Saturday, July 25, 2020

Melania Trump body language shows FLOTUS is 'counterpoint' for 'spontaneous' Donald



MELANIA TRUMP has been married to Donald Trump for 15 years. What does their body language show about their roles in the White House? An expert gives their verdict.

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Hair loss treatment: One way men could prevent thinning hair, approved by a doctor



HAIR LOSS can damage a person's confidence. Are you feeling the negative effects of thinning hair? Dr Aragona Giuseppe - the Prescription Doctor - tells it like it is, and uncovers possible treatments you can rely on.

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इंसानों और वाहनों का शोर कम होने से वाइब्रेशन 50% तक घटा, भूकम्प का पता लगाना पहले से आसान हुआ

कोरोनाकाल में इंसानों के कारण धरती में होने वाले वाइब्रेशन यानी कम्पन में 50 फीसदी की कमी हुई। धरती के अंदर का शोर कम हुआ है। यह आंकड़ा बेल्जियम की रॉयल वेधशाला ने दुनियाभर के 117 देशों के 268 रिसर्च स्टेशन से मिली जानकारी के आधार पर जारी किया।

रॉयल वेधशाला की रिपोर्ट के मुताबिक, आम दिनों में शहरी क्षेत्र में इंसान, कार, ट्रेन और बसों के कारण धरती में वाइब्रेशन पैदा होता है लेकिन लॉकडाउन के दौरान धरती काफी हद तक शांत रही।

  • भूकम्प का पता लगाना आसान हुआ

रिसर्च रिपोर्ट से एक बात साफ हुई कि धरती में कंपन कम होने के कारण भूकंप की जानकारी समय से पहले देना आसान हो जाता है। धरती में कम्पन कितना हुआ इसे सिस्मोमीटर्स के जरिए मापा जाता है। इन सेंसर्स का इस्तेमाल भूकंपीय तरंगों के साथ मानव गतिविधियों से होने वाली ध्वनि को पकड़ने और समझने में काम आता है। यह बारीक से बारीक वाइब्रेशन साउंड को माप सकता है। दुनिया के हर हिस्सों में इससे मॉनिटरिंग की जाती है।

  • अप्रैल में ही जताई थी सम्भावना

इस रिसर्च के मुख्य शोधकर्ता डॉ. थॉमस लीकॉक ने अप्रैल में कहा था कि इंसानों की गतिविधि कम होने के कारण हमें ऐसी नई बातें पता चलेंगी जो पर्यावरण और दूसरी चीजों के लिए सबक साबित होगा।

  • लॉकडाउन के कारण पहली बार पता चली 4 बड़ी बातें

1. दुनियाभर में शोर कम हुआ
शोधकर्ताओं के मुताबिक, 2020 का लगभग आधा साल एक ऐसा लम्बा समय था, जिस दौरान दुनियाभर में होने शोर में कमी आई। रिपोर्ट कहती है कि इससे वैज्ञानिकों को ऐसी कई बातें पता चली हैं जो आम दिनों में इंसानी गतिविधियों के कारण नहीं पता चल पाती थीं।

2. इंसानों की गतिविधि कम हो तो नई जानकारी मिलना आसान
अधिक घनी आबादी वाले क्षेत्रों में इंसानों के कारण होने वाली गड़गड़ाहट का असर बुरा होता है। ऐसी स्थिति में समय से पहले भूकम्प के असर को बताने की क्षमता कम हो जाती है। भूकम्प विज्ञानी इसका पता लगाने के लिए ध्वनि की फ्रीक्वेंसी को जांचते हैं जो लोगों की गतिविधि से पैदा होती है। इससे पता चलता है कि प्राकृतिक आपदा आ सकती है या नहीं।

3. आबादी बढ़ी तो लोग प्राकृतिक और भौगोलिक आपदा से जूझेंगे
शोधकर्ताओं के मुताबिक, दुनियाभर में जैसे-जैसे आबादी बढ़ रही है वैसे-वैसे लोगों के प्राकृतिक और भौगोलिक आपदा से जूझने का खतरा भी बढ़ रहा है। शहरीकरण बढ़ने से इंसानों के बीच शोर बढ़ेगा और भूकम्प जैसे गतिविधियों को मॉनिटर करना मुश्किल होगा।

4. कंपन कम होने से भूकम्प के सटीक आंकड़े समझ में आए
शोधकर्ताओं के मुताबिक, लॉकडाउन के कारण हम मैक्सिको जैसे देश में समय से पहले भूकम्प का पता लगा पाए। यहां के शहर पेटेटलन में शोर 40 फीसदी तक घट गया। इस वजह से सटीक आंकड़े सामने आ पाए जो आमतौर पर कंपन अधिक होने के कारण आसानी से नहीं समझे जा पाते थे।



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Human-activity induced vibrations have lessened by 50% says study of Royal Observatory belgium


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Clare Balding health: Presenter reveals the shocking diagnosis which changed her life



CLARE BALDING is a popular face on television screens as the broadcaster on BBC sport, Channel 4 and BT Sport. Clare comes across as a strong woman who can face almost anything and ten years ago her strength was put to the test when she was told she may have a life threatening condition. What was the condition and what are the symptoms?

