॉकलेट के ऑनलाइन कारोबार की बात करें तो वर्ष 2012 से 2017 के बीच ऑनलाइन रीटेल कंपाउंड एनुअल ग्रोथ रेट 57.9% रही। जिसकी वैल्यू 24.4 मिलियन डॉलर यानी 2.44 करोड़ रुपए रही।
कोरोना के उबरने के बाद योगेश धाकड़ संक्रमित मरीजों के लिए अब तक तीन बार प्लाज्मा डोनेट कर चुके हैं। योगेश को अप्रैल में कोरोना का संक्रमण हुआ और 20 दिन तक दिल्ली के सफदरजंग हॉस्पिटल में रहे। अस्पताल से डिस्चार्ज होने के बाद वह पिछले 45 दिन में तीन बार प्लाज्मा डोनेट कर चुके हैं। उनका कहना है, जब तक शरीर है तब तक हर 15 दिन में प्लाज्मा डोनेट करता रहूंगा।
दिल्ली स्थित राम मनोहर लोहिया अस्पताल के पीडियाट्रिक सर्जरी डिपार्टमेंट में बतौर नर्सिंग ऑफिसर काम करने वाले योगेश ने दैनिक भास्कर से अब तक की पूरी कहानी बताई। उन्हीं के शब्दों में जानिए उनकी कहानी...
"मैं मध्य प्रदेश के ग्वालियर से हूं और दिल्ली में एक दोस्त के साथ रहता हूं। अप्रैल में मेरी ड्यूटी कोविड सेक्शन में लगाई गई थी। यहीं से संक्रमण हुआ और 18 अप्रैल को रिपोर्ट पॉजिटिव आई। मैं एसिम्प्टोमैटिक था, लिहाजा कोविड-19 के लक्षण नहीं दिख रहे थे। जांच रिपोर्ट पॉजिटिव आने के बाद 20 दिन तक दिल्ली के सफरदरजंग हॉस्पिटल में आइसोलेशन में रहा।
एसिम्प्टोमैटिक होने के कारण चीजें सामान्य थीं। मेरे पास काफी समय था इसलिए मैं वहीं योग और वर्कआउट करता था। इलाज के बाद रिपोर्ट्स निगेटिव आईं और संक्रमण खत्म हुआ। मैंने वापस ड्यूटी जॉइन कर ली। मैं अक्सर रक्तदान करता रहता हूं, इसलिए कई जगह मेरा मोबाइल नम्बर रजिस्टर्ड है। एक दिन मेरे पास प्लाज्मा डोनेट करने के लिए कॉल आया। मैं डोनेशन के लिए पहुंचा, पूरी साफ-सफाई और सावधानी के बीच प्लाज्मा डोनेट किया।
मैक्स हॉस्पिटल के दो मरीजों को मेरा प्लाज्मा चढ़ाया गया। दोनों की उम्र करीब 50 साल थी। उनमें से एक ने मेरे घर के पते पर मिठाई का डिब्बा भेजा। दूसरी बार, जब ग्वालियर लौटा तो एक परिचित ने मुझसे मरीज के लिए प्लाज्मा डोनेट करने को कहा। तीसरी बार रोहिणी-दिल्ली के जयपुर गोल्डन हॉस्पिटल से आएमएल हॉस्पिटल में कॉल आया, उन्हें किसी मरीज के लिए प्लाज्मा की जरूरत थी, तीसरी बार तब डोनेट किया।"
आइसोलेशन के दौरान योगेश ने योग और वर्कआउट करना जारी रखा।
ब्लड और प्लाज्मा बैंक में बरती जा रही सावधानी के बीच मुझे बिल्कुल भी संक्रमण का खतरा नहीं महसूस हुआ। मुझे खुशी हुई कि मैं जिस संक्रमण से गुजरा उससे जूझ रहे मरीजों की मदद कर पा रहा है। इस समय एक-दूसरे की मदद करना बेहद जरूरी है। एक साल में 24 बार प्लाज्मा डोनेट कर सकते हैं, इसलिए मैं हर 15 दिन में ऐसा करूंगा, ताकि किसी दूसरे मरीज को महामारी के संकट से उबार सकूं। जब तक शरीर स्वस्थ है, मैं प्लाज्मा डोनेट करतारहूंगा।
