सर्दियां शुरू हो रही हैं। यह मौसम पहले से सांस के रोगियों के लिए खतरनाक माना जाता है क्योंकि प्रदूषण सीधेतौर पर सेहत पर असर डालता है। इस साल खतरा और भी ज्यादा है। कोरोना और सीजनल फ्लू हुआ तो लक्षण पहचानना मुश्किल होगा। सभी में सांस लेने में तकलीफ से जुड़े लक्षण दिखते हैं।
लेडी हार्डिंग मेडिकल कॉलेज, नई दिल्ली के डॉ. तन्मय तालुकदार का कहना है कि कोरोना के मामले में बड़े देशों से तुलना करें तो भारत की स्थिति बेहतर है लेकिन यह समय सांस के मरीजों के लिए सबसे संवेदनशील है। इस दौरान उन्हें कई बातों का ध्यान रखने की जरूरत है। जानिए क्या करें और क्या न करें...
सर्दियों के मौसम में संक्रमण का कितना खतरा है?
प्रसार भारती से बातचीत में डॉ. तन्मय ने कहा, सर्दियों में हमें वायरस के साथ-साथ प्रदूषण से भी बचना है। ऐसा पाया गया है कि प्रदूषण के कारण वायरस से फैलने वाली बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है। सर्दियों में सांस से जुड़ी बीमारियां भी बढ़ती हैं।
डॉ. तन्मय के मुताबिक, सर्दियों में दमा के अटैक अधिक होते हैं, इसलिए दवाओं का खास ध्यान रखना है। अगर समय पर दवा नहीं ली और लक्षण आए, तो कंफ्यूजन होगा कि कहीं कोरोना तो नहीं। अगर ऐसे में कोविड हुआ तो परिवार के दूसरे सदस्यों को संक्रमण का खतरा बढ़ सकता है।
डॉ. तन्मय ने कहा, सर्दियों में सांस से जुड़ी बीमारियां अधिक होती हैं और उनके लक्षण काफी हद तक कोविड-19 के लक्षण से मिलते-जुलते हैं। इस समय सबसे कॉमन सीज़नल फ्लू होता है। इसके अलावा आम सर्दी-खांसी भी होती है। मास्क लगाना न छोड़ें।
ये बढ़ाते हैं ट्रिपल अटैक का खतरा
- सर्दी : इससे बुजुर्गों और अस्थमा के मरीजों के फेफड़े पूरी तरह से काम नहीं कर पाते। अस्थमा के मरीजों को सर्दियों में परेशानी काफी बढ़ जाती है। दिल के रोगों का खतरा भी ज्यादा रहता है।
- प्रदूषण : इसका स्तर सर्दी में काफी बढ़ जाता है, इसलिए मरीजों की संख्या में भी इजाफा होता है। हर साल अक्टूबर और नवम्बर में अस्थमा और कार्डियक प्रॉब्लम बढ़ने का यह भी एक कारण है।
- कोरोना : यह वायरस सीधे फेफड़ों पर अटैक कर रहा है। कोरोनावायरस अस्थमा और कार्डियक पेशेंट्स को गंभीर हालात में ले जा रहा है। यह स्थिति जानलेवा हो सकती है।
अक्टूबर से जनवरी तक मरीज बढ़ते हैं, अबकी चुनौती पहाड़-जैसी है
एक्सपर्ट कहते हैं, हर बार अक्टूबर से जनवरी तक अस्थमा, कार्डियक पेशेंट बढ़ जाते हैं। इस बार कोरोना से हालात ज्यादा चुनौतीपूर्ण हैं। लोगों को समझना होगा कि खतरा जानलेवा है। इस बार अलर्ट अधिक नहीं रहे तो ऐसे मरीजों में मौत का आंकड़ा बढ़ना तय है। इसलिए जरूरी है कि त्योहारों की खुशियां अपनों के बीच मनाएं। केवल एक साल पटाखे नहीं चलाने से खुशियां कम नहीं होंगी।
तम्बाकू का सेवन करने वालों में क्या बदलाव दिखे हैं?
डॉ. तन्मय के मुताबिक, कोरोनाकाल उनके लिए वरदान बनकर आया है, जो वाकई में तम्बाकू छोड़ना चाहते हैं। दरअसल लोगों और सिगरेट, बीड़ी, खैनी, गुटखा के बीच मास्क की दीवार आ गई है। बहुत लोग संक्रमण के डर से सेवन नहीं कर रहे हैं। तम्बाकू कितनी नुकसानदेह है, यह बताने की जरूरत नहीं। समय आ गया है कि इस बुरी आदत को हमेशा के लिए छोड़ दें।
डॉ. तन्मय ने कहा कि अब तक हम यह जान चुके हैं कि कोरोना के अधिकांश मरीज एसिम्प्टोमेटिक या माइल्ड लक्षण वाले होते हैं। जब वो स्मोकिंग करते हैं, तो थूक के सूक्ष्म कणों और धुएं के साथ वायरस हवा में फैलता है। स्मोकर्स को खांसी ज्यादा आती है तो उन्हें खुद भी नहीं पता चलता कि वे संक्रमित हैं। उनके साथ अगर कोई नॉन-स्मोकर भी खड़ा है तो वह संक्रमित हो सकता है।
अगर वायरस म्यूटेट हो गया तो क्या वैक्सीन पर कोई फर्क पड़ेगा?
इन्फ्लुएंजा वायरस में तेज़ी से म्यूटेशन होता है। इसे एंटीजेनिक शिफ्ट कहते हैं। अगर वायरस में छोटे-छोटे बदलाव होते हैं तो वैक्सीन पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा। कई बार वायरस के एंटीजेन शिफ्ट होने में 10 से अधिक वर्ष लग जाते हैं। कोविड-19 में इतना मेजर म्यूटेशन अभी नहीं हुआ है कि वैक्सीन का असर उस पर न हो।
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