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A Viewer Spotted a Lump on Her Neck. Now, She’s Having a Tumor Removed.

Victoria Price, an investigative reporter in Tampa, Fla., said she was grateful that a viewer sent her a terse email suggesting that she get her thyroid checked out.

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देश और दुनिया में कोविड-19 फैलाने वाले वायरस का स्ट्रेन एक जैसा, यही खासियत असरदार वैक्सीन को बनाने में मददगार साबित होगी

भारत और दुनियाभर में कोविड-19 फैलाने वाला कोरोना वायरस का स्ट्रेन एक जैसा है। ऐसा होने की वजह से वैक्सीन और भी ज्यादा प्रभावी बनाई जा सकेगी। यह कहना है कि सेंटर फॉर सेल्युलर एंड मॉलिकुलर बायोलॉजी, हैदराबाद के डायरेक्टर राकेश मिश्रा का। उनका कहना है कि कोरोनावायरस की विस्तृत जीन मैपिंग से जो नतीजे सामने आए हैं वो इशारा करते हैं कि इसके म्यूटेट होने की आशंका कम है और ये अधिक खतरनाक रूप नहीं लेगा।

315 वायरल जीनोम की स्टडी की
हैदराबाद सेंटर फॉर सेल्युलर एंड मॉलिकुलर बायोलॉजी ने 315 कोरोनावायरस की जीनोम सिक्वेंसिंग का अध्ययन किया। यहां के शोधकर्ताओं ने देशभर के सैंपल जुटाए। यहां की आबादी में मौजूद 1700 कोरोनवायरस के सीक्वेंस का विश्लेषण किया। डायरेक्टर राकेश मिश्रा के मुताबिक, वायरस एक साल में 26 बार म्यूटेट हो रहा है यानी औसतन हर 15 दिन में एक बार। अभी जो कोरोना संक्रमण फैला रहा है उसके खतरनाक वायरस में तब्दील होने के आसार बेहद कम हैं।

कई अहम जानकारियां आनी बाकी हैं

राकेश मिश्रा के मुताबिक, वायरस के म्यूटेशन की स्टडी में अब तक जो नतीजे सामने आए हैं उसके मुताबिक, या तो ये न्यूट्रल हैं या खुद को नुकसान पहुंचाने वाले हैं। आगे और भी नए सैम्पल्स की जीनोम सिक्वेंसिंग की जानी है। इनकी रिपोर्ट इस बात को समझने में मदद करेगी कि वायरस किस हद तक संक्रमण फैलाता है। ताकि ये नतीजे वैक्सीन तैयार करने और मरीजों के इलाज में लागू किए जा सकें।



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Coronavirus Strain India | Coronavirus Disease (COVID-19) Strain In India Vs World Latest Updates On Scientist Research


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Type 2 diabetes: The cooking oil shown to lower blood sugar levels



TYPE 2 diabetes complications can be avoided if you stabilise your blood sugar levels. Diet holds the key and a particular cooking oil should be included in your protective arsenal.

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5 ways to keep skin oil-free in summers

Our skin tends to get oily during monsoons, as humidity increases. And, as the skin gets greasy, pores get blocked and lead to acne, making your skin look dull.

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कोविड-19 के खिलाफ हर्ड इम्युनिटी विकसित होने में लम्बा समय लगेगा, इसके लिए दुनिया की 70 से 80% आबादी में एंटीबॉडीज बनने की जरूरत; टीका आने के बाद ही इसमें तेजी आएगी

कोविड-19 के खिलाफ हर्ड इम्युनिटी विकसित होने में लम्बा समय लगेगा, टीका आने के बाद ही इसमें तेजी आएगी। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने यह चेतावनी शुक्रवार को जारी की। WHO की चीफ साइंटिस्ट डॉ. सौम्या स्वामीनाथन ने शुक्रवार को कहा, वैज्ञानिक लगातार वैक्सीन को तैयार करने में लगे हैं। कोविड-19 से राहत मिलना अगले साल या उसके बाद ही सम्भव है। इस दौरान कोरोना से होने वाली मृत्य दर को कम करने में मदद मिलेगी।

डॉ. स्वामीनाथन ने कहा, हर्ड इम्युनिटी विकसित करने के लिए 50 से 60 फीसदी आबादी में कोविड-19 से लड़ने की रोग प्रतिरोधक क्षमता होनी चाहिए, तभी कोरोना के संक्रमण को रोका जा सकता है। वैक्सीन लगने के बाद ही ऐसा सम्भव हो पाएगा।