मैं खुशनसीब हूं कि मुझे मौका मिला कि महामारी से जूझ रहे मरीजों की मदद कर सकूं। कोरोना से उबरने के बाद कुछ लोग प्लाज्मा डोनेट करने में झिझकते हैं। बिल्कुल भी डरने की जरूरत है नहीं है क्योंकि आपका प्लाज्मा तभी लिया जाएगा जब रिपोर्ट निगेटिव आएगी और इस दौरान सुरक्षा का ध्यान रखा जाता है। इसे डोनेट करना बिल्कुल सेफ है। डोनेशन के बाद मुझे किसी तरह की कोई कमजोरी महसूस नहीं हुई। मैं काफी खुश था।
योगेश 15 बार से अधिक रक्तदान कर चुके हैं। उनका कहना है, कोरोना से उबर चुके हैं तो प्लाज्मा डोनेट करें।
3 पॉइंट : क्या है प्लाज्मा डोनेशन और कौन कर सकता है
आईसीएमआर के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ तरुन भटनागर के मुताबिक, प्लाज्मा खून का एक हिस्सा होता है। इसे डोनेट करने से कोई कमजोरी नहीं आती है। यह बिल्कुल ब्लड डोनेशन जैसा है।
18 से 60 साल के ऐसे लोग जो कोरोना से उबर चुके हैं। रिपोर्ट निगेटिव आ चुकी है। 14 दिन तक कोविड-19 के लक्षण नहीं दिखाई दिए हैं, वो डोनेट कर सकता है।
जिनका वजन 50 किलो से कम है वे प्लाज्मा डोनेट नहीं कर सकते। गर्भधारण कर चुकी महिलाएं, कैंसर, गुर्दे, डायबिटीज,हृदय रोग फेफड़े और लिवर रोग से पीड़ित लोग प्लाज्मा दान नहीं कर सकते।
कोरोना मरीजों में कैसे काम करती है प्लाज्मा थैरेपी
ऐसे मरीज जो हाल ही में बीमारी से उबरे हैं उनके शरीर में मौजूद इम्यून सिस्टम ऐसे एंटीबॉडीज बनाता है जो ताउम्र रहते हैं और इस वायरस से लड़ने में समर्थ हैं। ये एंटीबॉडीज ब्लड प्लाज्मा में मौजूद रहते हैं। इनके ब्लड से प्लाज्मा लेकर संक्रमित मरीजों में चढ़ाया जाता है। इसे प्लाज्मा थैरेपी कहते हैं। ऐसा होने के बाद संक्रमित मरीज का शरीर तबतब तक रोगों से लड़ने की क्षमता यानी एंटीबॉडी बढ़ाता है जब तक उसका शरीर खुद ये तैयार करने के लायक न बन जाए।
हवा से फैलने वाले यानी एयरबोर्न कोरोना संक्रमण को लेकर न्यू यार्क टाइम्स में छपी 239 वैज्ञानिकों की चेतावनी रिपोर्ट के बाद दुनियाभर में फिक्र और बहस बढ़ गई है। इस रिपोर्ट में32देशों 239वैज्ञानिकों ने अपनी रिसर्चके हवाले से बताया है किनोवेल कोरोनावायरसयानी Sars COV-2के छोटे-छोटे कण हवा मेंकई घंटों तकबनेरहते हैं और वे भी लोगों को संक्रमित कर सकते हैं।
इस पूरे मामले में लोग जहां विश्व स्वास्थ्य संगठन(WHO)को आड़े हाथ ले रहे हैं वहीं, इस शीर्ष संगठन का कहना है कि कोरोनावायरस हवा से नहीं बल्कि एयरोसोल और5 माइक्रोन से छोटी ड्रापलेट्स से फैल सकता है। (एक माइक्रॉन एक मीटर के दस लाखवें हिस्से के बराबर होता है।)
32देशों के इन239वैज्ञानिकों ने WHOकोलिखे एक ओपन लेटरदावा कियाहैकिकोरोनावायरस के हवा से फैलने केपर्याप्त सबूत हैं। इन सबूतों के अधार पर WHO को यह मान लेना चाहिए किइस वायरस के छोटे-बड़ेकण हवा में तैरते रहते हैं,औरइनडोर एरिया में मौजूदलोगोंमें उनकी सांस के जरिये प्रवेश करसंक्रमित कर सकते है।
वैज्ञानिकों नेWHOसेकोविड-19वायरसके संक्रमण को फैलने संबंधी अपनी पुरानी अप्रोच औररिकमंडेशन्समें तुरंत संशोधन करने का आग्रह किया है। यह लेटरसाइंटिफिकजर्नल में अगलेहफ्तेपब्लिश किया जाएगा।
लोग इसे WHO का गलती बता रहे
बीते 24 घंटों में सोशल मीडिया में भी इस बारे में कई तरह की बातें सामने आ रही है और लोग इसके लिए सरकारों औरWHO को कटघरे में खड़ा कर रहे हैं। दूसरी ओर, कुछ लोग इसे अमेरिका का एजेंडा भी बता रहे हैं। लोगों का कहना है कि WHO ने इस मामले में शुरू से गुमराह किया है।
कुछ लोग ट्विटर पर NYT की खबर को री-पोस्ट करके लिख रहे हैं कि दुनिया के बड़े वैज्ञानिकों की सलाह को लेकर WHO का रवैया ठीक नहीं है। यह संगठन ठीक से काम नहीं कर रहा। लोगसवाल उठारहे हैं क्योंकि वैज्ञानिकबहुत पहले से जानते थे किये वायरस हवा से फैल सकता है, फिर भी इस बात को ठीक से बताया क्यों नहीं जा रहा है?
WHO ने इसे लेकर बड़ी चेतावनी नहीं दी
NYT की इस खबर के बादसमाचार एजेंसी रॉयटर्सनेWHOसे इस नए दावे पर प्रतिक्रिया मांगी थी। लेकिनWHO ने अभी तक इस बारे में कोई आधिकारिक बयान जारी नहीं किया है। घरों में क्वारैंटाइनऔरलॉकडाउन खुलने के बाद काम पर पहुंचे आम लोगों के लिए कोई बड़ी चेतावनी भी जारी नहीं की गई।
बीबीसी एक रिपोर्ट के मुताबिकमार्चके महीने में WHO के सामने जब यह विषय आया था तो इसे आम लोगों की बजायमेडिकल स्टाफको ज्यादा खतरा बताया गया था। इसके लिए 'एयरबोर्न प्रिकॉशन' भी जारी की गईं थीं। इसके बाद अमरीका के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफहेल्थ (एनआईएच) की एक रिपोर्ट सामने आई जिसमें दावा किया गया है कि कोरोना वायरस हवा में तीन से चार घंटे रह सकता है।
WHO ने कहा कि – दावे के ठोस और साफ सबूत नहीं
WHOमें संक्रमण की रोकथाम और नियंत्रण करने के लिए बनी टेक्निकल टीम के हेड डॉ. बेनेडेटा अलेगरैंजी के हवाले से न्यू यॉर्क टाइम्स ने अपनी इस रिपोर्ट में लिखा, 'हमने यह कई बार कहा है कि यह वायरस एयरबोर्न हो भी सकता है लेकिन अभी तक ऐसा दावा करने के लिए कोई ठोस और साफ सबूतनहीं है। इस वायरस के हवा में मौजूद रहने के जो सबूत दिए गए हैं,उनसे ऐसे किसी नतीजे में फिलहाल नहीं पहुंचा जा सकता कि यह एयरबोर्न वायरस है।'
अब तक यही धारणा किथूक के कणतैर नहीं सकते
23मार्च कोWHOदक्षिण-पूर्वी एशिया की रिजनल डायरेक्टर पूनम खेत्रापाल सिंहकहा था कि, "अब तक कोरोना को ऐसा कोई केस केस सामने नहीं आया है जिसकी वजह एयरबॉर्न हो।इसे समझने के लिएअभी और रिसर्चडेटाजरूरीहै।