कहीं 5-10 फीसदी तो कहीं 20 फीसदी एंटीबॉडी विकसित हुईं
डॉ. स्वामीनाथन के मुताबिक, कोविड-19 से प्रभावित होने वाले कई देशों ने रिसर्च की है। रिसर्च में सामने आया है 5 से 10 फीसदी लोगों में ही एंटीबॉडी पाई गईं। कुछ देशों में यह 20 फीसदी तक हैं। कई देशों में कोरोना के मामले बार-बार बढ़ रहे हैं। इन देशों के लोगों में एंटीबॉडी विकसित हो रही हैं। उम्मीद करती हूं कि इन लोगों में रोगों से लड़ने की क्षमता बढ़ेगी और ये संक्रमण की चेन को तोड़ेंगे।

वैक्सीन के साथ विकसित होने वाली हर्ड इम्युनिटी ज्यादा सुरक्षित

चीफ साइंटिस्ट ने कहा, हमारे विशेषज्ञों ने यह अनुमान लगाया है कि हर्ड इम्युनिटी विकसित करने के लिए दुनिया की 70 से 80 फीसदी आबादी में एंटीबॉडीज बनने की जरूरत है। महामारी के शुरुआती दौर में ब्रिटेन में हर्ड इम्युनिटी विकसित करने की रणनीति पेश की थी। इस पर डॉ. स्वामीनाथन का कहना है कि अगर हर्ड इम्युनिटी वैक्सीन के साथ विकसित होती है तो यह काफी सुरक्षित साबित होगी बजाय आबादी में से वायरस को खत्म करना।

क्या होती है हर्ड इम्युनिटी, 5 बड़ी बातें

  • हर्ड इम्युनिटी में हर्ड शब्द का मतलब झुंड से है और इम्युनिटी यानि बीमारियों से लड़ने की क्षमता। इस तरह हर्ड इम्युनिटी का मतलब हुआ कि एक पूरे झुंड या आबादी की बीमारियों से लड़ने की सामूहिक रोग प्रतिरोधकता पैदा हो जाना।
  • इस वैज्ञानिक आइडिया के अनुसार, अगर कोई बीमारी किसी समूह के बड़े हिस्से में फैल जाती है तो इंसान की इम्युनिटी उस बीमारी से लड़ने में संक्रमित लोगों की मदद करती है। इस दौरान जो लोग बीमारी से लड़कर पूरी तरह ठीक हो जाते हैं, वो उस बीमारी से ‘इम्यून’ हो जाते हैं। यानी उनमें प्रतिरक्षा के गुण पैदा हो जाते हैं। इसके बाद झुंड के बीच मौजूद अन्य लोगों तक वायरस का पहुंचना बहुत मुश्किल होता है। एक सीमा के बाद इसका फैलाव रुक जाता है। इसे ही ‘हर्ड इम्युनिटी’ कहा जा रहा है।
  • हर्ड इम्युनिटी महामारियों के इलाज का एक पुराना तरीका है। व्यवहारिक तौर पर इसमें बड़ी आबादी को नियमित वैक्सीन लगाए जाते हैं जिससे लोगों के शरीर में प्रतिरक्षी एंटीबॉडीज बन जाती हैं। जैसा चेचक, खसरा और पोलियो के साथ हुआ। दुनियाभर में लोगों को इनकी वैक्सीन दी गई और ये रोग अब लगभग खत्म हो गए हैं।
  • वैज्ञानिकों का ही अनुमान है कि किसी देश की आबादी में कोविड-19 महामारी के खिलाफ हर्ड इम्युनिटी तभी विकसित हो सकती है, जब कोरोनावायरस उसकी करीब 60 प्रतिशत आबादी को संक्रमित कर चुका हो। वे मरीज अपने शरीर में उसके खिलाफ एंटीबॉडीज बनाकर और उससे लड़कर इम्यून हो गए हों।
  • विशेषज्ञों के मुताबिक, कोविड-19 संक्रमण के मामलो में तो मौजूदा हालात को देखते हुए 60 से 85 प्रतिशत आबादी में प्रतिरक्षा आने के बाद ही हर्ड इम्युनिटी बन पाएगी। पुरानी बीमारी डिप्थीरिया में हर्ड इम्युनिटी का आंकड़ा 75 प्रतिशत, पोलियो में 85 प्रतिशत और खसरा में करीब 95 प्रतिशत है।


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Coronavirus Immunity | World Health Organisation (WHO) Chief Scientist Dr. Soumya Swaminathan On Coronavirus Vaccine and Immunity


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Prostate cancer symptoms: The warning sign when you urinate



PROSTATE cancer is the most common cancer in men in the UK, with over 40,000 new cases diagnosed every year. Symptoms do not usually appear until the cancer has grown - when this happens, you may notice a telltale sign in your urine.

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Coronavirus symptoms update: The mental disturbance that is surprisingly common



CORONAVIRUS disease, also known as COVID-19, is known to affect the lungs and airways but this tells only half the story. Research has found an acute mental disturbance surprisingly prevalent.

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Friday, July 24, 2020

Quotes by Ernest Hemingway

Nobel laureate and renowned writer Ernest Hemingway is known for his blunt style of writing. Here are some lines which show the grace of his short and honest writing style:

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