चीन से लेकरअब तक जो केस सामने आए हैं उनमें संक्रमित इंसान के खांसी,छींक के दौरान निकने ड्रॉपलेट और उसके संपर्क में आना ही वजह रही है।लेकिन, येकण इतने हल्के नहीं होते किहवा के साथ यहां से वहां उड़ जाएं। 5 माइक्रोन से छोटेड्रापलेट्स बहुत जल्द ही जमीन पर गिर जातेहैं। इसलिए,दूरी बनाए रखें और हाथों को बार-बार साफ करें।"
वैज्ञानिकों ने और WHO ने दी थी एयरोसॉल थ्योरी
मार्च में कोरोना के बढ़ते मामलों के बीच इस थ्योरी पर जोर दिया था कि कोरोनावायरस संक्रमित जब खांसता या छींकता है तो हवा में सांस के लेने-छोड़ने से वायरस का एक घेरा बन जाता है जिसे एयरोसॉल कहते हैं। ये घेरा अपने आसपास मौजूद लोगों को संक्रमित कर सकता है और इसका ज्यादा खतरा फ्रंटलाइनर मेडिकल स्टॉफ को है।
एयरोसॉल खांसी या छींक के ड्रापलेट्स की तुलना में हल्का होता है और हवा में ज्यादा देर बना रह सकता है। ऐसे मेंऐसे में कोरोना के एयरबॉर्न संक्रमण का खतरा उन्हीं अस्पताल के कर्माचारियों को होगाजो सीधे तौर पर एयरोसॉल के सम्पर्क में आते हैं या5 माइक्रोन से छोटी ड्रापलेट्स के सम्पर्क में आते हैं।
हवा न भी चले तो भी कोरोना के कण 13 फीट तक फैलते हैं
दुनियाभर के एक्सपर्ट सोशल डिस्टेंसिंग के लिए 6 फीट का दायरा मेंटेन करने की सलाह दे रहे हैं, लेकिन हाल में हुए एक अन्य शोध के नतीजे चौंकाने वाले हैं। भारतीय और अमेरिकी शोधकर्ताओं की टीम का कहना है कि कोरोना के कण बिना हवा चले भी 8 से 13 फीट तक की दूरी तय कर सकते हैं। शोधकर्ताओं के मुताबिक, 50 फीसदी नमी और 29 डिग्री तापमान पर कोरोना के कण हवा में घुल भी सकते हैं।
यह रिसर्च बेंगलुरू के इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस, कनाडा की ऑन्टेरियो यूनिवर्सिटी और कैलिफोर्निया लॉस एंजिल्स यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने मिलकर की है। शोधकर्ताओं का लक्ष्य यह पता लगाना था कि हवा में मौजूद वायरस के कणों का संक्रमण फैलाने में कितना रोल है। टीम का कहना है, रिसर्च के नतीजे स्कूल और ऑफिस में सावधानी बरतने में मदद करेंगे।
TESCO, Asda, Morrisons, Sainsbury's and Marks & Spencer all have different rules in place for shoppers. Some supermarkets have made changes to their opening hours.
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TYPE 2 diabetes affects roughly more than one in 16 people in the UK with around 3.9 million living with the dangerous condition. Finding healthy ways to help lower your blood sugar is pertinent when it comes to living with the condition and according to experts, drinking this beverage will help lower your blood sugar. What is it?
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